ज्ञानवापी के तहखानों और आसपास की जमीनों का मालिक है व्यास परिवार

ज्ञानवापी की जमीन का मालिकाना हक व्यास परिवार के पास, 150 साल से चल रहा केस

इसको लेकर व्यास पीठ के महंत जितेंद्र नाथ व्यास ने कहा कि यह सारी जमीन व्यास परिवार की ही है. उसी पर मस्जिद बनी है. दशकों से उनका परिवार इसको लेकर मुकदमा लड़ रहा है. उनका कहना यह है कि जब हाई कोर्ट आगरा में हुआ करता था, तबसे यह केस चल रहा है…

विशाल सिंह/वाराणसी 18 मई : ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि 17 मई तक सर्वेक्षण पूरा कर लिया जाए और इसकी रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट की जाए. अब इस पूरे मामले में तमाम तरह के तर्क सामने आ रहे हैं. सब अपने-अपने दावे कर रहे हैं. कोई कह रहा है कि यह पहले से मस्जिद थी, किसी का कहना है कि वहां भूतल में भगवान की मूर्तियां मिली थीं. इन सभी दावों के बीच वाराणसी में रहने वाले व्यास परिवार ने यह दावा किया है कि ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन का मालिकाना हक उनके परिवार के पास है. पिछले करीब 150 साल से वे इस जमीन पर पूरा हक पाने के लिए केस लड़ रहे हैं, जिसके दस्तावेज भी उनके पास हैं.

‘तब आगरा में हुआ करता था हाई कोर्ट…’

इसको लेकर व्यास पीठ के महंत जितेंद्र नाथ व्यास ने कहा कि यह सारी जमीन व्यास परिवार की ही है. उसी पर मस्जिद बनी है. दशकों से उनका परिवार इसको लेकर मुकदमा लड़ रहा है. उनका कहना यह है कि जह हाई कोर्ट आगरा में हुआ करता था, तबसे यह केस चल रहा है.

तहखाने के अंदर से नहीं हुई फोटोग्राफी

तहखाने में मूर्तियां होने की बात पर जब यह पूछा गया कि उनके पूर्वजों ने यह चीज देखी होगी. 1991 के समय में वहां पर वीडियोग्राफी/फोटोग्राफी भी हुई थी. इसपर व्यास ने कहा कि जो भी फोटो खींची गई होंगी, वह बाहर की थीं. तहखाने के अंदर से फोटोग्राफी नहीं हुई थी. बाहर तो सब प्रत्यक्ष है, सबको दिखाई दे रहा है. वह यह दावा कर रहे हैं कि जमीन उनके पूर्वजों की ही है.

 

आज ज्ञानवापी परिसर के अंदर जो हमारा ही तीर्थक्षेत्र अविमुक्तेश्वर विश्वेश्वर का आदि स्थान और ज्ञानोद तीर्थ की पवित्र भूमि है।
विध्वंस और आलगीर मस्जिद का अस्तित्व हमारे तीर्थ की सत्यता पर भारी आखिर पड़ ही गया जब वहां शिवलिंग का प्राकट्य हुआ।

आज हर एक सनातनी हर्षोल्लास से भरा हुआ है लेकिन इस बीच शायद हम भूल रहे इस धर्म युद्ध के सबसे बड़े योद्धा व्यास परिवार को। स्वर्गीय सोमनाथ व्यास को,  स्वर्गीय केदारनाथ व्यास को जिन्होंने 150 सालों से ज्ञानवापी की कानूनी लड़ाई लड़ी है। अनेक दुर्लभ पांडुलिपियां,ग्रंथों के रचयिता स्वर्गीय केदारनाथ व्यास।

व्यासपीठ ज्ञानवापी काशी के पीठाधीश,ज्ञानवापी काशी विश्वनाथ मन्दिर (मूल) मुक्ति के प्रणेता व नेतृत्वकर्ता मूरधन्य धार्मिक लेखक विद्वान पंडित केदार नाथ व्यास  का ही ज्ञानवापी की संपत्ति पर मालिकाना हक और स्थापत्य स्वर्गीय केदारनाथ व्यास के परिवार का रहा है
ज्ञानवापी की संपत्ति पर मालिकाना हक और स्थापत्य स्वर्गीय केदारनाथ व्यास के परिवार का रहा है

आज इन्ही केदारनाथ व्यास की बदौलत हिंदू पक्ष कानून ज्ञानवापी पर दावा कर सकता है।
इन्ही व्यास परिवार की बदौलत सन् 1936 में दीन मोहम्मद को पूरे ज्ञानवापी में नमाज पढ़ने के दावे को नकार कर कोर्ट ने बैरंग लौटाया था और ज्ञानवापी परिक्षेत्र को वक्फ बोर्ड की संपत्ति होने के दावे से इंकार किया था।

ज्ञानवापी परिसर और बाबा विश्वनाथ का यह विवाद सैकड़ों साल पुराना है.

