मोदी की भतीजी को नगर निगम का टिकट नहीं, कांग्रेस में होती, टिकट बांटती

 

PM मोदी की भतीजी को बीजेपी ने टिकट नकारा, कांग्रेस में होतीं तो टिकट बांट रही होतींं

अहमदाबाद 6फरवरी।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भतीजी ने अहमदाबाद नगर निकाय चुनाव के लिए टिकट मांगा था. भाजपा ने अपने नए नियमों का हवाला देते हुए उन्हें पार्टी का टिकट देने से मना कर दिया. मतलब ये स्थिति बड़ी विचित्र है.

माना जाता है कि हर शख्स अपनी किस्मत अपने साथ लेकर इस धरती पर आता है. कई लोग मेहनत के दम पर अपनी किस्मत अपने हाथों से लिखते हैं. कई लोग परिस्थितियों से जुझते हुए बड़ा मुकाम हासिल करते हैं. वहीं, कुछ लोगों की किस्मत इतनी खराब होती है कि अगर वो ऊंट पर भी बैठे हों, तो उनका कुत्ता काट खाए. भारत देश में कमोबेश यही नियम ‘राजनीति’ पर भी लागू होता है. अगर किसी की नाक अपनी ‘दादी’ से मिलती है, तो लोग उसे प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार साबित कर देते हैं. कहा तो ये भी जाता है कि इस परिवार में पैदा हुआ हर व्यक्ति कुछ नहीं तो कम से कम ‘पार्टी अध्यक्ष’ बन ही जाएगा. खराब किस्मत वालों की बात करें, तो जिसके चाचा प्रधानमंत्री हों और उसे नगर निकाय चुनाव का टिकट ना मिल पाए. इससे बुरी किस्मत का क्या ही बयान किया जाए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भतीजी ने अहमदाबाद नगर निकाय चुनाव के लिए टिकट मांगा था. भाजपा ने अपने नए नियमों का हवाला देते हुए उन्हें पार्टी का टिकट देने से मना कर दिया. मतलब ये स्थिति बड़ी विचित्र है. भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कानपुर के निवासी हैं. शहर में अमूमन हर कनपुरिया यही भौकाल गांठता मिल जाएगा कि हमाए चाचा राष्ट्रपति हैं. कानपुर में विधायक और सांसदों की तो ससुरा कोई इज्जत ही नहीं है. लोग सीधे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को फोन लगाने की बात करने लगते हैं. इस छोटे से शहर में जब लोगों का ये हाल है, तो ऐसे में प्रधानमंत्री की भतीजी को खराब किस्मत वाला क्यों ना माना जाए.

इस खबर को सुनने के बाद से ही कई लोग सुषुप्तावस्था में चले गए हैं. मतलब पुलिस वाले ने रोड पर बिना हेलमेट रोक लिया, तो नेता जी, विधायक जी, सांसद जी, फलाने जी, ढिमाके जी से फोन पर बात कराने वाले लोगों का इस खबर के बाद से ‘मोरल डाउन’ हो गया है भाई. इसका कोई ना कोई तो हल निकालना पड़ेगा. सोचिए जरा…..अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से एक छोटा सा नगर निकाय चुनाव का टिकट ना मिल पाए, तो ये इतना बड़ा देश कैसे चलेगा. अरे भाई….जुगाड़ ही तो अपने देश की सर्वाधिक लोकप्रिय चीज है. ये घर के किचन से लेकर देश की राजनीति तक हर जगह फिट हो जाता है. अब अगर ये भी नहीं चलेगा, तो बाकी सब कुछ चलना, तो बिलकुल दूभर हो जाएगा.

देश में सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाली कांग्रेस को देखें, तो सोनिया गांधी के पार्टी संभालते ही सारी चीजें लाइन पर आ गई थीं. उससे पहले बहुत इधर-उधर भटकी थीं. यूपीए के शासनकाल में तो, ये तक कहा जाता था कि सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठे ‘रोबोट’ का ‘रिमोट’ सोनिया जी के हाथ में ही रहता था. सोनिया गांधी के बाद परंपरानुसार उनके पुत्र राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी संभाल ली. चुनाव में हार गए, तो गुस्से में कुर्सी छोड़ दी. मजबूरन फिर से सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनना पड़ा. कुर्सी पर बैठने के लिए पहले राहुल गांधी तैयार नहीं थे. राहुल को कुर्सी पर फिर से बैठाने की कई कोशिशें की गई थीं. वहीं, अब एक बार फिर से जब राहुल गांधी तैयार हुए हैं, तो कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता इसके लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं. आगामी कुछ महीनों में 5 राज्यों में चुनाव होने हैं. इसके बाद तो राहुल गांधी को अध्यक्ष बना ही दिया जाएगा. चाहे इसके लिए किसी की कनपट्टी पर लाइसेंसी बंदूक (तमंचा अवैध होता है, जेल हो सकती है) क्यों ना लगानी पड़े.

जस्ट इमेजिन करिए…..अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भतीजी कांग्रेस में होतीं तो, क्या होता. सारे कार्यकर्ता पलक-पांवड़े बिछाए उनका इंतजार कर रहे होते. नगर निकाय की टिकट बहुत छोटी सी चीज है, कम से कम उनको पार्टी अध्यक्ष या प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तो बना ही दिया जाता. नहीं कुछ तो, जिस राज्य में चुनाव होने वाले हों, वहां का प्रभारी बनाकर टिकट ‘बांटने’ की भूमिका दी ही जा सकती थी. अच्छा, यहां कांग्रेस के दुर्भाग्य पर भी नजर डालनी जरूरी है. सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनना चाहा, तो भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने उनकी नागरिकता पर सवाल उठा दिए और कोर्ट चले गए. उनके बाद अगले चुनाव में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया, तो पार्टी 2014 और 2019 दोनों में चुनाव ही हार गई. 2019 तो राहुल गांधी के लिए और बुरा था. राहुल गांधी अमेठी की अपनी ‘घर’ वाली लोकसभा सीट भाजपा की स्मृति ईरानी से हार बैठे. ये तो अच्छा हुआ कि उन्होंने पहले ही वायनाड से भी चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी. वरना इस बार संसद में उनके दर्शन दुर्लभ हो जाते.

वैसे, प्रधानमंत्री की भतीजी सोनल मोदी ने दावा किया था कि उन्होंने प्रधानमंत्री की भतीजी होने के नाते नहीं बल्कि भाजपा कार्यकर्ता की हैसियत से टिकट मांगा था. नरेंद्र मोदी 2001 से 2014 तक चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे. 2014 से 2024 तक (चुनावी प्रक्रिया के हिसाब से) वो देश के प्रधानमंत्री रहेंगे. आगे भी बनेंगे या नहीं, ये भाजपा का अंदरूनी विषय है. इतने बड़े पदों पर रहने के बावजूद उनकी भतीजी नगर निकाय चुनाव में टिकट मांगे, तो ये बात कुछ हजम नहीं होती. भाजपा ने आज तक प्रधानमंत्री मोदी के भाई प्रह्लाद मोदी को टिकट नहीं दिया. सोनल मोदी, प्रह्लाद मोदी की ही बेटी हैं. प्रह्लाद मोदी अहमदाबाद में राशन की दुकान चलाते हैं और गुजरात उचित दर दुकान संघ के अध्यक्ष भी हैं.

प्रहलाद मोदी वही हैं, जिन्होंने दो दिन पहले लखनऊ के अमौसी एयरपोर्ट पर धरना दे दिया था. प्रहलाद मोदी दिल्ली से लखनऊ आने वाली फ्लाइट से यूपी की राजधानी पहुंचे थे. बताया गया कि उनको सुल्तानपुर और जौनपुर में किसी सोसाइटी की ओर से सम्मानित किया जाना था. वहीं, यूपी पुलिस ने सोसाइटी और कार्यक्रम को फर्जी बताते हुए आयोजक को हिरासत में ले लिया था. जिसके बाद लखनऊ पहुंचते ही प्रहलाद मोदी ने समर्थकों और आयोजकों को बिना शर्त रिहा करने की बात कहते हुए धरना दे दिया. खैर, टिकट देना या ना देना, प्रह्लाद मोदी का धरना देना या ना देना सब पार्टी के ‘आंतरिक मामले’ हैं. इस पर कोई विशेष टिप्पणी नहीं की जा सकती है. वैसे भी मैं कौन सा अंतरराष्ट्रीय पॉप सिंगर रिहाना हूं, जो मेरी बात को लोग इतना सीरियसली लेंगे.साा ट्माा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *