हुबली के ईदगाह विवाद से ही भाजपा ने कर्नाटक में अपना सिक्का जमाया

तब मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा था- मैं कल्याण सिंह नहीं कि… ईदगाह मैदान पर जब सुलगा हुबली और कर्नाटक में खिल गया कमल

How BJP used Hubli Idgah Maidan as its Political Battle Field : कर्नाटक में हुबली का ईदगाह मैदान इस बार फिर विवाद का केंद्र बना। हालांकि, कर्नाटक हाई कोर्ट ने नगर निगम के फैसले को सही ठहराते हुए ईदगाह मैदान में गणेशोत्सव का आयोजन करने की अनुमति दे दी है।

हुबली विवाद ने कर्नाटक में खिलाया था भाजपा का कमल।

हाइलाइट्स
1-हुबली का ईदगाह मैदान लंबे समय से विवादों के केंद्र में रहा है
2-वहां भाजपा और संघ परिवार ने तिरंगा फहराने को लेकर लंबा संघर्ष किया
3-भाजपा को इस प्रयास से कर्नाटक में अपनी जड़ें जमाने में बहुत मदद मिली

नई दिल्ली पहली सितंबर: कर्नाटक के हुबली में ईदगाह मैदान सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं, राजनीति का अखाड़ा भी रहा है। एक तरफ मुस्लिम संगठन और कांग्रेस पार्टी तो दूसरी तरफ संघ परिवार और भाजपा। दोनों के बीच लंबा विवाद चला है। 1991 में रथयात्रा और अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिराने के बाद संघ और भाजपा ने हुबली ईदगाह मैदान पर अंजुमन-ए-इस्लाम के दावे के खिलाफ कमर कस ली। 1992 में जब भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी और नरेंद्र मोदी ने श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराया था, तभी ईदगाह मैदान में भी ऐसा ही कार्यक्रम रखा गया। इसका आयोजन संघ परिवार के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रध्वज गौरव संरक्षण समिति के बैनर तले किया था। हालांकि, प्रशासन ने भारी बल प्रयोग से उन्हें ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने से रोक दिया। फिर 1994 में भाजपा नेता उमा भारती ने यही कोशिश की। उनका जबर्दस्त विरोध हुआ। पुलिस ने स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने को आतुर भीड़ पर गोलियां बरसा दीं और पांच लोगों की जान चली गई।

अंजुमन-ए-इस्लाम की जिद्द और भाजपा की रणनीति

उस वक्त भाजपा कर्नाटक में अपना पांव जमाने की कोशिश में थी। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भी हुबली ईदगाह मैदान में तिरंगा नहीं फहराने देने की अंजुमन-ए-इस्लाम की जिद्द ने भाजपा को बड़ा मौका दे दिया। तब अनंत कुमार पार्टी के लिए बड़े रणनीतिकार साबित हुए। कुमार तब कर्नाटक भाजपा महासचिव थे। वो हुबली निवासी थे। उनकी लाल कृष्ण आडवाणी से अच्छी-खासी नजदीकी थी। उधर, 1990 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को राजीव गांधी ने हटा दिया। इस कारण लिंगायत समुदाय में कांग्रेस के खिलाफ काफी रोष था। अनंत कुमार ने गुस्साए लिंगायतों को भाजपा की तरफ मोड़ने पर काम शुरू कर दिया।

विधानसभा में 10 गुना हो गईं भाजपा की सीटें

1994 में कांग्रेस के वीरप्पा मोइली कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे। जब ईदगाह मैदान विवाद में हिंसा हुई तब अनंत कुमार ने ‘मोइली हटाओ’ अभियान छेड़ दिया। इसे लालकृष्ण आडवाणी की भी ताकत मिली। उन्होंने भी मोइली हटाओ का आह्वान किया। यह रणनीति काम कर गई और 1994 के चुनाव में भाजपा को कर्नाटक विधानसभा में पहली बार बड़ी सफलता हाथ लगी। उसने पांच वर्ष पहले चार सीट पाकर कर्नाटक विधानसभा में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी। लेकिन इस बार उसकी सीटें 10 गुना हो गईं। 40 सीटों पर मिली जीत से उत्साहित अनंत कुमार ने उत्तरी कर्नाटक में हिंदुओं को एकजुट करने पर जोर बढ़ा दिया। परिणाम हुआ कि आज तक उस इलाके पर भाजपा का दबदबा है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को कर्नाटक में 36.2% वोट मिले। कांग्रेस 38% वोट पाकर टॉप पर थी।