साल 1991 में ज्ञानवापी मस्जिद के लोहे की बैरिकेडिंग के पहले यह पूरा इलाका खुला हुआ था, इसकी पुरानी तस्वीरें आज भी मौजूद हैं जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद के पिछले हिस्से में एक मैदान जैसा था, जबकि मंदिर के खंडहर पर मस्जिद का निर्माण साफ दिखाई देता था.

जब यह पूरी मस्जिद खुली थी तब इसका एक हिस्सा मंदिर के तौर पर भी इस्तेमाल होता था. काफी पहले से यहां विध्वंस के हिस्से में श्रृंगार गौरी की पूजा होती थी जिसके तस्वीर और प्रमाण आज भी मौजूद हैं. हालांकि, तब श्रृंगार गौरी की पूजा की इजाजत सिर्फ साल में एक बार ही दी जाती थी.
मगर साल 1991 के बाद जब ज्ञानवापी परिसर को पूरी तरीके से लोहे के बड़े बैरिकेडिंग से घेर दिया गया और वहां सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित कर दिए गए, उसके बाद ना कोई श्रृंगार गौरी की पूजा कर पाता था और ना ही विध्वंस के उस हिस्से को खुली आंखों से देख पाता था.

इस ज्ञानवापी परिसर को लेकर दो मामले- 1936 में सबसे पहले दीन मोहम्मद वर्सेस सेक्रेटरी ऑफ स्टेट का एक मामला है, जिसमें दीन मोहम्मद ने ज्ञानवापी मस्जिद और उसके आसपास की जमीनों पर अपना हक जताया था. इसका मूवी मुकदमा नंबर 62/ 1936 जोकि एडिशनल सिविल जज बनारस के यहां दाखिल हुई थी, तब की अदालत ने इसे मस्जिद की जमीन मानने से इनकार कर दिया. उसके बाद दीन मोहम्मद यह केस लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट गए और 1937 में जब फैसला आया तब हाई कोर्ट ने मस्जिद के ढांचे को छोड़कर बाकी सभी जमीनों पर व्यास परिवार का हक बताया और उनके पक्ष में फैसला दिया.

इसी फैसले में बनारस के तत्कालीन कलेक्टर का वह नक्शा भी फैसले का हिस्सा बनाया गया है जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने का मालिकाना हक व्यास परिवार को दिया गया है. तब से आज तक व्यास परिवार ही ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे के तहखाना का देखरेख करता है, वहां पूजा करता है और प्रशासन के अनुमति से वही तहखाने को खोल सकता है .आज भी उसमें मंदिर के ढेरों सामान रखे गए हैं.

1937 के इस फैसले में ही इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक नक्शा भी लगाया और उस नक्शे में बकायदा डॉटेड लाइंस के साथ मस्जिद की सीमा रेखा तय की और उसके अलावा बाकी चारों तरफ की जमीन का फैसला विश्वनाथ मंदिर के व्यासपठ के महंत व्यास परिवार पक्ष
में दिया. तब से ही मस्जिद की अपनी सीमा थी, जबकि बाकी आसपास की पूरी जमीन को व्यास परिवार को दे दिया गया. 1937 के बाद 1991 तक इस मामले में कोई विवाद नहीं हुआ.
व्यास परिवार और उनके वकील के पास पिछले पौने दो सौ साल से लड़े गए मुकदमों की फेहरिस्त और फाइलों का पुलिंदा है. 1937 का मुकदमा दीन मोहम्मद का मुकदमा बाबा विश्वनाथ और ज्ञानवापी मस्जिद के बीच का सबसे अहम मुकदमा माना जाता है. इस मुकदमे की सुनवाई हाई कोर्ट तक चली, जिसमें हाई कोर्ट ने बहुत सारी बातें साफ कर दीं. यानी ढांचागत मस्जिद को छोड़कर तमाम जमीने व्यास परिवार की और बाबा विश्वनाथ मंदिर की होगी. मस्जिद के अलावा आसपास की किसी जमीन पर न तो नमाज हो सकेगी ना ही उर्स या फिर जनाजे की नमाज होगी.

बनारस के रहने वाले दीन मोहम्मद ने Civil Suit कोर्ट में दाखिल किया। Civil Suit 62 of 1936 में किया की जो सेटलमेंट प्लाट -9130 को (वास्तविक काशी विश्वनाथ का पूरा एरिया Revenue Record में 9130 के नाम से जाना जाता है. ) वक्फ प्रॉपर्टी declare किया जाये और उन्हें नमाज पढ़ने का पूरा अधिकार दे दिया जाये। दूसरा पक्ष इस केस में ब्रिटिश सरकार थी , हिन्दुओं ने जब इस केस में पक्ष बनने की बात की तो उसे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ख़ारिज दिया गया। ब्रिटिश सरकार ने लिखित रूप में कोर्ट में हलफनामा दायर किया और

