अद्भुत, अद्वितीय भाषा है संस्कृत, वाकई ऐसी भाषा कोई और नहीं

संस्कृत एक अद्भुत और अनोखी भाषा ।

अंग्रेजी में ‘THE QUICK BROWN FOX JUMPS OVER A LAZY DOG’ एक प्रसिद्ध वाक्य है। जिसमें अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर समाहित कर लिए गए हैं। मज़ेदार बात यह है की अंग्रेज़ी वर्णमाला में कुल 26 अक्षर ही उप्लब्ध हैं जबकि इस वाक्य में 33 अक्षरों का प्रयोग किया गया है। जिसमें चार बार O और A, E, U तथा R अक्षर का प्रयोग क्रमशः 2 बार किया गया है। इसके अलावा इस वाक्य में अक्षरों का क्रम भी सही नहीं है। जहां वाक्य T से शुरु होता है वहीं G से खत्म हो रहा है।

अब ज़रा संस्कृत के इस श्लोक को पढ़िए:-

क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोSटौठीडढण:।
तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।

अर्थात: पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन ?? राजा मय ! जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं।

श्लोक को ध्यान से पढ़ने पर आप पाते हैं की संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस श्लोक में दिखाई दे रहे हैं वो भी क्रमानुसार। यह खूबसूरती केवल और केवल संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा में ही देखने को मिल सकती है!

आर्य वरदान धर्मयोद्धा कर्मवीर:-

पूरे विश्व में केवल एक संस्कृत ही ऐसी भाषा है जिसमें केवल एक अक्षर से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है। किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल “न” व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया है और गजब का कौशल्य प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने थोडे में बहुत कहा है-

न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु।
नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥

अर्थात: जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है। घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है। वंदेसंस्कृतम्!

एक और उदहारण है।

दाददो दुद्द्दुद्दादि दादादो दुददीददोः।
दुद्दादं दददे दुद्दे ददादददोऽददः।।

अर्थात: दान देने वाले, खलों को उपताप देने वाले, शुद्धि देने वाले, दुष्ट्मर्दक भुजाओं वाले, दानी तथा अदानी दोनों को दान देने वाले, राक्षसों का खंडन करने वाले ने, शत्रु के विरुद्ध शस्त्र को उठाया।

है ना सुंदर !!
इतना ही नहीं, क्या किसी भाषा में केवल 2 अक्षर से पूरा वाक्य लिखा जा सकता है ?? संस्कृत भाषा के अलावा किसी और भाषा में ये करना असंभव है। माघ कवि ने शिशुपालवधम् महाकाव्य में केवल “भ” और “र ” दो ही अक्षरों से एक श्लोक बनाया है।
देखिए:-

भूरिभिर्भारिभिर्भीराभूभारैरभिरेभिरे
भेरीरे। भिभिरभ्राभैरभीरुभिरिभैरिभा:।।

अर्थात- निर्भय हाथी जो की भूमि पर भार स्वरूप लगता है, अपने वजन के चलते, जिसकी आवाज नगाड़े की तरह है और जो काले बादलों सा है, वह दूसरे दुश्मन हाथी पर आक्रमण कर रहा है।

एक और उदाहरण:-

क्रोरारिकारी कोरेककारक कारिकाकर।
कोरकाकारकरक: करीर कर्करोऽकर्रुक॥

अर्थात – क्रूर शत्रुओं को नष्ट करने वाला, भूमि का एक कर्ता, दुष्टों को यातना देने वाला, कमलमुकुलवत, रमणीय हाथ वाला, हाथियों को फेंकने वाला, रण में कर्कश, सूर्य के समान तेजस्वी [था]।

पुनः क्या किसी भाषा मे केवल *तीन अक्षर* से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है ?? यह भी संस्कृत भाषा के अलावा किसी और भाषा में असंभव है!
उदहारण:-

देवानां नन्दनो देवो नोदनो वेदनिंदिनां।
दिवं दुदाव नादेन दाने दानवनंदिनः।।

अर्थात – वह परमात्मा [विष्णु] जो दूसरे देवों को सुख प्रदान करता है और जो वेदों को नहीं मानते उनको कष्ट प्रदान करता है। वह स्वर्ग को उस ध्वनि नाद से भर देता है, जिस तरह के नाद से उसने दानव [हिरण्यकशिपु] को मारा था।

