क़तर में 8 भारतीयों को मृत्यु दंड क्यों? हमास के पीछे क़तर,कतर के पीछे पाकिस्तान

विचार एवं विश्लेषण
कतर ने गलती कर दी… नेवी ऑफिसर्स के लिए किसी भी हद तक जा सकती है मोदी सरकार!
नौसेना के 8 पूर्व अफसरों को मौत की सजा एक ऐसे समय में सुनाई गई है, जब भारत में चुनाव नजदीक हैं. इस केस से नौसेना का सम्‍मान, प्रवासी भारतीयों का आत्‍मविश्‍वास, भारत की विदेश नीति और मोदी सरकार की 56 इंच की छाती दांव पर है. वैसे भारत सरकार के पास मौका है कि वह इसी बहाने खुराफाती कतर के पर कतर दे.

कतर ने भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारियों को मौत की सजा सुनाकर एन चुनाव से पहले मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा ली है.

नई दिल्ली,27 अक्टूबर 2023।कतर न तो चीन, पाकिस्‍तान है और न ही कनाडा. चीन और पाकिस्‍तान के भारत के प्रति द्वेष के पीछे क्षेत्रीय प्रभुत्‍व और सीमा की लड़ाई है. कनाडा की भारत से तकरार ताजी ताजी है जिसका कारण कनाडा की घरेलू राजनीति ज्‍यादा है. लेकिन, इन देशों के मुकाबले कतर का मामला बहुत दिलचस्‍प और उतना ही पेंचीदा है. कई बुनियादी जरूरतों को पूरा करने को भारत पर निर्भर खाड़ी का यह छोटा सा देश भारत को चुनौती देना चाहता है. दुनिया के मुसलमानों में मसीहा बनने की कामना में यह देश अकसर नए-नए स्‍टंट करते देखा जा सकता है. नुपुर शर्मा मामले में खुराफाती सक्रियता दिखाकर यह देश भारत सरकार को एकबार तो बैकफुट पर ला चुका लेकिन, भारतीय नौसेना के 8 पूर्व अफसरों को मौत की सजा सुनाकर कतर ने रांग नंबर डायल कर दिया है.कम से कम उसने यह फैसला सुनाने को बहुत ही गलत समय चुना है.कम से कम 5 सीधे कारण दिखाई दे रहे हैं,जिनके चलते मोदी सरकार इस मामले में आर-पार की जंग छेड़ कतर को हमेशा याद रखने वाला सबक दे सकती है.

1. सेना के सम्मान का मामला है:

जो सेना दुनिया में अपने प्रोफेशनलिज्‍म,ईमानदारी और अनुशासन को जानी जाती है,उसके अफसरों पर जासूसी का आरोप बहुत बड़ी बात है.कतर में तो बात सजा-ए-मौत के फैसले तक पहुंच गई है.नौसेना के जिन पूर्व अफसरों को यह सजा सुनाई गई है,वे भारत के सबसे आधुनिक युद्धपोतों का नेतृत्‍व कर चुके हैं.देश के सर्वोच्‍च पुरस्‍कारों से सम्‍मानित हैं. ऐसे प्रतिष्ठित अफसरों को जासूसी जैसे आरोप में मनमाने ढंग से सजा सुना देना भारत की नाक का सवाल है.

2. प्रवासी भारतीयों का आत्मविश्वास दांव पर है:

मोदी सरकार समय विदेशों में रह रहे भारतीय समुदाय पर खास फोकस रहा है.भारत की सॉफ्ट पावर आगे बढ़ाने में यह समुदाय खासा सक्रिय रहा है.जिन पूर्व नौसेना अधिकारियों को मौत की सजा सुनाई गई है,उनमें से एक कमांडर पूर्णेंदु तिवारी को 2019 में प्रवासी भारतीय सम्‍मान से सम्मानित किया गया था,जो विदेशों में निवासरत भारतीयों को दिया जाने वाला सर्वोच्‍च सम्मान है.ऐसे सम्‍मानित लोगों को कठघरे में खड़ा किया गया है,तो यह भारत के चिंता की बात है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कतर के अमीर तमीम बिन हमद अल थानी (फाइल फोटो)

3. चुनाव के चलते मोदी सरकार पर राजनीतिक दबाव है:

