राहुल की तू तड़ाक के पीछे की क्या है कहानी?

हार की बौखलाहट में भाषा की मर्यादा भूलते राहुल गांधी

Rahul Gandhi Bhashan: कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार राहुल गांधी ने सोलापुर (महाराष्ट्र) में भाषण देते हुए कहा कि “नरेंद्र मोदी डरा हुआ है।
वह जानता हैं कि चुनाव उसके हाथ से फिसल रहा है। मोदी जब डरता है तो झूठ बोलता है।” यह तू तकार की भाषा किसी प्रधानमंत्री के लिए सिर्फ राजनीतिक गरिमा गिराने वाली बात नहीं है, बल्कि खुद को सुप्रीम और दूसरों को तुच्छ समझने की मानसिकता भी है।

राहुल गांधी को हिन्दी ठीक से आती है। वह पिछले 20 साल से हिन्दी प्रदेशों की राजनीति भी कर रहे हैं। भाषा की मर्यादा और लोकाचार का अब तक उनको ज्ञान हो जाना चाहिए। उनके सलाहकारों में मध्य प्रदेश के धुरंधर नेता दिग्विजय सिंह भी रहे हैं जो ओसामा बिन लादेन जैसे कुख्यात आतंकी को भी ओसामा जी कह कर बुलाते रहे हैं। फिर भी राहुल गांधी यदि शिष्टाचार का पालन नहीं करते तो दिक्कत कहीं और है।

यह एक बार की बात नहीं है कि वह प्रधानमंत्री मोदी के प्रति अनादर की भाषा का उपयोग कर रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपने एक भाषण में कहा था कि अगर भाजपा तीसरी बार निर्वाचित हुई तो भारत में आग लगा दी जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर सवाल किया कि क्या यह लोकतंत्र की भाषा है? लेकिन राहुल गांधी उसके बाद भी कहां रुके। विपक्ष द्वारा आयोजित रामलीला मैदान की रैली में राहुल गांधी ने कहा – पीएम मोदी ने चुनाव का मैच फिक्स कर दिया और चुनाव से पहले दो मुख्यमंत्रियों को जेल भेज दिया।

गांधी परिवार क्या इस मानसिकता में जी रहा है कि उसका जन्म भारत पर शासन करने के लिए हुआ है। या फिर यह कि वह भारतीय संसद और प्रधानमंत्री पद से भी ऊपर है। सिर्फ पीएम मोदी के लिए ही राहुल गांधी ने असम्मान नहीं व्यक्त किया बल्कि यूपीए सरकार के दौरान भी उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर सार्वजनिक रूप से तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कैबिनेट द्वारा पारित अध्यादेश को फाड़कर डस्टबिन में डाल दिया था।

अपनी ही सरकार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को राहुल गांधी ने शर्मिंदा किया था। कांग्रेसियों के लिए आशा के सबसे बड़े केंद्र राहुल गांधी ने कई बार दिखाया है कि ना तो उनके मन में बड़ों के प्रति सम्मान है और न ही किसी संवैधानिक पद के प्रति उनके मन में भाषा की मर्यादा। उन्होंने संसद के भीतर भी आचरण में बदलाव नहीं किया। बार बार नरेंद्र मोदी का अपमान करने की आदत बना डाली। संसद के भीतर उन्होंने मोदी को निशाना बनाते हुए कहा था कि चौकीदार चोर है।

राहुल गांधी मोहब्बत की दुकान खोलने और मोदी से नफरत नहीं करने का दावा तो करते हैं, लेकिन उनका व्यवहार हमेशा नफरती होता है। शायद उन्हें यह लगता है कि सिर्फ मोदी की वजह से वह भारत के प्रधानमंत्री नहीं बन सके हैं इसीलिए वह मोदी पर लगातार हमले करते रहते हैं। उन्हें कोसते हैं और उन उनके खिलाफ जहर उगलते हैं।

राहुल गांधी का यह अपरिपक्व व्यवहार उनके ऊपर भी कुछ सवाल खड़े करता है जो खुद को उनका सलाहकार बताते हैं। राहुल गांधी के पास सहायकों और सलाहकारों की फौज है। फिर भी कोई उन्हें उचित सलाह नहीं दे पाता। तो क्या मोदी को नीचा दिखाने की ये तमाम घटनाएं कांग्रेस की नीति का हिस्सा हैं? क्या फिर सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल, डोकलाम घटना के दौरान गुप्त रूप से चीनी दूत से मुलाकात, राफेल सौदे के बहाने मोदी को चोर कहने का वाकया भी उसी रणनीति का हिस्सा रहे हैं?

हालाँकि काँग्रेस में ही राहुल गांधी को अयोग्य मानते हुए कई वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। वे यह आरोप भी लगा चुके हैं कि राहुल उन्हीं को पसंद करते हैं, जो उनकी चमचागीरी करते हैं या उनकी नकारात्मक राजनीति में उनका साथ देते हैं। राहुल गांधी सरकार की नीतियों का पूरा अध्ययन नहीं करते और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बचकाना बयान देते हैं। वह कुछ पीआर प्रोफेशनल के भरोसे रहते हैं। वह उस मोदी को सतही हमलों से धराशायी करना चाहते हैं जिसके पास 24 साल सरकार चलाने का अनुभव है।

मोदी सरकार पर अभी तक भ्रष्टाचार का कोई बड़ा आरोप नहीं लगा है। जबकि यूपीए 2 में भ्रष्टाचार और रिश्वत के दर्जनों मामले सामने आए थे। पैसा कहां से आया और कहां गया, इसकी जानकारी सार्वजनिक हुईं और अदालतों में अब भी मुकदमे चल रहे हैं। राहुल गांधी को खुद करोड़ों रुपये की संपत्ति और नकदी पारिवारिक विरासत में मिली है। इतनी सारी संपत्ति और संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद वह खुद को सफल नेता सिद्ध नहीं कर पाए हैं। नेहरू-गांधी परिवार इस समय अपनी खोई हुई राजनीतिक ताकत को वापस पाने के लिए बुरी तरह दबाव में है। राहुल गांधी के लिए यह अस्तित्व का प्रश्न बन गया है। संभवत: इसीलिए उनके भीतर भाषा की मर्यादा भी जाती रही है।

विगत कुछ वर्षों से गांधी-नेहरु परिवार अपना राजनीतिक आकर्षण खो रहा है। इसलिए अब यह परिवार मोदी से असहमत मतदाताओं के साथ एकजुट होने की आखिरी कोशिश में है। शायद इसीलिए राहुल गांधी घोर हताशा में असंसदीय भाषा का सहारा ले रहे हैं। नरेंद्र मोदी के खिलाफ ऐसी अभद्र और असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करके संभवत: वो अपने मुस्लिम मतदाताओं को खुश करना चाहते हैं लेकिन यहां यह ध्यान रखने की जरूरत है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया भी होती है। अगर मोदी के खिलाफ अभद्र भाषा से राहुल के मुस्लिम समर्थक खुश होते हैं तो मोदी के हिन्दू समर्थक अपने नेता के पीछे एकजुट भी होते हैं।

 

(इस लेख में लेखक विक्रम उपाध्याय अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति हम उत्तरदायी नहीं है।)

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