जब हम कहते हैं की संस्कृत इस पूरी दुनिया की सभी प्राचीन भाषाओं की जननी है तो उसके पीछे इसी तरह के सुंदर और अकाट्य तर्क होते हैं। यह विश्व की अकेली ऐसी भाषा है, जिसमें “अभिधान-सार्थकता” मिलती है। अर्थात् अमुक वस्तु की अमुक संज्ञा या नाम क्यों है, यह प्रायः सभी शब्दों में मिलता है। जैसे इस विश्व का नाम संसार है तो इसलिये है क्यूँकि वह चलता रहता है, परिवर्तित होता रहता है:-

संसरतीति संसारः गच्छतीति जगत् आकर्षयतीति कृष्णः रमन्ते योगिनो यस्मिन् स रामः इत्यादि।

विश्व की अन्य भाषाओं में ऐसी अभिधान सार्थकता नहीं है।

Good का अर्थ अच्छा, भला, सुंदर, उत्तम, प्रियदर्शन, स्वस्थ आदि है। किसी अंग्रेजी विद्वान् से पूछो कि ऐसा क्यों है तो वह कहेगा है बस पहले से ही इसके ये अर्थ हैं। क्यों हैं? वो ये नहीं बता पायेगा।

ऐसी सरल, तर्कसंगत और समृद्ध भाषा आज अपने ही देश में, अपने ही लोगों से….अपने अस्तित्व की लड़ाई लड रही है।

क्या सच में संस्कृत कंप्यूटर के लिए सबसे अच्छी भाषा है?

पूूर्व केंद्रीय मानव संसाधन व विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने संस्कृत को दुनिया की सबसे वैज्ञानिक भाषा करार देते हुए कई दावे किए हैं

दुष्यंत कुमार

तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन और विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने आईआईटी-बॉम्बे के छात्रों को संबोधन में संस्कृत को दुनिया की सबसे वैज्ञानिक भाषा क़रार दिया. उन्होंने बाक़ायदा अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के हवाले से दावा किया कि यह कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए सबसे अधिक वैज्ञानिक भाषा है. ‘निशंक’ ने यह भी कहा कि भविष्य में  बोलने वाले कंप्यूटर संस्कृत भाषा से ही संभव होंगे और इसके बिना बनने वाले ऐसे कंप्यूटर क्रैश हो जाएंगे.

इसमें कोई संदेह नहीं कि संस्कृत भारत समेत पूरी दुनिया की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है. इस पर गर्व करने में कुछ भी ग़लत नहीं है. यह भाषा अपने में प्राचीन भारतीय सभ्यता की संस्कृति, विज्ञान और दर्शन समेटे हुए है. लेकिन भारत के एक बहुत बड़े वर्ग में इस भाषा को लेकर कई तरह की भ्रांतियां भी हैं. इस कारण समय-समय पर संस्कृत को लेकर कई ग़लत दावे किए जाते रहे हैं ‘निशंक’ ने ऐसे कुछ दावों को एक साथ आईआईटी के छात्रों के सामने रखा जिसे उन्होंने तुरंत ख़ारिज कर दिया. इसकी क्या वजह है, पर बात करने के साथ संस्कृत से जुड़े कुछ अन्य दावों पर चर्चा करने की भी ज़रूरत है.

संस्कृत को वैज्ञानिक भाषा क्यों कहा जाता है?

संस्कृत को वैज्ञानिक भाषा बताने वाले इसकी वैज्ञानिकता साबित करने को एक रटी-रटाई बात कहते हैं कि इस भाषा में जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है. यह ग़लत नहीं है, लेकिन जब एक भाषा को दुनिया की सबसे वैज्ञानिक भाषा बताया जा रहा हो तो इतने भर से बात नहीं बनती.