तब मोइली ने कहा था- मैं कल्याण सिंह नहीं कि…

बहरहाल, 1994 में कर्फ्यू तोड़कर ईदगाह मैदान जाने की कोशिश के लिए उमा भारती के खिलाफ हुबली कोर्ट में मुकदमा दायर हुआ। बाद में केस खत्म हो गया। भाजपा की तरफ से ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने का वह छठा प्रयास था। उधर, सुप्रीम कोर्ट में उसका मुकदमा चल रहा था कि ईदगाह मैदान पर असली अधिकार किसका है। लेकिन, भाजपा की तरफ से 15 अगस्त 1994 को राष्ट्रध्वज फहराने की प्लानिंग हो गई। 14 अगस्त को हुबली में कर्फ्यू लगा दिया गया। पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स (RAF) के जवान चप्पे-चप्पे पर तैनात कर दिए गए। मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा,’मैं कल्याण सिंह नहीं हूं कि अपनी आंखें मूंद हिंसा होने दूं।’ भाजपा नेता सिकंदर बख्त को बंगलोर में गिरफ़्तार हो गये, लेकिन उमा भारती छिपते-छिपाते हुबली पहुंच गईं।

भाजपा समर्थकों पर पुलिस की फायरिंग

15 अगस्त, 1994 को भाजपा समर्थक ईदगाह मैदान की ओर बढ़  और हिंसा भड़क उठी। प्रदेश भाजपा के बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा के साथ पार्टी सांसद उमा भारती गिरफ्तार हो गईं। उसके बाद भीड़ में खलबली मच गई। पुलिस ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं। पुलिस की गोलियों ने पांच लोगों की जान ले ली। चार दिन बाद भाजपा ने पूरे हुबली में मोइली हटाओ अभियान छेड़ दिया। इस पर पुलिस ने बेवजह फायरिंग शुरू कर दी और एक महिला की मौत हो गई। इस घटना से मोइली सरकार की छवि खराब होने लगी। हड़बड़ी में मुख्यमंत्री ने धमकी दी कि अब अगर हिंसा हुई तो आरोपितों पर टाडा में मुकदमा दर्ज किया जाएगा। हालांकि, देखते ही देखते पड़ोस से शहर भद्रावती में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया।

आडवाणी की ललकार और मुस्लिम पक्ष की नरमी


तभी लालकृष्ण आडवाणी ने कहा, ‘मोइली का भविष्य उसी वक्त पता चल गया जब उनकी सरकार ने हुबली में निर्दोष देशभक्तों पर गोलियां चलवाईं।’ उन्होंने याद दिलाया कि कैसे एक दशक पहले नरगुंड पुलिस ने किसानों की रैली पर फायरिंग की थी और कांग्रेस(आई) की सरकार चली गई थी। इन घटनाओं से अंजुमन-ए-इस्लाम पर दबाव बना और उसने खुद ही ईदगाह मैदान में तिरंगा फहरा दिया। बाद में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के तत्कालीन प्रमुख अशोक सिंघल ने 2001 में हुबली का दौरा किया। उनके दौरे का हुबली में जबर्दस्त विरोध हुआ और हिंसा भड़क उठी। उस हिंसा में भी एक व्यक्ति की मौत हो गई।

