सोतीगंज नहीं,चोरी की गाड़ियां कटतीं हैं अब ऊधम सिंह नगर और हल्द्वानी में

मेरठ का सोतीगंज नहीं अब दिल्ली, हरियाणा, यूपी और उत्तराखंड के इन शहरों में कट रही हैं गाड़ियां
वाहनों के अवैध कटान के लिए कुख्यात मेरठ के सोतीगंज में यह धंधा बंद तो हो गया, लेकिन अब वाहनों की कटाई पड़ोसी जिले गाजियाबाद के ट्रॉनिका सिटी, और हापुड़ के अलावा दिल्ली व हरियाणा के मेवात, सोनीपत, फरीदा बाद,  पानीपत और उत्तराखंड के उधम सिंह नगर में हो रही है. इन सभी स्थानों पर वही कबाड़ी काम कर रहे हैं, जो पहले कभी सोतीगंज में करते थे.
मेरठ के सोतीगंज में जब पुलिस ने की थी रेड
चोरी की गाड़ियों के कमेले (पशुओं की कटाई का अड्डा) के रूप में कुख्यात हो चुके मेरठ के सोतीगंज अब बहुत शांति है. इस कमेले को तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रभाकर चौधरी ने भले ही बंद करा दिया, लेकिन अभी भी गाड़ियों की चोरी बदस्तूर जारी है. इतना जरूर है कि अब वाहन चोरी के मामले कम सामने आ रहे हैं, लेकिन अभी भी उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद और हापुड के अलावा हरियाणा में मेवात, फरीदाबाद, सोनीपत और पानीपत में वाहनों की कटाई हो रही है. इसके अलावा दिल्ली के भी कुछ इलाकों में छोटे स्तर पर वाहन कट रहे हैं. जबकि उत्तराखंड के उधम सिंह नगर और हल्द्वानी के आसपास भी वाहनों की कटाई के इनपुट मिल रहे हैं.

सोतीगंज में वाहनों की कटाई मामले की जांच कर चुके आईपीएस अधिकारी डॉक्टर ईरज राजा के अनुसार अभी यह काला धंधा बंद नहीं हुआ है. पुलिस अधीक्षक जालौन आईपीएस डॉक्टर राजा के मुताबिक अभी गाजियाबाद के ग्रामीण इलाके के अलावा हापुड़ में वाहनों की कटाई के इनपुट मिल रहे हैं. पुलिस यहां कई बार दबिश भी दे चुकी है. हालांकि अब वाहनों की कटाई ज्यादातर दिल्ली, हरियाणा और उत्तराखंड में हो रही है. वहीं मेरठ क्राइम ब्रांच के अधिकारियों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में अवैध कबाड़ियों की कमर तोड़ने के लिए काफी काम हो चुका है.

इसी क्रम में अकेले मेरठ में 37 कारोबारियों की करीब 10 अरब रुपये कीमत की संपत्ति कुर्क हो चुकी है. जबकि 350 से अधिक कबाड़ी सलाखों के पीछे पहुंचाए जा चुके हैं. अधिकारियों के मुताबिक दिल्ली एनसीआर में चोरी की गाड़ियों का कारोबार करीब ढाई हजार करोड़ का है. इसमें से एक हजार करोड़ का कारोबार पहले अकेले सोतीगंज में होता था. अब सोतीगंज में केवल 37 कबाड़ी रह गए हैं. हालांकि इन कबाड़ियों के पास जीएसटी है. इनके यहां अब चोरी की गाड़ियों की खरीद बिक्री नहीं होती.

दो हजार लोग करते थे काम

अधिकारियों के मुताबिक सोतीगंज में तीन साल पहले तक करीब करीब दो हजार लोग काम करते थे. इनमें से साढ़े तीन सौ के आसपास कबाड़ियों को तो जेल भेज दिया गया, वहीं बाकी कबाड़ी यहां से भाग कर अलग- अलग स्थानों पर चोरी छिपे वाहन चोरी कराने और फिर उनके पार्ट पुर्जे अलग कर खरीदने – बेचने का काम कर रहे हैं. अब बात कर लेते हैं इस काले धंधे के पूरे नेटवर्क की. दरअसल, इस धंधे में केवल सोतीगंज के कबाड़ी ही नहीं है, इसमें एक बहुत बड़ा चेन सिस्टम काम करता है. इसमें आखिरी छोर पर छोटे- मोटे वाहन चोर होते हैं. ये किसी भी राज्य, शहर या गांव से पलक झपकते वाहन चोरी करते हैं और आसपास में ही कहीं छिपा देते हैं.

इनका चोरी का तरीका भी हाईटेक होता है. जिस गाड़ी का लॉक अच्छे से अच्छा मिस्त्री भी खोलने में आधे- एक घंटे का टाइम ले लेता है, उसे ये चोर पलक झपकते ना केवल खोल लेते थे, बल्कि पलक झपकते उड़ा भी लेते थे. इस तरह की घटनाएं आम तौर पर 13 से 25 साल के लड़के करते हैं. वाहन चोरी होने के बाद नेटवर्क की दूसरी कड़ी काम करती है. इस कड़ी की जिम्मेदारी उस वाहन को पुलिस की पहुंच से दूर करना होता है. फिर तीसरी कड़ी इस गाड़ी को मेरठ के सोतीगंज पहुंचाती है और फिर वहां पार्ट -पुर्जे अलग होते हैं. इसके बाद वाहनों के पार्ट पुर्जे नेटवर्क की पांचवीं कड़ी यानी अलग-अलग शहरों में बैठे दुकानदारों तक पहुंचाए जाते हैं.

ऑन डिमांड करते थे वाहन चोरी

यह नेटवर्क तो केवल एक कबाड़ी का है, इसी तरह यहां सभी कबाड़ियों ने अपने नेटवर्क खड़ा किया था. कबाड़ियों के पास एक से एक मझे हुए मिस्त्री और टेक्नीशियन होते थे. ये पलक झपकते ही खड़ी गाड़ी का चेसिस व इंजन नंबर बदल देते थे. इसके बाद कंप्यूटर से इन गाड़ियों का फर्जी रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र भी तैयार हो जाता था. पहले प्रयास होता था कि खड़ी गाड़ी बिक जाए. यदि ऐसा नहीं हो पाता था तो गाड़ी को अंदर गोदाम में भेजा जाता था. बीते 8 -10 सालों में तो ऑन डिमांड गाड़ियां भी चोरी होने लगी थीं. इसमें यदि कोई ग्राहक आकर कहता कि उसे स्कार्पियो चाहिए तो, कबाड़ी अपने नेटवर्क के चोरों को यह डिमांड बताते और अगले तीन से चार दिनों में चोरी की स्कार्पियो इंजन और चेसिस नंबर बदलकर उपलब्ध करा दी जाती.

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