बीरभूम हिंसा: कोलकाता हाईकोर्ट के आदेश से सीबीआई जांच शुरू

Birbhum Violence Case: सीबीआई ने शुरू की जांच, विशेष टीम घटनास्थल का करेगी दौरा

मौका ए वारदात से साक्ष्य जुटाने के लिए सीबीआई की विशेष टीम को घटनास्थल पर भेजा गया है. अधिकारी ने कहा कि मामले में गिरफ्तार आरोपितों से सीबीआई की टीम पूछताछ करेगी

कोलकाता 25 मार्च।   पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में  सोमवार को 10 लोगों को जिंदा जलाने के मामले में सीबीआई ने विभिन्न आपराधिक धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है. सीबीआई ने इस क्रम में सीएफएसएल विशेषज्ञों और अपने अधिकारियों की टीम घटनास्थल पर भेजी है. साथ ही इस मामले में गिरफ्तार आरोपितों से भी सीबीआई पूछताछ करेगी.

सीबीआई सूत्रों के मुताबिक, कलकत्ता हाई कोर्ट सेेे इस मामले में जांच आदेश के बाद सीबीआई ने बंगाल पुलिस की एफआईआर के आधार पर विभिन्न आपराधिक धाराओं में मुकदमा दर्ज किया. साथ ही मौका ए वारदात से साक्ष्य जुटाने को विशेष टीम घटनास्थल भेजी गई. सीबीआई के एक उच्चाधिकारी ने इस बाबत कहा कि मामले में गिरफ्तार आरोपितों सेे सीबीआई की विशेष टीम पूछताछ करने की तैयारी कर रही है.

बंगाल पुलिस ने इस मामले में तृणमूल कांग्रेस के आरोपित नेता अनारूल हुसैन समेत कुल 20 लोगों को गिरफ्तार किया है. इन सभी को गिरफ्तारी के बाद बंगाल पुलिस ने कोर्ट में पेश किया जहां से 10 लोग पूछताछ को पुलिस हिरासत में भेजे गये थे. सीबीआई अधिकारी के मुताबिक,  मामले में गिरफ्तार सभी आरोपितों की भूमिका की सीबीआई जांच करेगी और जरूरत पड़ने पर उनमें से कुछ को रिमांड पर लेकर पूछताछ भी करेगी.

सीबीआई अधिकारी ने कहा कि इनमें से कुछ आरोपित पुलिस हिरासत में भी हैं ऐसे में कोर्ट की इजाजत लेने के बाद उनसे पूछताछ की जाएगी. इस पूछताछ से तृणमूल कांग्रेस के कुछ और नेताओं पर सीबीआई शिकंजा कस सकता है क्योंकि मामले में लगातार यह आरोप भी लगते हैं आ रहे हैं कि वसूली और वसूली के पैसों को लेकर हुए बंटवारे में यह वारदात हुई है.

गौरतलब है कि टीएमसी नेता भादू शेख की हत्या के बाद गत सोमवार देर रात भड़की हिंसा में कुछ घरों में आग लगाई  गई थी जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई थी.आरोप है कि जलाने के पहले इन लोगों से मारपीट भी की गई थी.

इस मामले को लेकर पश्चिम बंगाल से लेकर दिल्ली तक काफी हो हल्ला मचा और मामले की गूंज संसद में भी सुनाई दी. इसके साथ ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी इस मामले में नोटिस ले राज्य प्रशासन को घटना से संबंधित मामले की रिपोर्ट तलब की थी. फिलहाल सीबीआई की विशेष जांच टीम ने जांच शुरू कर दी है और कुछ दिनों में जांच की आज की गूंज बड़े पैमाने पर सुनाई देगी.

 बंगाल की राजनीति के स्याह पहलू का सच

पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले के बोगटुई गांव में 10 लोगों को ज़िंदा जला कर मारने की घटना लगता है कि राज्य की राजनीति में वर्चस्व को पुरानी और लगातार चलती लड़ाई का नतीजा है.

ऐसी ही किसी बड़ी घटना होने के बाद धीरे-धीरे यह बातें सामने आने लगती हैं. टीएमसी नेता और बड़साल ग्राम पंचायत के उप-प्रधान भादू शेख की राजनीति में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की कहानी किसी फ़िल्मी पटकथा जैसी लगती है.

यही तरक्की उनकी मौत की वजह भी बनी. रिक्शा वैन चालक भादू किस तरह गांव के मसीहा बन उभरे, यह जानना कम दिलचस्प नहीं है. भादू ने बाद में गांव में ही ट्रैक्टर चलाना शुरू किया था. उसके बाद वे रामपुरहाट थाने की गाड़ी चलाने लगे. पुलिसवालों के साथ बढ़ती दोस्ती से गांव में भादू का दबदबा बढ़ता रहा. यह दबदबा बरकरार रखने को ही वे टीएमसी में शामिल हो गए.

गांव वाले बताते हैं, स्थानीय पंचायत का उप-प्रधान बनने के बाद भादू ने एक के बाद एक कई कारोबार मुर्गीपालन से लेकर बसों, गाड़ियों और हार्डवेयर तक शुुुरू कियेे. बाद में उनका नाम कई अनैतिक धंधों में भी सामने आया. लेकिन टीएमसी और पुलिस की निकटता से तमाम मामले दब गए.

भादू के घर से कुछ दूर रहने वाले सुलेमान शेख (बदला हुआ नाम) बताते हैं, “भादू बालू और पत्थर का कारोबार करने के साथ ही ट्रकों से वसूली और दो सड़कों पर टोल टैक्स भी वसूलते थे. उस धंधे में सोना, फटिक, बनीरूल और पलाश जैसे युवक उनके साथी थे. इन लोगों पर ही भादू की हत्या का आरोप है.”

दो साल पहले भादू के उप-प्रधान बनने पर भादू के भाई और टीएमसी के सक्रिय कार्यकर्ता बाबर शेख उनके तमाम धंधे संभालने लगे थे. इससे फटिक,सोना और पलाश जैसे युवाओं का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगा. उसी दौरान पांच जनवरी, 2021 को बाबर की हत्या हो गई.

उसका आरोप उसी इलाके के पलाश, सोना, छोटा लालन, संजू और हनीफ पर लगा था. उस मामले में गिरफ़्तारी के बाद ज़मानत मिलने के बावजूद ये युवक गांव नहीं लौटे थे.

राज्य के बाहर की एजेंसी से जांच की मांग

भादू के छोटे भाई जहांगीर शेख बताते हैं, “तीन दिन पहले पलाश ने मुझे फ़ोन किया था कि इस बार तुम्हारे बड़े भाई भादू को रास्ते से हटा देंगे. मैंने भादू को यह बताया था. लेकिन उन्होंने कोई तवज्जो नहीं दी. शायद भादू को अंदाजा नहीं था कि उनके ख़िलाफ़ कोई कुछ करने की हिम्मत कर सकता है.”

वैसे, इससे पहले भादू के साथ छाया की तरह रहने वाले राजेश शेख और बापी मंडल की भी हत्या हो गई थी. उस समय भी उन युवकों के ख़िलाफ़ ही आरोप लगा था. लेकिन सोमवार को भादू की हत्या ने लंबे समय से धधकती दुश्मनी की इस आग में घी डाल दिया. इसलिए भादू की मौत के घंटे भर के भीतर ही विरोधियों के घरों में आग लगा दी गई.

भादू के परिवार का पुलिस से भी भरोसा उठ चुका है. भादू की पत्नी ताबिला बीबी कहती हैं, “एक साल पहले मेरे देवर की हत्या की गई थी. लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया. इसलिए अब उस पर हमारा भरोसा नहीं है. किसी बाहरी एजेंसी से जांच कराई जाए.

 TMC से जुड़कर खूब पैसा कमाया, पुलिस की गाड़ी चलाता था, मुख्य आरोपित था कभी राजमिस्त्री

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के रामपुरहाट के बोगतई गांव में 21 मार्च को हुई हिंसा (West Bengal Political Violence) का मुख्य आरोपी अनारूल हुसैन (Anarul Hussain Arrested) एक ऐसा विलेन है, जो भादू शेख के लिए कुछ भी कर सकता था। भादू शेख की हत्या के बाद TMC कार्यकर्ताओं ने गांव में नरसंहार किया था। इस हिंसा में 10 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। कलकत्ता हाईकोर्ट(Calcutta High Court) ने मामले की जांच का जिम्मा CBI को सौंप दिया है। अनारूल हुसैन भले ही गिरफ्तार हो गया हो, लेकिन गांववाले उसके खिलाफ बोलने से डर रहे हैं। गांववालों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अनारूल हसन भादू शेख का करीबी था। भादू के राजनीति रसूख और प्रॉपर्टी के पीछे उसका बड़ा हाथ था। अनारुल उसकी ढाल था। बता दें कि अनारूल हसन रामपुरहाट का टीएमसी ब्लॉक अध्यक्ष है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रामपुरहाट नरसंहार के सिलसिले में पुलिस को अनारुल हुसैन को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था। हालांकि वो इसे अपने खिलाफ एक साजिश बता रहा है। उसने दावा किया कि अगर पुलिस सक्रिय होती, तो यह घटना नहीं होती। लेकिन हैरानी की बात यह है कि उसकी बहन सबीना बीबी इस हिंसा के पीछे अनारुल का हाथ बताती हैं।

पहले राजमिस्त्री था अनारूल

बोगतई में अनारूल हसन की आलीशान कोठी है। करीब 5-6 साल पहले तक अनारूल एक राजमिस्त्री था। फिर वो भादू शेख के संपर्क में आया और एक बड़ा नाम हो गया। बताया जाता है कि भादू शेख और सोना शेख के बीच लंबे समय से दुश्मनी चली आ रही थी। कभी भादू शेख पुलिस की गाड़ी चलाता था। उसी समय इसी तरह का काम उसका पड़ोसी सोना शेख भी करता था। पुलिस का वाहन चलाने के दौरान भादू शेख प्रभावशाली लोगों के संपर्क में आया। इसके बाद वे रेत माफिया बन गया। सालभर पहले भादू शेख के बड़े भाई बाबर की हत्या कर दी गई थी। इसमें सोना के रिश्तेदारों के नाम सामने आए थे। इसके बाद दोनों की दुश्मनी और बढ़ गई। भादू ने अपने चार मंजिला मकान में हर जगह CCTV कैमरा लगवा रखे थे। भादू 2013 में पंचायत सदस्य बना था। फिर दो साल बाद उप ग्राम प्रधान

इधर, बीरभूम हिंसा में जैसे-तैसे बचे 40 वर्षीय मिहिलाल शेख ने बताया कि वो अपने बड़े भाई बनिरुल के साथ धान के खेतों में कम से कम 12 किमी दौड़ते रहे। इसी गांव के किराना व्यवसायी मिहिलाल ने अपनी पत्नी, आठ वर्षीय बेटी और मां सहित परिवार के आठ सदस्यों को इस नरसंहार में खो दिया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, भादू शेख की हत्या के आधे घंटे बाद ही 100 से अधिक बदमाशों ने घरों पर हमला कर दियाा।

जमात ए इस्लामी हिंद(Jamaat e Islami Hind), पश्चिम बंगाल के सचिव शादाब मासूम एसबी के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल की एक टीम ने रामपुरहाट के बोगतुई इलाके का दौरा किया। उन्होंने पीड़ितों के परिवारों से मुलाकात की, जिन्हें जिंदा जला दिया गया था। टीम ने एक ज्ञापन भी सौंपा और आरोपितों को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग की है।

 

इस तरह हुई थी हिंसा की शुरुआत

तृणमूल कांग्रेस(TMC) के स्थानीय नेता और बरशल ग्राम पंचायत बोकतुई के उप प्रमुख भादु शेख की 21 मार्च को हत्या(TMC leader Bhadu Sheikh was killed on Monday) कर दी गई थी। उन पर किसी पुरानी रंजिश के चलते बम से हमला किया गया था। उनकी मौत की खबर के बाद टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने उपद्रव शुरू कर दिया था।

दो दिनों में सूना हो गया गांव

बोगटुई गांव में सोमवार देर रात से छाया सन्नाटा घटना के दो दिन बाद भी जस का तस है.

विपक्षी दलों, सीपीएम और बीजेपी, के नेताओं के गांव में पहुंचने या फिर रैपिड एक्शन फ़ोर्स (आरएएफ़) के भारी-भरकम बूटों की आवाज़ से ही सन्नाटा बीच-बीच में टूटता रहा. पुलिस ने फोरेंसिक जांच की बात कह कर  नेताओं को उस घर में नहीं जाने दिया जहां से एक साथ सात बुरी तरह जले शव बरामद किए गए थे.

इस बीच, मंगलवार सुबह से तमाम लोगों के अपने ज़रूरी सामान के साथ गांव छोड़ने का जो सिलसिला शुरू हुआ था वह बुधवार को भी जारी रहा.

इनमें भादू शेख का परिवार भी है जिसकी मौत ही इस घटना की वजह बनी. वैसे, भादू के विरोधी समझे जाने वाले ज़्यादातर घरों के पुरुष सदस्य तो भादू की मौत की ख़बर मिलते ही गांव छोड़ चुके थे. पीछे बची महिलाएं भी अपने बच्चों और घर के ज़रूरी सामानों के साथ परिचितों या रिश्तेदारों के घर चली गई हैं. इससे सन्नाटा और गहरा हो गया है. अब गांव में वहां के लोगों की तुलना में तैनात पुलिस के जवान ज़्यादा हैं.

ऐसी किसी भी बड़ी घटना के बाद कुछ दुखद कहानियां सामने आती हैं. बोगटुई की घटना के बाद भी एक नवदंपति की ऐसी ही कहानी सामने आई है.

इसी साल 18 जनवरी को साजिद की शादी इस गांव की मरजीना से हुई थी. वह लोग सोमवार सुबह ही नानूर से गांव में आए थे.

जब घरों पर हमला शुरू हुआ तो साजिद ने अपने एक मित्र को फ़ोन कर बचाने की गुहार भी लगाई थी. लेकिन वही उसके आखिरी शब्द थे. मंगलवार से ही उनका फोन बंद है. पुलिस भी नहीं बता पा रही है कि क्या साजिद की भी जल कर मौत हो गई है. साजिद के मित्र बताते हैं, शव इस कदर जल गए थे कि उनकी पहचान असंभव थी.

बंगाल में राजनीतिक विरोध और हत्याओं की कहानी

पश्चिम बंगाल में राजनीतिक विरोध से होने वाली सामूहिक हत्याएं कोई नई नहीं हैं.  शुरुआत सत्तर के दशक में ही हो गई थीं. उसके बाद बंगाल इस मामले में कई बार सुर्खियों में रहा है.

1-2007 में पूर्व मेदिनीपुर ज़िले के नंदीग्राम में पुलिस फायरिंग में 14 लोगों की मौत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थी. लेकिन उससे कोई सात साल पहले 27 जुलाई, 2000 में इसी बीरभूम ज़िले के नानूर में सीपीएम और तृणमूल कांग्रेस के आपसी संघर्ष में 11 लोगों की मौत हुई थी. तब एक विवादास्पद ज़मीन पर खेती को जाने वाले 11 मज़दूरों पर सीपीएम समर्थकों ने हमला किया था. मरने वाले सभी लोग टीएमसी समर्थक थे.

2-04 जनवरी, 2001 को तृणमूल समेत सीपीएम विरोधी संगठनों की बैठक पर सीपीएम समर्थकों के हमले में भी 11 लोगों की मौत हो गई थी.

3-10 नवंबर, 2007 को भी नंदीग्राम में सीपीएम और टीएमसी समर्थित दो गुटों के ख़ूनी संघर्ष में 10 लोग मारे गए थे.

4-07 जनवरी 2011 को पश्चिम मेदिनीपुर के नेताई में ख़ूनी झड़प में 14 लोग मारे गए थे. मुर्शिदाबाद ज़िले में भी ख़ासकर पंचायत चुनावों के दौरान सीपीएम और कांग्रेस के बीच हिंसा में काफ़ी लोग मरते रहे हैं. अब बीरभूम के बोगटुई में आठ लोगों को जला कर मारने की घटना भी इसी सिलसिले की कड़ी है.

राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर रहे सुकुमार घोष कहते हैं, “भद्रलोक वाले बंगाल में हिंसा और ख़ूनी संघर्ष की परंपरा तो साठ के दशक के आख़िर में नक्सल आंदोलन से ही शुरू हो गई थी. लेकिन राजनीतिक वर्चस्व से हिंसक झड़पें नब्बे के दशक में शुरू हुई तब कांग्रेस मजबूत थी तो सीपीएम और उसके बीच हिंसा होती थी.

बाद में टीएमसी ने कांग्रेस की जगह ले ली. लेकिन टीएमसी के सत्ता में आने के बाद पहली बार इस घटना से अंदरखाने की लड़ाई ख़ुल कर सामने आई है.

बीरभूम की घटना पर राजनीति

पश्चिम बंगाल हाल के वर्षों में अक्सर राजनीतिक हिंसा और हत्याओं के लिए सुर्खियों में रहा है. लेकिन यह पहला मौका है जब एक साथ इतने लोगों के मारे जाने के बावजूद पुलिस, प्रशासन, टीएमसी समेत कोई भी पार्टी इसे राजनीतिक हत्या नहीं बता रही है. इस घटना की आंच पर राजनीति की रोटियां सेंकने की कवायद  जरुर तेज़ हो गई है.

केंद्र सरकार, महिला आयोग और बाल सुधार आयोग ने इस मामले पर रिपोर्ट मांगी है. तो केंद्र सरकार के अलावा भाजपा भी अपना प्रतिनिधिमंडल मौके पर भेजने को है.

राज्यपाल जगदीप धनखड़ के साथ ही भाजपा और सीपीएम ने भी सरकार और पुलिस प्रशासन पर घटना की लीपापोती का प्रयास करने का आरोप लगाया है. माकपा नेताओं ने आरोप लगाया कि एसआईटी इस घटना के सबूतों को मिटाने का प्रयास कर रही है.

दूसरी ओर, ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के दूसरे नेता इसे बंगाल और टीएमसी सरकार की छवि धूमिल करने की बड़ी साजिश बता रहे हैं.

ममता ने भाजपा, कांग्रेस और सीपीएम की भी आलोचना की. उनका कहना था कि दूसरे राज्यों में ऐसी घटना होने पर विपक्षी दलों के नेताओं को वहां जाने नहीं दिया जाता. लेकिन हम यहां किसी को नहीं रोक रहे हैं. विपक्षी नेताओं के दौरे के कारण ही मैंने गुरुवार को जाने का फ़ैसला किया है.”

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