अध्ययन: क्यों नहीं बचा पाती कांग्रेस अपनी सरकारें?

Bjp Is Far Ahead Of Congress In Re Election Of Incumbents Know The Data Of Regional Parties
Opinion: भाजपा की 56% सरकारें रिपीट हो जाती हैं, कांग्रेस का रिकॉर्ड जानते हैं आप?

सत्ताधारी दलों को फिर से सरकार में लाने का मतलब है कि मतदाता उस सरकार से खुश हैं। इस पैमाने पर राज्य चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन भाजपा और कुछ क्षेत्रीय पार्टियों से काफी खराब रहता है। कांग्रेस सरकारों के शासन में क्या कमी रहती है और भाजपा या क्षेत्रीय दल उससे इस मामले कहां आगे निकल जाते हैं,यह जानना दिलचस्प है।
मुख्य बिंदु
चुनावी राजनीति में भी रॉयल्टी इफेक्ट का बहुत महत्व होता है
वोटर भी चुनावों में कन्ज्यूमर की तरह ही व्यवहार करते हैं
सरकार की वापसी मतदाताओं की संतुष्टि का संकेतक होती है।
लेखक: कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन
जरा सोचिए, जब आप कोई प्रॉडक्ट दोबारा खरीदते हैं, किसी खास रेस्तरां में खाना खाने जाते हैं,किसी पुराने होटल में ठहरने जाते हैं या किसी मॉल या थिएटर में दोबारा जाते हैं,तो क्या सोचकर ऐसा करते हैं? निश्चित रूप से अगर आपका पहला अनुभव खराब रहे तो उसे दोहराना नहीं चाहते। इसे लॉयल्टी इफेक्ट कहते हैं। कन्ज्यूमर के व्यवहार पर हुए रिसर्च से पता चलता है कि केवल संतुष्ट ग्राहक ही किसी विशेष उत्पाद या सेवा को बार-बार चुनते हैं। इसके विपरीत, जो उत्पाद या सेवा वादे पर खरा नहीं उतरा था,उसे दोबारा खरीदे जाने की संभावना कम होती है। इस प्रकार,किसी विशेष उत्पाद या सेवा की बार-बार खपत इस बात का एक मजबूत संकेतक है कि ग्राहक कितना संतुष्ट है।

टिकट चयन का महत्व

राजनीतिक अर्थव्यवस्था (पॉलिटिकल इकॉनमी) में शोध से पता चलता है कि सत्ताधारी दलों के सत्ता में वापस आने की घटना को ‘वोटर रूपी कन्ज्यूमर की संतुष्टी का प्रतीक’ माना जाता है। वोटर राजनीतिक दल या उम्मीदवार की तरफ से प्रदान की जाने वाली ‘शासन की सेवा’ से खुश होता है तो उसे फिर से मौका देता है।
इसलिए,राजनीतिक दल मतदाताओं की संतुष्टि के स्तर को आंकने के लिए औपचारिक और अनौपचारिक,दोनों तरह के सर्वेक्षण करते हैं। इन सर्वेक्षणों के आधार पर राजनीतिक दल तय करते हैं कि मौजूदा उम्मीदवार को टिकट दिया जाए या नहीं। चूंकि राजनीतिक दल जीतने की उम्मीद के आधार पर उम्मीदवार चुनते हैं,इसलिए किसी मौजूदा कैंडिडेट को टिकट देना और उसका फिर से जीतना दोनों ही मतदाताओं की संतुष्टि के स्तर के उचित संकेतक हैं।

Govt Repeat Data
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उपभोक्ता के रूप में मतदाता

उपरोक्त तर्कों का उपयोग करते हुए, आइए हम सवाल करें: भारत में प्रमुख राजनीतिक दलों की प्रदत्त  ‘शासन की सेवा’ से ‘वोटर कन्ज्यूमर’ कितने खुश हैं? इस सवाल का बिल्कुल तार्किक जवाब जानने को मैं 1991 के बाद हुए राज्य स्तरीय चुनावों पर डेटा का उपयोग करता हूं, जब आर्थिक सुधारों ने मतदाताओं की आकांक्षाओं को बदल दिया था। राज्य स्तरीय चुनावों में मतदाता संतुष्टि का बड़ा नमूना मिल जाता है क्योंकि 1991 के बाद लोकसभा चुनावों में सत्ताधारी दलों के फिर से चुने जाने के एकमात्र उदाहरण 2009 और 2019 में हैं। मैं नमूने को कम से कम 10 संसदीय सीटों वाले प्रमुख राज्यों तक सीमित रखता हूं।

