शाहीन बाग पर सुको: राइट टू प्रोटेस्ट का मतलब जब जहां चाहें बैठ जायें कतई नहीं

शाहीन बाग प्रोटेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट:अदालत ने कहा-राइट टु प्रोटेस्ट का यह मतलब नहीं कि जब और जहां मन हुआ प्रदर्शन करने बैठ जाएं

नई दिल्ली 13 फरवरी।दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ 14 दिसंबर 2019 से प्रदर्शन शुरू हुआ था, जो 3 महीने से ज्यादा चला। कोरोना के चलते लॉकडाउन होने पर 24 मार्च को प्रदर्शन खत्म हो गया था।

नागरिक संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में हुए प्रदर्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले पर पुनर्विचार करने से इंकार कर दिया। शनिवार को याचिका खारिज करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी ने कहा कि विरोध का अधिकार, कभी भी और कहीं भी नहीं हो सकता।

कोर्ट ने कहा कि राइट टु प्रोटेस्ट का यह मतलब यह नहीं कि जब और जहां मन हुआ, प्रदर्शन करने बैठ जाएं। कुछ सहज विरोध हो सकता है, लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले सार्वजनिक स्थान पर लगातार कब्जा नहीं किया जा सकता।

याचिका में क्या कहा गया था?

अक्टूबर 2020 में शाहीन बाग आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नवंबर 2020 से पुनर्विचार याचिका लंबित थी। ऐसे में एक और अर्जी लगाकर याचिकाकर्ताओं ने कहा कि चूंकि किसान आंदोलन के खिलाफ लगाई गई अर्जी और हमारी याचिका एक जैसी है, ऐसे में सार्वजनिक स्थानों पर विरोध करने के अधिकार की वैधता और सीमा पर कोर्ट के विचार अलग-अलग नहीं हो सकते। कोर्ट को इस पर विचार करना चाहिए। शाहीन बाग मामले में अदालत की ओर से की गई टिप्पणी नागरिकों के आंदोलन करने के अधिकार पर संशय पैदा करती है।

शाहीन बाग में दिसंबर 19 से मार्च 20 तक प्रदर्शन चला था

दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ 14 दिसंबर 2019 से प्रदर्शन शुरू हुआ था, जो 3 महीने से ज्यादा चला। सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी को सीनियर वकील संजय हेगडे और साधना रामचंद्रन को जिम्मेदारी दी कि प्रदर्शनकारियों से बात कर कोई समाधान निकालें, लेकिन कई राउंड की चर्चा के बाद भी बात नहीं बन पाई थी। बाद में कोरोना के चलते लॉकडाउन होने पर 24 मार्च को प्रदर्शन बंद हो पाया था।

अक्टूबर 2020 में कोर्ट के फैसले की 4 बड़ी बातें

विरोध-प्रदर्शन के लिए शाहीन बाग जैसी सार्वजनिक जगहों का घेराव बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
लोकतंत्र और असहमति साथ-साथ चल सकते हैं।
शाहीन बाग को खाली करवाने के लिए दिल्ली पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए थी।
ऐसे मामलों में अफसरों को खुद एक्शन लेना चाहिए। वे अदालतों के पीछे नहीं छिप सकते, कि जब कोई आदेश आएगा तभी कार्रवाई करेंगे।

ये था विस्तृत फैसला

शाहीन बाग जैसे प्रदर्शन के लिए अनिश्चित काल के लिए सड़क पर कब्जा नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को शाहीन बाग विरोद प्रदर्शन को लेकर हुई सुनवाई के बाद अपने फैसले में कहा है कि प्रदर्शनकारी अनिश्चित काल के लिए सार्वजनिक सड़कों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा नहीं कर सकते।
शाहीन बाग जैसे प्रदर्शन के लिए अनिश्चित काल के लिए सड़क पर कब्जा नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट –

सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग विरोद प्रदर्शन को लेकर हुई सुनवाई के बाद अपने फैसले में कहा है कि प्रदर्शनकारी अनिश्चित काल के लिए सार्वजनिक सड़कों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई बी समूह या व्यक्ति प्रदर्शन के नाम पर सार्वजनिक जगहों को ब्लॉक नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रदर्शन किसी ऐसी जगह होना चाहिए जहां भीड़भाड़ न हो।

अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनिश्चितकाल के लिए धरना देने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा नहीं किया जा सकता। इस तरह के प्रदर्शन स्वीकार्य नहीं हैं और सम्बंधित अथॉरिटीज़ ऐसे मामलों को खुद देखे। पुलिस और प्रशासन पर सख्ती दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रशासन खुद सार्वजनिक स्थानों को अवरोधों से मुक्त रखे, सिर्फ़ कोर्ट के कंधे पर बंदूक रखकर न चलाए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सड़कों या किसी सार्वजनिक जगहों को प्रदर्शन के लिए बंद करने से बड़ी संख्या में लोगों को परेशानी होती है और उनके अधिकारों का हनन करता है, और यह क़ानून के तहत मान्य नहीं है। कोर्ट ने यह फैसला नागरिकता कानून के खिलाफ शाहीन बाग में हुए प्रदर्शन के दौरान कई महीनों तक बंद पड़ी रही सार्वजनिक सड़क को खोलने को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है। हालांकि कोरोना को देखते हुए शाहीन बाग का धरना प्रदर्शन मार्च के अंत में खत्म कर दिया गया था लेकिन तबतक कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी गई थी और कोर्ट ने अब उस याचिका पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है।

 

 

 

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