मोदी को मिस्र का सर्वोच्च सम्मान,अब तक

प्रधानमंत्री मोदी का मिस्र दौरा, इस इस्लामिक देश को भारत क्यों दे रहा इतना महत्व?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के बाद मिस्र का दो दिवसीय दौरा समाप्त हो गया है. प्रधानमंत्री मोदी का यह मिस्र दौरा 1997 के बाद से किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला दौरा है. प्रधानमंत्री को मिस्र के सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ द नाइल’ से सम्मानित किया गया.

नई दिल्ली,25 जून। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पांच दिनों की आधिकारिक विदेश यात्रा का समापन मिस्र के दो दिवसीय दौरे के साथ हो गया है. वह भारत के लिए रवाना हो गए हैं. शनिवार को शुरू हुए प्रधानमंत्री मोदी के दो दिवसीय दौरे के दौरान मिस्र में उनका जोरदार स्वागत हुआ था. यहां वह प्रसिद्ध मस्जिद ‘अल हकीम’ भी पहुंचे और उसका दौरा किया. यहां दाऊदी बोहरा समुदाय के लोगों ने प्रधानमंत्री का गर्मजोशी से स्वागत किया और उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट किए गए. प्रधानमंत्री को मिस्र के सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ द नाइल’ से भी सम्मानित किया गया.

 

जानें ‘ऑर्डर ऑफ द नील’ की विशेषता 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिस्र के सर्वोच्च राजकीय सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ द नील’ से सम्मानित किया गया। मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने उन्हें इस सम्मान से नवाजा। इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने राजधानी काहिरा में बनी हजार साल पुरानी अल-हकीम मस्जिद का दौरा किया था।

क्या है ‘ऑर्डर ऑफ द नील’

‘ऑर्डर ऑफ द नील’ सम्मान की स्थापना साल 1915 में मिस्र के सुल्तान हुसैन कामेल ने की थी। यह सम्मान मिस्र के लिए उपयोगी सेवा प्रदान करने वाले व्यक्तियों को दिया जाता है। साल 1953 में राजशाही समाप्त होने से पहले भी यह सम्मान सबसे बड़े सम्मानों में से एक था। इसके बाद साल 1953 में मिस्र के गणतंत्र बनने के बाद ‘ऑर्डर ऑफ द नील’ को मिस्र के सर्वोच्च राजकीय सम्मान के रूप में दिया जाने लगा।

‘ऑर्डर ऑफ द नील’ शुद्ध सोने से बना एक हेक्सागोनल पेंडेंट होता है। इसमें सोने के तीन वर्गाकार ग्रुप होते हैं। इन ग्रुप्स पर फैरोनिक के प्रतीक गढ़े होते हैं। पहले ग्रुप में बुराइयों के खिलाफ राज्य की रक्षा करने का संदेश होता है। दूसरा ग्रुप नील नदी द्वारा लाई गई समृद्धि और खुशी का संदेश देता है। वहीं तीसरा ग्रुप धनार्जन और शांति का संदेश देता है। इस पेंडेंट को फैरोनिक शैली के फूलों तथा फ़िरोज़ा और रूबी रत्नों से सजाया जाता है। पेंडेंट के बीच में, नील नदी को दर्शाने वाला एक उभरा हुआ प्रतीक बना होता है।

मिस्र की दो दिवसीय यात्रा पर गए प्रधानमंत्री जब अल-हकीम मस्जिद गए तो वहाँ बोहरा समुदाय के लोग पहले से ही उपस्थित है। बोहरा समुदाय के लोग इस मस्जिद का जीर्णोद्धार करा रहे हैं और इसके साथ ही इसके रख-रखाव का जिम्मा भी इन्हीं लोगों पर है। भारत से भी इस मस्जिद के लिए बहुत मदद मिलती है।


11वीं सदी में बने अल-हकीम मस्जिद में लोगों के साथ बातचीत और गले मिलते हुए प्रधानमंत्री मोदी का वीडियो सामने आया है। इसमें प्रधानमंत्री मुस्कुराते नजर आ रहे हैं। इस दौरान बोहरा समुदाय के लोगों ने उन्हें मस्जिद की तस्वीर भी उपहार में दिया।

काहिरा स्थित इस ऐतिहासिक मस्जिद का नाम 16वें फातिमिद खलीफा अल-हकीम (985-1021) के नाम पर रखा गया है। मस्जिद का निर्माण मूल रूप से अल-हकीम के पिता खलीफा अल-अजीज ने 10वीं शताब्दी के अंत में शुरू कराया था, जिसे 1013 में पूरा किया गया था।

