विशेषज्ञ राय: शत-प्रतिशत वेक्सीनेशन असंभव,95% के गाइडलाइंस पालन से दूसरी वेव रहेगी दो हफ्ते

महामारी विशेषज्ञ की सलाह:95% लोग गाइडलाइन का पालन करें तो कोरोना की दूसरी वेव से 2 हफ्ते में उबर जाएंगे; वर्ना यह कितनी खतरनाक होगी कह नहीं सकते

डॉक्टर रमन गंगा खेडकर का मानना है कि फिलहाल पूरे देश को वैक्सीनेट करना संभव नहीं
फैलते संक्रमण को देखते हुए सरकार को और वैक्सीन कंपनियों को भी अनुमति देनी चाहिए

नई दिल्ली 14 अप्रैल। ( संध्या द्विवेदी)देश में कोरोना की दूसरी लहर कहर बरपा रही है। रिकॉर्ड नंबर में केस आने के साथ मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। मौजूदा हालात को लेकर हमने महामारी विशेषज्ञ पद्मश्री डॉक्टर रमन गंगा खेडकर से बात की। डॉक्टर खेडकर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के एपिडेमियोलॉजी और कम्युनिकेबल डिजीज के हेड रहे हैं। उन्होंने वैक्सीनेशन की स्थिति, दूसरी वेव की गंभीरता और आगे क्या होगा, इसे लेकर विस्तार से बात की। बातचीत के प्रमुख अंश…

एक समय लग रहा था कि कोरोना काबू में आ गया है, फिर दूसरी लहर इतने घातक तरीके से क्यों आई?

डॉक्टर खेडकर: पहली वेव आई तो सरकार ने सख्त कदम उठा पूर्ण लॉकडाउन लगा दिया। भारत में उतने मामले नहीं आए, जितने आने थे। दूसरे देशों ने भी भारत की सराहना की। लेकिन लॉकडाउन हटा तो लोगों की आवाजाही खूब बढ़ी। हम घनी आबादी वाले देश हैं, फिर यहां लोकतंत्र है।  लोगों की आवाजाही और आयोजन जबरन रोके नहीं जा सकते।

लॉकडाउन हटा तो लोगों को लगा कि कोरोना चला गया। शादी-ब्याह, दूसरे उत्सव मनाए जाने लगे। मंदिर दर्शन, धार्मिक आयोजन और पांच राज्यों के चुनाव में राजनीतिक रैलियां हुईं। चुनाव भले ही 5 राज्यों में हुए, पर लोग कई राज्यों से आए- गए। हजारों-लाखों की भीड़ जुटने लगी। इसलिए दूसरी वेव तो ज्यादा तीव्रता के साथ आई।

 क्या पहली वेव में लॉकडाउन नहीं लगता तो सेकेंड वेव नहीं आती?

डॉक्टर खेडकर: इसका कोई सटीक जवाब नहीं है। हां, सेकेंड वेब इतनी तीव्र क्यों है, इसी का मैंने जवाब दिया है।

कोरोना की यह दूसरी लहर कब तक रहेगी?

डॉक्टर खेडकर: अगर कोरोना से बचाव को जारी गाइडलाइन देश के 95% लोग मानें, तो मेरे ख्याल से दो हफ्ते में हम इससे उबर सकते हैं, लेकिन हमने मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग की गाइडलाइन नहीं मानी तो फिर सेकेंड वेव कितना कहर बरपाएगी, कुछ नहीं कहा जा सकता।

भारत की पूरी जनता को वैक्सीनेट करना हो तो कितना खर्च आएगा?

डॉक्टर खेडकर: देश की पूरी आबादी के वैक्सीनेशन में कितना खर्च आएगा,  अंदाजा मुश्किल है। खर्चे में कई कारक शामिल होंगे। जैसे हम कौन सी वैक्सीन का इस्तेमाल कर रहे हैं।  ट्रांसपोर्टेशन में कितना खर्च आ रहा है, वगैरह-वगैरह। हर वैक्सीन की कीमत अलग-अलग होती है। अभी भारत में कोवैक्सिन और कोवीशील्ड इस्तेमाल हो रही है, लेकिन संक्रमण की रफ्तार देखते हुए अन्य वैक्सीन को भी अनुमति देनी होगी।

 वैक्सीन को बनाने में फार्मा कंपनी को कितना खर्च करना पड़ता है?

डॉक्टर खेडकर: 10-15 साल पहले एक वैक्सीन बनाने में 1 बिलियन डॉलर यानी तकरीबन साढ़े 7 करोड़ रुपए  खर्च आता था। वैश्विक संगठन (Coalition for Epidemic Preparedness Innovations-CEPI) के मुताबिक वर्तमान में कोविड-19 संक्रमण को वैक्सीन निर्माण में 250 मिलियन डॉलर यानी तकरीबन 1850 करोड़ रुपए खर्च अनुमानित है। लागत बढ़ने की वजह आपातकाल और बहुत तेजी से वैक्सीन का बनना है।

तेजी से फैल रही कोरोना महामारी की वैक्सीन बनाने को कंपनियों को कई अलग तरह के सपोर्ट की भी जरूरत होती है। जैसे, पैरलल वैक्सीन परीक्षण, वैक्सीन की एडवांस बुकिंग और किसी बड़े डोनर्स से डोनेशन। इन सबमें खर्च का अंदाजा लगाना मुश्किल है।

वैक्सीन बनाना आर्थिक रूप से जोखिम भरा काम है। सफलतापूर्वक वैक्सीन बनाने में परीक्षणों के कई असफल  भी होते हैं, बल्कि इसकी कीमत को लेकर भी दोहरी व्यवस्था है। विकसित देशों के लिए ज्यादा दाम तो कम विकसित देशों के लिए वहन करने योग्य दाम  होते हैं।  देशों का मार्केट साइज भी वैक्सीन का निर्माण करने वाली कंपनी के लिए चुनौती होता है।

एक वैक्सीन की कीमत क्या होगी?

डॉक्टर खेडकर: सरकार वैक्सीन थोक के भाव में खरीदती है। इसलिए कीमत काफी कम होती है। कोवीशील्ड की कीमत 150 रुपए प्रति डोज है।  गैर सरकारी संस्थाओं को कंपनियां भविष्य में वैक्सीन उपलब्ध कराती हैं तो कीमत ज्यादा भी हो सकती है। शायद 200 रुपए. प्रति डोज।

क्या देश की सारी जनता को वैक्सीनेट करना संभव है?

डॉक्टर खेडकर: सवाल यह नहीं है कि हम देश की पूरी आबादी को वैक्सीनेट कर सकते हैं या नहीं? सवाल यह है कि क्या पूरी आबादी को वैक्सीनेट करने के बाद भी हम सुरक्षित होंगे? हम एक ग्लोबल विलेज में रहते हैं। लोग एक देश से दूसरे देश मे आएंगे-जाएंगे। मान लीजिए हम वैक्सीनेट हो चुके, लेकिन जिस देश मे जा रहे हैं,वहां संक्रमण फैला है तो मुमकिन है कि हम दोबारा संक्रमण अपने देश में ले आएं। यह तब तक होगा, जब तक कि वैक्सीन हमें 100% सुरक्षित न कर दे।

दूसरी बात, अब मैं अगर आपके सवाल पर आऊं तो हमारे पास जरूरी स्टाफ भी नहीं है। मसला केवल वैक्सीन की उपलब्धता भर का नहीं है, बल्कि वैक्सीन लगाने को प्रशिक्षित लोगों की उपलब्धता का भी है। महामारी के अलावा भी देश में बीमारियां तो वैसी ही हैं, जैसे पहले थीं। हेल्थवर्कर वैसे भी कम हैं हमारे यहां। महामारी से जूझते लोगों के इलाज को भी हेल्थ वर्कर चाहिए। वैक्सीनेशन को भी अच्छा-खासा स्टाफ चाहिए। आशा वर्कर से तो वैक्सीन लगवाई नहीं जा सकती। वैक्सीन लगाने के बाद कुछ दिक्कत आई तो फिर उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? गर्भवती महिलाओं और बच्चों को मौजूदा वैक्सीन दी नहीं जा सकती। इसलिए भी पूरी आबादी को वैक्सीन लगाना संभव ही नहीं है।

पहला डोज लगने के बाद क्या हम पूरी तरह सुरक्षित हैं?

डॉक्टर खेडकर: बिल्कुल नहीं। हां, इससे संक्रमण की तीव्रता कम जरूर होगी। यहां तक कि दोनों डोज लेने के बाद भी कम से कम डेढ़ महीने प्रतिरोधक क्षमता बनने में लगते हैं। दोनों डोज के बाद भी संक्रमण हो सकता है, लेकिन वैक्सीनेशन का फायदा यह है कि संक्रमण गंभीर नहीं होगा और मौत का खतरा भी नहीं होगा।

क्या कोरोना की तीसरी लहर आने की भी आशंका है?

डॉक्टर खेडकर: यह बहुत तेजी से फैलने वाली महामारी है। इसलिए आशंका तो बनी ही रहेगी।

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