सतलुज में टैंटलम की खोज से बदल सकती है भारत की रक्षा और तकनीकी सामर्थ्य

फोन, लैपटॉप, डिजिटल कैमरा बनाने में इस्तेमाल होता है टैंटलम, अभी आयात पर निर्भर है भारत
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) रोपड़ के शोधकर्ताओं की टीम ने हाल ही सतलज नदी की रेत में एक दुर्लभ धातु टैंटलम की खोज की है। इस खोज को एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल टैंटलम एक दुर्लभ धातु है। इसकी की ऐसी खूबियां हैं जिसके चलते इसे कई उद्योगों में इस्तेमाल किया जा सकता है।

फोन, लैपटॉप, डिजिटल कैमरा बनाने में इस्तेमाल होता है टैंटलम, अभी आयात पर निर्भर है भारत
सतलज नदी के कई हिस्सों से सैंपल लिए गए और सभी जगह टैंटलम पाया गया।

नई दिल्ली,। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) रोपड़ के शोधकर्ताओं की टीम ने हाल ही सतलज नदी की रेत में एक दुर्लभ धातु टैंटलम की खोज की है। इस खोज को एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल टैंटलम की कई ऐसी खूबियां हैं जिसके चलते इसे कई उद्योगों में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस खोज पर हमने IIT रोपड़ की वैज्ञानिक डॉक्टर रेसमी सेबेस्टियन से बात की। उन्होंने बताया कि उनकी टीम पंजाब के उत्तर पूर्वी भाग में भूकंपीय गतिविधियों को समझने के लिए शोध कर रही थी। इसी में सतलज नदी की रेत के सैंपलों की जांच की गई। नदी की रेत में दुर्लभ धातुओं में से एक, टैंटलम के निशान दिखाई दिए। खास बात ये है कि ये ऊर्जा को संग्रहीत करने और उसे धीरे-धीरे रिलीज करने को जानी जाती है। इसी के चलते इसका इस्तेमाल सेमिकंडक्टर इंडस्ट्री में किया जाता है। खास बात ये है कि सतलज नदी के कई हिस्सों से सैंपल लिए गए और सभी जगह टैंटलम पाया गया। IIT रोपड़ के इस शोध के बाद पंजाब के खनन विभाग ने भी इसमें रुचि दिखाई है।

टैंटलम क्या है, इसका कहां इस्तेमाल हो सकता है, इसकी क्या खूबियां हैं, इस तरह के कई सवाल आपके मन में आ रहे होंगे। हमने आपके सवालों के जवाब जानने को आईआईटी रुड़की के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर सतीश चंद्रा और IIT खड़गपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर अमित कुमार दत्ता से बात की। आइये जानते हैं इस दुर्लभ धातु के बारे में सबकुछ।

टैंटलम क्या है?

टैंटलम एक धातु है। ये बहुत कम पाई जाती है। इसका एटॉमिक नंबर 73 होता है। इसका रंग ग्रे होता है। यह भारी और बहुत कठोर धातु है।

टैंटलम धातु की क्या खूबी है?

टैंटलम धातु की कई खूबियां हैं। ये धातु बेहद लचीली होती है। सोने की तरह इसके पतले तार खीचे जा सकते हैं। इसमें कभी जंग नहीं लगता या हम कह सकते हैं कि इसका क्षरण नहीं होता है। दरअसल हवा के संपर्क में आने पर इस धातु के ऊपर एक ऑक्साइड की परत बन जाती है। इसे हटाना बेहद मुश्किल होता है। फिर भले ही यह मजबूत और गर्म एसिड वातावरण के साथ संपर्क करता हो। इसमें ऊर्जा को स्टोर करने की भी प्रवृति है।

इस धातु की पहली बार खोज कब हई ?

स्वीडन के वैज्ञानिक एंटर्स गुस्ताफ एकेनबर्ग ने साल 1802 में पहली बार टैंटलम की खोज की थी। पहली बार लोगों को लगा कि गुस्ताफ ने नियोबियम की खोज की है, जो एक तरीके से टैंटलम जैसा ही दिखता है। साल 1866 में स्वीडन के एक और वैज्ञानिक जीन चार्ल्स ने अपनी रिसर्च के आधार पर स्प्ष्ट किया कि नियोबियम और टैंटलम दो अलग-अलग धातु हैं।

इस धातु का नाम टैंटलम कैसे पड़ा ?

दरअसल टैंटलम नाम का ग्रीक राजा हुआ करता था। इसका जिक्र पौराणिक कथाओं में मिलता है। ये राजा बेहद अमीर था।

टैंटलम कितनी दुर्लभ धातु है?

अमेरिकन जियोसाइंस इंस्टीट्यूट के मुताबिक टैंटलम बेहद दुर्लभ धातु है। ये प्राकृतिक तौर पर धातु के रूप में नहीं मिलती है। संस्था के अनुमान के मुताबिक अर्थ क्रस्ट (पृथ्वी की सतह की सबसे ऊपरी परत, जो महाद्वीपों में करीब 35 किमी और समुद्र के तल में सिर्फ 5 किमी मोटी होती है) में टैंटलम लगभग 2 भाग प्रति मिलियन है।

टैंटलम का इस्तेमाल कहां किया जाता है?

