UCC पर BJP-कांग्रेस फिर आमने-सामने,दसौनी को निवास परिभाषा पर आपत्ति

यूसीसी पर तथ्यों को मरोड़कर अफवाह फैला रही कांग्रेस: आशा नौटियाल
यूसीसी पर कांग्रेस नेत्री को सामान्य जानकारी भी नही
यूसीसी से निवास पात्रता भी प्रभावित होगी: गरिमा माहरा दसौनी

देहरादून 6 अप्रैल, भाजपा ने कांग्रेस प्रवक्ता पर यूसीसी को लेकर तथ्यों को तोड़ मरोड़कर अफवाह फैलाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि हार सामने देख कर कांग्रेस बौखला गई हैं। साथ ही आशा जताई कि चुनाव आयोग स्वतः संज्ञान ले देवभूमि के वातावरण में जहर घोलने वाली ऐसी कोशिशों पर अंकुश लगाएगा।

उत्तराखंड भाजपा महिला मोर्चा अध्यक्ष ,पूर्व विधायक श्रीमती आशा नौटियाल ने कांग्रेस नेत्री गरिमा माहरा दसौनी के बयान को घनघोर आपत्तिजनक बताते हुए कहा कि यूसीसी में किसी भी तरह से निवास प्रक्रिया को लेकर कोई प्रावधान नहीं दिया गया है । उन्होंने हैरानी जताई कि कांग्रेस यूसीसी को लेकर उपापोह में क्यों है जबकि सदन से इसे पास करने में कांग्रेस विधायकों का भी सहयोग रहा । इससे सिद्ध है, या तो वे अपने विधायकों को अयोग्य बता रहे हैं, जिन्होंने लंबी बहस के बाद भी एक साल में निवासी बनाने के तथाकथित झूठे विषय पर ध्यान नहीं दिया या फिर उन्हें अपने विधायकों पर ही भरोसा नहीं है जिन्होंने सदन के बाहर आकर इतने समय बाद भी इसकी जानकारी पार्टी को नहीं दी ।
लगता है,इस विषय को लेकर कांग्रेस नेत्री को सामान्य जानकारी भी नही है और सिर्फ विवाद खड़ा करने को सफेद झूठ बोल रही हैं । वर्तमान नियमों में सामान्यतया छः महीने के निवासी का भी नाम वोटर लिस्ट में जोड़ दिया जाता है,लेकिन उसका राज्य के स्थायी निवासी से कोई संबंध नहीं होता। राज्य में स्थायी निवास को अभी भी अवधि 12 वर्ष ही है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सभी बातें कांग्रेस भी जानती है लेकिन राजनीतिक उद्देश्य से जनता को गुमराह करने को वह ऐसा वितंडा फैला रही है।

उन्होंने व्यंग्य किया कि मज़हबी वोटों की चाह में कांग्रेस की यूसीसी विरोध की मंशा तो आजादी के समय से ही सर्वविदित है। दरअसल कांग्रेस चाहती है कि जिनके पास स्थायी निवास प्रमाण पत्र नहीं है और राज्य में रह रहे हैं, उन्हें 4-4 शादी करने की छूट यथावत रहे। उन्हें हलाला और अन्य रूढ़िवादी प्रथाओं से महिलाओं से अन्याय करने की छूट यथावत रहे। कांग्रेस नहीं चाहती कि हर वर्ग की महिलाओं को यूसीसी से संपत्ति एवं अन्य विषयों में समान अधिकार दिए जाऐं। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस की आंतरिक इच्छा यूसीसी रोक कर देवभूमि की सांस्कृतिक-धार्मिक पहचान बदलना है । इसे राज्य के सवा करोड़ देवतुल्य जन कैसे भी सफल नहीं होने देगें।

उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस के कार्यकाल में शराब माफिया,खनन माफियाओं और लैंड माफिया से मिलकर सरकारी नीतियां बनती थी । अपनी सरकार में इन्होंने मिट्टी से सोना बनाने वाले अपने साथी कारोबारियों को लाभ पहुंचाने को मां गंगा नदी को भी नहर श्रेणी में डाल दिया था। देश- दुनिया ने वह वीडियो भी देखा जिसमें कांग्रेस के मुख्यमंत्री अपनी सरकार बचाने के बदले राज्य को लूटने का लाइसेंस देते दिखे। भ्रष्टाचार का पर्याय और हमेशा राज्य विरोधी रही कांग्रेस के नेताओं को भान हो गया है कि लोकसभा चुनाव में उनके उम्मीदवारों की जमानतें जब्त होने को है इसलिए वे इस तरह के झूठे अनर्गल प्रपंच रच रहे हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि चुनाव आयोग कांग्रेस नेताओं की ऐसी बयानबाजी को संज्ञान में ले राज्य का वातावरण खराब नही होने देगा ।

