जुबैर को जमानत, खुद न मानें लेकिन सुको ने माना पत्रकार

‘पत्रकार को लिखने से रोक नहीं सकते’: सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस की जमानत शर्त के रूप में मोहम्मद जुबैर को ट्वीट करने से रोकने की याचिका खारिज की। फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर को उनके ट्वीट को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज सभी एफआईआर में अंतरिम जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वह जमानत की शर्त लगाने से इनकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि ज़ुबैर को ट्वीट करने से रोका जाए। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के एडिशनल एडवोकेट जनरल के ऐसी शर्त लगाने के अनुरोध को ठुकरा दिया।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने यूपी एएजी गरिमा प्रसाद से कहा, ” यह एक वकील से ऐसा कहने जैसा है कि आपको बहस नहीं करनी चाहिए। हम एक पत्रकार से कैसे कह सकते हैं कि वह एक शब्द भी नहीं लिखेगा या नहीं बोलेगा?”

एएजी ने जवाब दिया कि जुबैर “पत्रकार नहीं” है। सीतापुर एफआईआर में जुबैर को अंतरिम जमानत देते हुए 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ के पारित आदेश में शर्त थी कि वह ट्वीट पोस्ट नहीं करेंगे। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर जुबैर कोई आपत्तिजनक ट्वीट करते हैं तो वह कानून के प्रति जवाबदेह होंगे, लेकिन उन्होंने कहा कि “किसी को बोलने से रोकने वाला अग्रिम आदेश” जारी नहीं किया सकता। “अगर कानून के खिलाफ कोई ट्वीट होता है, तो वह जवाबदेह होंगे। कोई अग्रिम आदेश कैसे पारित किया जा सकता है कि कोई नहीं बोलेगा?”

जब एएजी ने कहा कि एक शर्त होनी चाहिए कि जुबैर सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेंगे तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने जवाब दिया, “सभी सबूत सार्वजनिक डोमेन में हैं।”

जस्टिस चंद्रचूड़ ने दोहराया, “हम यह नहीं कह सकते कि वह दोबारा ट्वीट नहीं करेंगे।”

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने आदेश दिया कि जुबैर को शाम 6 बजे तक तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया जाए, बशर्ते कि वह जमानत बांड प्रस्तुत कर रहा हो। पीठ ने उत्तर प्रदेश पुलिस की 7 एफआईआर दिल्ली पुलिस की एफआईआर के साथ जोड़ दिया, यह देखते हुए कि मामलों की विषय वस्तु समान हैं और दिल्ली पुलिस ने व्यापक जांच की है। पीठ ने कहा कि ट्वीट के संबंध में जुबैर के खिलाफ दर्ज किसी भी भविष्य की एफआईआर को दिल्ली पुलिस को हस्तांतरित किया जाना चाहिए और स्पष्ट किया कि वह भविष्य में इस तरह की एफआईआर में भी जमानत के हकदार होंगे। पीठ ने उन्हें सभी एफआईआर रद्द करने की मांग के लिए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता भी दी।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी की शक्ति का पुलिस को संयम से पालन करना चाहिए। पीठ का विचार था कि ज़ुबैर को लगातार हिरासत में रखने का “कोई औचित्य नहीं” है और जब दिल्ली पुलिस द्वारा जांच का हिस्सा बनने वाले ट्वीट्स से आरोपों की गंभीरता उत्पन्न होती है तो उन्हें विविध कार्यवाही के अधीन किया जाता है, जिस मामले में उन्हें पहले ही जमानत दी जा चुकी है । बेंच ने देखा, ” एफआईआर की शिकायत ट्वीट्स से संबंधित है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता की दिल्ली पुलिस ने व्यापक जांच की है, हमें उसे बनाए रखने को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने का कोई कारण नहीं मिलता है। ”

कोर्ट ने आगे जुबैर के खिलाफ एफआईआर की जांच के लिए यूपी पुलिस की एसआईटी को भंग करने का आदेश दिया। पीठ ने सभी एफआईआर को एक साथ जोड़ दिया है और कहा कि मामले को एक जांच प्राधिकारी यानी दिल्ली पुलिस द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए। आदेश में कहा गया है, ” हमारा विचार है कि याचिकाकर्ता की वैकल्पिक प्रार्थना को स्वीकार किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज सभी एफआईआर, जिसमें ऊपर उल्लिखित 6 एफआईआर शामिल हैं, को दिल्ली पुलिस को जांच को स्थानांतरित किया जाना चाहिए। ”

 

