मत:पैट्रोल-डीजल में एक्साइज कमी राजनीतिक ? लगता तो नहीं

पेट्रोल-डीजल सस्ते क्यों हो गए:कहीं आने वाले चुनाव तो इसका कारण नहीं, एनर्जी एक्सपर्ट से जानिए सरकार के फ्यूल प्राइस कम करने की वजह

नई दिल्ली 04 नवंबर।दिवाली से ठीक एक दिन पहले एक्साइज ड्यूटी में केंद्र सरकार की ओर से की गई कटौती के बाद पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी आई है। केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर 5 रु. और डीजल पर 10 रु. एक्साइज ड्यूटी कम करने का ऐलान किया है। नई कीमतें आज से लागू हो गई हैं।

सरकार के इस फैसले से कई सवाल उठ रहे हैं। जैसे सरकार ने दाम कम करने का फैसला इस समय क्यों लिया? इस कटौती से सरकार की कमाई पर कितना असर होगा? क्या ये फैसला आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश, पंजाब जैसे राज्यों में होने जा रहे चुनावों को लेकर लिया गया है? क्या पेट्रोल-डीजल के दाम घटने से अन्य चीजों की महंगाई पर भी कोई असर होगा? मोदी सरकार के आने से पहले एक्साइज ड्यूटी कितनी थी और अब कितनी हो गई है?

सरकार ने क्यों घटाए पेट्रोल-डीजल के दाम?

पेट्रोल-डीजल की कीमतों की बढ़ोतरी का सीधा असर महंगाई पर पड़ता है। महंगाई बढ़ने से ग्रोथ प्रभावित होती है। ऐसे में महंगाई को कम करने के लिए जरूरी था कि केंद्र सरकार कीमतों में कटौती करे। देश के जाने-माने एनर्जी एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा ने कहा, ‘2020 में कोराना महामारी की वजह से इकोनॉमिक एक्टिविटी पूरी तरह से ठप पड़ गई थी।

पेट्रोल-डीजल की खपत घटकर 35% के करीब रह गई थी। इसका मतलब था कि सरकार के पास रेवेन्यू बहुत कम आ रहा था। ज्यादातर देशों में लॉकडाउन की वजह से क्रूड ऑयल के दाम भी काफी नीचे आ गए थे। ऐसे में सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दाम कम करने की जगह एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी थी, ताकि रेवेन्यू बढ़ाया जा सके।’केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी करीब 250% बढ़ाई

मार्च से मई-2020 के बीच केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर 13 रुपए और डीजल पर 16 रुपए एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई थी। इससे पेट्रोल पर एक्साइज करीब 65% बढ़कर 19.98 रुपए से 32.98 रुपए हो गया था, जबकि डीजल करीब 79% बढ़कर 15.83 रुपए से 28.35 रुपए प्रति लीटर हो गया था।

बीते 6 सालों की बात करें तो केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी करीब 250% बढ़ाई है। 2014 में पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.48 रु. थी, जो अब 27.90 रुपए हो गई। डीजल की एक्साइज ड्यूटी 3.56 रुपए थी, जो अब 21.80 रुपए है।

अर्थव्यवस्था सुधरने से रेवेन्यू बढ़ा

नरेंद्र तनेजा ने कहा, ‘भारत की अर्थव्यवस्था सुधर रही है और रेवेन्यू भी बढ़ गया है। सरकार अपनी योजनाओं को आसानी से चलाने की स्थिति में है। ऐसे में बीते करीब तीन महीनों से प्रधानमंत्री कार्यालय स्तर पर एक्साइज ड्यूटी को कम करने को लेकर मंथन किया जा रहा था। जीएसटी कलेक्शन बढ़ने और इकोनॉमिक इंडिकेटर्स के सुधरने के बाद केंद्र ने बुधवार को एक्साइज ड्यूटी कटौती का ऐलान किया।’ तनेजा ने कहा कि सरकार इस बात को लेकर चिंतित थी कि पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से महंगाई बढ़ रही है। ट्रांसपोर्टेशन महंगा हो गया है, जिससे खाने-पीने की चीजों के दाम भी बढ़ रहे थे। ऐसे में सरकार आम आदमी को महंगाई से कुछ राहत देना चाहती थी।’

कटौती से सरकार की कमाई पर कितना असर पड़ेगा?

पेट्रोल पर 5 रुपए और डीजल पर 10 रुपए की कटौती के बाद कुछ राज्यों ने वैट भी घटाया है। इससे पेट्रोल के दाम करीब 8-9 रुपए कम हो जाएंगे और डीजल के दामों में करीब 17 रुपए की कमी आएगी। एक्साइज ड्यूटी की कटौती आज से ही लागू हो गई है जबकि वैट कटौती जल्द ही लागू की जाएगी। एक अनुमान के मुताबिक एक्साइज कटौती से FY22 के बचे हुए 5 महीनों में सरकार की कमाई करीब 55 हजार करोड़ रुपए कम होगी। नरेंद्र तनेजा ने इसे लेकर कहा, ‘कोरोना काल में जब पेट्रोल-डीजल की खपत कम हो गई थी तब एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई थी। अब पेट्रोल-डीजल की खपत कोरोना से पहले के स्तरों तक पहुंच गई है। खपत बढ़ने से रेवेन्यू भी बढ़ा है। ऐसे में एक्साइज कटौती से सरकार की कमाई पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा।’

क्या कटौती में 2022 के विधानसभा चुनावों का भी कोई रोल है?

2022 में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में चुनाव होने हैं। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में साल के आखिर में चुनाव होंगे। ऐसे में कुछ लोगों का मानना है कि सरकार ने इन चुनावों को देखते हुए ही ये फैसला लिया है। राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कहा, ‘विधानसभा चुनाव के बाद सरकार पेट्रोल और डीजल के दाम फिर बढ़ा देगी।’ बीते सालों में हुए चुनावों पर नजर डाले तो फ्यूल प्राइस और इलेक्शन का कुछ कनेक्शन भी नजर आता है।

5 साल में 58.6% बढ़ गई पेट्रोल की कीमत

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने बीते 26 फरवरी 2021 को अधिसूचना जारी की थी।
सरकारी तेल कंपनियों ने 27 फरवरी 2021 को डीजल के दाम में 17 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की थी।
इसके बाद दो महीने से भी ज्यादा समय तक पेट्रोल-डीजल के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।
दिल्ली चुनाव विधानसभा के दौरान भी 2020 के शुरुआत में 12 जनवरी से 23 फरवरी तक पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़े थे।
2018 में मई के कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले भी तेल कंपनियों ने लगातार 19 दिनों तक कीमतों में कोई बदलाव नहीं किए, जबकि उस दौरान कच्चे तेल की कीमतें 5 डॉलर प्रति बैरल बढ़ीं थी।
2017 में 16 जनवरी से 1 अप्रैल तक 5 राज्यों पंजाब, गोवा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मणिपुर में विधानसभा चुनाव थे। इस दौरान देश में तेल कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ाए। उस समय तेल कंपनियां हर 15 दिन में कीमतें बदलती थीं।
दिसंबर 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान भी पेट्रोल-डीजल के दाम भी करीब 14 दिन नहीं बढ़े।
हालांकि, एनर्जी एक्सपर्ट तनेजा ऐसा नहीं मानते। तनेजा ने कहा कि ‘हर चीज में राजनीति को नहीं लाना चाहिए। चुनाव से इसका कोई-लेना देना नहीं है। अकेले एक्साइज कलेक्शन पर सरकार की आय निर्भर नहीं होती है। बीते तीन महीनों से इकोनॉमी को देखते हुए सरकार दाम करने पर विचार कर रही थी।’

तनेजा की राय के क्रम में कहा जा सकता है कि यदि केंद्र सरकार तीन माह से एक्साइज ड्यूटी कम करने की सोच रही थी तो राजनीतिक समझ से तो हाल के उपचुनाव के पहले यही कदम कम से कम भाजपा की हिमाचल प्रदेश की हार का नक्शा बदल सकता था। इसे राजनीतिक जरूर कहा जा सकता है कि केंद्र के आव्हान पर भाजपा शासित 16 राज्यों ने भी एक झटके में अपनी तरफ से भी वेट में कटौती की है। दूसरी ओर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी तरफ से वेट में कोई कमी करने से इंकार कर दिया है। हालांकि हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता,सोलन के पूर्व पालिकाध्यक्ष कुल राकेश पंत का मत है कि कांग्रेस शासित राज्य रणनीतिक रूप में भाजपा शासित राज्यों से ज्यादा वेट रियायत देकर स्थिति को पलट सकते हैं। इससे राजनीतिक बढ़त के साथ रैवेन्यू लॉस की भी भरपाई हो सकती है।

पंत का तर्क है कि तुलनात्मक रूप से सीमा लगे जिस राज्य में पैट्रोल-डीजल सस्ता होगा, आसपास के वाहन चालक जहां तक संभव हो, वहीं से पैट्रोल-डीजल डलवाते हैं। इस तरह तुलनात्मक रूप से घटा वेट ज्यादा राजस्व दिलाता है। हो सकता है, कांग्रेस हाईकमान पर्याप्त मनन के बाद अपने राज्यों के लिए इस आशय के निर्देश दे दे।

क्या पेट्रोल-डीजल के दाम कम होने से महंगाई कम होगी?

पेट्रोल-डीजल के दाम जनता को कई तरह से प्रभावित करते हैं। जिन लोगों के अपने पर्सनल व्हीकल है उनके मंथली बजट पर इसका असर होता है। पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन की कॉस्ट भी बढ़ जाती है। इसके अलावा जो कंपनियां लॉजिस्टिक्स और ट्रांसपोर्ट के बिजनेस में हैं वो किराए में बढ़ोतरी कर देती हैं। किराए के बढ़ने का सीधा असर खाने-पीने के सामनों पर पड़ता है, जिन्हें रोजाना देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में ट्रकों से ट्रांसपोर्ट किया जाता है। ऐसे में कीमतों के कम होने के बाद महंगाई के भी कम होने का अनुमान है। कीमतें घटने से किसानों को सबसे ज्यादा फायदा होगा, क्योंकि जल्द ही रबी फसल की बुआई होने वाली है।

एक्साइज कटौती के बाद कई राज्यों ने वैट में भी कटौती की?

असम ने सबसे पहले वैट में कटौती की। केंद्र की अपील पर 16 राज्यों वैट की दरों में कटौती की घोषणा कर दी। इनमें उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, उत्तराखंड, गोवा कर्नाटक, असम, मणिपुर और त्रिपुरा शामिल हैं। येे सभी भाजपा शासित  राज्य हैं। राजस्थान राज्य नेेेेेेेे अपनी ओर से वेेेट में कोई भी रियायत देने से इंकार कर दिया हैैं।

इंटरनेशनल मार्केट के हिसाब से तय होती हैं पेट्रोल-डीजल की कीमतें

साल 2010 में यूपीए सरकार ने पेट्रोल की कीमतों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया था। यानी जैसे-जैसे इंटरनेशनल मार्केट में तेल की कीमतें बढ़ेंगी, देश में तेल कंपनियां उसी हिसाब से उनकी कीमतें बाज़ार में रखेंगी। 2014 में केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुआ और मोदी सरकार ने उसी साल अक्टूबर में डीजल को भी सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया। शुरू-शुरू में हर तीन महीने पर इनकी कीमतों में बदलाव हुआ करता था, लेकिन 15 जून 2017 से डायनामिक फ्यूल प्राइस सिस्टम को लागू कर दिया गया जिससे रोज ही तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव होने लगा।

85% तेल इंपोर्ट करती है भारत सरकार

क्रूड की कुल खपत का 85% भारत सरकार इंपोर्ट करती है। यह भारतीय तटों से आईओसी, बीपीसीएल जैसी कंपनियों की रिफाइनरी तक पहुंचता है। ये कंपनियां इसे प्रोसेस करती है और पेट्रोल, डीज़ल को पेट्रोल पंप तक पहुंचाती है। यहां से जनता पेट्रोल-डीजल की खरीदारी करती है।

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