कर्नाटक में चुनाव पर फिर उठा ईदगाह का मुद्दा

बहरहाल, कर्नाटक में फिर चुनाव है। भाजपा ने बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाकर बासवराज बोम्मई को यह कुर्सी थमा दी है। पार्टी को डर है कि येदियुरप्पा के हटाने से लिंगायत समुदाय कहीं आक्रोशित न हो जाए। इसलिए पार्टी ने 75 वर्ष की उम्र सीमा का नियम तोड़कर उन्हें पार्टी संसदीय बोर्ड में शामिल कर लिया है। हालांकि, बोम्मई भी लिंगायत समुदाय से ही आते हैं, लेकिन उनकी येदियुरप्पा जैसी धाक नहीं है। ऐसे में ईदगाह मैदान का विवाद फिर से सामने है। फिलहाल, कर्नाटक हाई कोर्ट ने ईदगाह मैदान में गणेश उत्सव मनाने का अनुमति दे दी और वहां भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित भी हो चुकी है। इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा को इससे कितना फायदा होगा, भगवान ही जानें ं

Hubli Idgah Maidan Controrersy Has Been Political Instrument For Bjp To Rise In Karnataka

दो ईदगाह- एक में गणेशोत्सव को मंजूरी, दूसरे में नहीं:ईदगाह में गणेश चतुर्थी के आयोजन पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने क्यों दिए अलग फैसले?

मंगलवार को कर्नाटक के दो ईदगाह मैदानों में गणेश चतुर्थी के आयोजन को लेकर दो अदालतों ने दो अलग फैसले दिए। पहले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरु के ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी के आयोजन की अनुमति नहीं दी। वहीं, दूसरे फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने हुबली में ईदगाह मैदान पर गणेशोत्सव मनाने की अनुमति दे दी।

विवेचना में जानते हैं कि आखिर क्या है कर्नाटक में ईदगाह मैदानों पर गणेश उत्सव मनाने का मामला? दो अदालतों ने क्यों दिए दो अलग फैसले? आखिर वक्फ की प्रॉपर्टी क्या होती है?

पहले दोनों ईदगाह के मामले समझ लेते हैं:

पहला मामला

सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दी बेंगलुरु ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी आयोजन की इजाजत

सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्यीय बेंच ने 30 अगस्त की रात हुई सुनवाई में बेंगलुरु के चामराजपेट ईदगाह में गणेश चतुर्थी के आयोजन की अनुमति नहीं दी। 27 अगस्त को राज्य सरकार की याचिका पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने ईदगाह में गणेश चतुर्थी के आयोजन को मंजूरी दे दी थी। इस फैसले को वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

दूसरा मामला

हाईकोर्ट ने दी हुबली ईदगाह में गणेश चतुर्थी के आयोजन को मंजूरी

30 अगस्त को ही कर्नाटक हाईकोर्ट ने अंजुमन-ए-इस्लाम की याचिका को खारिज करते हुए हुबली ईदगाह में गणेश चतुर्थी के आयोजन की इजाजत दे दी। 31 अगस्त को अंजुमन-ए-इस्लाम ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद 31 अगस्त को कर्नाटक के हुबली ईदगाह मैदान में स्थापित भगवान गणेश की प्रतिमा
हाईकोर्ट के आदेश के बाद 31 अगस्त को कर्नाटक के हुबली ईदगाह मैदान में स्थापित भगवान गणेश की प्रतिमा
चलिए अब एक-एक करके समझते हैं कि इन दोनों मामलों में क्या-क्या हुआ-

बेंगलुरु ईदगाह के मालिकाना हक को लेकर शुरू हुआ विवाद


ये विवाद बेंगलुरु के चामराजपेट ईदगाह की 2 एकड़ और 5 गुंठा जमीन के मालिकाना हक से जड़ा है। इस मैदान पर कर्नाटक सरकार और वक्फ बोर्ड अपना-अपना दावा जता रहे हैं।

जून में बेंगलुरु के असिस्टेंट रेवेन्यू ऑफिसर ने वक्फ बोर्ड को अपना मालिकाना हक साबित करने वाले डॉक्यूमेंट्स पेश करने को लेकर कारण बताओ नोटिस जारी किया था।

रेवेन्यू ऑफिसर ने ऐसा उन रिपोर्ट्स के सामने आने के बाद किया था, जिसमें कहा गया था कि ये जमीन खेल का मैदान थी और ये शहर के नगर निगम यानी बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका यानी BBMP की है।

