भारत छोड़ो आंदोलन में SDO व इंस्पेक्टर समेत चार मौत के घाट उतार फांसी पाई थी रामफल मंडल ने

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*🇮🇳 चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित मातृभूमि सेवा संस्था आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।* 🌹🌹🙏🙏🌹🌹

जन्म: *06.08.1924* बलिदान: *23.08.1943* *रामफल मंडल * 🙏🙏🌹🌹🌹🌹

✍️ राष्ट्रभक्त साथियों, मातृभूमि सेवा संस्था आज एक ऐसे देशभक्त के जीवन पर प्रकाश डालने का प्रयास करेगी *जिन पर ब्रिटिश अधिकारी हरदीप नारायण सिंह, पुलिस इंस्पेक्टर राममूर्ति झा, हवलदार श्यामलाल सिंह और चपरासी दरबेशी सिंह को गड़ासा से काटकर हत्या करने का आरोप था।* 06 अगस्त, 1924 को बिहार के सीतामढ़ी जिले के बाज़पट्टी थाने के मधुरापुर गाँव में पिता गोखुल मंडल व माता गरबी मंडल के घर जन्मे रामफल मंडल की शादी मात्र 16 वर्ष की आयु में ही जगपतिया देवी से हो गया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 08 अगस्त 1942 को आरम्भ हुआ भारत छोड़ो आंदोलन तेज़ी से फैलने लगा। रामफल मंडल जी के नेतृत्व में बिहार के सीतामढ़ी में भारत छोड़ो आन्दोलन उग्र और तेज होता देख आन्दोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने सीतामढ़ी में गोलीबारी की,जिसमे बच्चे, बूढ़े और औरतों को निशाना बनाया गया था।

📝 24.08.1942 को बाज़पट्टी चौक पर हजारों लोगों की भीड़ लाठी-डंडा, भाला, फरसा, गड़ासा इत्यादि के साथ दरोगा का इंतजार करने लगी, लेकिन इसकी भनक दरोगा को लग गई। वह सीतामढ़ी के तत्कालीन S.D.O. को सूचना देते हुए लौट गया। जिसके बाद SDO, इंस्पेक्टर, हवलदार, चपरासी एवं ड्राइवर समेत बाजपट्टी पहुँचे, लेकिन उग्र भीड़ के सामने उनकी एक न चली। *रामफल मंडल जी ने गड़ासे के एक ही वार में SDO का सर कलम कर दिया और इंस्पेक्टर को भी मौत के घाट उतार दिया। शेष 02 सिपाही को भीड़ ने मौत की नींद सुला दी।* ड्राइवर फरार हो गया और सीतामढ़ी मैजिस्ट्रेट के सामने कोर्ट में बयान दिया। सभी जगह ‘इन्कलाब जिंदाबाद’,‘भारत माता की जय’ एवं ‘वन्दे मातरम्’ का नारा गूंजने लगा। अंग्रेज पदाधिकारी भागने लगे। सार्वजानिक स्थलों पर तिरंगा फहरने लगा। रामफल मंडल जी ने अपनी गर्ववती पत्नी जगपतिया देवी को नेपाल के लक्ष्मिनिया गाँव में सुरक्षित रख दिया। वहीँ पर 15 सितम्बर 1942 को जगपतिया देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जो विभिन्न झंझावातों से जूझते हुए मात्र 08 महीने ही जीवित रह पाया। ड्राइवर के बयान के बाद रामफल मंडल, बाबा नरसिंह दास, कपिल देव सिंह, हरिहर प्रसाद समेत 04 हजार लोगों के खिलाप हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया। *रामफल मंडल के घर में आग लगा कर जमीन को जोत दिया गया। उनके ऊपर 5000 रुपए का इनाम घोषित किया गया।* नेपाल में बड़े भाई के ससुराल में अपनी धर्मपत्नी को रखने के बाद रामफल मंडल, ससुराल वालों के लाख मना कंरने के बावजूद अपने घर लौट आये।

