हल्द्वानी: मादा हरावल दस्ता,पत्थरबाज युवा,सीसीटीवी कैमरे तोड़े,बिजली गुल,पुलिस से बेहतर दंगाईयों की प्लानिंग

हल्द्वानी में पूरी प्लानिंग के साथ हुआ टीम पर हमला, पहले महिलाओं को किया आगे फिर पत्थरबाजी; CCTV तोड़े-बत्ती गुल
पुलिस-प्रशासन और नगर निगम की टीम दोपहर तीन बजे अलग-अलग जगहों पर एकजुट होने लगी। हमेशा की तरह कार्रवाई की पूर्व सूचना किसी को नहीं थी। बनभूलपुरा थाने के आगे नगर निगम पुलिस और मीडियाकर्मी जुटे तो हर कोई आकर पूछने लगा कि क्या मामला है। क्या होने जा रहा है। लेकिन जवाब में हर कोई यही कहता दिखा कि पता नहीं अधिकारी ही बता पाएंगे।

हल्द्वानी 08 फरवरी। पुलिस-प्रशासन और नगर निगम की टीम दोपहर तीन बजे अलग-अलग जगहों पर एकजुट होने लगी। हमेशा की तरह कार्रवाई की पूर्व सूचना किसी को नहीं थी। बनभूलपुरा थाने के आगे नगर निगम, पुलिस और मीडियाकर्मी जुटे तो हर कोई आकर पूछने लगा कि क्या मामला है। क्या होने जा रहा है। लेकिन जवाब में हर कोई यही कहता दिखा कि पता नहीं अधिकारी ही बता पाएंगे। हमें तो सिर्फ यहां आने को कहा गया है।

लेकिन भारी पुलिसबल को देख बनभूलपुरा के लोगों ने अंदाजा लगा दिया कि मामला पिछले सात दिन से खासा चर्चाओं में रहे मलिक का बगीचा से ही जुड़ा है। इसलिए टीम के मौके पर पहुंचने से पहले यह प्लानिंग बना ली गई थी कि कब क्या करना है।

पुलिस ने जगह-जगह लगाए थे बेरीकेड
सवा चार बजे करीब पुलिसबल के मौके पर पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था। मलिक के बगीचे में लोग न पहुंच पाए। इसके लिए अलग-अलग जगहों पर बेरीकेड लगाए गए। सभी बेरीकेडो को हटाने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी थी। रास्ते में सरकारी गाडियों को रोकने की कोशिश भी होने लगी। इसके बाद घरों से महिलाओं को आगे किया गया।
यह लोग एक बार पुलिस के आगे धरने पर बैठने लगी। लेकिन कोशिश नाकाम होने पर संख्या को और बढ़ा सीधा मलिक का बगीचा पहुंच गई। इस बीच टीम के ऊपर पत्थर बरसने भी शुरू हो गए। वहीं, बगीचे में महिलाएं पहले नमाजस्थल के आगे खड़ी हो गई। महिला पुलिसकर्मियों ने साइड किया तो बुलडोजर के बकैट में लेटने लगी। जिसके बाद बमुश्किल इन्हें हटाया गया।

विरोध में उतरी महिलाएं
मैदान से बाहर खदेडऩे पर यह तारबाड़ के बाहर से नारेबाजी और विरोध में उतर आई। इस बीच चारों दिशा से दीवार और तंग गलियों की आड़ से मुस्लिम युवाओं ने पत्थरबाजी शुरू कर दी। पुलिस एक जगह से खदेडऩे के लिए आगे बढ़ती तो दूसरी जगह से पत्थर बरसा फोर्स को पीछे खिसकाने की कोशिशें होने लगती।

वहीं, अवैध अतिक्रमण को तोडने के बाद जब पुलिस बल और निगम कर्मचारी इलाके से बाहर निकलने लगे। तो रास्ते में पडने वाली हर गली से पथराव किया गया। पहले से छत्तों पर जमा किए पत्थरों का अंधेरा होने के बाद इस्तेमाल किया गया। बड़ा सवाल यह था कि बत्ती भी गुल हो गई। अंधेरे में फोर्स जमीन पर और उपद्रवी छत्तों और अचानक सामने से आकर हमले करने लगे।

अंधेरे में घरों के गेट बंद किए, ताकि फोर्स खुद को बचाने की जगह न ढूंढ सके

अंधेरा होने के बाद मलिक के बगीचा से बाहर निकलना बेहद मुश्किल हो चुका था। पत्थरों से बचने के लिए पुलिस और निगमकर्मी लोगों के घरों में पनाह लेने की कोशिश कर सकते थे। लेकिन हर घर का गेट अंदर से बंद था। कुछ ने ताले लगा रखे थे। बाहरी छज्जे के नीचे खड़े होने पर उसी घर के ऊपर से पत्थर आ रहा था।

थाने के अलावा अन्य जगहों पर तोड़े सीसीटीवी

किसी भी घटना के बाद सीसीटीवी के माध्यम से उपद्रवियों को पहचाना जा सकता है। लेकिन उपद्रवियों ने बनभूलपुरा थाने के अलावा गोपाल मंदिर के पास सरकारी कैमरों को तोड़ा। इसके अलावा दुकान के बाहर लगे कैमरे भी तोड़ दिए गए।

सोचा था गली में जान बचेगी, यहां तो मौत खड़ी थी’, हल्द्वानी ह‍िंसा में घायल फोटोग्राफर की आपबीती
हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रणनीतिक हमले में कई पत्रकार भी घायल हुए। उनके वाहन फूंक दिए गये। छायाकार संजय कनेरा भी घटनाक्रम कवर करने पहुंचे थे। गंभीर हालत में बेस अस्पताल में भर्ती संजय ने बताया कि पत्थरबाजों से घिरने पर वह गली में घुसे तो उपद्रवियों ने  घेर लिया।
घटना को कवर कर  दफ्तर पहुंचना था, लेकिन बाहर की तरफ पथराव होने लगा। मैं भी फंस चुका था। साथ में कुछ पुलिसकर्मी भी थे। स्थिति यह थी कि हर कोई अपनी जान बचाने में जुटा था। सोचा कि गली की तरफ निकलूं, ताकि सामने और पीछे की तरफ से बरस रहे पत्थरों से बचा जा सके लेकिन गली में तो मौत खड़ी थी। उपद्रवियों ने घेरकर जमकर पीटा। हेलमेट छीना और सिर पर हमले किए। नाक व मार्मिक जगहों पर भी चोट पहुंचाई। कैमरा और मोबाइल तोड़  भाग गए। किसी तरह घिसटता बाहर तक पहुंचा।
स‍िर पर नुकीली चीज से क‍िया प्रहार
कैमरा देख समझ गए कि मीडियाकर्मी हूं। इसके बाद टूट पड़े। बचाव को पहना हेलमेट छीन सिर पर नुकीली चीज से प्रहार शुरू कर द‍िया। कैमरा छीनने पर घायल संजय ने कहा कि चिप लें लो क्योंकि,फोटो इसके अंदर है लेकिन कैमरा दे दो, लेकिन वो कहां सुनने वाले थे। पूरा कैमरा ही तोड़ दिया। घायल संजय जमीन पर गिर पड़े।
उपद्रवियों के दूसरी दिशा में भागने पर खुद ही घिसटते बाहर तक निकले।
Haldwani Violence Amar Ujala Reporter Also Stuck In Riots Told Whole Story
Haldwani Violence: जब भड़की हिंसा के बीच फंसे दो रिपोर्टर, घटना देख रह गए सन्न…ग्राउंड रिपोर्ट
हल्दू के नाम से बसे हल्द्वानी शहर अपनी नहर, शांति वाले मिजाज के बांशिदों के लिए जाना जाता रहा है। बीते वर्षों में कई बार मौका आया कि जब तनाव बढ़ा, पर ऐसा नहीं हुआ कि हालात बेकाबू हो जाएं।

अमर उजाला फोटोग्राफर राजेंद्र सिंह बिष्ट
हल्द्वानी में जब हिंसा भड़की तो अमर उजाला के विजेंद्र श्रीवास्तव भी वहीं थे। उन्होंने यह पूरा घटनाक्रम अपने सामने होते देखा तो सन्न रह गए। उनके अनुसार नगर निगम टीम के पहुंचते ही तनाव बढ़ने लगा था, हर तरफ से लोग जुटने लगे। छत पर लोग इकट्ठा थे, जहां कार्रवाई होनी थी, उसके मोड़ के सामने एक जगह पर पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाई हुई थी, वहां लोग जुटे थे।

पुलिस ने उनसे हटने के लिए तकरार हो गई। आक्रोश बढ़ता जा रहा था, पुलिस ने उन्हें धकेलने की कोशिश की तो दूसरी तरफ से भी जोर आजमाइश और नारेबाजी होने लगी।तनाव के बीच पहुंची जेसीबी ने ध्वस्त करने की कार्रवाई शुरू की तो पथराव शुरू हो गया।