अब एक साल उत्तराखंड में रहने वाला व्यक्ति होगा उत्तराखंड का निवासी? -गरिमा मेहरा दसौनी

असल में मूल रूप से उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता और उत्तर प्रदेश की मीडिया प्रभारी श्रीमती गरिमा मेहरा दसौनी ने टिहरी लोकसभा क्षेत्र चुनाव प्रभारी पूर्व मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी की प्रेस वार्ता में यह विषय उठाया था और आरोप लगाया था कि धामी सरकार समान नागरिक संहिता की आड़ में उत्तराखंडियों से बड़ा छलावा कर रही है। उनके अनुसार यह पहली बार नहीं है जब भाजपा सरकारों के मुख्यमंत्रियों ने उत्तराखंड को घाव दिया हो, इससे पहले भी 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भू कानून संशोधित कर उत्तराखंड की जमीन बाहरी लोगों और भू माफिया को गिरवी रख दी। पूर्ववर्ती सरकारों में बाहरी व्यक्ति केवल उत्तराखंड में 200 वर्ग मीटर से ज्यादा की जमीन नहीं खरीद सकता था परंतु त्रिवेंद्र रावत ने भू कानून में बड़ा संशोधन करते हुए यह नियम खत्म कर दिया और उत्तराखंड की भूमि गिद्धों को नोचने को छोड़ दी। दूसरा कुठाराघात धामी सरकार में नियम 143(ए)लैंड यूज बदल कर किया। पूर्ववर्ती सरकारों में यदि सरकार से किसी व्यक्ति या संस्था को किसी विशेष प्रयोजन को भूमि आवंटित होती थी तो उस पर निश्चित समय सीमा में उद्योग या संस्थान लगाना अनिवार्य था । ऐसा न होने पर वह भूमि राज्य सरकार में निहित हो जाती थी परंतु धामी सरकार ने लैंड यूज में बदल कर वह प्रावधान ही समाप्त कर दिया गया यानि यदि किसी ने अस्पताल या दवा कारखाना या विद्यालय खोलने को सरकार से भूमि ली और वहां वनंतरा जैसा रिजॉर्ट खोल दे तो उस पर ना कोई कार्यवाही होगी और ना ही लह भूमि सरकार के वापस लेने का प्रावधान होगा।
दसौनी के अनुसार उत्तराखंड के जनसमुदाय पर एक और वज्रपात करते हुए धामी सरकार की समान नागरिक संहिता में निवासी की दी परिभाषा में उन्होंने उत्तराखंड में मात्र एक साल से अधिक समय से रहने वाले व्यक्ति को यहां का निवासी मान लिया है । दसौनी ने कहा कि उत्तराखंड की जनता सशक्त भू कानून और मूल निवास की मांग पर अडिग है। ऐसे में समान नागरिक संहिता, जो अब एक कानून बन चुका है उसमें इस तरह का प्रावधान उत्तराखंड के लोगों के से बड़ा धोखा है और भारतीय जनता पार्टी की सरकारों की मंशा बताता है। पूर्व में भी यही देखने में आया है कि भारतीय जनता पार्टी से संबंधित एक संगठन विशेष के गैर उत्तरांखडी मूल के लोगों को बड़ी संख्या में आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय और मुक्त विश्वविद्यालय में नियुक्तियां दे दी। दसौनी ने कहा कि अव्वल तो धामी सरकार की लाई समान नागरिक संहिता संविधान के अनुच्छेद 14 और 44 का सीधा-सीधा उल्लंघन है जो समान अधिकार की बात करता है। धामी सरकार के उत्तराखंड पर यूसीसी थोप देने से उत्तराखंड बाकी देशवासियों से अलग-थलग हो गया है। यही नहीं,उत्तराखंड में भी यह पंडोरा बॉक्स आधी अधूरी आबादी पर ही लागू होगा जो इसकी मूल भावना ही समाप्त कर देता है। दसौनी ने कहा की निवासी की जो परिभाषा समान नागरिक संहिता के ड्राफ्ट में अंकित है उससे उत्तराखंड के जनमानस में बेहद आक्रोश और ऊहापोह है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *