जातिगणना की काट में भाजपा ने गरीबी हटाओ और सनातन बचाओ

Bjp Will Render Opposition Weapon Of Caste Census Useless With Slogans Of Poverty Alleviation And Sanatan
नीतीश-लालू के जाति वाले हथियार के सामने भाजपा का ‘ब्रह्मास्त्र’, मात्र दो ही राजनीतिक तीर कर देंगें बेकार!
बिहार में जाति सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद भाजपा विरोधी विपक्षी पार्टियां इसे भुनाने का प्रयास कर रही है। आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी, केंद्र में विपक्षी गठबंधन की सरकार बनने पर राष्ट्रीय स्तर पर जाति गणना की बात कह रहे हैं। ये नेता भूल जाते हैं कि भाजपा तो पहले से पिछड़ा कार्ड खेलती रही है।

मुख्य बिंदु
अब देश भर में बिहार जाति सर्वेक्षण की गूंज
भाजपा विरोधी जाति गणना को मान रहे ट्रंप कार्ड
प्रधानमंत्री मोदी ने खोज ली काट, दिया गरीबी मिटाने का नारा
भाजपा सनातन अभियान को बना सकती है अस्त्र
पटना 04 नवंबर: बिहार में हुए जाति सर्वेक्षण की गूंज अब देश भर में सुनाई पड़ने लगी है। भाजपा विरोधी दलों को तो यह चुनाव जीतने का अमोघ अस्त्र लगने लगा है। तभी तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी घूम-घूम कर यह कहने लगे हैं कि जिसकी जितनी संख्या भारी, वह उतने हक का अधिकारी। बिहार की देखादेखी अब ओडिशा में भी जाति गणना कराने की बात होने लगी है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी तो पहले से ही इसकी पक्षधर रही है। दरअसल, इन आंकड़ों में पिछड़ों-अति पिछड़ों की जनसंख्या सर्वाधिक दिखने लगी है। अगर दलितों को भी जोड़ दें तो गैर सवर्ण जनसंख्या लगभग 80 प्रतिशत है। अपनी जाति की राजनीति करने वाले दल बिहार को नमूने के तौर पर देख रहे हैं और इसी से अनुमान लगा रहे हैं कि उनके यहां भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति है। यानी उन्हें इसे चुनावी हथियार बनाने में आसानी होगी।

मोदी ने खोज ली काट, दिया गरीबी मिटाने का नारा

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी काट निकाल ली है। उन्होंने गैर सवर्ण जातियों की अधिक आबादी को अपने पक्ष में करने के लिए कह दिया है कि हमारे लिए जातियां महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि गरीबी मिटाना ज्यादा जरूरी है। देश में अब भी गरीबों की आबादी सर्वाधिक है। कोरोना काल से ही नरेंद्र मोदी की सरकार गरीबों को मुफ्त राशन दे रही है। मुफ्त का राशन पाने वालों की संख्या 80 करोड़ खुद प्रधानमंत्री बताते रहे हैं। यानी देश की 138 करोड़ जनसंख्या में 80 करोड़ गरीब हैं। यह सच है कि जाति सर्वे के नाम पर अपनी-अपनी जातियों के हित के मुद्दे उठा कर अब नया नेतृत्व उभर सकता है। न उभरे तो उभारने की कोशिश जरूर हो सकती है। लेकिन प्रधानमंत्री के इस कथन में सच्चाई है कि जब तक गरीबी खत्म नहीं होती, ऐसे जातिगत सर्वेक्षणों का कोई महत्व नहीं रह जाता।

भाजपा बना सकती है सनातन अभियान को भी अस्त्र

देश में अभी सनातन को लेकर राजनीति का एक नया रूप सामने आया है। तमिलनाडु के नेताओं ने जबसे सनातन के विरुद्ध बोलना शुरू किया है, तभी से भाजपा इसे भुनाने के प्रयास में लगी है। भाजपा समझ रही होगी कि बिहार में अगर 80 प्रतिशत से अधिक हिन्दू हैं तो इन्हें सनातन के नाम पर एकजुट किया जा सकता है। किसी भी जाति-उपजाति के हिन्दू को विपक्षी पार्टियों से सनातन पर खतरे की बात बता कर अपने पाले में करने की कोशिश भाजपा करेगी। जाति सर्वे को राजनीतिक दल जितना तूल दे रहे, उतना आम आदमी नहीं दे रहा। आम आदमी को रोजी चाहिए, सुशासन चाहिए, स्वास्थ्य सुविधाएं चाहिए और बेहतर शिक्षा चाहिए। अगर किसी सरकार ने इसके लिए कुछ नहीं किया है तो जाति सर्वेक्षण सिर्फ सियासी शिगूफा बन कर रह जाएगा।

जाति सर्वे की रिपोर्ट आने के बाद वोट बंटने के खतरे

आरजेडी, कांग्रेस, जेडीयू, सपा जैसे जो दल जाति सर्वेक्षण पर इतरा रहे हैं, वे इसके खतरे से वाकिफ हैं। सबसे पहले तो उन दलों में नेतृत्व की हिस्सेदारी की मांग उठेगी। अगर बिहार की ही बात करें तो विधानसभा, विधान परिषद या लोकसभा में सबसे बड़ी जाति का प्रतिनिधित्व उनकी आबादी के हिसाब से होना चाहिए। पर, अभी यह संतुलन नहीं है। बिहार में 14 प्रतिशत जनसंख्या वाली यादव जाति के अभी आठ यानी 25 प्रतिशत मंत्री हैं। उस हिसाब से अति पिछड़ों की ओर से प्रतिनिधित्व की मांग उठेगी। मुस्लिम जाति की जनसंख्या यादव से अधिक है तो मुस्लिम इसी अनुपात में अब विधानसभा या मंत्रिमंडल में सीटों की मांग करेगें। अभी बिहार में मुस्लिम समुदाय से सिर्फ पांच मंत्री है, जबकि उनकी आबादी यादवों से अधिक है।

BJP ने पहले ही भांप लिया था, पिछड़े पर दिया जोर

भारतीय जनता पार्टी को पिछड़ों की बड़ी जनसंख्या का अंदाजा था। यही वजह रही कि नरेंद्र मोदी ने अपने 58 सदस्यों वाले मंत्रिमंडल में ओबीसी के 27 पिछड़े वर्ग के लोगों को जगह दी थी। ओबीसी के 27 मंत्रियों से 19 तो अति पिछड़ी जातियों के हैं। ओबीसी के पांच मंत्रियों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया। अलग-अलग अल्पसंख्यक समुदाय से भी पांच मंत्री हैं। दलित समुदाय से मोदी ने 12 मंत्री बनाए। इसलिए जाति सर्वे के जरिए पिछड़ी जाति के विपक्षी कार्ड को बेअसर करने का काम भाजपा ने पहले से ही शुरू कर दिया है। खुद प्रधानमंत्री पिछड़े वर्ग से आते हैं। विपक्ष अगर बिहार के जाति सर्वे को अपना ट्रंप कार्ड मानता है तो प्रधानमंत्री मोदी ने गरीबी का मुद्दा उछाल कर इसकी काट खोज ली है। सनातन का मुद्दा तो भाजपा के एजेंडे में पहले से ही है। इसलिए विपक्ष को इससे अधिक उत्साहित होने की जरूरत नहीं है।

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