विवाद हाईकोर्ट पहुंचा

वक्फ बोर्ड ने BBMP के ईदगाह मैदान को स्टेट रेवेन्यू डिपार्टमेंट की जमीन के तौर पर मान्यता देने के फैसले को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी।

वक्फ बोर्ड की याचिका पर 25 अगस्त को हाईकोर्ट की सिंगल-जज बेंच ने BBMP के जमीन नियंत्रण पर रोक लगा दी। कोर्ट ने इस जमीन का इस्तेमाल रमजान और बकरीद, खेल के मैदान के रूप में और स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के लिए करने का आदेश दिया।

अगले ही दिन कर्नाटक सरकार ने इस आदेश को हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच के सामने ये कहते हुए चुनौती दी कि बेंगलुरु सिटी अथॉरिटीज को ईदगाह मैदान में 31 अगस्त से धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन (गणेश चतुर्थी) को लेकर 5 एप्लिकेशन मिले हैं।

27 अगस्त को दो जजों की बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश को बदलते हुए राज्य सरकार को जमीन के इस्तेमाल पर फैसला लेने की आजादी दे दी। कोर्ट ने सरकार को ईदगाह मैदान पर 31 अगस्त से धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के आयोजन की अनुमति दे दी। इस फैसले के बाद सरकार ने ईदगाह मैदान में 31 अगस्त से गणेश चतुर्थी के आयोजन को मंजूरी दे दी।

विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

सरकार के इस फैसले को कर्नाटक वक्फ बोर्ड और सेंट्रल मुस्लिम एसोसिएशन ऑफ कर्नाटक ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया के बीच फैसले को लेकर सहमति नहीं बन सकी।

फिर CJI यूयू ललित ने मामले को तीन जजों की बेंच को भेजा। इसमें जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस एएस ओका और एमएम सुंद्रेश शामिल थे।

30 अगस्त को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्यीय बेंच ने बेंगलुरु में ईदगाह जमीन पर गणेश उत्सव के आयोजन की अनुमति देने से इनकार करते हुए कर्नाटक सरकार को यथास्थिति बनाए रखने को कहा।

साथ ही कोर्ट ने ईदगाह के मालिकाना हक के विवाद को लेकर दोनों पक्षों को हाईकोर्ट के पास जाने को कहा। अब मालिकाना हक के मामले की सुनवाई कर्नाटक हाईकोर्ट करेगा।

सुप्रीम कोर्ट में ईदगाह पर सुनवाई के दौरान बहस में किसने क्या कहा

कर्नाटक सरकार की ओर से इस मामले में सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी और वक्फ बोर्ड की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और दुष्यंत दवे पेश हुए।

एक नजर डालते हैं कि इस मामले की बहस के दौरान कौन से तर्क दिए गए;

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा

‘पिछले 200 सालों से ऐसा नहीं हुआ था, आपने भी माना, तो यथास्थिति क्यों न रखी जाए? 200 सालों से जो नहीं हुआ, उसे वैसे ही रहने दीजिए’

वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल के तर्क

‘पिछले 200 सालों में किसी और समुदाय (मुस्लिम के अलावा) को ईदगाह मैदान में धार्मिक आयोजन की अनुमति नहीं दी गई है।’

‘1871 के रिकॉर्ड जमीन पर एक कब्रिस्तान होने की ओर इशारा करते हैं और जून 1965 में मैसूर वक्फ बोर्ड ने इसे वक्फ संपत्ति घोषित किया था।’

‘वक्फ एक्ट में, अगर किसी को वक्फ (संपत्ति) को चुनौती देनी है, तो उसे वक्फ घोषित होने के 6 महीने के अंदर चुनौती देनी होती है, लेकिन अब 2022 में विवाद खड़ा किया गया है।’

‘जब ये जमीन वक्फ है तो इस पर मालिकाना हक जताने और अधिकार में लेने का सवाल कहां से पैदा होता है…जॉइंट कमिश्नर को इस तरह के आदेश जारी करने का अधिकार कैसे है?’

वक्फ बोर्ड के वकील दुष्यंत दवे का तर्क

‘क्या इस देश में किसी भी मंदिर में अल्पसंख्यक समुदाय को जाने की इजाजत मिलेगी?’