📝 गाँव के लोगों ने उन्हें कहा, पुलिस तुम्हे खोज रही है, तुम पुन: नेपाल भाग जाओ, लेकिन आजादी के मतवाले रामफल मंडल लोगों से कहते थे कि SDO एवं पुलिस को मारा हूँ अभी और अंग्रेज सिपाहियो को मारने के बाद जेल जाऊंगा। भारत की आजादी के लिए मुझे फाँसी भी मंजूर है। आप लोग मेरे परिवार को देखते रहिएगा। *इसी बीच रामफल मंडल के मित्र शिवधारी कुंवर को रामफल मंडल के आने की सूचना मिल गई। इनाम के लालच में उसने छल से चिकनी-चुपड़ी बातों में फंसाकर रात में नशा खिला दिया। नशे की हालत में जब वे बेहोश थे तो दोनों हाथ एवं पैर जंजीर से बांध कर गिरफ्तार किया।* 01 सितंबर 1942 को रामफल मंडल को गिरफ्तार कर सीतामढ़ी जेल में रखा गया। 05 सितंबर 1942 को उन्हें उनके अन्य साथियों के साथ भागलपुर केंद्रीय कारागार हस्तांतरित कर दिया गया। उसी जेल में मुजफ्फरपुर, बिहार के महान क्रांतिकारी जुब्बा साहनी जी भी भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भी अंग्रेज पदाधिकारियों के हत्या के आरोप में बंद थे। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जुब्बा साहनी ने 16 अगस्त 1942 को मीनापुर थाने के अंग्रेज इंचार्ज लियो वालर को आग में जिंदा झोंक दिया था, जिसके आरोप में उन्हें 11 मार्च 1944 को फाँसी दी गई थी। अधिकारियों की हत्या के अपराध में रामफल मंडल जी व उनके अन्य साथियों पर केस संख्या 473/42 के तहत भागलपुर न्यायलय में मुकदमा चला।

📝 वकील ने रामफल मंडल को सुझाव दिया कि कोर्ट में जज के सामने आप कहेंगे कि मैंने हत्या नहीं की। तीन – चार हजार लोगों की भीड़ में किसने मारा, मै नहीं जानता। 12 अगस्त 1943 को भागलपुर में जज सी.आर. सेनी के कोर्ट में प्रथम बहस हुई। जब जज ने रामफल मंडल से पूछा – रामफल मंडल क्या एस. डी. ओ. हरदीप नारायण सिंह का खून तुमने किया है ? तो उन्होंने कहा – हाँ हुजूर , पहला फरसा हमने हीं मारा था। अन्य लोगों ने जज के सामने हत्या से इंकार कर दिया। जज सी. आर. सेनी. ने रामफल मंडल को फाँसी तथा अन्य आरोपितों को उम्रकैद की सजा सुनाई। फाँसी देने से कुछ मिनट पहले जेलर ने पूछा – तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है ? उन्होंने कहा कि मेरी अंतिम इच्छा है कि अंग्रेज हमारे देश को छोड़कर चले जाएँ, और भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कर समस्त भारत को स्वतंत्र कर दें। मात्र 19 वर्ष की आयु में रामफल मंडल जी ने दिन रविवार 23 अगस्त 1943 की सुबह भागलपुर सेन्ट्रल जेल में हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को गले लगाया और आजाद भारत के निर्माण में अपना नाम अमर बलिदानियों की सूची में दर्ज कराकर महत्वपूर्ण योगदान दिया। *मातृभूमि सेवा संस्था आज मातृभूमि के इस महान क्रांतिकारी के 96वीं जयंती पर नतमस्तक है।*🌹🌹🙏🙏🌹🌹

🇮🇳 मातृभूमि सेवा संस्था 🇮🇳 *9891960477*
*राष्ट्रीय अध्यक्ष: यशपाल बंसल 8800784848*

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