रेप केस में आरोपित पर खुद को निर्दोष सिद्ध करने का दायित्व नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court Rape Case No Onus On The Accused To Prove His Innocence
रेप केस में आरोपी पर खुद को निर्दोष साबित करने का दायित्व नहीं: सुप्रीम कोर्ट
केस में यह तथ्य सामने आया था कि युवती बस का इंतजार कर रही थी। आरोपित उसके पति के जानकार थे। आरोपी ने उन्हें लिफ्ट दी और गेस्ट हाउस ले जाकर जबरन संबंध बनाए। अभियोजन पक्ष का कहना था कि आरोपित पर लड़की ने विश्वास किया था और विश्वास का कारण भी था। ऐसे में इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा-114ए में आरोपित को खुद को बेदाग साबित करना होगा।
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरोपित पर तब तक इस बात का दायित्व नहीं है कि वह खुद को निर्दोष साबित करे जब तक कि कानून ऐसा न कहता हो। अभियोजन पक्ष पर इस बात का दायित्व है कि वह आरोपी के खिलाफ बिना संदेह केस साबित करे। जस्टिस ए. एस. ओका की अगुआई वाली बेंच ने रेप मामले में आरोपी को बरी करते हुए यह व्यवस्था दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी मामले में कानूनी प्रावधान ही ऐसा है तो वह अलग बात है। रेप केस में आरोपित को हाई कोर्ट ने दोषी करार दिया था जिसके खिलाफ सुप्रीम का दरवाजा खटखटाया गया था।

अदालत ने कहा कि धारा-114 ए इस मामले में लागू नहीं होता। कोर्ट ने कहा कि यह तथ्य सामने आया है कि लड़की अपनी मर्जी से आरोपित के साथ गई थी। गेस्ट हाउस के मालिक ने कहा कि आरोपित और लड़की ने यह कहा था कि वह दोनों पति-पत्नी हैं। दोनों के बीच वॉट्सऐप पर करीब 400 मैसेज का ट्रांसफर है। घटना के बाद भी दोनों संपर्क में थे। जब गेस्ट हाउस से दोनों निकले तब भी लड़की ने कोई शोर नहीं मचाया था। सुप्रीम कोर्ट ने तमाम तथ्यों के आधार पर आरोपी को बरी कर दिया।

गुनाह साबित नहीं तब तक आरोपित निर्दोष
सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि हर नागरिक को निर्दोष माना जाना उसका मानवाधिकार है। जो कानूनी सिद्धांत और संवैधानिक व्यवस्था है उसके मुताबिक हर आरोपित तब तक निर्दोष है जब तक कि गुनाह साबित न हो जाए। केस साबित करने का दायित्व अभियोजन पक्ष पर है। मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो व्यवस्था दी है वह इस सिद्धांत को और पुख्ता करती है। संविधान यह भी कहता है कि किसी को भी उसके खुद के खिलाफ गवाही के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। हर किसी को चुप रहने का अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद-20 (3) में नागरिक को यह अधिकार है। नार्को टेस्ट या इस तरह का दूसरा साइंटिफिक टेस्ट भी इसी दायरे में था।

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