‘मन की बात’ में जिक्र से बागेश्वर के जगदीश कुनियाल बने हीरो

जानिए कौन हैं जगदीश कुनियाल, जिनके इस काम के मुरीद हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मन की बात में की तारीफ
नई दिल्ली/बागेश्रर 28 फरवरी।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में जल संरक्षण को किए गए उपायों के लिए कई प्रेरक लोगों की कहानियां सुनाईं। उन्होंने 40 साल से पर्यावरण और जल संरक्षण के प्रति समर्पित उत्तराखंड की गरुड़ तहसील के सिरकोट निवासी जगदीश कुनियाल की मेहनत और लगन का जिक्र करते हुए कहा कि उनका काम भी बहुत कुछ सिखाता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि जगदीश का गांव और आसपास का क्षेत्र पानी की जरूरतों के लिए एक प्राकृतिक स्रोत पर निर्भर था, लेकिन कई साल पहले यह स्रोत सूख गया। इससे पूरे इलाके में पानी का संकट गहराता चला गया। जगदीश ने इस संकट का हल पौधरोपण से करने की ठानी। 57 वर्षीय कुनियाल ने 18 साल की छोटी उम्र में गांव की बंजर जमीन में पौधरोपण का कार्य शुरू किया था। उन्होंने अपनी 250 नाली पैतृक जमीन में कई प्रजाति के पौधे रोपे हैं। वह अब तक 25 हजार से अधिक पौधे रोप चुके हैं। 20 साल पहले उन्होंने जमीन में चाय बागान भी बनाया। आज उनकी 40 साल की मेहनत के चलते उनके इलाके का सूख चुका जलस्रोत फिर से सदानीरा बन गया है। वर्तमान में इस जलस्रोत से क्षेत्र के 400 ग्रामीणों को शुद्ध पेजयल मिल रहा है। गांव की 500 नाली से अधिक खेती को भी सिंचाई के लिए पानी मिल रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम ने बागेश्वर जिले को एक बार फिर से चर्चा में ला दिया है। प्रधानमंत्री से सराहना पाने के बाद जगदीश कुनियाल राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में छा गए। वहीं मुख्यमंत्री ने भी प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम को री-ट्वीट करते हुए कुनियाल की मेहनत को सराहा है। 57 साल के कुनियाल इसे अपने जीवन का अमूल्य क्षण बताते हैं।
मन की बात में जिक्र आने के बाद कुनियाल बेहद उत्साहित भी हैं। कुनियाल ने 18 वर्ष की आयु में गांव की बंजर जमीन पर पौधरोपण का कार्य शुरू किया था। कुनियाल के बसाए जंगल से क्षेत्र में सूख रहे प्राकृतिक जल स्रोतों को नया जीवन मिल रहा है। गांव के करीब आधा दर्जन छोटे-बड़े जलस्रोतों का पानी लगातार कम होता जा रहा था। पौधे बढ़ते गए तो स्रोतों में पानी की मात्रा भी बढ़ने लगी। वर्तमान में गांव के सभी जल स्रोतों में भरपूर पानी है, जिसका उपयोग लोग पीने के अलावा खेती के काम में भी कर रहे हैं।
अमर उजाला से बातचीत में कुनियाल ने बताया कि बंजर जमीन को उपजाऊ बनाना आसान नहीं था। दिन-रात कड़ी मेहनत करनी पड़ी। उनके बसाए जंगल को कई बार नष्ट करने की भी कोशिश की गई। वह पौधे लगाते और कुछ अराजक तत्व उन्हें नष्ट कर देते। जंगली जानवरों का खतरा अलग से था। इसे देखते हुए उन्होंने 20 साल पहले निजी खर्च पर दो स्थानीय युवाओं को जंगल की सुरक्षा के लिए रोजगार पर रखा। युवाओं को रोजगार देने के बाद उनकी आय के संसाधन जुटाने के लिए चाय की खेती भी करनी शुरू की। चाय का उत्पादन शुरू होने के बाद से दोनों कर्मचारियों को भी अच्छी आय हो रही है। विषम परिस्थितियों में किए गए कार्यों के कारण ही आज वह एक हरे-भरे जंगल के जनक हैं।
जगदीश के साथ 1990 से जुड़े अमस्यारी के पर्यावरण प्रेमी बसंत बल्लभ जोशी बताते हैं कि कुनियाल को दिखावा और शोर शराबा पसंद नहीं है। वह जमीन से जुड़कर कार्य करने पर विश्वास रखते हैं। उनके इसी जुनून और जज्बे ने क्षेत्र के कई प्राकृतिक स्रोतों को नया जीवन दिया है। उनकी मेहनत के कारण चीड़ से भरे जंगलों के बीच बांज, बुरांश, देवदार, उतीस जैसे पौधों की पैदावार हो रही है। उन्होंने अपने जंगल में उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाला अंगु का पौधा भी लगाया है।
बता दें कि गरुड़ तहसील के सिरकोट, परकोटी, कंधार और कालीगढ़ गांव के लिए पेयजल का एकमात्र जरिया सीम गधेरा सूखने की कगार पर था। इस स्रोत पर निर्भर लोगों के समक्ष सिंचाई और पेयजल की समस्या होने लगी थी। ऐसे समय में जगदीश कुनियाल ने गधेरे को रिचार्ज करने के लिए भगीरथ प्रयास शुरू किए। उन्होंने गधेरे, जलस्रोत के आसपास चौड़ी पत्तीदार पौधे रोपे। जलस्रोत से निकलने वाली धारा के प्रवाह मार्ग में कई छोटे-छोटे रिचार्ज पिट भी बनाए। धीरे-धीरे पौधे बढ़े होते गए और जलस्रोत सदानीरा बन गया।
कुनियाल के परिवार में उनकी पत्नी दीपा देवी, दो बेटे और दो बेटियां हैं। उनके दोनों पुत्र नौकरी करते हैं, जबकि बेटियां शिक्षा हासिल कर रही हैं। प्रधानमंत्री की ओर से जगदीश का जिक्र किए जाने पर परिवार गौरवान्वित महसूस कर रहा है।पीएम मोदी की मन की बात में पहले भी बागेश्वर जिले का जिक्र कर चुके हैं। दो साल पहले 29 अप्रैल 2018 में प्रसारित कार्यक्रम में उन्होंने कपकोट तहसील के मुनार गांव में मां चिल्ठा स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के स्वरोजगार की सराहना की थी। मुनार की महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह के माध्यम से मडुवे के बिस्कुट बनाकर दूरस्थ क्षेत्र में स्वरोजगार शुरू किया था। आजीविका की सहायता से उनके बिस्कुटों को दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे मेले में भी प्रदर्शनी लगी थी, जहां गृह मंत्री अमित साह ने भी मड

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