पुण्य स्मृति: झारखंड के जलियांवाला में दो पुत्रों समेत 300 वनवासियों के साथ बलिदान हुए थे वीर बुधू भगत

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बच्चों में मानवीय मूल्यों के विकास, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* आज देश के स्वतन्त्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों एवं ज्ञात-अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके जयंती, पुण्यतिथि व बलिदान दिवस पर कोटिश: नमन करती है।🙏🙏

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🌷🌷🙏 *वीर बुधू भगत * 🙏🌷🌷
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🏹 राष्ट्रभक्त साथियों, मातृभूमि की स्वतंत्रता हेतु देश के प्रत्येक क्षेत्र के देशभक्तों ने अपना बलिदान दिया है। इस स्वतंत्रता हेतु झारखंड के जनजातीय क्षेत्र के महान उरांव क्रांतिवीर बुधू भगत एवं उनके दो पुत्रों ने भी सन् 1857 की क्रांति से भी पूर्व ब्रिटिश सेना से संघर्ष करते बलिदान दिया। झारखण्ड राज्य में कोयल नदी के तट पर राँची ज़िले के चन्हो प्रखंड के सिलागाई ग्राम में 17 फरवरी, 1792 को जन्मे वीर बुधू भगत का परिवार खेती-बाड़ी करता था। उरांव जनजाति से संबंध रखने वाले वीर बुधू भगत जी सदैव अपने साथ एक कुल्हाड़ी रखते थे। आमतौर पर सन् 1857 को ही स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम समर माना जाता है। लेकिन इससे इससे पूर्व ही वीर बुधु भगत ने न सिर्फ़ क्रान्ति का शंखनाद किया था, बल्कि अपने साहस व नेतृत्व क्षमता से सन् 1832 में कोल, मुंडा एवं उरांव जनजातियों को संघटित कर “लरका विद्रोह” नामक ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात्र भी किया। छोटा नागपुर के वनवासी इलाकों में अंग्रेज़ हुकूमत के दौरान बर्बरता चरम पर थी। मुण्डाओं ने ज़मींदारों, साहूकारों के विरुद्ध पहले से ही भीषण विद्रोह छेड़ रखा था। उरांवों ने भी बागी तेवर अपना लिये। बुधु भगत बचपन से ही जमींदारों और अंग्रेज़ी सेना की क्रूरता देखते आये थे। उन्होंने देखा था कि किस तरह तैयार फ़सल ज़मींदार जबरदस्ती उठा ले जाते थे। ग़रीब गाँव वालों के घर कई-कई दिनों तक चूल्हा नहीं जल पाता था।

🏹 बालक बुधु भगत सिलागाई की कोयल नदी के किनारे घंटों बैठकर अंग्रेज़ों और जमींदारों को भगाने के बारे में सोचते रहते थे। घंटों एकांत में बैठे रहने, तलवार और धनुष-बाण चलाने में पारंगत होने के कारण लोगों ने बुधु को देवदूत समझ लिया। तेजस्वी युवक बुधु की बड़ी-बड़ी बातें सुनकर वनवासियों ने उन्हें अपना उद्धारकर्ता मानना प्रारम्भ कर दिया। विद्रोह के लिए बुधु भगत के पास अब पर्याप्त जन समर्थन था। उन्होंने अन्याय के विरुद्ध बगावत का आह्वान किया। हज़ारों हाथ तीर, धनुष, तलवार, कुल्हाड़ी के साथ उठ खड़े हुए। कैप्टन इम्पे के बंदी बनाए गए सैकड़ों ग्रामीणों को विद्रोहियों ने लड़कर मुक्त करा लिया। अपने दस्ते को बुधु ने गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया। घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों का फायदा उठाकर कई बार अंग्रेज़ी सेना को परास्त किया। बुधु भगत  को पकड़ने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने *1,000 रुपये* इनाम की घोषणा कर दी थी। हज़ारों लोगों के हथियारबंद विद्रोह से अंग्रेज़ सरकार और ज़मींदार कांप उठे। बुधु भगत को पकड़ने का काम कैप्टन इंपे को सौंपा गया। बनारस की 50वीं देसी पैदल सेना की 06 कंपनी और घुड़सवार सैनिकों का एक बड़ा दल जंगल में भेज दिया गया।

🏹 टिकू और आसपास के गाँवों से हज़ारों ग्रामीणों को गिरफ़्तार कर लिया गया। बुधु भगत के दस्ते ने घाटी में ही बंदियों को मुक्त करा लिया। करारी शिकस्त से कैप्टन बौखला गया। 13 फ़रवरी, सन् 1832 को बुधु भगत और उनके साथियों को कैप्टन इंपे ने सिलागाई गाँव में घेर लिया। बुधु भगत  आत्म समर्पण करना चाहते थे, जिससे अंग्रेज़ों की ओर से हो रही अंधाधुंध गोलीबारी में निर्दोष ग्रामीण न मारे जाएँ। लेकिन बुधु भगत  के भक्तों ने वृताकर घेरा बनाकर उन्हें घेर लिया। चेतावनी के बाद कैप्टन ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। अंधाधुंध गोलियाँ चलने लगीं। बूढ़े, बच्चों, महिलाओं और युवाओं के भीषण चीत्कार से इलाका कांप उठा। उस खूनी तांडव में करीब 300 ग्रामीण मारे गए। अन्याय के विरुद्ध जन विद्रोह को हथियार के बल पर जबरन खामोश कर दिया गया। वीर बुधु भगत तथा उनके बेटे ‘हलधर’ और ‘गिरधर’ भी अंग्रेज़ों से लोहा लेते बलिदान हुए।

*मातृभूमि सेवा संस्था वीर बुधू भगत  एवं उनके दोनों पुत्रों हलधर और गिरधर  के आज 189वें बलिदान दिवस पर उन्हें कोटिश: प्रणाम करती है। साथ ही आज महान स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू, बद्रीदत्त पांडेय , राजा सूरजमल  तथा सन् 1971 भारत-पाक युद्ध के वीर योद्धा जगजीत सिंह अरोड़ा  को उनके महान योगदान हेतु श्रद्धांजलि अर्पित करती है।* 🙏🙏🌷🌷

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✍️ राकेश कुमार
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳

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