दो तरफ से पथराव हो रहा था। एक पत्थर मेरे चेहरे पर पड़ने वाला था, जिसे हाथ से रोका तो अंगुली सूज गई। बगल में खड़े एक प्रशासनिक अधिकारी ने कहा कि … आप देख रहे हैं यह ठीक नहीं हो रहा है। लोग कानून हाथ में ले रहे हैं। अभी यह बात पूरी होती कि एक पत्थर फिर हमारे और उनके बीच आया। इसके बाद एक वाहन के पीछे छिपे। इन सबके बीच लगातार ग्रुप में सूचनाएं अपडेट करने की जिम्मेदारी भी निभाते रहे। इसके बाद उपद्रवियों ने हमला तेज कर दिया, जिस मुख्य रास्ते से आए थे, वहां पर खड़े वाहनों को आग लगा दी। जहां खड़े थे, वहां 112 पुलिस की जीप में आग लगा दी गई। इसके बाद तीन तरफ से पथराव होने लगा। पत्थरों की बारिश हो रही थी।
बचने की कोई गुंजाईश नहीं थी। मेरे सामने कई पुलिसकर्मी घायल हो रहे थे, पुलिस की बचाव और जवाब देने की कोशिश नाकाफी साबित हो रही थी। ऐसे में सबके सामने विकल्प था, जान बचाने के लिए मौके से हटे। आगे बढ़े तो फिर अराजक तत्वों ने घेरकर पथराव कर दिया। इसमें कई पत्थर पीठ और पैरे में लगे। पर भागने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। लड़खड़ाते हुए आगे बढ़े और अपने साथियों को आवाज दी। इसी बीच रिपोर्टर साथी हरीश पांडे आगे मिल गए। उनसे फोटोग्राफर साथी राजेंद्र बिष्ट के बारे में पूछा तो कोई पता नहीं चला। उसके बाद दौड़कर एक टेंपो में छिप गए, फिर एक भवन में आसरा लिया। हर तरफ अपशब्दों और मारों की आवाज गूंज रही थी। एक बार लगा कि शायद… यहां से कभी निकल नहीं सकेंगे। पुलिसकर्मी भी हालात देखकर हताश होने लगे थे। हर तरफ बदहवासी और चिंता थी।

जैसे-तैसे आगे पहुंचे, वहां एक घर से पानी मांगकर पिया और बरेली रोड पर पहुंचे। यहां पुलिसकर्मी अपने घायल साथियों को ढाढ़स बंधाने के साथ जल्द अस्पताल पहुंचाने की बात कह रहे थे। यहां से पैदल ही बेस अस्पताल की तरफ चले। वहां घायलों के पहुंचने की सूचना आ रही थी। इसी बीच बनभूलपूरा थाने को फूंकने की बात सामने आने लगी थी। हर तरफ अफरातफरी थी। बेस अस्पताल पहुंचकर फिर फोटोग्राफर साथी को फोन किया तो पता चला कि उन पर घातक हमला हुआ है। उनके सिर पर चोट लगी है और खून बह रहा है। पर उनको कुछ नेक लोगों ने एक धार्मिक स्थल में सुरक्षित किया हुआ है। वे चोट लगने से ज्यादा अपने कैमरे और उसमें फोटो न मिल पाने के लिए दुखी थी।

ऐसा होगा… इस शहर में सोचा नहीं था
हल्दू के नाम से बसे हल्द्वानी शहर अपनी नहर, शांति वाले मिजाज के बांशिदों के लिए जाना जाता रहा है। बीते वर्षों में कई बार मौका आया कि जब तनाव बढ़ा, पर ऐसा नहीं हुआ कि हालात बेकाबू हो जाएं। जब भी कोई बात होती तो मामले को बिगड़ने से पहले सुलझा लिया जाता। पर इस घटना ने शहर को एक ऐसा जख्म और दाग दे दिया, जो आने वाले सालों में शायद ही भर सकें।

यह पीड़ा किसी एक मीडियाकर्मी की नहीं बल्कि अधिकांश की यही स्थिति थी। प्रशासन से लेकर पुलिसकर्मियों के घाव भी इसी तरह की कहानी बयां कर रहे हैं।

पुलिसकर्मी बोला- ऐसा मंजर पहले नहीं देखा
बेस अस्पताल में भर्ती एक पुलिसकर्मी ने बताया कि भीड़ ने उन्हें भी घेर लिया था। उपद्रवियों की आक्रामता कम होने का नाम नहीं ले रही थी। पुलिस की नौकरी में अक्सर हंगामे और बवाल से निपटना पड़ता है। लेकिन ऐसा पहले कभी नहीं देखा था।

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