मत:अग्निपथ कठिन लेकिन सही, कैसे और क्यों?

Agneepath Scheme: अग्निपथ का रास्ता कठिन, पर सही है

अग्निपथ योजना किस तरह बदल सकती है भारतीय सेना का चेहरा?
सैन्य बजट का बड़ा हिस्सा पेंशन पर खर्च कर देश कर रहा अपना नुकसान
अग्निपथ और अग्निवीर का विरोध करना क्यों सही नहीं?
आर्म्ड और पैरा मिलिट्री फोर्स को किस तरह जोड़ सकती है नई स्कीम?

स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर

सेना भर्ती की अग्निपथ स्कीम को लेकर देश के कई हिस्सों में बवाल हो रहा है। तोड़फोड़ की जा रही है, आगजनी हो रही है। हिंसा करने वालों को लगता है कि भारतीय सेना रोज़गार पैदा करने की जगह है, जबकि ऐसा है नहीं। साइबर युद्ध, ड्रोन, मिसाइल और यहां तक कि स्पेस वेपंस पर भी फोकस करते हुए देश को तुरंत अपनी सैन्य क्षमता को आधुनिक बनाने की ज़रूरत है। थल सेना अब भी मायने रखती है, पर पहले से कम। मानव संसाधन में व्यापक बदलाव चाहिए। अग्निपथ इसी दिशा में एक छोटा, लेकिन महत्वपूर्ण क़दम है। लोगों की आहत भावनाओं को शांत करने को सरकार इसमें थोड़ा बदलाव कर सकती है। लेकिन, कृषि सुधार क़ानूनों और भूमि अधिग्रहण की तरह उसे हथियार तो बिल्कुल नहीं डालने चाहिए।

आज स्थिति यह है कि सैनिक 15 साल नौकरी करते हैं और 50 बरसों तक पेंशन पाते हैं । ‘वन रैंक वन पेंशन’ के बाद तो पेंशन पर होने वाला खर्च हथियारों से ज़्यादा हो गया। यह पागलपन है। अग्निपथ योजना पेंशन के खर्च को धीरे-धीरे कम करेगी। यहां से जो पैसा बचेगा उसे हाईटेक स्टाफ और इक्वीपमेंट पर लगाया जा सकेगा। भारत के पास सेना कम होगी, लेकिन अधिक कुशल और बेहतर हथियारों से लैस।

अग्निपथ का लक्ष्य 46 हज़ार अग्निवीर नियुक्त करना है। चार साल बाद इनमें से 34 हज़ार को सेवा से मुक्त कर दिया जाएगा। उन्हें एकमुश्त लगभग 11 लाख रुपये मिलेंगे। इस योजना का लक्ष्य है नियमित सैनिकों और अग्निवीरों का रेश्यो 50-50 करना। इससे सैनिकों की औसत उम्र 32 साल से घटकर 26 साल हो जाएगी। ज़्यादा जवान सैनिक मतलब ज़्यादा फिट और ज़्यादा सख्त।

हालांकि, यह नया नज़रिया केवल 12 लाख सशस्त्र सेवाकर्मियों तक सीमित नहीं होना चाहिए। भारत में 10 पैरा-मिलिट्री और सिविल सिक्योरिटी फोर्स हैं। इनमें भी 10 लाख के करीब जवान हैं। इनमें सबसे बड़ी फोर्स है सेंट्रल रिजर्व पुलिस। इसमें साढ़े तीन लाख कर्मी हैं। इनका इस्तेमाल आंतरिक सुरक्षा और उग्रवाद से निपटने में किया जाता है। इसके बाद डेढ़ लाख से अधिक कर्मियों के साथ नंबर आता है सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स यानी CISF का। रेलवे के लिए अलग से रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स है। इसमें 75 हज़ार कर्मी हैं। पूर्वोत्तर में असम राइफल्स ने सुरक्षा संभाल रखी है, जबकि पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमाओं पर बीएसएफ ने। चीन सीमा पर आईटीबीपी के जवान रहते हैं। इसी तरह नेपाल और भूटान सीमा पर तैनाती होती है सशस्त्र सीमा बल की।

जाहिर है कि अलग तरह के काम के लिए अलग हुनर की ज़रूरत होती है। लेकिन, अभी जिस तरह अलग-अलग फोर्स के लिए अलग-अलग प्रक्रिया अपनाई जाती है, वह बहुत कारगर नहीं और खर्चीली भी है। इसमें सैलरी और पेंशन पर बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है। ग़लत उम्र के लोग ग़लत जगह पहुंच जाते हैं। ज़्यादा बेहतर यह होगा कि युवा जब 20 की उम्र में होते हैं, तब सशस्त्र सेना में उनकी तैनाती की जाए। इसके बाद पैरा-मिलिट्री फोर्स में भेजा जाए और फिर सिविलयन सिक्योरिटी में लगाया जाए।

हर सिक्योरिटी फोर्स में कुछ स्पेशलिस्ट की ज़रूरत होती है, लेकिन स्टाफ का एक बड़ा हिस्सा सशस्त्र सेना से लिया जा सकता है। इससे स्टाफ, सैलरी और पेंशन – तीनों कम हो जाएंगे। हां, यह ज़रूर है कि इससे उन लोगों को निराशा होगी, जो बिना मतलब पद बढ़ाने को रोज़गार सृजन मानते हैं। जिन लोगों के अपने स्वार्थ हैं, वे सुधारों का विरोध करेंगे ही। फिर भी हमें सुरक्षा को लेकर टुकड़ों के बजाय एक संपूर्ण दृष्टिकोण की ज़रूरत है।

अग्निपथ योजना के कुछ आलोचकों का कहना है कि एक या दो साल के अनुभव वाले सैनिक बच्चों की तरह होंगे, युद्ध के काबिल नहीं। उनके लिए बता दूं कि दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटिश इंडियन आर्मी ने 20 लाख रंगरूट भर्ती किए थे, जिन्होंने कुछ ही बरसों में जापानी सेना को धूल चटा दी। अगर बच्चे युद्ध में ऐसा कमाल कर सकते हैं, तो क्यों न सेना में उन्हें रखा जाए।

कुछ आलोचकों ने चेताया है कि इस समय बेरोज़गारी चरम पर है। ऐसे में सेना की ट्रेनिंग पाए जो युवा चार साल बाद बाहर आएंगे, वे अपराध, आतंकवाद और दूसरी तरह की हिंसा में जा सकते हैं। इस डर को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनियाभर के मुल्कों ने शायद चार करोड़ लोग सेना से निकले थे। कुछेक अपवाद को छोड़ दें, तो ज़्यादातर जगह बेरोज़गारी की समस्या सुलझ गई थी।

आज भी हर साल करीब एक लाख सैनिक रिटायर होते हैं और उनकी उम्र भी 30 के करीब होती है। इन लोगों से तो कोई हिंसा नहीं होती। हालांकि कह सकते हैं कि इनके पास पेंशन होती है।

आज भारत में नागरिक सुरक्षा सेवाओं का तेज़ी से विस्तार हो रहा है। यह जगह नौकरी देने वाली सबसे बड़ी जगहों में से एक बन गई है। अग्निवीरों को यह सेक्टर खुशी-खुशी अपना लेगा।

सशस्त्र बलों में आसान शर्तों पर भर्ती होने की उम्मीद कर रहे युवाओं की अग्निपथ को लेकर नाराज़गी समझ आती है, ख़ासकर जिन्हें डर है कि उम्र संबंधी नई गाइडलाइंस के कारण वो सफल नहीं हो पाएंगे। वैसे, सरकार ने अब इसमें कुछ छूट दे दी है। बेरोज़गारी बहुत बड़ी समस्या है। इसके बावजूद ऐसे स्टाफ पर सैन्य बजट खर्च करना, जिसकी ज़रूरत नहीं है, बेरोज़गारी से निपटने का सबसे ख़राब उपाय होगा।

विरोध-प्रदर्शनों के बाद सरकार ने स्पष्ट किया है कि अग्निवीरों को पैरा मिलिट्री फोर्स में वरीयता मिलेगी। यह एक सुनियोजित रणनीति की तुलना में दंगाइयों को शांत करने का प्रयास अधिक लगता है। विभिन्न सुरक्षाबलों को एक-दूसरे से जोड़ने को देश को नए सिरे से सोचने की ज़रूरत है।

बेरोजगारी बड़ी समस्या है जरूर, सशस्त्र बलों में कठोर शर्तों पर भर्ती होने की उम्मीद करने वाले युवा अग्निपथ से काफी नाराज हैं लेकिन नई योजना से बेरोजगारी की समस्या से निपटने में खासी मदद मिलेगी। इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण बात कि सेना का आधुनिकीकरण भी जरूरी है

हाइलाइट्स
भारतीय सेना में भर्ती को लेकर अब तक का सबसे बड़ा बदलाव
अग्निपथ स्कीम को लेकर देश के कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन जारी
अग्निपथ स्कीम सेना के लिए जरूरी, स्वामीनाथन अय्यर ने गिनाए कारण

सेना में भर्ती को लेकर अब तक का सबसे बड़ा बदलाव थल सेना, नौसेना और वायुसेना में अब अग्निपथ स्कीम (Agneepath Recruitment Scheme) में अग्निवीर (Agniveer) की भर्ती होगी। अग्निवीरों को 6 महीने की ट्रेनिंग दी जाएगी और ट्रेनिंग को मिलाकर वे 4 साल सेना का हिस्सा रहेंगे। इनमें से ही अधिकतम 25 फीसदी को परमानेंट होने का मौका मिलेगा, लेकिन यह सेना की जरूरत पर तय होगा। इस फैसले को लेकर देश के कई हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन (Agnipath Protests) हुए। कई जगह ट्रेनों में तोड़फोड़ और आगजनी हुई खासकर बिहार में इसको लेकर अब भी बवाल जारी है। योजना को लेकर रक्षा एक्सपर्ट और दूसरे लोगों की राय सामने आ रही है। मशहूर अर्थशास्त्री स्वामीनाथन अय्यर (Swaminathan Aiyar) ने इस योजना का पक्ष लिया है।

विरोध के सामने आत्मसमर्पण करने की जरूरत नहीं

भारतीय सेना कोई रोजगार सृजन योजना नहीं है, इस बात को विरोध- प्रदर्शन करने वालों को भी समझने की जरूरत है। स्वामीनाथन अय्यर का कहना है कि भारत को साइबर युद्ध, ड्रोन, मिसाइल और यहां तक कि स्पेस वॉर पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी सैन्य क्षमता का तत्काल आधुनिकीकरण करने की जरूरत है। जमीन पर सैनिकों के बूट अब भी मायने रखते हैं, लेकिन पहले से कम। इसलिए व्यापक बदलाव जरूरी है। अग्निपथ योजना उस दिशा में एक छोटा कदम है लेकिन एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार को प्रदर्शनकारियों के सामने आत्मसमर्पण नहीं करना चाहिए जैसा कि पहले भूमि अधिग्रहण और कृषि सुधारों के मामले में किया गया था।

पेंशन पर अधिक खर्च कितना जायज

अग्निपथ स्कीम के जरिए पेंशन और दूसरे खर्च में कमी होगी। इससे जो सरकार के खजाने में रकम बचेगी उसका उपयोग उच्च तकनीक वाले हथियार और सेना के आधुनिकीकरण पर खर्च किया जा सकता है। इससे सेना कहीं अधिक दक्ष होगी। अग्निपथ का लक्ष्य 46,000 ‘अग्निवीर’ को नियुक्त करना है, जिनमें से 34,000 चार साल बाद 11 लाख रुपये के एकमुश्त लाभ के साथ सेवा छोड़ देंगे। सेना की औसत आयु 32 वर्ष से घटकर 26 हो जाएगी, एक बहुत बड़ा सुधार क्योंकि युवा सैनिक अधिक फिट और सख्त होते हैं।

सिर्फ सेना ही नहीं दूसरे अर्धसैनिक बलों के लिए भी जरूरी

अग्निपथ स्कीम को केवल सेना तक ही देखने की जरूरत नहीं है। भारत में अर्धसैनिक बलों में करीब दस लाख जवान हैं। इनमें से सबसे बड़ा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल है, जिसमें लगभग 3 लाख 50 हजार कर्मचारी हैं, जिनका इस्तेमाल आंतरिक सुरक्षा और उग्रवाद से निपटने के लिए किया जाता है। इसके बाद 1 लाख 50 हजार से अधिक कर्मियों के साथ केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल आता है, जो सार्वजनिक क्षेत्र के निगमों और विभागीय उपक्रमों को सुरक्षा प्रदान करता है। रेलवे के पास 75 हजार कर्मियों के साथ एक अलग रेलवे सुरक्षा बल है। असम राइफल्स उत्तर-पूर्व में सुरक्षा की देखभाल करता है, सीमा सुरक्षा बल पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ सीमा पर तैनात है, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस चीन के साथ सीमा पर तैनात है, और सशस्त्र सीमा बल नेपाल और भूटान की सीमाओं पर तैनात है।

स्वामीनाथन अय्यर के अनुसार अलग- अलग कार्यों के लिए अलग विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। लेकिन भर्ती को अलग-अलग प्रक्रियाओं के साथ स्वतंत्र बल का वर्तमान दृष्टिकोण अत्यधिक अक्षम और महंगा है। यह अत्यधिक संख्या, अत्यधिक वेतन और पेंशन भुगतान के साथ ही गलत उम्र के लोगों की गलत जगह तैनाती है।

आधा रक्षा बजट सैलरी-पेंशन पर

2013-14 और 2022-23 के बीच, भारत का जीडीपी 112 लाख करोड़ रुपये के दोगुने से भी ज्यादा बढ़कर 237 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया। इस अवधि के दौरान, रक्षा खर्च भी डबल हो गया, हालांकि बजट में सैलरी का शेयर स्थिर बना रहा। वहीं, ओआरओपी योजना लागू होने के बाद पेंशन खर्च बढ़ गया। इस योजना का लाभ 1 जुलाई 2014 से मिल रहा है। 2013-14 में सैलरी और पेंशन पर खर्च कुल रक्षा बजट का 42.2 प्रतिशत था। लेटेस्ट बजट में यह हिस्सेदारी बढ़कर 48.4 प्रतिशत पहुंच गई।

सेना की हिस्सेदारी नेवी-IAF से ज्यादा

चूंकि कुल रक्षा नियुक्ति में सेना का शेयर नेवी और एयरफोर्स से काफी ज्यादा है, ऐसे में पेंशन और सैलरी पर सबसे ज्यादा हिस्सेदारी भी है। 2022-23 के बजट में पेंशन और सैलरी दोनों में सेना की हिस्सेदारी 86 प्रतिशत और 79 प्रतिशत है। (आंकड़े हजार करोड़ में)

​पेंशन खर्च vs सैलरी

2013-14 में सेना का पेंशन पर खर्च सैलरी का 82.5 प्रतिशत था। OROP प्रभावी होने के बाद, 2020-21 में सेना का पेंशन बिल बढ़कर सैलरी खर्च का 125 प्रतिशत हो गया। हालांकि उसके बाद यह कम हुआ है। कोविड के कारण नियमित भर्ती नहीं रुकी होती तो यह और भी घटता क्योंकि तब वेतन खर्च बढ़ जाता। नेवी और एयरफोर्स के केस में भी ऐसा ही है। (आंकड़े सैलरी का प्रतिशत)

सैलरी-पेंशन पर अमेरिका, चीन के आंकड़े

नाटो और स्वायत्त संस्था MP-IDSA से लिए डेटा के विश्लेषण से साफ है कि भारत का सैलरी और पेंशन पर खर्च काफी ज्यादा है। अमेरिका, चीन जैसे बड़े देश भी सैलरी और पेंशन पर अपने डिफेंस बजट का काफी कम हिस्सा खर्च करते हैं। कुल रक्षा खर्च में कार्मिक व्यय का शेयर (%) इस ग्राफिक्स से समझिए।

​दुनिया में रक्षा खर्च का गणित

पिछले कुछ दशकों में बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों ने अपना रक्षा खर्च बढ़ाया लेकिन जीडीपी के शेयर के तौर पर आंकड़े देखें तो यह स्थिर दिखाई पड़ता है। उदाहरण के लिए चीन ने पिछले दशक में अपनी सेना पर खर्च दोगुना कर दिया है लेकिन देश की GDP में शेयर को समझें तो यह पहले के स्तर पर ही दिखाई देता है। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान का रक्षा खर्च उसकी जीडीपी के शेयर के हिसाब से घटता जा रहा है।

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