कर्नाटक सरकार के वकील मुकुल रोहतगी के तर्क

‘पिछले 200 सालों से जमीन का उपयोग बच्चों के खेल के मैदान के रूप में हो रहा था और इस जमीन को लेकर सभी रेवेन्यू एंट्रीज राज्य सरकार के नाम पर हैं।’

‘ये एक खुला मैदान है। उन्हें दो दिन की इबादत की इजाजत है। वहां एक म्यूनिसिपल टैंक है। वहां फुटपाथ है। वहां साल भर बच्चे खेलते हैं। इस पर विशेष अधिकार कैसे है?’

‘हमारे विचार खुले होने चाहिए…क्या हो जाएगा अगर दो दिन के लिए गणेश चतुर्थी के आयोजन को मंजूरी मिल जाएगी।’

‘क्या कोई इसलिए न बोल सकता है क्योंकि ये एक हिंदू त्योहार है।’

’15 साल पहले जब ऐसा ही मामला उठा था तो एक औपचारिक समिति गठित हुई थी, जिसमें वक्फ के मंत्री भी शामिल थे। तब सदस्यों ने मैदान के दशहरा, कन्नड़ राज्योत्सव, शिवरात्रि के लिए इस्तेमाल की अनुमति दी थी…तो ये 15 साल पहले लिया गया फैसला था…इस मामले में एक याचिकाकर्ता भी उस बैठक का हिस्सा था।’

बेंगलुरु के चामराजपेट ईदगाह में सांप्रदायिक तनाव की आशंका देखते हुए भारी सुरक्षाबल तैनात किया गया है।

क्या होती है वक्फ की संपत्ति?

वक्फ धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए ईश्वर के नाम पर दी गई संपत्ति है। सीधे शब्दों में कहें तो वक्फ एक ऐसी संपत्ति है जिसका उपयोग धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

इस्लामी कानून के अनुसार एक वक्फ संपत्ति स्थायी रूप से अल्लाह को समर्पित होती है और जब कोई संपत्ति वक्फ के रूप में समर्पित हो जाती है तो यह हमेशा के लिए वक्फ के रूप में बनी रहती है। यानी वक्फ संपत्ति स्थायी और अपरिवर्तनीय होती है।

कर्नाटक की हुबली ईदगाह, जहां हाईकोर्ट ने दी गणेश उत्सव के आयोजन को मंजूरी।

हाईकोर्ट ने दी हुबली ईदगाह में गणेश चतुर्थी के आयोजन को मंजूरी


सुप्रीम कोर्ट के फैसले के थोड़ी देर बाद कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस अशोक किनागी की सिंगल बेच ने हुबली ईदगाह में गणेश चतुर्थी के आयोजन की इजाजत दे दी।

हाईकोर्ट ने हुबली ईदगाह मैदान में गणेशोत्सव के आयोजन के लिए हुबली-धारवाड़ नगर निगम यानी HDMC द्वारा दी गई मंजूरी में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। यानी हाईकोर्ट ने गणेशोत्सव के आयोजन का रास्ता साफ कर दिया।

अंजुमन-ए-इस्लाम ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए HDMC को ईदगाह मैदान में गणेश प्रतिमा स्थापित करने की अनुमति देने से रोकने की अपील की थी।

कोर्ट ने पाया कि हुबली ईदगाह मैदान का मामला बेंगलुरु के चामराजपेट ईदगाह मैदान के मामले से अलग है। जहां बेंगलुरु ईदगाह मामले में मालिकाना हक को लेकर विवाद है, तो वहीं हुबली ईदगाह मैदान का मालिकाना हक HDMC के पास है।

कोर्ट ने कहा कि ये जमीन 999 सालों के लिए अंजुमन-ए-इस्लाम को लीज पर दी गई थी, लेकिन अब भी जमीन के उपयोग का अधिकार HDMC के पास है।

कोर्ट ने कहा कि इस बात की पुष्टि 1972 से 1992 के दौरान हुबली के सिविल कोर्ट और हाईकोर्ट में हुई सुनवाइयों के दौरान हुई थी। बाद में इन आदेशों की पुष्टि 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने भी की ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *