पौराणिक होलिका कथा के समानांतर गढ़ी जा रही अनोखी नई कहानियां

राष्ट्रीय मूल निवासी संघ ने एक कहानी बनायी है कि होलिका यहां के मूलनिवासियों की लड़की थी जिसे आर्यों ने जला कर मार दिया। किन्तु यह आर्य-या अनार्य किस साहित्य में है यह उनको स्वयं पता नहीं है। जिन लोगों का चेहरा स्पष्ट रूप से अफ्रीका निवासियों से मिलता है और खनिज निष्कासन के लिए मजदूर बन कर आये थे, उनको मूल निवासी तथा मूल निवासियों को बाहरी आर्य बना दिया है। आज तक विदेशी खान मजदूरों की उपाधियां ग्रीक खनिज नामों पर हैं,जैसे खालको (ताम्बा का खालको-पाइराइट), टोप्पो (टोपाज), ओराम (ग्रीक औरम = स्वर्ण) आदि। कभी -कभी वे केवल ब्राह्मणों को विदेशी बताते हैं,पर भारत के बाहर अन्य किसी स्थान में कभी ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य, शूद्र-ये ४ वर्ण नहीं थॆ।

हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को जला कर मारने की चेष्टा की थी पर उसकी बहन होलिका का नाम किसी कथा में नहीं है।
विकीपीडिया में किसी ने कहानी डाली है कि होलिका हिरण्यकशिपु राजा की बहन थी जिसका जन्म उत्तर प्रदेश के कासगंज जिला के सोरों शूकर क्षेत्र नामक स्थान में हुआ था। इसका कोई स्रोत नहीं दिया है।

एक अन्य कहानी बनी है कि बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखण्ड में सिकलीगढ्द में हिरण्यकशिपु का किला है जहां होलिका प्रह्लाद को ले कर जली थी। वहां वह माणिक्य खम्भा है जहां से नरसिंह प्रकट हुए थे।एक अन्य कहानी है कि उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में होलिका दहन हुआ था। हिरण्यकशिपु हरि का द्रोही था उसके नाम पर हरिद्रोही या हरदोई स्थान हुआ। वहां नरसिंह मन्दिर तथा प्रह्लाद घाट भी है।

इस तरह की कहानी चित्रकूट में सुनी थी। नदी के किनारे चबूतरे के पास एक पूजा सामग्री की दुकान थी। दुकानदार ने कहा कि राम जी इसी चबूतरे पर बैठे थे, चबूतरा बनने के प्रायः ७,००० वर्ष पूर्व। मैंने पूछा कि दुकान की तरफ मुंह किये थे या नदी की तरफ? तो वह क्रुद्ध हो गया।
हिरण्य-कशिपु को ब्रह्माण्ड पुराण (१/२/२०/२४-२५) में तलातल (अफ्रीका) का राजा कहा है (इसके पुत्र प्रह्लाद के बारे में)। ब्रह्माण्ड पुराण (१/२/२०/३४-३६) के अनुसार हिरण्याक्ष रसातल में रहता था जो कि द्वीप गणना में पुष्कर द्वीप (वर्तमान दक्षिण अमेरिका) कहा जाता है। यह ब्रह्मा के पुष्कर (उज्जैन से १ मुहूर्त्त = १२अंश पश्चिम बुखारा) के ठीक विपरीत दिशा का द्वीप है (विष्णु पुराण, २/४/८५, २/८/२६)। जेन्द अवेस्ता के अनुसार आमेजन नदी
किनारे हिरण्याक्ष की राजधानी थी। वे लोग विष्णु की वराह रूप में पूजा करते थे। नरसिंह हिरण्यकशिपु के वध के बाद श्रीशैल पर्वत पर रहने लगे। नरसिंह पुराण (४४/३८-३९)-
इन्द्रोऽपि सर्व देवैस्तु हरिणा स्थापितो दिवि । नरसिंहोऽपि भगवान् सर्वलोक हिताय वै॥३८॥
श्री शैल शिखरं प्राप्य विश्रुतः सुरपूजितः । स्थितो भक्त हितार्थाय अभक्तानां क्षयाय च॥३९॥
नरसिंह बल रूप थे अतः उनके स्थानों को बलाचल (ओड़िशा का बलांगीर, उत्तर प्रदेश पूर्वांचल का बलिया आदि। शंकर दिग्विजय (११/४६)-
पुरा किलाहो बलभूधराग्रे पुण्यं समाश्रित्य किमप्यरण्यम् ।
भक्त्यैकवश्यं भगवन्तमेनं ध्यायन्ननेकान् दिवसाननैषम्॥४६॥

सभी कहानियों का सारांश नारद पुराण में है। इस ऋतु में रेंगने वाले कीड़े (असृक्पा = खून चूसने वाले,ओड़िया में असर्पा) होते हैं जिनसे बच्चों को अधिक खतरा है। उनको मारने को होलिका दहन की परम्परा थी। होलिका के प्रह्लाद को जलाने की चेष्टा की कथा भी वहीं लिखी है। होलिका का अवतार पूतना को भी कहा है। कहीं उसे राजा बलि की पुत्री का भी रूप कहा है। किन्तु होलिका, पूतना आदि का वर्णन मुख्यतः बच्चों के संक्रामक रोगों के रूप में ही है।
नारद पुराण, अध्याय २४-फाल्गुने पूर्णिमायां तु होलिका पूजनं नरम्॥७६॥
संचयं सर्वकाष्ठानां उपलानां च कारयेत्। तत्राग्निं विधिवद्धुत्वा रक्षोघ्नैर्मन्त्र विस्तरैः॥७७॥
असृक्पा भय संत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः। अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव॥७८॥
इति मन्त्रेण संदीप्य काष्ठादि क्षेपणैस्ततः। परिक्रम्योत्सवः कार्य्यो गीतवादित्र निःसवनै॥७९॥
होलिका राक्षसी चेयं प्रह्लाद भयदायिनी। ततस्तां प्रदहन्त्येवं काष्ठाद्यैर्गीतमंगलैः॥८०॥
संवत्सरस्य दाहोऽयं कामदाहो मतान्तरे। इति जानीहि विप्रेन्द्र लोके स्थितिरनेकधा॥८१॥
यहां होलिका के २ अन्य अर्थ दिये हैं-संवत्सर का दाह, या काम दाह।
संवत्सर समाप्ति इस मास में होती है,इस अर्थ में उसका दाह करते हैं। यह संवत्सर रूपी सृष्टि चक्र का अन्त है। या वर्ष की अग्नि समाप्त होती है, उसे पुनः जलाते हैं।
काम दहन कई प्रकार का है। काम (संकल्प) से सृष्टि होती है।
कामस्तदग्रे समवर्तताधि मनसो रेतः प्रथमं यदासीत्।
सतो बन्धुमसति निरविन्दन् हृदि प्रतीष्या कवयो मनीषा॥ (ऋक् १०/१२९/४)
इस ऋतु में सौर किरण रूपी मधु से फल-फूल उत्पन्न होते हैं, अतः वसन्त को मधुमास भी कहते हैं-
(यजु ३७/१३) प्राणो वै मधु। (शतपथ ब्राह्मण १४/१/३/३०) = प्राण ही मधु है।
(यजु ११/३८) रसो वै मधु। (शतपथ ब्राह्मण ६/४/३/२, ७/५/१/४) = रस ही मधु है।
अपो देवा मधुमतीरगृम्भणन्नित्यपो देवा रसवतीरगृह्णन्नित्येवैतदाह। (शतपथ ब्राह्मण ५/३/४/३)
= अप् (ब्रह्माण्ड) के देव सूर्य से मधु पाते हैं।
भगवान् शिव द्वारा भी काम दहन की कथा है।
संवत्सर चक्र के दोलन के रूप में इसे दोल पूर्णिमा कहते हैं।
मधुमास में नये फल फूल उत्पन्न होते हैं। नवान्न भोजन के पर्व भारत के सभी भागों में हैं। होलक-तृणाग्नि भृष्टार्हपक्व शमी धान्यम् (होरा, होरहा)।
भाव प्रकाश, पूर्व खण्ड, द्वितीय भाग, कृतान्न वर्ग-
अर्धपक्वैः शमी धान्यैः तृणभृष्टैव होलकः।
होलकोऽल्पानिलो मेदः कफदोषत्रयापहः।
भवेद्यो होलको यस्य स च तत्तद्गुणो भवेत्॥१६२॥
भगवान् श्रीकृष्ण को बाल्यकाल में मारने के लिए कंस ने पूतना राक्षसी को भेजा था। वह स्तन में विष लगा कर भगवान् को दूध पिला रही थी। पर भगवान ने विष छोड़कर उसकी प्राण-शक्ति को ही पी लिया। भागवत पुराण के दशम स्कन्ध में इसका वर्णन है जिसकी भक्तों ने कई प्रकार से व्याख्या की है।
आयुर्वेद ग्रन्थों में बच्चों के रोग, संक्रामक बीमारियों को बाल ग्रह कहा है। इनमें एक बाल ग्रह पूतना है। इसका पुराण तथा वेद में भी उल्लेख है। आयुर्वेद का वर्णन स्वयं पढ़ सकते हैं।

भविष्य पुराण, उत्तर पर्व, अध्याय १३२-युधिष्ठिर ने भगवान् कृष्ण से पूछा कि फाल्गुन पूर्णिमा के दिन हर घर में उत्सव क्यों मनाते हैं तथा बच्चे अश्लील शब्द क्यों कहते हैं। होली क्यों जलाते हैं? अडाडा तथा शीतोष्णा किसे कहते हैं?
राजा रघु के काल में लोगों ने शिकायत की कि ढौण्ढा बच्चों को पीड़ित कर रही है और उसे रोकना कठिन है। इसका इतिहास वसिष्ठ ने कहा कि माली राक्षस की पुत्री ढौण्ढा को शिव का आशीर्वाद था कि वह देव,मनुष्य और शास्त्रास्त्र से अवध्य होगी। अतः उसे मारने के लिये बच्चे आग जला कर ३ परिक्रमा करते हैं और खुशी से सिंहनाद करते और ताली बजाते हैं। डुअण्ड्षा राक्षसी अडाऽयेति नामक मन्त्र का जप कर घरों में प्रवेश कर बच्चों को पीड़ित करती थी अतः उसे अडाडया कहते हैं। फाल्गुन पूर्णिमा के समय शीत का अन्त और ऊष्ण का आरम्भ होता है,अतः इसे शीतोष्णा कहते हैं। अतः भगवान् कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि फाल्गुन पूर्णिमा को लोगों को अभय दें जिससे वे स्वच्छन्द हास्य विनोद कर सकें।
@अरूण उपाध्याय

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