भारत को गुलाम बनाने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी का मालिक अब भारतीय मूल के संजीव

ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक संजीव मेहता

ईस्ट इंडिया कंपनी… कभी भारत गुलाम था, अब उसका मालिक है ये भारतीय
व्यापार की आड़ में उपमहाद्वीप पहुंची ऐतिहासिक कंपनी (Historic Company) ने कैसे भारत को लूटा, यह आप जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि अब उसी कंपनी का मालिक एक भारतीय है? कौन है? ये भी जानें कि कंपनी कैसे खत्म हुई और फिर कैसे (Dissolution and Revival of East India Company) बनी.

भवेश सक्सेना
31 दिसंबर वो तारीख है, जब 420 साल पहले ऐतिहासिक कंपनी (East India Company Establishment) बनी थी, जिसने करीब दो सौ सालों तक भारत में कहर ढाया. करीब डेढ़ सौ साल पहले यह कंपनी खत्म हो गई थी और फैक्ट यह है कि नये सिरे से बनी इस कंपनी की कमान अब एक भारतीय के पास (Indian Owns East India Company) है. यह अपने आप में रोचक ही नहीं, एक ऐतिहासिक बात है कि जिस कंपनी ने भारत पर शासन और अत्याचार किए, अब उसके मालिक का नाम भारतीय मूल के उद्योगपति संजीव मेहता (British Entrepreneur Sanjiv Mehta) है.
हालांकि अब यह कंपनी साम्राज्यवादी उपनिवेश का प्रतीक नहीं है और सिर्फ कारोबार से वास्ता रखता है. लेकिन दिलचस्प यह है कि सदियों पहले की तरह अब भी इस कंपनी का एक प्रमुख कारोबार चाय और मसालों से जुड़ा है. चलिए आपको यह भी बताते हैं कि कैसे ईस्ट इंडिया कंपनी खत्म हुई थी और अब इस कंपनी के मालिक संजीव मेहता कौन हैं?

कैसे खत्म हुई थी ब्रिटेन की कंपनी?

1857 में जब भारत की पहली स्वतंत्रता क्रांति हुई तो इसे ब्रिटेन ने गदर या विद्रोह के तौर पर समझा. समझा जो भी हो, लेकिन इसका असर काफी बड़ा हुा. ब्रिटिश प्रशासन और हुकूमत ने यह विद्रोह होने की नौबत आने का ठीकरा ईस्ट इंडिया कंपनी के सिर फोड़ा. इस स्वतंत्रता संग्राम के बाद 1858 में भारत सरकार एक्ट बनाकर ब्रिटिश सरकार ने कंपनी को नेशनलाइज़ किया.

31 दिसंबर 1600 में बनी थी ईस्ट इंडिया कंपनी.

इसका मतलब यह हुआ कि भारत का राज कंपनी के हाथ से निकलकर सीधे ब्रिटेश के राजवंश के पास गया. कंपनी को खत्म किए जाने की कवायद शुरू हो चुकी थी और 1873 में ईस्ट इंडिया स्टॉक डिविडेंड रिडेम्प्शन एक्ट बना, जिसे 1 जनवरी 1874 से प्रभावी किया गया. 1 जून 1874 को कंपनी औपचारिक तौर पर खत्म हो गई, जब उसके तमाम पेमेंट कर दिए गए.

कैसे नए सिरे से बनी कंपनी?

19वीं सदी में कंपनी खत्म किए जाने के बाद यह लंबे अरसे तक निष्क्रिय पड़ी रही और सिर्फ इतिहास और किताबों की चीज़ बनकर रह गई. इसे नए सिरे से शुरू करने की कवायद 2003 में शुरू हुई, जब चाय और कॉफी के कारोबार के लिए इसके शेयरहोल्डरों ने इसे दोबारा चालू करने के बारे में कोशिश की.
भारतीय मूल के उद्यमी संजीव मेहता ने इस पूरी कवायद में काफी मेहनत मशक्कत से 2005 में कंपनी का नाम अपने नाम किया. फिर मेहता ने इसे चाय, कॉफी और अन्य खाद्यों के क्षेत्र में फोकस करते हुए पूरी तरह कंपनी को रूपांतरित कर दिया. मेहता ने इस बारे में कई बार मीडिया से बातचीत करते हुए दोहराया है :
इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने कई क्षेत्रों में विस्तार किया और इसी साल सितंबर में यह कंपनी इसलिए चर्चा में थी क्योंकि इसने एक तरह से सिक्कों की टकसाल का परमिट हासिल कर लिया था, जिसमें 1918 में ब्रिटिश इंडिया में आखिरी बार बनाई गई सोने की मुहर के लिए परमिट भी शामिल था. अब यह कंपनी यात्रा, सिगार, जिन, लाइफस्टाइल, नैचुरल रिसोर्स और फूड जैसे कई सेक्टरों में दखल रखती है.

वर्तमान ईस्ट इंडिया कंपनी कई सेक्टरों में सक्रिय है

कौन हैं संजीव मेहता?

लंदन में अपनी माइक्रोबायोलॉजिस्ट पत्नी एमी और बेटे अर्जुन व बेटी अनुष्का के साथ रहने वाले मेहता मुंबई में एक गुजराती परिवार में पैदा हुए थे. मेहता के दादा गफूरचंद मेहता 1920 के दशक से ही यूरोप में हीरे का कारोबार शुरू कर चुके थे, जिसे उनके पिता महेंद्र ने और फैलाया. गफूरचंद 1938 में भारत लौट आए थे.

संजीव मेहता की शिक्षा पहले मुंबई के सिडेनहैम कॉलेज में हुई और फिर उन्होंने लॉस एंजिल्स में रत्नों की शिक्षा हासिल की. 1983 में अपने पिता के हीरे के कारोबार से जुड़ने के बाद उन्होंने खाड़ी देशों, हांगकांग और अमेरिका में कारोबार फैलाया. 1989 में भारत से लंदन जाकर बस गए मेहता ने भारत को घरेलू उत्पाद एक्सपोर्ट करने का बिज़नेस भी बनाए रखा.

फार्मा सेक्टर के कारोबारी ससुर जशुभाई शाह की मदद से मेहता ने रूस में भी अपना व्यापार स्थापित किया. हिंदुस्तान लिवर के उत्पादों को कई देशों में एक्सपोर्ट करने वाले मेहता ने कई क्षेत्रों में एंपायर खड़ा किया. यही नहीं, भारत के महिंद्रा और यूएई के लूलू ग्रुप के साथ ही कई औद्योगिक समूहों के निवेश भी उन्होंने हासिल किए.

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