भाजपा समर्थकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि ’56 की इंच की छाती’ वाली बना दी है.कम से कम विदेशी चुनौतियों से अब तक वे कामयाबी से निपटते भी आए हैं. पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुए पुलवामा हमले के बाद उन्‍होंने बालाकोट सर्जिकल स्‍ट्राइक करवाकर जो वातावरण बनाया,उससे उन्‍हें चुनावी फायदा भी मिला.लेकिन,भारतीय नौसेना के पूर्व अफसरों को मौत की सजा सुनाकर कतर ने निश्चित ही मोदी सरकार की नींद उड़ाई है. यदि कतर अपने फैसले पर कायम रहता है तो यह भाजपा सरकार और नरेंद्र मोदी की ग्‍लोबल लीडर वाली छवि को नुकसान पहुंचाएगा. कम से कम चुनावी साल में मोदी सरकार कोई रिस्‍क नहीं लेगी.यदि ये अफसर रिहा होकर देश लौट आए तो इसका फायदा है,और यदि नहीं आए तो उतना ही नुकसान भी.

4. विदेश नीति की साख का मामला है:

मोदी सरकार में भारत की मिडिल ईस्‍ट पॉलिसी बहुत चर्चा में रही है.आमतौर पर सभी खाड़ी देशों से भारत के मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं. इजरायल से संबंध नई ऊंचाई तक ले जाने के बावजूद मोदी सरकार को खाड़ी के कई इस्‍लामिक देशों ने अपने-अपने सर्वोच्‍च सम्मानों से सम्मानित किया. इन सबके बीच भारत के प्रति कतर का रवैया चिंताजनक रहा है.अरब देशों की पॉलिटिक्‍स में भी कतर को लेकर उहापोह की स्थिति रही है.इजरायल-गाजा युद्ध में कतर परदे के पीछे से जिस तरह हमास का समर्थन कर रहा है,उसकी आलोचना दुनिया सहित भारत में भी हो रही है.इन तमाम घटनाक्रम के बीच नौसेना अधिकारियों के मामले में कतर को साधना भारतीय विदेश मंत्रालय के लिए अग्नि-परीक्षा जैसा होगा.

5. कतर की जुर्रत को काबू में रखना है:

कतर हमेशा से भारत के आंतरिक मामलों में गिद्ध दृष्टि रखता रहा है.तालिबान और हमास जैसे संगठनों की पनाहगाह यह देश मिडिल ईस्‍ट और साउथ एशिया में अपना प्रभुत्‍व जमाए रखने को हर तरह के हथकंडे अपनाने को बदनाम है.कतर की इन सभी खुराफातों को उजागर करने का यही समय है. इजरायल-गाजा युद्ध में कतर की भूमिका पर दुनिया पहले ही सवाल खड़े कर रही है.अब इस मामले में भारत को भी मौका मिल गया है.कतर चाहता है कि भारत उसी तरह बैकफुट पर आ जाए,जैसा वह नुपुर शर्मा के मामले में आ गया था.लेकिन,इस बार उसका दांव उलटा पड़ता दिख रहा है.जासूसी के मनमाने आरोप और मौत का फैसला सुनाकर कतर ने जिस तरह भारतीय नौसेना अधिकारियों को अपनी कैद में रखा हुआ है,वह फिरौती की खातिर अपहरण करने से ज्‍यादा कुछ नहीं है.
Why World Does Not Oppose Qatar Who Gave Death Penalty Of Ex Indian Navy Officers
आतंकियों के आका कतर का विरोध क्यों नहीं कर पाती दुनिया, भारत के साथ कैसे हैं संबंध?
कतर ने भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अधिकारियों को मौत की सजा सुनाई है। कतर का दावा है कि इन पूर्व नौसैनिक अधिकारियों ने इजरायल के साथ खुफिया जानकारी साझा की है। कतर मुस्लिम दुनिया में सऊदी अरब के प्रभुत्व को चुनौती देने वाला एक मात्र देश है। कतर के भारत के साथ भी अच्छे संबंध हैं।
कतर पूरी दुनिया में अपने आतंकवाद समर्थक रवैये के कारण बदनाम है। यह एक ऐसा देश है,जो इस्लाम के नाम पर दुनिया के लगभग सभी आतंकवादी समूहों को धन मुहैया कराता है। यह दूसरे मुस्लिम देशों के विपरीत आतंकवादी समूहों में शिया या सुन्नी का भी भेदभाव नहीं करता है। कतर से दान पाने की योग्यता सिर्फ मुस्लिम होना और आतंकवादी कार्यों में महारत रखना है। अब इस देश ने भारत के आठ पूर्व नौसैनिक अधिकारियों को कथित जासूसी के आरोप में फांसी की सजा सुनाई है। कतर का आरोप है कि ‘अल-जाहिरा अल-आलमी कन्सलटेन्सी एंड सर्विसेज’ के लिए काम करने वाले इन पूर्व भारतीय नौसैनिक अधिकारियों ने कुछ संवेदनशील जानकारी इजरायल को लीक की थी। इजरायल और कतर कट्टर दुश्मन हैं। इस कारण ही कतर हमास और हिजबुल्लाह जैसे आतंकवादी समूहों को धन मुहैया कराता है।
Qatar India Relations
कतर इतना ताकतवर मुल्क कैसे बना

आतंकवादियों का सबसे बड़ा फाइनेंसर है कतर

कतर पूरी दुनिया के आतंकवादी समूहों का सबसे बड़ा फाइनेंसर है। यह दुनिया के लगभग हर आतंकी समूह को पैसा बांटता है। इसमें हमास, अल कायदा, इस्लामिक स्टेट, हिजबुल्लाह, मुस्लिम ब्रदरहुड, अल नुसरा फ्रंट जैसे आतंकी समूह शामिल हैं। कतर लगातार इन आतंकी समूहों को पैसा देता रहता है। इसका प्रमुख कारण इस्लामी दुनिया में खुद को सबसे बड़ा आका घोषित कराना है। कतर की सऊदी अरब के साथ पुरानी दुश्मनी है। सऊदी को इस्लामी दुनिया का सबसे ताकतवर देश माना जाता है। कतर को इसी बात से चिढ़ है, इस कारण वह आतंकी समूहों को पैसे देने से भी बाज नहीं आता है।

कतर का विरोध क्यों नहीं कर पाती दुनिया

अमेरिका समेत पूरी दुनिया जानती है कि कतर आतंकवादियों का सबसे बड़ा समर्थक है। इसके बावजूद कोई भी देश उसके खिलाफ एक शब्द नहीं बोलता है। इसका सबसे बड़ा कारण कतर की भौगोलिक स्थिति और उसके जमीन के नीचे दबा अरबों-खरबों रुपये की गैस है। कतर आकार में बहुत छोटा देश है, लेकिन इसका विदेशी मुद्रा भंडार 64.56 अरब डॉलर से भी ज्यादा है। कतर के पास दुनिया का सबसे बड़ा गैस भंडार है। कतर अपने गैस को एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करता है। कतर में अमेरिका का मिलिट्री बेस भी है। इस कारण अमेरिका चाहकर भी कतर का खुलकर विरोध नहीं कर पाता। अगर कोई देश विरोध करता भी है तो उसे अमेरिका अपने ताकत के दम पर चुप करा देता है।

कतर के भारत के साथ कैसे हैं संबंध

कतर और भारत के रिश्ते काफी अच्छे हैं। भारत अपनी कुल आवश्यकता का 90 फीसदी गैस कतर से आयात करता है। इसके अलावा कतर की कुल 25 लाख की आबादी में 6.5 लाख भारतीय हैं। ये भारतीय कतर में काम करते हुए अपने देश को भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा भेजते हैं। यह पैसा भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने में अहम योगदान देता है। भारत का दोहा में एक दूतावास है, जबकि कतर नई दिल्ली में एक दूतावास और मुंबई में एक वाणिज्य दूतावास रखता है। भारत और कतर के बीच राजनयिक संबंध 1973 में स्थापित हुए थे। मार्च 2015 में कतर के अमीर तमीम बिन हमद अल-थानी की यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई क्षेत्रों में सहयोग से जुड़े पांच समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके अलावा भारत और कतर ने कैदियों की अदला-बदली का समझौता भी किया था।

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