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‘जुबैर को भड़काऊ ट्वीट के बदले मिलते थे पैसे’, यूपी सरकार का SC में दावा
मोहम्मद जुबैर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अपने खिलाफ यूपी पुलिस द्वारा दायर सभी FIR खारिज करने की मांग की है. साथ ही जब तक इस याचिका पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक अंतरिम जमानत की भी मांग की गई है.
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फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर
फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर
कनु सारदा
कनु सारदा/संजय शर्मा/नलिनी शर्मा
नई दिल्ली,
20 जुलाई 2022,
अपडेटेड 1:28 PM IST

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जुबैर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई
यूपी सरकार ने कहा- जुबैर को भड़काऊ ट्वीट के बदले पैसे मिलते थे
फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई. इस दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट में कहा कि जुबैर को भड़काऊ ट्वीट के बदले पैसे मिलते थे. पोस्ट या ट्वीट जितना भड़काऊ होता था, पैसे भी उतने ही ज्यादा मिलते थे. दरअसल, मोहम्मद जुबैर ने अपने खिलाफ यूपी पुलिस द्वारा दायर सभी FIR खारिज करने की मांग की है. साथ ही जब तक इस याचिका पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक अंतरिम जमानत की भी मांग की गई है.

इस याचिका पर सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की ओर से पेश वकील गरिमा प्रसाद ने कहा, मोहम्मद जुबैर ने माना है कि उसे ट्वीट के बदले पैसे मिलते थे. उसे एक ट्वीट के बदले 12 लाख रुपए मिले थे, जबकि एक अन्य ट्वीट के लिए 2 करोड़ रुपए. सरकार ने आरोप लगाया कि जैबर ट्वीट के जरिए सांप्रदायिक हिंसा फैलाता था.

सरकार ने कहा, ये दावा किया जा रहा है कि जुबैर पत्रकार है. लेकिन खुद कह रहा है कि वो फैक्ट चेकर है. इस आड़ में वह संदिग्ध और उकसाने वाले पोस्ट करता था. उसने पुलिस को बताया है कि भड़काऊ और नफरत फैलाने वाले भाषणों को उसने फैलाया है. साथ ही वह बार बार ऐसी पोस्ट करता था, जिससे सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़े.

जुबैर ने कोर्ट में क्या कहा

फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर (फाइल फोटो)
लखीमपुर खीरी की सेशन कोर्ट से फैक्ट चेकर जुबैर की जमानत याचिका खारिज, 20 जुलाई को अगली सुनवाई
मोहम्मद जुबैर Alt News वेबसाइट के को-फाउंडर हैं
मोहम्मद जुबैर को ‘हनुमान होटल’ से जुड़े ट्वीट केस में मिली जमानत, लेकिन जेल से नहीं हो सकेगी रिहाई
सुनवाई के दौरान जुबैर की ओर से वृंदा ग्रोवर पेश हुईं. उन्होंने बताया कि जुबैर पर एक नई प्राथमिकी दर्ज की गई है और एक हाथरस मामले को छोड़कर सभी मामलों में ट्वीट ही एकमात्र विषय है. उन्होंने कहा, एक ट्वीट ही सभी मामलों में जांच का विषय बना हुआ है. जबकि इससे पहले 2018 के ट्वीट को लेकर दिल्ली में एक एफआईआर हुई. इसमें जुबैर को जमानत भी मिल चुकी है. लेकिन दिल्ली पुलिस ने जांच का दायरा बढ़ाकर लैपटॉप जब्त कर लिया.

जुबैर की ओर से कहा गया है कि उसके ट्वीट की भाषा उकसावे की दहलीज पार नहीं करती. पुलिस ने उसके खिलाफ जो FIR दर्ज की है, उसमें कहा गया है कि मैंने वैश्विक स्तर पर मुसलमानों को उकसाया है! जबकि मैंने पुलिस को एक नागरिक के रूप में कार्रवाई करने के लिए टैग किया था.

सिर्फ 1 या 2 ट्वीट का मामला नहीं- यूपी सरकार

यूपी सरकार ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह सिर्फ 1 या 2 ट्वीट का मामला नहीं है. 7 अप्रैल को जुबैर ने एक ट्वीट किया. ये मामला रेप से जुड़ा था. इसके बाद सीतापुर में टेंशन बढ़ गई. भारी पुलिस बल तैनात करना पड़ा. इसी तरह से कई बार इसकी पोस्ट से हिंसा को बढ़ावा मिला. गाजियाबाद के लोनी में एक बुजुर्ग आदमी की पिटाई के वीडियो को जुबैर ने इस तरह से पोस्ट किया कि सांप्रदायिक माहौल बिगड़े.

यूपी की सभी एफआईआर को दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल को ट्रांसफर करने का निर्देश भविष्य में ट्वीट के आधार पर दर्ज की जा सकने वाली एफआईआर पर लागू होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जुबैर दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष एफआईआर रद्द करने की मांग करने के लिए स्वतंत्र होंगे। अदालत जुबैर द्वारा दायर रिट याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें यूपी पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग की गई थी। उन्होंने दिल्ली में एक साथ करसभी 6 मामलों में अंतरिम जमानत मांगी थी। यह नोट किया गया कि जुबैर को कार्यवाही की एक सीरीज़ में “उलझाया” गया है जहां वह या तो न्यायिक हिरासत में है या जहां पुलिस रिमांड आवेदन लंबित है। दिल्ली पुलिस की एफआईआर के अलावा, जुबैर के खिलाफ लोनी बॉर्डर, मुजफ्फरनगर, चंदोली, लखीमपुर, सीतापुर और हाथरस में कई एफआईआर दर्ज की गई हैं। सभी एफआईआर मोटे तौर पर समान धारा, आईपीसी की धारा 153A, 295A, 505 और आईटी एक्ट की धारा 67 में अपराध में दर्ज की गईं। जुबैर की ओर से पेश एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने तर्क दिया कि सभी एफआईआर एक ही ट्वीट के आधार पर हैं, जबकि किसी भी ट्वीट में दूर से ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं किया गया है जो अनुचित है या जो आपराधिक अपराध है। उन्होंने कहा कि यह कई एफआईआर में आपराधिक कार्रवाई लागू करके एक तथ्य जांचकर्ता को ‘चुप’ करने का एक स्पष्ट मामला है। उन्होंने यह भी कहा कि ज़ुबैर के जीवन के लिए खतरे की वास्तविक आशंका है। उन्होंने कहा, ” डिजिटल युग के इस युग में, झूठी सूचना को खारिज करने वाले व्यक्ति का काम दूसरों की नाराजगी को आकर्षित कर सकता, लेकिन उसके खिलाफ कानून को हथियार नहीं बनाया जा सकता। किसी भी मामले में जमानत मिलने के बाद अन्य एफआईआर अचानक सक्रिय हो जाती हैं। इसलिए मैं कहती हूं कि यह मुझे घेरने का परिदृश्य है। ”

दूसरी ओर यूपी एएजी गरिमा प्रसाद ने तर्क दिया कि जुबैर पत्रकार नहीं हैं। ” वह खुद को एक फैक्ट चेकर कहता है। तथ्य जांच की आड़ में वह दुर्भावनापूर्ण और उत्तेजक सामग्री को बढ़ावा दे रहा है और उसे ट्वीट्स के लिए भुगतान किया जाता है। ट्वीट्स जितना अधिक दुर्भावनापूर्ण होगा, उतना अधिक भुगतान मिलेगा। उसने स्वीकार किया है कि उसे दो करोड़ रुपए मिले। वह कोई पत्रकार नहीं है। ”

एएजी गरिमा प्रसाद ने तर्क दिया कि पुलिस को अवैध भाषण या घृणा की सूचना देने के बजाय, जुबैर उन भाषणों और वीडियो का लाभ उठा रहा है जिनमें सांप्रदायिक विभाजन पैदा कर सकते हैं और वह उन्हें बार-बार शेयर कर रहा है। जबकि राज्य को सांप्रदायिक वैमनस्यता रोकनी है।

जुबैर के खिलाफ मामले

ज़ुबैर को दिल्ली पुलिस ने 2018 में एक ‘हनीमून होटल’ का नाम बदलकर हिंदू भगवान हनुमान के धर्म का अपमान करने को किए गए एक ट्वीट पर बुक किया था। वह आईपीसी की धारा 153ए, 295ए, 201 और 120बी और एफसीआरए की धारा 35 में दर्ज उक्त एफआईआर में जमानत पर है। वर्तमान मामले का विषय यूपी पुलिस द्वारा उसके खिलाफ दर्ज की गई कई एफआईआर हैं। जुबैर ने भजन लाल मामले पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि जहां आपराधिक कार्यवाही दुर्भावनापूर्ण है या प्रतिशोध को खत्म करने के लिए दुर्भावनापूर्ण रूप से स्थापित की गई है, उन्हें रद्द किया जा सकता है। ग्रोवर ने कहा कि वे यूपी के सभी मामलों में दिल्ली की एफआईआर और अंतरिम जमानत के साथ जोड़ने की मांग करते हैं। जुबैर सीतापुर एफआईआर के सिलसिले में जमानत पर हैं, उनके खिलाफ एक ट्वीट के लिए दर्ज किया गया था जिसमें उन्होंने कथित तौर पर 3 हिंदू संतों- यति नरसिंहानंद सरस्वती, बजरंग मुनि और आनंद स्वरूप को ‘घृणा फैलाने वाले’ कहा था।

  यूपी पुलिस की सभी एफआईआर में अंतरिम जमानत पर मोहम्मद जुबैर की रिहाई का आदेश

ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर ने उच्चतम न्यायालय से कहा  क आपराधिक कानून के तंत्र का इस्तेमाल पत्रकारों को परेशान करने को नहीं किया जा सकता और उनके ट्वीट न तो किसी को उकसाते हैं और न ही किसी भी तरह से अपमानजनक हैं।जुबैर ने अपनी वकील के माध्यम से कहा कि यह सोशल मीडिया का युग है जिसमें समाचार बिजली की गति से प्रसारित होते हैं और झूठी सूचनाओं को खारिज करने वाले किसी व्यक्ति का काम दूसरों को नाराज कर सकता है लेकिन ‘‘कानून को उसके खिलाफ हथियार नहीं बनाया जा सकता। यह तथ्यों की पड़ताल करने वाले को चुप कराने का एक स्पष्ट मामला है।’

जुबैर की वकील वृंदा ग्रोवर ने न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ से कहा कि उनके खिलाफ दर्ज सभी प्राथमिकियां रद्द कर दी जाए या वैकल्पिक रूप से दिल्ली के विशेष प्रकोष्ठ द्वारा दर्ज प्राथमिकी के साथ जोड़ दी जाए।

उन्होंने कहा, ‘‘आपराधिक कानून तंत्र का इस्तेमाल पत्रकार को परेशान करने को नहीं किया जा सकता। ये छह प्राथमिकी उन ट्वीट पर आधारित हैं, जिनमें से कोई एक भी किसी को उकसाता नहीं है या किसी भी तरह से अपमानजनक नहीं है।’’

ग्रोवर ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कुल छह प्राथमिकी दर्ज की गई हैं और चंदौली पुलिस थाने में एक अन्य प्राथमिकी दर्ज है, जिसकी उन्हें जानकारी नहीं है और ये सभी प्राथमिकी दिल्ली विशेष प्रकोष्ठ द्वारा दर्ज की गई पहली प्राथमिकी की जांच का विषय है।

उन्होंने कहा कि दिल्ली की प्राथमिकी में, जांच के दायरे का विस्तार किया गया है और उन्होंने ऑल्ट न्यूज़ के वित्तपोषण को देखने के लिए ‘फेरा’ (विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम) के प्रावधानों को लागू किया है और यहां तक कि एक छापेमारी और जब्ती अभियान भी चलाया है जिसमें जुबैर का लैपटॉप जब्त किया गया है।

उन्होंने कहा, ‘‘दिल्ली पुलिस की प्राथमिकी में मुझे जमानत मिलने के बाद, हाथरस में एक प्राथमिकी दर्ज की गई। दिल्ली पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराएं लगायी हैं और अब उन्होंने ‘फेरा’ के प्रावधानों को लागू किया है और लैपटॉप और अन्य उपकरण जब्त करने के लिए रिमांड पर ऑल्ट न्यूज़ के अहमदाबाद कार्यालय ले जाना चाहते हैं।’’ उन्होंने कहा कि एक भुगतान प्लेटफॉर्म ने स्पष्ट किया है कि ऑल्ट न्यूज़ को सभी वित्तपोषण घरेलू है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह किस प्रकार का रिमांड है कि मुझे जहां भी मेरा कार्यालय स्थित है, मुझे ले जाया जाएगा। यह जांच की शक्ति का एक वैधानिक दुरुपयोग है।’’

उनकी वकील ने कहा ‘‘ उनकी जान को सीधा खतरा है। उनके सिर पर एक इनाम घोषित किया गया है, हमने धमकियों को देखते हुए तिहाड़ जेल से उनकी वीडियो कांफ्रेंस के लिए कहा लेकिन इससे इनकार कर दिया गया। अब वे उन्हें तिहाड़ जेल से अलग-अलग जगहों पर ले जाना चाहते हैं।’’

ग्रोवर ने ट्वीट का जिक्र करते हुए कहा कि जिन ट्वीट की जांच दिल्ली पुलिस कर रही है, उनकी जांच हाथरस, लखीमपुर खीरी, गाजियाबाद, सीतापुर और मुजफ्फरनगर में दर्ज अलग-अलग प्राथमिकी में उत्तर प्रदेश पुलिस भी कर रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘जब भी अदालतों द्वारा एक प्राथमिकी में राहत दी जाती है, अचानक एक निष्क्रिय प्राथमिकी सक्रिय हो जाती है और मुझे रिमांड पर लिया जाता है। यदि आप ट्वीट को देखे, तो कोई उकसावा नहीं है और इन ट्वीट की भाषा भी अनुचित नहीं है। प्रथम दृष्टया शत्रुता को बढ़ावा देने का कोई मामला नहीं है।’’

ग्रोवर ने कहा कि एक नेटवर्क है जो उस समय हरकत में आता है जब अदालत इस तथ्यों की पड़ताल करने वाले को राहत देती है, जो अपने ट्वीट में नफरत भरे भाषणों या एक टीवी चैनल द्वारा इस्तेमाल किए गए मस्जिद की फर्जी तस्वीरों की ओर इशारा करता है जो सांप्रदायिक विद्वेष को भड़का सकता है।

उन्होंने कहा कि जिस दिन शीर्ष अदालत ने उन्हें सीतापुर प्राथमिकी में राहत दी थी, उसी दिन उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया था, जो एक ट्वीट पर आधारित है जिसकी जांच दिल्ली पुलिस द्वारा पहले से ही की जा रही है।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के तीन पुलिस थानों द्वारा इसी तरह के नोटिस जारी किए गए हैं, जहां जुबैर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है और बैंक विवरण और अन्य वित्तीय रिकॉर्ड का विवरण मांगे गए हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘ऑल्ट न्यूज़ को किये जाने वाले इस वित्तपोषण की जांच दिल्ली पुलिस भी कर रही है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे अपना बचाव कैसे करना चाहिए। जब मेरे खिलाफ संज्ञेय अपराध का प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है तो मेरे पास अपना बचाव करने के लिए संसाधन नहीं हो सकते। इसलिए, मैं अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग कर रहा हूं।”

ग्रोवर ने शुरूआत में पीठ के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि वह दिल्ली में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध नहीं कर रही। उन्होंने बाद में कहा कि वह अपने किसी भी कानूनी उपाय का अनुरोध नहीं कर रही हैं और कानून के तहत जो भी उपलब्ध है, उसका लाभ उठाएंगी।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में दर्ज इन प्राथमिकी का आधार ऐसा है कि जब कोई अदालत राहत देती है तो एक निष्क्रिय एफआईआर सक्रिय हो जाती है और जुबैर को नोटिस दिया जाता है।

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि याचिकाकर्ता पत्रकार नहीं है और आरोप लगाया कि ‘‘वह दुर्भावनापूर्ण ट्वीट करके नाम कमा रहा है। ट्वीट जितने दुर्भावनापूर्ण होते हैं, उतना अधिक भुगतान उसे मिलता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘उन्होंने स्वीकार किया है कि उन्हें उनके ट्वीट के लिए 2 करोड़ रुपये मिले हैं। वह कोई पत्रकार नहीं हैं।’’ उन्होंने कहा कि यहां एक व्यक्ति है जो अभद्र भाषा के वीडियो का फायदा उठाता है और सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने के लिए उन्हें वायरल करता है।

प्रसाद ने कहा कि ट्विटर पर 2.5 लाख फॉलोअर्स से, जुबैर के फॉलोअर्स इस तरह के वीडियो ट्वीट करने के कारण पांच लाख हो गए हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में दर्ज कुछ प्राथमिकी दिल्ली में दर्ज की गई प्राथमिकी से पहले की हैं और कुछ बाद की हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक एसआईटी का गठन किया था क्योंकि यह एक गंभीर मामला था और यह सुनिश्चित करने के लिए था कि स्थानीय पुलिस कठोर रवैया नहीं अपनाये। इसका नेतृत्व आईजी रैंक के अधिकारी कर रहे हैं और डीआईजी इसके सदस्य हैं। राज्य सरकार का प्रयास राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना है।’’

जुबैर को दिल्ली पुलिस ने 27 जून को एक ट्वीट से धार्मिक भावनायें आहत करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उनके ट्वीट पर उत्तर प्रदेश में उनके खिलाफ कई प्राथमिकी दर्ज की गईं।

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