इतिहास: आपातकाल में 327 पत्रकारों को हुई जेल,3801अखबार जब्त,290 के सरकारी विज्ञापन बंद,

ANALYSIS: मीडिया का आपातकाल, जानिए कैसे इमरजेंसी के रोड-रोलर से प्रेस की आजादी को कुचला गया

प्रिंटिंग प्रेस की बिजली सप्लाई काटने की योजना

25 जून को इंदिरा गांधी के पर्सनल सेक्रेटरी आर.के धवन ने उनसे कहा कि आपातकाल लगाने के साथ प्रिंटिंग प्रेस की बिजली सप्लाई को भी काटा जा सकता है. तब वहीं मौजूद पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय ने कहा कि ये तो प्लान का हिस्सा नहीं है. ये सही नहीं होगा. उस समय बंसीलाल भी वहीं मौजूद थे और उन्होंने तुरंत ये बात संजय गांधी को लीक करते हुए कहा था कि आर.के धवन सारा खेल बिगाड़ देंगे

सरकार ने की मीडिया पर मनमानी

संजय गांधी ने इमरजेंसी के दो दिन बाद ही सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल को हटाकर अपने करीबी विद्याचरण शुक्ल को मंत्री बना दिया था और विद्याचरण शुक्ल के जरिए सरकार ने मीडिया पर मनमानी की. उस वक्त प्रेस की सर्वोच्च संस्था प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक तरह से सिस्टम का हिस्सा बनकर रह गई थी. इस संस्था ने इमरजेंसी का विरोध तक नहीं किया और यहां तक कि इमरजेंसी के विरोध में आने वाले प्रस्तावों को भी खारिज कर दिया.

कई अखबारों का प्रकाशन बंद

कड़ी सेंसरशिप की वजह से कई अखबारों का प्रकाशन बंद हो गया. पत्रकारों के लिए सरकार ने कोड ऑफ कंडक्ट बना दिया और अखबारों के बोर्ड में सरकारी अफसर बैठा दिए गए, जो हर ख़बर पर नजर रखते थे. अखबारों के दफ्तरों में खबरों को सेंसर करने वाले लोग हर खबर, कार्टून और तस्वीर को देखते थे और ये सुनिश्चित करते थे कि कोई भी खबर सरकार की नीतियों का विरोध करने वाली न छपे।

न्यूज़ एजेंसियों का विलय

देश की चार बड़ी न्यूज़ एजेंसियों – PTI, UNI, हिंदुस्तान समाचार और समाचार भारती का विलय करके सरकार ने एक समाचार एजेंसी बना दी थी. ताकि खबर का हर स्रोत पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में रहे. The Hindu के संपादक जी. कस्तूरी को इसका प्रमुख बनाया गया और सबसे अहम बात खुशवंत सिंह ने आपातकाल का समर्थन किया था और जब उन पर सवाल उठे तो उन्होंने एक किताब लिखकर स्पष्टीकरण भी दिया, जिसका शीर्षक था, Why I Supported Emergency? हिंदुस्तान टाइम्स के प्रसिद्ध संपादक B G वर्गीज को मालिक k k बिड़ला ने इंदिरा गांधी को खुश करने के लिए बर्खास्त कर दिया था. उस वक्त द टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक शाम लाल थे और गिरीलाल जैन दिल्ली के रेजिडेंट एडिटर थे. ये दोनों ही पत्रकार इंदिरा गांधी के समर्थक थे, लेकिन प्रेस पर सेंसरशिप लगाने के फैसले के विरोधी थे. वो अखबार के प्रबंधन के सामने मजबूर थे।

327 पत्रकारों की मीसा कानून के तहत गिरफ्तारी

खुशवंत सिंह ने अंग्रेजी की एक प्रसिद्ध पत्रिका में लिखा था कि द टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक शाम लाल, आपातकाल का समर्थन करने वाले पत्रकारों के नेता थे. शाम लाल के बाद अखबार के नंबर दो संपादक गिरीलाल जैन थे. वो आपातकाल के दौरान देश के नए नेता के तौर पर संजय गांधी की ब्रांडिंग कर रहे थे. इसके अलावा नवभारत टाइम्स, महाराष्ट्र टाइम्स और धर्मयुग के संपादकों ने भी आपातकाल का विरोध करने वालों से दूरी बना ली थी. इमरजेंसी के दौरान 3801 अखबारों को जब्त किया गया. 327 पत्रकारों को मीसा कानून में जेल में बंद कर दिया गया. 290 अखबारों में सरकारी विज्ञापन बंद कर दिए गए.ब्रिटेन के द टाइम्स और गार्जियन जैसे अखबारों के 7 संवाददाताओं को भारत से निकाल दिया गया था.

29 विदेशी पत्रकारों की एंट्री पर बैन

रॉयटर्स सहित कई विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के टेलीफोन और दूसरी सुविधाएं खत्म कर दी गईं. 51 विदेशी पत्रकारों की मान्यता छीन ली गई. 29 विदेशी पत्रकारों को भारत में एंट्री देने से मना कर दिया गया. उस दौर में संपादकों के एक समूह ने सरकार के सामने घुटने टेक दिए थे. दिल्ली के 47 संपादकों ने 9 जुलाई 1975 को इंदिरा गांधी द्वारा उठाए गए सभी कदमों के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की. यहां तक कि इन संपादकों ने अखबारों पर लगाई गई सेंसरशिप को भी सही ठहरा दिया था. ऐसे संपादकों के बारे में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी का वो कथन बहुत मशहूर है, जब उन्होंने कहा था कि जब उन्हें झुकने के लिए कहा गया था, तो वो रेंगने लगे थे. हम आपको लालकृष्ण आडवाणी का ये बयान भी सुनाते हैं.

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