पीएम नरेंद्र मोदी हेलियोपोलिस वॉर मेमोरियल जाकर वीरगति प्राप्त किए लगभग 4000 भारती जवानों को श्रद्धांजलि दी। हेलियोपोलिस कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव सीमेटरी (पोर्ट ट्वेफिक) उन भारतीय जवानों की याद में बनाया गया है, जिन्होंने पहले विश्व युद्ध के दौरान मिस्र और फिलिस्तीन में मित्र देशों की सेनाओं की तरफ से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

बताते चलें कि 1914 से 1919 से चले प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन ने 11 लाख भारतीय जवानों को लड़ने के लिए भेजा था। इनमें से 74,000 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इन भारतीय जवानों को फ्रांस, ग्रीस, उत्तरी अफ्रिका, मिस्र, फिलिस्तीन और ईराक में दफना दिया गया था। इसके अलावा 70,000 भारतीय जवान अपाहिज होकर वापस लौटे थे।

इस युद्ध में भारतीय जवानों को 9,200 से अधिक वीरता पुरस्कार मिले थे, जिनमें ब्रिटिश सेना का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस भी शामिल थे। इस युद्ध ने उत्कृष्ट पराक्रम दिखाने के लिए 11 भारतीयों को विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था। इन जवानों को ब्रिटिश सेना की तरफ से महज 15 रुपए महीना वेतन मिलता था.

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इससे पहले राष्ट्रपति सिसी जनवरी के महीने में भारत दौरे पर आए थे. भारत ने उन्हें अपने गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनाया था. इस दौरान दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते हुए थे.

भारत की नरेंद्र मोदी सरकार मध्य-पूर्व के इस्लामिक देश मिस्र को भारी महत्व देती है. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले मिस्र दौरे के दौरान 11वीं सदी में बने अल-हाकिम मस्जिद का दौरा भी किया. वो प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मिस्र के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए हेलियोपोलिस युद्ध कब्रिस्तान भी गए.

प्रधानमंत्री मोदी का यह मिस्र दौरा 1997 के बाद से किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला दौरा है. प्रधानमंत्री मोदी ने मिस्र के हाई लेवल मंत्रियों के साथ एक बैठक भी की. इस बैठक का उद्देश्य भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाना है.

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इससे पहले, नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने कहा था कि मिस्र और भारत के मंत्रियों के बीच रिश्तों को मजबूत करने के लिए बातचीत होती रहती है.

उन्होंने कहा था, ‘मिस्र सरकार के कम से कम चार मंत्री भारत आ चुके हैं. स्वेज नहर के अध्यक्ष भी भारत दौरे पर आए थे. यह दिखाता है कि भारत और मिस्र हर पहलू से अपने संबंधों को मजबूत करना चाहते हैं.’

सिसी राष्ट्रपति बनने के बाद से तीन बार भारत की यात्रा कर चुके हैं. सिसी अक्टूबर 2015 में थर्ड भारत-अफ्रीका फोरम समिट में हिस्सा लेने भारत आए थे. साल 2016 में भी वो भारत दौरे पर आ चुके हैं.

इसके बाद वह 2023 में भारत आए थे. उनकी इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने मिलकर फैसला किया था कि द्विपक्षीय व्यापार को 7 अरब डॉलर से बढ़ाकर 12 अरब डॉलर किया जाएगा.

मिस्र को इतना महत्व क्यों दे रहा भारत?

मिस्र भारत के लिए कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण देश है. मोदी सरकार की विदेश नीति में मिडिल-ईस्ट केंद्र में रहा है और मिस्र इस क्षेत्र में अहम स्थान रखता है. एशिया और अफ्रीका महाद्वीप में फैला मिस्र भूमध्य सागर, लाल सागर, अफ्रीका में भी प्रभाव रखता है. इस हिसाब से यह देश भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है.

मिस्र के स्वेज नहर का भारत के लिए महत्व

स्वेज नहर जिसके जरिए दुनिया का 12 फीसद व्यापार होता है, उस पर मिस्र का अधिकार है. 193 किलोमीटर लंबी यह नहर एशिया और यूरोप के बीच सबसे लोकप्रिय व्यापारिक मार्ग है जो भूमध्य सागर को लाल सागर और हिंद महासागर से जोड़ता है. इस नहर के जरिए रोजाना करीब 106 बड़े शिपिंग कंटेनर एशिया और यूरोप के बीच आते-जाते हैं.

