भारत में मुस्लिमों से ही बनते हैं ‘संवेदनशील इलाके’ ?!!!

Ram navmi Violence: आखिर भारत में ‘संवेदनशील इलाके’ बनाए किसने हैं?

देवेश त्रिपाठी

देश के कई इलाकों के साथ मध्य प्रदेश के खरगोन में रामनवमी की शोभायात्रा  पर हुई पत्थरबाजी के बाद पुलिस प्रशासन सतर्क हो गया है. यही कारण है कि भोपाल में पुलिस प्रशासन ने हनुमान जयंती (Hanuman Jayanti) पर जुलूस निकालने की इजाजत 16 शर्तों के साथ दी है. क्योंकि, ये जुलूस बुधवारा, इतवारा जैसे ‘संवेदनशील इलाकों’ से भी निकलना है.
देश के कई इलाकों के साथ मध्य प्रदेश के खरगोन में रामनवमी की शोभायात्रा पर हुई पत्थरबाजी के बाद पुलिस प्रशासन सतर्क हो गया है. यही कारण है कि भोपाल में पुलिस प्रशासन ने हनुमान जयंती पर जुलूस निकालने की इजाजत 16 शर्तों के साथ दी है. क्योंकि, हनुमान जयंती का जुलूस बुधवारा, इतवारा जैसे ‘संवेदनशील इलाकों’ से भी निकलना है. हालांकि, शहर काजी ने रमजान की ‘चहल-पहल’ वाले इन इलाकों से जुलूस निकालने पर आपत्ति जताई थी. लेकिन, पुलिस प्रशासन से इजाजत  के बाद हनुमान जयंती का जुलूस निकाला जाएगा. वैसे, जुलूस निकालने को दी गई इजाजत की शर्तों में कहा गया है कि गदा और त्रिशूल के अलावा अन्य हथियार प्रतिबंधित होंंगे. डीजे पर बजने वाले गानों की लिस्ट पहले से देनी होगी. जुलूस में सिर्फ एक डीजे होगा. आयोजक पुलिस के साथ आगे ही चलेंगे. खैर, यहां सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर भारत में ‘संवेदनशील इलाके’ बनाए किसने हैं?

भारत के अधिकांश संवेदनशील इलाकों में ‘मुस्लिम बहुल क्षेत्र’ शामिल हैं. क्योंकि, इन जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा का लंबा इतिहास रहा है.

‘संवेदनशील इलाके’ की परिभाषा क्या है?

पुलिस की भाषा में आमतौर पर जिन इलाकों में कानून-व्यवस्था बिगड़ती रही हो, अपराधी तत्त्वों की मौजूदगी हो, सांप्रदायिक और जातिगत तनाव की संभावनाएं बनी रहती हों, उग्रवाद जैसे कारणों से उन्हें ‘संवेदनशील इलाका’ घोषित किया जाता है. ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत के अधिकांश संवेदनशील इलाकों में ‘मुस्लिम बहुल क्षेत्र’ शामिल हैं. क्योंकि, इन जगहों पर सांप्रदायिक तनाव का लंबा इतिहास रहा है. हाल ही में देशभर में रामनवमी की शोभायात्राओं पर जिन जगहों पर भी हमले हुए वो सभी मुस्लिम बहुल क्षेत्र थे. और, कई मीडिया रिपोर्ट में आ चुका है कि रामनवमी की शोभायात्राओं पर पत्थरबाजी और पेट्रोल बम फेंकना पहले से ही सुनियोजित था. आसान शब्दों में कहें, तो उपद्रव अचानक नहीं हुआ. बल्कि, इसके लिए पहले से ही तैयारी थी. और, छतों पर पत्थर और पेट्रोल बमों का इंतजाम पहले से ही किया गया था.

 

सामान्य इलाकों में क्यों नहीं होती पत्थरबाजी जैसी घटनाएं?

राजनेता और बुद्धिजीवी वर्ग का एक धड़ा मध्य प्रदेश के खरगौन और राजस्थान के करौली में रामनवमी की शोभायात्राओं पर हमले के पीछे उकसावा कहकर पत्थरबाजी का बचाव करते हैं. वैसे, यहां एक अहम सवाल ये है कि सामान्य इलाकों (हिंदू बहुल क्षेत्रों) में मुस्लिमों के जुलूस पर पत्थरबाजी क्यों नहीं होती ? जबकि, वहां भी ऐसे ही उकसावे वाले गाने न केवल बजते हैं. बल्कि, सड़कों पर खुलकर तलवारें और अवैध तमंचे लहराए जाते हैं.  ट्विटर यूजर स्वाती गोयल शर्मा ने वीडियो शेयर किया है, जो खरगौन का ही बताया जाता है. दावा है कि वीडियो 2018 का है. जिसमें हिंदू बहुल इलाके में मंदिर के सामने खुलेआम तेज आवाज में डीजे पर गाना बज रहा है कि ‘कर देंगे तड़ीपार, बुलाऊं क्या अली को. एक बार में मिट जाएगा हर बार का झगड़ा, बुलाऊं क्या अली को’. क्या ऐसे गाने उकसावे वाले नहीं हैं? हनुमान जयंती के जुलूस की तरह इन गानों को भी पहले से अनुमति ली जाती है?

 

स्वाती गोयल शर्मा ने लिखा है कि ‘इस वीडियो की सत्यता जानने को खरगौन में संपर्क कर लोगों से पूछा कि क्या कभी इस तरह के जुलूस पर पत्थरबाजी हुई? उनका जवाब चौंका गया कि मैडम, हम यहां दुकान चलाते हैं. पत्थरबाजी से इनका नुकसान नहीं होगा. नुकसान हमारा ही है.’ वैसे, मोहर्रम और पैकियों के जुलूसों में शक्ति प्रदर्शन को तलवारें लहराना कोई नई बात नहीं है. भारत में कई दशकों से ये होता रहा है. लेकिन, किसी मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद के सामने हिंदुओं के भगवानों से जुड़े गानों पर उसका अंजाम पत्थरबाजी में ही सामने आता है. वैसे, बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने अपनी किताब ‘पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन’ में भी इस बात का जिक्र किया था कि ‘सभी मुस्लिम देशों में किसी मस्जिद के सामने बिना किसी आपत्ति गाना बजाया जा सकता है. यहां तक कि अफगानिस्तान में भी जो धर्मनिरपेक्ष देश नहीं है. वहां भी मस्जिदों के पास गाजे-बाजे पर आपत्ति नहीं होती. लेकिन, भारत में मुसलमान इस पर आपत्ति करते हैं, और हिंदू इसे उचित मानते हैं.’

संवेदनशील इलाके क्यों हैं मुस्लिम बहुल क्षेत्र?

हिंदू बहुल इलाकों में मुस्लिमों के जुलूस भड़काऊ गानों के बावजूद बिना किसी दिक्कत आसानी से निकलते हैं. क्योंकि, उन उकसाऊ और भड़काऊ गानों को हिंदू ‘धर्मनिरपेक्षता’ के नाम पर दशकों से किनारे रखते आए हैं. लेकिन, क्या भारत में धर्मनिरपेक्षता निभाना केवल हिंदुओं को ही बाध्यता है? स्कूल-कॉलेजों में हिजाब की जिद, नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसक विरोध जैसी घटनाओं पर धर्मनिरपेक्षता का ख्याल लोगों को क्यों नहीं आता . संविधान ने देश में हर नागरिक को किसी भी इलाके में जाने की स्वतंत्रता दी है. तो, संवेदनशील मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंसक घटनाओं पर आंखों पर पट्टी नहीं बांधी जा सकती क्योंकि, इससे हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच की खाई को और गहरा किया जा रहा है.

बीते साल तमिलनाडु के ऐसे ही मुस्लिम बहुल इलाके में हिंदुओं की शोभायात्रा को निकलने से रोका गया जिसमें मद्रास हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी कि इसी आधार पर फैसला किया गया, तो देश के अधिकांश हिस्सों में अल्पसंख्यकों (मुस्लिमों) को अपने कार्यक्रम करना मुश्किल होगा. मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि ‘सड़कों और गलियों पर कोई धर्म दावा नहीं कर सकता. उसे सब इस्तेमाल कर सकते हैं.’ लेकिन, विडंबना ही है कि भारत के संवेदनशील इलाकों का मजहब पत्थरबाजी के रूप में सामने आता ही है. आसान शब्दों में कहें, तो संवेदनशील इलाकों यानी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हालात न सुधरे, तो भविष्य में स्थितियां और भयावह होंगी. और, एक बार फिर लोगों को ‘विभाजन’ का दर्द झेलना पड़ेगी.

 

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