टैंटलम का इस्तेमाल हर तरह के इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद में किया जाता है। आप जो मोबाइल फोन, लैपटॉप, डिजिटल कैमरा आदि इस्तेमाल करते हैं सभी में इसका इस्तेमाल होता है। दरअसल टैंटलम कैपेसिटर में कम मात्रा में अधिक बिजली का भंडारण किया जा सकता है। ये अलग अलग तापमान पर भी स्थिरता प्रदान करता है।

टैंटलम मिलने से देश को किस तरह से फायदा होगा?

टैंटलम धातु का इस्तेमाल सेमिकंडक्टर इंडस्ट्री के साथ ही न्यूक्लियर पावर प्लांट, फाइटर जेट, मिसाइल और स्पेस क्राफ्ट तक में किया जाता है। ऐसे में सतलज में टैंटलम का मिलना देश के लिए बड़ी उपलब्धि है। टैंटलम के इस्तेमाल से भारत एक बार फिर सोने की चिड़िया बन सकता है।

टैंटलम केमिकल्स के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देता है?

टैंटलम बेहद अनरिएक्टिव धातु है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग की मानें तो ये धातु 150 डिग्री सेल्सियस से नीचे के तापमान पर रासायनिक हमले के प्रति लगभग पूरी तरह से सेफ रहता है। केवल हाइड्रोफ्लोरिक एसिड, फ्लोराइड आयन युक्त एसिड सॉल्‍यूशन और फ्री सल्फर ट्राइऑक्साइड से इसे नुकसान होता है। टैंटलम का मेल्‍ट‍िंग पॉइंट भी काफी ज्यादा है। केवल टंगस्टन और रेनियम ही इससे ज्‍यादा मेल्टिंग पॉइंट रखते हैं।

टैंटलम दुनिया में सबसे ज्यादा कहां पाया जाता है ?

टैंटलम धातु के उत्पादक ज्यादातर अफ्रीकी देश हैं। 2022 में कांगो ने सबसे अधिक 860 मिट्रिक टन टैंटलम धातु का उत्पादन किया है।

भारत अपनी जरूरतों के लिए टैंटलम कहां से आयात करता है ?

भारत अपनी जरूरतों के लिए फिलहाल अमेरिका, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका और मलेशिया से टैंटलम आयात करता है। भारत सरकार के खनन मंत्रालय की 30 क्रिटिकल मिनिरल्स की लिस्ट में टैंटलम भी शामिल है।

क्या स्वास्थ्य के क्षेत्र में टैंटलम का इस्तेमाल होता है ?

अमेरिकी ऊर्जा विभाग के अनुसार, टैंटलम शारीरिक तरल पदार्थों के साथ प्रतिक्रिया नहीं करता। ऐसे में इसका इस्तेमाल कृत्रिम जोड़ों जैसे सर्जिकल उपकरण तथा प्रत्यारोपण के लिये किया जाता है।

क्या टाइटेनियम के विकल्प के तौर पर टैंटलम का इस्तेमाल होता है ?

टैंटलम और टाइटेनियम दोनों दिखने में एक जैसी होती हैं। ऐसे में दुनिया में अब टाइटेनियम के विकल्प के तौर पर टैंटलम का इस्तेमाल होने लगा है। अब टैंटलम की भी अंगूठियां और कुछ आभूषण बनाए जाने लगे है।

क्या सतलज की रेत में कुछ और धातुएं भी मिली हैं ?

शोध में शामिल वैज्ञानिकों के मुताबिक सतलज की रेत में टैंटलम के अलावा मैगनीज भी मिली है। सतलज की रेत पर वैज्ञानिक और अध्ययन कर रहे हैं।

क्या सतलज की रेत में पर्याप्त टैंटलम है ?

वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि सतलज की रेत के ज्यादातर सैंपलों में 10 फीसदी से अधिक टैंटलम पाया गया है। इसको लेकर वैज्ञानिक काफी उत्साहित हैं।

दुनिया भर का ट्रेड डेटा उपलब्ध कराने वाली संस्था The Observatory of Economic Complexity के मुताबिक 2021 में टैंटलम का शीर्ष आयातक संयुक्त राज्य अमेरिका था। दूसरे नम्बर पर चीन और तीसरे नम्बर पर अल साल्वाडोर था।

टैंटलम क्या भारत की खनिज नीति का हिस्सा है?

भारत की खनिज नीति में ऐसे खनिजों को प्राथमिकता दी गई है जिनके लिए भारत पूरी तरह से आयात पर निर्भर है। इनमें टैंटलम भी एक है। इसके अलावा सरकार ने लिथियम, बेरिलियम, टाइटेनियम, नाइओबियम, और ज़िरकोनियम के खनन को भी मंजूरी दी है।

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