भारत अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के उद्देश्य से अपना व्यापार लगातार बढ़ा रहा है और ऐसे में मिस्र से करीबी स्वेज नहर के जरिए व्यापार बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है.

भारत और मिस्र के व्यापारिक संबंध

पिछले कुछ सालों में भारत और मिस्र के व्यापार में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है. 2021-22 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 75 फीसदी बढ़कर 7.26 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. भारत ने पिछले वित्त वर्ष में मिस्र को 4.11 अरब डॉलर का सामान बेचा जबकि मिस्र से 1.95 अरब डॉलर का सामान आयात किया. दोनों देशों ने कृषि, ऊर्जा, रक्षा, सुरक्षा, कपड़ा जैसे क्षेत्रों में अपना व्यापार सहयोग बढ़ाया. मिस्र ने कोविड महामारी के दौरान 2021 में भारत से 50 हजार कोविड वैक्सीन खरीदी थीं.

भारत की करीब 50 कंपनियों ने मिस्र में रसायन, ऊर्जा, ऑटोमोबाइल आदि सेक्टर्स में 3.2 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने पिछले हफ्ते अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि भारत मिस्र के साथ उर्वरक और गैस जैसे सामान का व्यापार शुरू कर सकता है. यह व्यापार वस्तु विनिमय प्रणाली में किया जाएगा. एक सूत्र ने बताया कि अगर समझौता हुआ तो मिस्र भारतीय रुपये देकर भारत से सामान खरीदेगा और भारत मिस्र से खरीदे गए सामान का भुगतान सामान देकर ही करेगा.

खबर है कि भारत आने वाले समय में मिस्र के लिए अरबों डॉलर की क्रेडिट लाइन भी खोल सकता है. मिस्र लंबे समय से विदेशी मुद्रा भंडार की कमी से जूझ रहा है. माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने मिस्र दौरे में इस व्यापार समझौते पर अपनी मुहर लगा सकते हैं जो मिस्र के लिए एक राहत की खबर होगी.

पाबंदी के बावजूद मिस्र को भारत ने भेजा था गेहूं

मिस्र अपने इस्तेमाल का अधिकांश गेहूं आयात करता है. वो रूस और यूक्रेन से गेहूं खरीदता था लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से मिस्र को रूस और यूक्रेन से गेहूं की खेप मिलनी बंद हो गई. ऐसे मुश्किल वक्त में भारत आगे आया और उसने मिस्र को गेहूं भेजनी शुरू की.

भारत ने साल 2022 में घरेलू बाजार में गेहूं की कमी को देखते हुए गेहूं के विदेशी निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. बावजूद इसके, मई 2022 में मिस्र को भारत की तरफ से 61,500 टन गेहूं भेजा गया था. मिस्र चाहता है कि भारत अब भी उसे गेहूं की सप्लाई करे.

भारत मिस्र के बीच बढ़ता रक्षा सहयोग

भारत और मिस्र के बीच रक्षा सहयोग लगातार बढ़ता जा रहा है. भारत जो हथियारों का बड़ा खरीददार है, अब खुद रक्षा हथियार उत्पादित कर रहा है. भारत 42 देशों को रक्षा हथियारों की आपूर्ति कर रहा है और चाहता है कि मिस्र भी उसका एक खरीददार बने. मिस्र ने भारत के स्वदेशी तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट को खरीदने में दिलचस्पी भी दिखाई है.

दोनों देशों की वायु सेना ने पहली बार 2021 में मिलकर एक साझा सैन्य अभ्यास ‘डेजर्ट वॉरियर’ किया था. जून 2022 में भी भारतीय वायुसेना का एक दल सैन्य अभ्यास में हिस्सा लेने के लिए मिस्र गया था. इस अभ्यास में भारत के तीन Su-30 लड़ाकू विमान और दो C-17 परिवहन विमानों ने हिस्सा लिया था.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सितंबर 2022 में मिस्र गए थे जहां भारत और मिस्र ने रक्षा सहयोग को मजबूत करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया था. अक्टूबर 2022 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मिस्र की यात्रा की थी. इस दौरान उन्होंने राष्ट्रपति सिसी और मिस्र के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की और दोनों देशों के पारस्परिक हित के मुद्दों पर चर्चा की थी

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