जयंती: आखिरी गोली, आखिरी सांस,आखिरी सैनिक तक मुकाबले के मंत्रदाता बलिदानी सैन्य नायक थे मेजर सोमनाथ शर्मा

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बच्चों में मानवीय मूल्यों के विकास, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* आज देश के स्वतन्त्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों एवं ज्ञात-अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके जयंती, पुण्यतिथि व बलिदान दिवस पर कोटिश: नमन करती है।🙏🙏

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🔥🔥🔥 *मेजर सोमनाथ शर्मा जी* 🔥🔥🔥
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देशप्रेम का मूल्य प्राण है देखें कौन चुकाता है,
देखें कौन सुमन शैया तज कंटक पथ अपनाता है।

📝 राष्ट्रभक्त मित्रों, असंख्य ज्ञात व अज्ञात बलिदानों के उपरांत हमने जो स्वतंत्रता पाई है, उसे सही मायने में आज़ादी के 07 दशक उपरांत भी सीमा-प्रहरियों ने ही सुरक्षित रखा हुआ है। संपूर्ण देश अभी स्वंत्रत हुआ भी नहीं था कि पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर हमला बोल दिया, जिसका भारतीय सेना ने मुँह तोड़ जवाब दिया। साथियों, देश आज़ादी के उपरांत छोटी बड़ी लड़ाइयों में उलझा ही रहा, चाहे बात पाकिस्तान कि हो या चीन की, किंतु भारतीय सेना ने अंग्रेजों एवं अन्य विदेशी शक्तियों से लंबे संघर्ष उपरांत प्राप्त आज़ादी को पूरी जिम्मेदारी से बचाए रखा। मातृभूमि सेवा संस्था आज सन् 1947 के *भारत-पाक युद्ध* के योद्धा एवं देश के *प्रथम परमवीर चक्र विजेता* सोमनाथ शर्मा के जीवन पर प्रकाश डालने को प्रयास करेगी। मेजर सोमनाथ शर्मा जी का जन्म 31 जनवरी, 1923 को जम्मू में हुआ था। इनके पिता मेजर अमरनाथ शर्मा भी सेना में डॉक्टर थे और आर्मी मेडिकल सर्विस के डायरेक्टर जनरल के पद से सेवामुक्त हुए थे।

📝 मेजर सोमनाथ शर्मा जी की शुरुआती स्कूली शिक्षा अलग-अलग जगह होती रही, लेकिन बाद में उनकी पढ़ाई शेरवुडा, नैनीताल में हुई। मेजर सोमनाथ शर्मा जी बचपन से ही खेल-कूद तथा एथलेटिक्स में रुचि रखते थे। मेजर सोमनाथ शर्मा जी ने अपना सैनिक जीवन 22 फरवरी, 1942 से शुरू किया, जब इन्होंने चौथी कुमायूं रेजिमेंट में बतौर कमीशंड ऑफिसर प्रवेश लिया। उनका फौजी कार्यकाल शुरू ही द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ और वह मलाया के पास के रण में भेज दिये गये। पहले ही दौर में इन्होंने अपने पराक्रम के तेवर दिखाए और वह एक विशिष्ट सैनिक के रूप में पहचाने जाने लगे। आज़ादी उपरांत 03 नवम्बर, 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा जी की टुकड़ी को कश्मीर घाटी के बदगाम मोर्चे पर जाने का आदेश दिया गया। 03 नवम्बर, 1947 को प्रकाश की पहली किरण फूटने से पहले मेजर सोमनाथ शर्मा जी बदगाम जा पहुँचे और उत्तरी दिशा में उन्होंने दिन के 11 बजे तक अपनी टुकड़ी तैनात कर दी। तभी दुश्मन की क़रीब 500 लोगों की सेना ने उनकी टुकड़ी को तीन तरफ से घेरकर हमला किया और भारी गोला बारी से मेजर सोमनाथ शर्मा जी के सैनिक हताहत होने लगे। अपनी दक्षता का परिचय देते हुए मेजर सोमनाथ शर्मा जी ने अपने सैनिकों के साथ गोलियाँ बरसाते हुए दुश्मन को बढ़ने से रोके रखा। इस दौरान उन्होंने खुद को दुश्मन की गोली बारी के बीच बराबर खतरे में डाला और कपड़े की पट्टियों की मदद से हवाई जहाज को ठीक लक्ष्य की ओर पहुँचने में मदद की।

📝 इस दौरान मेजर सोमनाथ शर्मा जी के बहुत से सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके थे और सैनिकों की कमी महसूस की जा रही थी। मेजर सोमनाथ शर्मा जी का बायाँ हाथ चोट खाया हुआ था और उस पर प्लास्टर बंधा था। इसके बावजूद उन्होंने खुद मैग्जीन में गोलियाँ भरकर बंदूकधारी सैनिकों को देते जा रहे थे। तभी एक मोर्टार का निशाना ठीक वहीं पर लगा, जहाँ मेजर सोमनाथ शर्मा जी मौजूद थे और इस विस्फोट में उन्होंने वीरगति प्राप्त की। मेजर सोमनाथ शर्मा जी की प्राण त्यागने से बस कुछ ही पहले, अपने सैनिकों के लिए ललकार थी:-

*”दुश्मन हमसे केवल पचास गज की दूरी पर है। हमारी गिनती बहुत कम रह गई है। हम भयंकर गोली बारी का सामना कर रहे हैं फिर भी, मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा और अपनी आखिरी गोली और आखिरी सैनिक तक डटा रहूँगा।”*

मेजर सोमनाथ शर्मा जी के भाई सुरिन्दर नाथ शर्मा जी भारतीय थलसेना में लेफ्टिनेन्ट जनरल रह चुके हैं (जो इंजिनियर-इन-चीफ पद से सेवानिवृत्त हुए) जबकि दूसरे भाई विश्वनाथ शर्मा 1988-90 के दौरान भारतीय थलसेना अध्यक्ष रह चुके हैं। उनकी बहन मेजर कमला तिवारी सेना में चिकित्सका थीं। *मातृभूमि सेवा संस्था अमर बलिदानी मेजर सोमनाथ शर्मा जी के आज 99वीं जयंती पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम करती है।*
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✍️ राकेश कुमार
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳

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