दरअसल संस्कृत भाषा का व्याकरण ध्वनि आधारित है. इसमें (शब्द की) आकृति से ज़्यादा ध्वनि की महत्ता है और हरेक आकृति को एक ही ध्वनि है. यह गुण इसे सीखने वाले के लिए इसे आसान बनाता है.लोगों का कहना है कि संस्कृत में अंग्रेज़ी जैसी उलझन नहीं है, जिसमें Son और Sun की वर्तनी अलग-अलग होने के बाद भी उनका उच्चारण एक सा है या But और Put की वर्तनी एक सी होने के बावजूद उच्चारण अलग-अलग हैं।

बहरहाल, संस्कृत की यही विशेषता उसे बोलने की क्षमता बढ़ाने में मदद करने वाली भाषा भी बनाती है. दुनियाभर में ऐसे लोग जिनके होंठ या जीभ में दरार होती है. इसे क्लेफ़्ट पैलेट या क्लेफ़्ट लिप कहते हैं. इससे साफ़ बोलने में दिक़्क़त होती है. ऐसे में स्पीच थेरेपी को डॉक्टर जिन तरीक़ों का इस्तेमाल करते हैं, उनमें संस्कृत भी शामिल है, क्योंकि इसका उच्चारण क्रम काफ़ी स्पष्ट होता है. मुंह के किस हिस्से (कण्ठ, दांत, तालु, होंठ) से कौन सी ध्वनि निकलेगी, यह पता होने से यह जानना आसान है कि क्लिफ़्ट पैलेट या लिप की समस्या से मरीज़ को कौन से शब्द बोलने में मुश्किल होगी और वह कैसी सर्जरी से दूर हो सकता है. इसके अलावा मनोविज्ञान और आध्यात्मिक सुधार में भी संस्कृत का उपयोग होता रहा है.

लेकिन इसका मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि संस्कृत दुनिया की एकमात्र वैज्ञानिक भाषा है. दुनिया की अधिकतर भाषाओं का अपना विज्ञान है. बोलने और लिखने को उनकी अपनी लिपियां और ध्वनियां हैं. यहां तक कि सांकेतिक भाषा में भी अपनी तरह का विज्ञान है, तभी तो साइन लैंग्वेज अस्तित्व में आई. इस विज्ञान के लिए भारत नहीं, बल्कि स्पेन और फ्रांस को श्रेय दिया जाता है जहां (क्रमश:) 16वीं और 18वीं शताब्दी में साइन लैंग्वेज की पद्धति पर विचार और काम शुरू हुआ.

नासा, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और संस्कृत

 

क्या संस्कृत कंप्यूटर प्रोग्रामिंग और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) यानी कृत्रिम बुद्धि के विकास को भी सबसे कारगर वैज्ञानिक भाषा है.  यह भी कि क्या नासा ने भी संस्कृत की वैज्ञानिकता मानी है।

तथ्य यह है कि एआई तकनीक भारत की प्राचीनतम भाषा के बिना ही तेज़ी से आगे बढ़ रही है. विज्ञान की इस नई क्रांति के ग़लत इस्तेमाल को लेकर यूरोप और अमेरिका में ज़बर्दस्त बहस छिड़ी हुई है. इस दौड़ में चीन भी शामिल हो गया है जिसने पिछले साल दो एआई न्यूज़ एंकरों से बुलेटिन पढ़वा पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था. भारत भी एआई तकनीक में भारी निवेश कर रहा है. लेकिन क्या ऐसी कोई रिपोर्ट है जिसमें कहा गया हो कि इसमें महारत हासिल करने को संस्कृत का विशेष रूप से इस्तेमाल किया जाएगा?

एआई तकनीक की बड़ी आलोचना यह है कि इससे कृत्रिम बुद्धि वाले रोबोटों (या मशीनों) के लिए सबसे उपयुक्त भाषा अभी तक न तो खोजी जा सकी है और न ही बनाई जा सकी है. फ़िलहाल दुनियाभर में एआई के लिए विशेष रूप से बनाई गई भाषाओं लिस्प, पायथन, सी++ आदि का इस्तेमाल हो रहा है. साथ ही, और ज़्यादा आसान भाषा खोजने की दिशा में शोध चल रहा है.

संस्कृत को एआई के लिए सबसे उपयोगी या वैज्ञानिक भाषा बताए जाने का सिलसिला शुरू कहां से हुआ? इस बारे में 1985 में ‘आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस’ नामक पत्रिका में छपे एक लेख में नासा से जुड़े रहे वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स ने लिखा था कि प्राकृतिक रूप से बनी भाषाएं (सीधे कहें तो ह्यूमन लैंग्वेज) एआई तकनीक को उपयोगी हो सकती हैं. उनके मुताबिक़ इनसे कंप्यूटर प्रोग्रामिंग से मशीनों का नियंत्रण ज़्यादा आसान होगा. इसी आधार पर रिक ब्रिग्स ने संस्कृत पर चर्चा की और इसे एआई के लिए सबसे उपयोगी प्राकृतिक भाषाओं में से एक बताया.

लेकिन रिक ब्रिग्स ने संस्कृत को सबसे उपयोगी भाषाओं में से एक क्यों माना, जबकि इस तकनीक से जुड़े अधिकतर विशेषज्ञ प्राकृतिक भाषाओं को एआई के लिए उपयुक्त नहीं मानते. जानकारों के मुताबिक इसकी वजह है संस्कृत का किसी भी तरह के बड़े परिवर्तन से बचे रहना. यह भी कह सकते हैं कि इसका अनेकार्थी शब्दों वाली भाषा न बनना. इस प्राचीन आर्य भाषा में जब समय के साथ शुरुआती परिवर्तन हुए और इसे समझने वाले कम होते गए तो यास्क और पाणिनी जैसे विद्वान वैयाकरणों ने संस्कृत को शुद्ध, व्यवस्थित और सुरक्षित रखने का काम किया. उन्होंने इस भाषा का जो व्याकरण बनाया, उससे संस्कृत रूप स्थिर हो गई. यही कारण है कि इससे निकली अन्य भाषाएं कई मायनों (जैसे शब्द और अर्थ) में बदलीं, लेकिन संस्कृत अपने प्राचीनतम और शुद्ध रूप में बनी रहीं.

रिक ब्रिग्स ने अपने लेख में संस्कृत को लेकर जो बातें कहीं, उसका आधार यही था. साथ ही, उनके लेख से यह भी साफ़ होता है कि एआई तकनीक को लेकर नासा ने इस प्राचीन भारतीय भाषा पर भी शोध किए हैं. लेकिन यह पता नहीं चलता कि नासा ने एआई के लिए किसी और प्राकृतिक भाषा पर शोध नहीं किया. नासा ने संस्कृत को एआई के लिए सबसे उपयोगी भाषा बताए जाने पर कभी भी कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है. ब्रिग्स के आलोचक कहते रहे हैं कि अगर संस्कृत एआई की कंप्यूटर प्रोग्रामिंग को सर्वाधिक उपयोगी है तो अब तक इसका सॉफ़्टवेयर क्यों नहीं बना. एआई के संबंध में संस्कृत को लेकर किसी भी तरह के वैज्ञानिक दावे पर तब तक यक़ीन नहीं करना चाहिए, जब तक नासा उस पर अपनी मुहर न लगा दे.

कंप्यूटर प्रोग्रामिंग लैंग्वेज में अंतर

संस्कृत की प्रशंसा करते-करते ‘निशंक’ यह भी भूल गए कि भाषाई विज्ञान और प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के विज्ञान में अंतर है. संस्कृत की वैज्ञानिकता व्याकरणिक रूप से विशुद्ध और सही जानकारी देने वाली भाषा तक सीमित है. इसे इसलिए वैज्ञानिक भाषा माना जाता है कि पाणिनी और अन्य संस्कृत वैयाकरणों ने क्रमबद्ध अध्ययन कर सूत्रीय पद्धति पर संस्कृत व्याकरण तैयार किया. कंप्यूटर प्रोग्रामिग में इस्तेमाल होने वाली वैज्ञानिक भाषा अलग चीज़ है. यह भाषा प्राकृतिक नहीं है. इसमें विशेष तरह के गणितीय सूत्रों, चिह्नों आदि का इस्तेमाल होता है. पायथन, आर, जावा, एसक्यूएल, जूलिया, स्काला, मैटलैब, टेंसरफ़्लो आदि कुछ सबसे चर्चित कंप्यूटर प्रोग्रामिंग वैज्ञानिक भाषाएं हैं.

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