शिव प्राप्ति को सावन में कठोर तप किया था पार्वती ने

शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए सावन में कठोर तप किया था माता पार्वती ने: हरीश चंद्र कांडपाल
ॐ नमः शिवाय
देवाधिदेव महादेव की महिमा का न आदि है न अन्त है। गन्धर्व राज पुष्प दन्त ने भी श्री शिवमहिम्नस्तोत्रम के 33 श्लोकों से शिवजी की स्तुति की है।

” असित गिरिशमनं स्यात्कज्जलं सिन्धुपात्रे, सुरतरूवरशाखा लेखनी पत्रमुर्वी लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं तदपि तव गुणामीश पारं न याति।”

अर्थात यदि नीलान्जन पर्वत के बराबर स्याही हो, सागर दवात हो, कल्पवृक्ष की शाखा लेखनी हो, पृथ्वी कागज हो और अनादिकाल तक सरस्वती उसे लिखती रहे तो भी आपके गुणों का पार नही पा सकती है।

शिव समस्त देवताओं के अधिदेव महादेव है। इनकी पूजा करने से समस्त देवता प्रसन्न हो जाते है। किसी भी देवता की आरती उपलब्ध नही होने पर शिव की आरती से वे प्रसन्न हो जाते है। शिव आरती के प्रत्येक पंक्ति मेें ब्रह्मा,विष्णु, शिव तीनों का किसी न किसी रूप में उच्चारण होता है। यो तो शिव के सहस्र नाम हैैं।मुख्य रूप से शिव,शंकर, भोला, महादेव, महामृत्युंजय, महाकाल आदि के रूप में उपासना की जाती है। शिव का एक भरा पूरा परिवार है जिसमे छः पुत्रों के रूप मेें षडानन या कार्तिकेय, गजानन गणेश, छः पुत्रियां जया, विषहर ,शामलीबारी, देव,दोतली एवं अशोकसुन्दरी, पुत्र बधुऐ रिद्धि, सिद्धि ,देवसेना, पौत्र शुभ , लाभ एवं पौत्री माता सन्तोषी के रूप भक्तों द्वारा सर्वत्र पूज्य है।

माता पार्वती ने अपने गुरू नारद जी के कहने से भगवान भोलेनाथ को पति रूप में प्राप्त करने के लिए श्रावण मास मे हिमालय पर्वत पर अखंड तप किया। आहार के रूप पत्तो का भी त्याग करने के कारण वे अपर्णा कहलाई ।

हरिशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु शयन करने के लिए पाताल लोक चले जाते है तथा भूलोक का दायित्व शिवजी को संभालना पडता है। शिव रूद्र रूप में पृथ्वी पर विचरण करते है। रूद्र रूप में इनको थोडे से ही प्रसन्न किया जा सकता है जैसे विल्वपत्र, एक लोटा जल, भांग, धतूरा, कन्नेर के पुष्प, निर्गुडी, आक के पुष्प आदि।

श्रावण में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है जिससे ये प्रसन्न होकर अपने भक्तों को शीघ्र मन वांछित फल प्रदान करते है। शिव के परिवार से हमें वांछित फल तो मिलता ही है। साथ ही ये भी शिक्षा मिलती है कि एक घर में विभिन्न हिंसक पशु भी अपने आहार के पशु को मित्र रूप से प्रेम भाव से देखते है। जैसे माता का वाहन शेर शिव का नन्दी बैल, कार्तिकेय का वाहन मोर शिव के आभूषण सर्प, गणेश का वाहन मूषक। जय भोले बाबा।

-लेखक हरीश चंद्र कांडपाल दूरसंचार विभाग के रिटायर्ड ऑफिसर हैं तथा भारत संचार श्री अवार्ड से सम्मानित हैं वर्तमान में बच्चीधर्मा हल्दूचौड़ स्थित आवास में वर्ष 2025 तक के लिए अखंड साधना में लीन है

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