सर्विस प्रोवाइडर के रूप में राजनीतिक दल

आंकड़े ऐसी कहानी बताती हैं जिसे हम में से हर कोई आसानी से समझ सकता है। आंकड़े बताते हैं कि भाजपा और क्षेत्रीय दलों से मतदाताओं की संतुष्टि अधिक है। जहां मतदाताओं ने भाजपा को 56% राज्य स्तरीय चुनावों में सत्ता वापस कर दी, वहीं क्षेत्रीय दलों के लिए यह आंकड़ा 50% है। मौजूदा सरकार के दो या अधिक कार्यकाल के लिए सत्ता में आने के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि भाजपा और क्षेत्रीय पार्टियों ने क्रमशः 59% और 60% के उच्च प्रतिशत के साथ यह उपलब्धि हासिल की है। दो या अधिक कार्यकाल को सत्ताधारी दल के फिर से चुना जाना बताता है कि मतदाता मौजूदा सरकार से बहुत खुश हैं। भाजपा और कुछ क्षेत्रीय पार्टियां इस स्तर की संतुष्टि हासिल करने में सक्षम हैं।

मध्य प्रदेश,गुजरात,ओडिशा बताते हैं कि भाजपा मध्य प्रदेश में कुछ दिन पहले फिर से चुनी गई। अगर 2018 में एक छोटे से अंतराल को सत्ता गंवाने की अवधि को छोड़ दें तो वह दो दशकों तक मध्यप्रदेश की सत्ता में रही। वहीं ,गुजरात में तो भाजपा लगातार सातवें कार्यकाल को फिर से चुनी गई। उधर ओडिशा में बीजेडी लगातार पांच तो वाम मोर्चा पश्चिम बंगाल में लगातार चार कार्यकाल के लिए फिर से चुना गया।

कांग्रेस के आंकड़े देख लीजिए

भाजपा और कुछ क्षेत्रीय पार्टियों के विपरीत कांग्रेस से मतदाताओं की संतुष्टि का स्तर बेहद कम है। कांग्रेस की सत्ता वापसी का प्रतिशत सिर्फ 18 है,जो भाजपा और कुछ क्षेत्रीय पार्टियों से एक-तिहाई से भी कम है। लगातार तीसरी बार सरकार में आने को कांग्रेस की जीत का प्रतिशत 14 है,जो भाजपा और कुछ क्षेत्रीय पार्टियों से एक-चौथाई से भी कम है।

उत्तरदायित्व का स्तर

राजनीतिक जवाबदेही पर रिसर्च से पता चलता है कि सत्ताधारी दलों की वापसी बताता है कि उनमें मतदाताओं की अपेक्षाओं और मांगों के प्रति उत्तरदायित्व का बोध ज्यादा है। यदि कोई राजनीतिक दल लगातार मतदाताओं की अपेक्षाओं को पूरा करता है-चाहे वह आर्थिक नीतियों में हो,सामाजिक पहलों में हो या बुनियादी ढांचे के विकास में – तो संभावना होती है कि मतदाता उन्हें सत्ता में लाकर शासन चलाने का ‘फिर से मौका’ देंगे।

वादों का खोखलापन

अगर कोई राजनीतिक दल सरकार में आने के बाद अपने किए वादे पूरे नहीं करता है,तो पूरी संभावना रहती है कि मतदाता चुनावों में उनसे सत्ता की कुर्सी छीन लें। संक्षेप में, भाजपा और क्षेत्रीय दलों के मुकाबले कांग्रेस सरकारों की वापसी को लेकर जो आंकड़े हैं,वो देश के राजनीतिक विश्लेषकों के साथ-साथ मतदाताओं के लिए बड़े सबक हैं।

लेखक आईएमएफ के कार्यकारी निदेशक हैं। इस लेख में व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

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