Paragraph -2 में यह लिखा की यह परिसर वक्फ प्रॉपर्टी नहीं है। (यहाँ आप को जान लेना चाहिए की किसी Valid मस्जिद होने के लिए कोई भी स्थान वक्फ संपत्ति होना चाहिए )
Paragraph -11 में लिखा है की यहाँ की मूर्तिया मुगलकाल के पहले से यहाँ है।
Paragraph -12 इस सम्पत्ति का मालिक औरंगजेब नहीं था। और इस्लामिक law के मुताबिक यह अल्लाह को Dedicate नहीं किया जा सकता। दावेदारों की ओर से सात, ब्रिटिश सरकार की ओर से 15 गवाह पेश हुए थे। सब जज बनारस ने 15 अगस्त 1937 को मस्जिद के अलावा ज्ञानवापी परिसर में नमाज पढऩे का अधिकार नामंजूर कर दिया था।
दीन मोहम्मद इससे खुश नहीं हुए और फिर उन्होंने हाई कोर्ट में Suit दायर किया जिसका Appeal No -466 of 1937 जिसका फैसला आया

1942 SCC OnLine Allahabad/ Page No. 56 के Paragraph-5 में ये HOLD किया है की यहाँ मंदिर तोड़ी गई है। और Paragraph-16 में HOLD किया है की यह वक्फ सम्पति नहीं है.और नमाज पढ़ लेने से किसी स्थान पर आप का उस पर हक़ नहीं हो जाता।

साल 1937 से लेकर 1991 तक दोनों पक्षों में कोई विवाद नहीं हुआ. मुसलमान अपनी मस्जिद में जाते थे, जबकि हिंदू अपने मंदिरों में। हालांकि यह मस्जिद भी 1991 तक विरान ही पड़ी रही, जिसमें इक्के दुक्के मुसलमान ही नमाज अदा करते थे लेकिन बाबरी विध्वंस के बाद से यहां अचानक नमाजियों की संख्या काफी बढ़ गई और तब से यहां हर रोज नमाज होती भी है.

1991 में व्यास परिवार की ओर से स्वामी सोमनाथ व्यास ने एक मुकदमा दर्ज कराया और उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद को ‘आदि विशेश्वर मंदिर’ कहते हुए इसे मंदिर को सौंपने का मामला दर्ज कराया. 1991 से लेकर यह मामला अभी तक चल रहा है और इसी मामले में सुनवाई करते हुए 1996 में पहली बार अदालत ने कोर्ट कमिशन बनाया था और पहला सर्वे 1996 में किया था.
इस मुकदमे में सोमनाथ व्यास की तरफ से विजय शंकर रस्तोगी वकील थे. बाद में सोमनाथ व्यास की मृत्यु के बाद वह वादी मित्र होकर इस मामले की पैरवी कर रहे हैं.

मस्जिद के ढांचे को मंदिर या मूल विश्वेश्वर मंदिर कहकर अदालत में याचिका लगाई गई तो उसमें कई तस्वीरें भी लगाई गईं. वह तमाम तस्वीरें उस विध्वंस किए गए ढांचे की हैं, जो मंदिर दिखाई देता है.

मंदिर के विध्वंस पर बनी मस्जिद की कई तस्वीरें अदालत में सुबूत के तौर पर संलग्न की गईं और उसी को देखते हुए साल 1996 में एक सर्वे कमीशन बनाया गया था. इस केस की सुनवाई के दौरान बनारस की अदालत ने इसमें एएसआई से खुदाई का आदेश दिया था।

‘आदि विशेश्वर मंदिर’ को तोड़कर बनाया गया है इसका नक्शा भी 1937 में तत्कालीन बनारस के डीएम ने अदालत में सौंपा था. जिस जमीन पर या जिस ढांचे पर आज ज्ञानवापी मस्जिद खड़ी है उस ढांचे का नक्शा पहली बार अदालत में पेश किया था और उस नक्शे में कई चीजें साफ-साफ लिखी हैं. मसलन यह पहला और एकमात्र ऐसा नक्शा है जो दिखाता है कि मंदिरनुमा कोई ढांचा रहा है जिसके बड़े हिस्से पर मस्जिद बनी है, बकायदा डॉटेड लाइन से इस नक्शे पर मस्जिद के हिस्से को दिखाया गया है.

स्वर्गीय केदारनाथ व्यास 2020 में परलोक गमन कर गये।
आज भले इन्हें सारा देश ना जानता हो।
आज भले स्वयं को सनातनी कहने वाले लोंगों को इनका योगदान और नाम तक ना पता हो।

लेकिन महादेव के इस सपूत का, व्यास परिवार का पूरी काशी ऋणी रहेगी चिरकाल तक।
महादेव के लोक में महादेव के पुत्र आज चिर निद्रा में सो रहे।
कोटि कोटि अभिनंदन आपका व्यास परिवार 🙏
✍️ आकांक्षा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *