इतिहास: जब विद्रोही मिजो पर इंदिरा ने करा दी थी बमबारी

जब वायुसेना ने मिजोरम में बम बरसाए:इंदिरा गांधी के वक्त हुए ऑपरेशन की कहानी, जिसका PM मोदी ने जिक्र किया

‘5 मार्च 1966 को कांग्रेस ने मिजोरम में असहाय लोगों पर वायुसेना से हमला करवाया था। क्या मिजोरम के लोग भारत के नागरिक नहीं थे? यहां के निर्दोष नागरिकों पर कांग्रेस ने हमला करवाया था। आज भी 5 मार्च को पूरा मिजोरम शोक मनाता है। कांग्रेस ने इस सच को छिपाया, कभी घाव भरने की कोशिश नहीं की। उस वक्त इंदिरा गांधी PM थीं।’

10 अगस्त को PM मोदी ने अविश्वास प्रस्ताव पर जवाब देते हुए ये बात कही। क्या है इस घटना से जुड़ी पूरी कहानी। यहां  जानेंगे 57 साल पहले वायुसेना ने मिजोरम में बम क्यों गिराए…

5 मार्च 1966, जगह अभी के मिजोरम की राजधानी आइजोल। सुबह 11 बजकर 30 मिनट पर आसमान में 4 लड़ाकू विमान शहर को चारों ओर से घेर लेते हैं और बम बरसाने लगते हैं। यह किसी दुश्मन देश के नहीं, बल्कि भारतीय वायुसेना के विमान थे। उस वक्त मिजोरम, असम का हिस्सा था और उसे मिजो हिल्स कहते थे।

ये बमबारी 13 मार्च 1966 तक होती है। इस बमबारी को अब 57 साल से ज्यादा समय हो चुका है।

हालांकि इस कहानी की शुरुआत 6 साल पहले 1960 में ही हो गई थी…

तब मिजो हिल्स असम राज्य का हिस्सा हुआ करता था। इसी साल यानी 1960 में असम सरकार ने असमिया भाषा को राजकीय भाषा घोषित कर दिया। यानी जिसे असमिया भाषा नहीं आती उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती थी।

मिजो लोग इसका विरोध करने लगे। 28 फरवरी 1961 को इसी वजह से मिजो नेशनल फ्रंट यानी MNF बना, इसके नेता लालडेंगा थे। MNF ने शुरुआत में शांतिपूर्वक धरनों से अपनी बात रखी।

साल 1964 में असमिया भाषा लागू होने की वजह से असम रेजिमेंट ने अपनी सेकेंड बटालियन को बर्खास्त कर दिया। इसमें अधिकतर मिजो लोग थे। इससे मिजो हिल्स के लोगों में नाराजगी बढ़ी और शांतिपूर्वक धरना प्रदर्शन करने वाला MNF हिंसा पर उतर आया।

इस बीच जो मिजोवासी बटालियन से निकाले गए थे, वे MNF में शामिल हो गए। इन्हीं लोगों ने मिलकर मिजो नेशनल आर्मी बनाई।

मिजो नेशनल फ्रंट यानी MNF के नेता लालडेंगा। MNF ने शुरुआत में शांतिपूर्वक धरनों से अपनी बात रखी।
पाकिस्तान और चीन ने मिजो उग्रवादियों को भड़काया
बॉर्डर होने के चलते तब के पूर्वी पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश से भी मिजो नेशनल आर्मी को हथियारों के रूप में मदद मिलने लगी।

चीन भी इस साजिश में शामिल रहा और गुपचुप तरीके से MNF का समर्थन कर रहा था। सुरक्षा बलों ने सख्ती दिखाई तो मिजो उग्रवादी म्यांमार और पूर्वी पाकिस्तान में छिप गए।

सुरक्षाबलों ने साल 1963 में राजद्रोह के आरोप में लालडेंगा को गिरफ्तार कर लिया। लालडेंगा पर मुकदमा चला, लेकिन कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। साल 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया।

इस मौके पर दबाव बनाने के लिए MNF ने प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाम एक मेमोरेंडम भेजा। इसमें लिखा था, ‘मिजो देश भारत के साथ लम्बे स्थायी और शांतिपूर्ण संबंध रखेगा, या दुश्मनी मोल लेगा, इसका निर्णय अब भारत के हाथ में है।’

1 मार्च 1969 को पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में मिजो नेशनल गार्ड का निरीक्षण करते लालडेंगा।
1 मार्च 1969 को पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में मिजो नेशनल गार्ड का निरीक्षण करते लालडेंगा।
भारतीय सुरक्षाबलों को मिजोरम से बाहर निकालने के लिए ‘ऑपरेशन जेरिको’ शुरू
11 जनवरी 1966 को देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद में मौत हो गई। शास्त्री की मौत को 11 दिन भी नहीं हुए थे कि 21 जनवरी को मिजो नेशनल फ्रंट यानी MNF के नेता लालडेंगा ने इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो को पत्र लिखा।

वह लिखते हैं, ‘अंग्रेज के समय भी हम लोग आजादी की स्थिति में रहे हैं। यहां पर राजनीतिक जागरूकता से उपजा राष्ट्रवाद अब परिपक्व हो गया है। अब हमारे लोगों की एकमात्र इच्छा अपना अलग देश बनाने की है।’

पत्र लिखे जाने के तीसरे दिन यानी 24 जनवरी को इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनती हैं। इंदिरा के सामने एक अलग तरह की चुनौती आने वाली थी।

4 दिन बाद ही 28 फरवरी 1966 को मिजो नेशनल फ्रंट के उग्रवादी भारतीय सुरक्षाबलों को मिजोरम से बाहर निकालने के लिए ‘ऑपरेशन जेरिको’ शुरू कर देते हैं।

सबसे पहले आइजोल और लुंगलाई में असम राइफल्स की छावनी पर हमला किया गया।

इंदिरा गांधी ने साल 1966 में भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
इंदिरा गांधी ने साल 1966 में भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
सेना के ठिकानों पर MNF का कब्जा, भारत से आजाद होने की घोषणा की

अगले दिन यानी 29 फरवरी को MNF ने भारत से आजाद होने की घोषणा कर दी। अचानक हुए ऑपरेशन जेरिको के लिए मिजो हिल्स में तैनात सुरक्षा बल तैयार नहीं थे।

उग्रवादियों ने देखते ही देखते आइजोल में सरकारी खजाने सहित महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों और चंफाई और लुंगलाई जिलों में सेना के ठिकानों पर कब्जा कर लिया।

‘मिजोरम : द डैगर ब्रिगेड’ किताब में निर्मल निबेदन ने लिखा है कि MNF उग्रवादियों का मुख्य जत्था असम राइफल के ठिकाने पर लगातार गोलीबारी कर रहा था, ताकि कोई बाहर नहीं निकल सके। वहीं एक जत्थे ने सरकार खजाने पर धावा बोलकर 18 लाख रुपए लूट लिए।

सीमावर्ती नगर चंफाई में वन असम राइफल के ठिकाने पर आधी रात को हमला इतनी तेजी से हुआ था कि जवानों को अपने हथियार लोड करने और लुंगलाई और आइजोल खबर करने तक का समय नहीं मिला।

उग्रवादियों ने सभी हथियार लूट लिए थे। इनमें 6 लाइट मशीन गन, 70 राइफलें, 16 स्टेन गन और ग्रेनेड फायर करने वाली 6 राइफलें थीं। एक जूनियर कमीशंड अफसर के साथ 85 जवानों को बंधक बना लिया गया।

यहां से किसी तरह से दो सैनिक भागने में कामयाब हुए। इन 2 सैनिकों ने हमले की जानकारी दी। इसी बीच टेलीफोन एक्सचेंज को निशाना बनाया गया, ताकि आइजोल से भारत के साथ सारे कनेक्शन टूट जाएं।

भारतीय सेना वहां पर हेलिकॉप्टर से सैनिक और हथियार पहुंचाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन MNF की ओर से हो रही गोलीबारी से वो मदद नहीं पहुंचा पाई।

इंदिरा गांधी वायुसेना को जवाबी कार्रवाई का आदेश देती हैं
इसके बाद MNF असम राइफल्स के हेडक्वार्टर से तिरंगा उतारकर अपना झंडा फहराता है। उधर, दिल्ली में कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी भी इस घटना से हिल जाती हैं और सेना को जवाबी कार्रवाई का आदेश देती हैं।

5 मार्च 1966 को वायुसेना के 4 लड़ाकू विमानों को आइजोल में MNF के उग्रवादियों पर बमबारी की जिम्मेदारी दी गई। इनमें 2 लड़ाकू विमान फ्रांस में बने दैसे ओरागन और 2 ब्रिटिश हंटर विमान थे। दैसे ओरागन को भारत में तूफानी नाम से जाना जाता है।

असम के तेजपुर, कुंबीग्राम और जोरहाट से उड़ान भरने के बाद पहले इन लड़ाकू विमानों ने मशीन गन से उग्रवादियों पर फायर किया। दूसरे दिन इन लड़ाकू विमानों ने आग लगाने वाले बम बरसाए।

वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने आइजोल और अन्य क्षेत्रों में 13 मार्च तक बमबारी की। इन विमान पायलटों में दो शख्स ऐसे थे जिन्होंने आगे चलकर भारतीय राजनीति में नाम कमाया। एक का नाम था राजेश पायलट और दूसरे थे सुरेश कलमाड़ी।

बमबारी से घबराए स्थानीय लोगों ने पहाड़ियों में शरण ले ली थी। वहीं MNF के उग्रवादी म्यांमार और पूर्वी पाकिस्तान के जंगलों में जा छिपे। विद्रोहियों को तितर-बितर करने के बाद सेना ने मिजोरम का कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया।

वायुसेना की बमबारी ने भारी तबाही मचाई
मिजो नेशनल फ्रंट के मेंबर रहे थंगसांगा उस घटना को याद करते हुए बताते हैं- बमबारी से हम सब आश्चर्यचकित रह गए। हमारे छोटे से शहर को अचानक 4 लड़ाकू विमानों ने घेर लिया था। अचानक गोलियों की बारिश होने लगी और बम गिराए गए। जलती हुई इमारतें ढह गईं और हर तरफ धूल और अफरा-तफरी का माहौल था।

कुछ रिपोर्टों में कहा गया कि आइजोल शहर में आग लग गई थी, लेकिन गनीमत रही कि इस घटना में सिर्फ 13 आम नागरिक ही मारे गए। सरकार और सेना ने इस बात से भी इनकार किया कि आइजोल पर बमबारी की गई थी।

बम गिराने पर इंदिरा गांधी पर सवाल उठे
9 मार्च 1966 को कोलकाता के अखबार हिंदुस्तान स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हवाले से कहा गया कि लड़ाकू विमानों को एयरड्रॉप और आपूर्ति के लिए भेजा गया था, बम बरसाने के लिए नहीं, लेकिन सवाल यह था कि राशन गिराने के लिए कोई फाइटर जेट क्यों भेजेगा?

वायुसेना के बम गिराने को लेकर इंदिरा गांधी पर सवाल भी उठे। पत्रकार और ‘द प्रिंट’ के संपादक शेखर गुप्ता ने अपने लेख ‘वाज इंदिरा गांधी राइट टु यूज एयर पावर अगेंस्ट हर ओन कंट्रीमेन?’ में उन्हें पूरी तरह से क्लीन चिट दी।

शेखर गुप्ता ने अपने लेख में लिखा कि आप अपने-आप को इंदिरा गांधी की जगह रखकर देखिए। उन्हें लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद सत्ता में आए सिर्फ 6 हफ्ते हुए थे।

पाकिस्तान के साथ भारत की लड़ाई समाप्त हुए कुछ ही महीने हुए थे जिसका कोई निश्चित परिणाम नहीं निकला था।

दक्षिण में द्रविड़ आंदोलन जोर पकड़ रहा था, नगालैंड में चीन और पाकिस्तान के खुले समर्थन से अलगाववादी ताकतें सिर उठा चुकी थीं। ऐसे वक्त में लालडेंगा ने भी विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया था।

मिजोरम में दो दशकों तक अशांति रही

इस बीच विद्रोह को दबाने के लिए केंद्र सरकार ने एक और कदम उठाया। जनरल सैम मानेकशॉ की अगुआई में एक नया प्लान बनाया गया। बमबारी के एक साल बाद 1967 में सरकार की तरफ से एक योजना लागू की गई जिसके तहत गांवों का पुनर्गठन किया गया।

इसमें पहाड़वासी हजारों मिजो लोगों को उनके गांवों से हटाकर मुख्य सड़क के दोनों ओर बसाया गया, ताकि भारतीय प्रशासन उन पर नजर रख सके। मिजोरम के कुल 764 गांवों में से 516 गांवों के निवासियों को उनकी जगह से हटाया गया।

केवल 138 गांवों को नहीं बदला गया। इस बमबारी ने मिजो विद्रोह को उस समय भले ही कुचल दिया हो, लेकिन मिजोरम में अगले दो दशकों तक अशांति छाई रही।

राजीव गांधी सरकार ने मिजोरम को नया राज्य बनाया

मिजो शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के 11 दिनों बाद 11 जुलाई 1986 को आइजोल में राजीव गांधी और सोनिया गांधी।

30 जून 1986 को केंद्र सरकार और MNF के बीच ऐतिहासिक मिजो शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इसे राजीव गांधी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है। 1987 में मिजोरम अलग राज्य बना। इसी साल मिजोरम में पहली बार चुनाव हुए और लालडेंगा मिजोरम के पहले मुख्यमंत्री बने.

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