न न, आजाद की उम्र पाला बदल की नहीं, फिर क्या है ये आंसुओं डूबी राजनीति?

राजनीति की आजाद खयाली:मोदी ने दो दिन में दो आजाद से दो राज्यों को साधा; पहले से बंगाल और दूसरे से कश्मीर पर नजर

गुलाम नबी आजाद ने पिछले साल कांग्रेस हाईकमान पर सवाल उठाए थे
राहुल गांधी गुलाम नबी पर भाजपा से सांठगांठ के आरोप तक लगा चुके हैं

लगातार दो दिन से मोदी की जुबान में आजाद शब्द आ चिपका है। सोमवार को आजाद हिंद फौज और उसके पहले प्रधानमंत्री सुभाष चंद्र बोस का जिक्र। मंगलवार को गुलाम नबी आजाद का हवाला। जगह एक ही- संसद में राज्यसभा। और समय भी एक सा… करीब साढ़े दस बजे।

मंगलवार सुबह प्रधानमंत्री राज्यसभा में खड़े हुए। मौका जम्मू-कश्मीर के चार सांसदों को विदाई देने का था। ये राज्यसभा से रिटायर हो रहे हैं। मोदी ने एक-एक कर गुलाम नबी आजाद, शमशेर सिंह, मीर मोहम्मद फयाज और नजीर अहमद का नाम लिया और शुभकामनाएं दीं।

मोदी 16 मिनट बोले, इनमें से 12 मिनट आजाद पर बात रखी। इतने भावुक हुए कि रो दिए, आंसू पोंछे, पानी पिया। करीब 6 मिनट तक सिसकियां लेते हुए आजाद से अपने संबंधों को याद करते रहे।

इन दो दिनों के भाषण में 3 बड़ी बातें भी छिपी हैं। शब्द एक है- आजाद। लेकिन इसमें बंगाल से कश्मीर तक की राजनीति शामिल है। एक-एक करके देखते हैं…

1. आजाद का बगीचा कश्मीर घाटी की याद दिलाता है

मोदी बोले- गुलाम नबी आजाद देश की फिक्र परिवार की तरह करते हैं। उनका बगीचा, कश्मीर घाटी की याद दिलाता है। आजाद दल की चिंता करते थे, लेकिन वे देश और सदन की उतनी ही चिंता करते थे। ये छोटी बात नहीं है।

2. मेरे द्वार आपके लिए हमेशा खुले रहेंगे

मोदी बोले- व्यक्तिगत रूप से मेरा उनसे आग्रह रहेगा कि मन से मत मानो कि आप इस सदन में नहीं हो। आपके लिए मेरे द्वार हमेशा खुले रहेंगे। आपके विचार और सुझाव बहुत जरूरी हैं। अनुभव बहुत काम आता है। आपको मैं निवृत्त नहीं होने दूंगा।

3. आजाद हिंद फौज के प्रथम प्रधानमंत्री

मोदी ने सोमवार को कहा था- यह कोटेशन आजाद हिंद फौज की प्रथम सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस का है। भारत का राष्ट्रवाद न तो संकीर्ण है, न स्वार्थी है और न ही आक्रामक है। यह सत्यम, शिवम, सुंदरम से प्रेरित है।

आजाद और कांग्रेस के बीच सबकुछ ठीक नहीं-

राहुल ने आजाद पर भाजपा से साठगांठ का आरोप लगाया था

गुलाम नबी आजाद कांग्रेस हाईकमान से नाराज बताए जा रहे हैं। पिछले साल अगस्त में तो एक वक्त ऐसा आ गया था, जब राहुल गांधी ने उन पर भाजपा से साठगांठ तक का आरोप लगा दिया था। कहा था- ‘पार्टी के कुछ लोग भाजपा की मदद कर रहे हैं।’ इस पर आजाद ने इस्तीफे की पेशकश तक कर डाली थी। आजाद ने कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन और संगठन चुनाव को लेकर सोनिया गांधी को चिट्‌ठी लिखी थी।

आजाद कब क्या बोले…

पहली बार: अगर पार्टी में चुनाव नहीं हुए तो 50 साल तक हम विपक्ष में बैठेंगे

आजाद ने पिछले साल 29 अगस्त को कहा था कि ‘जो लोग पार्टी में चुनाव का विरोध कर रहे, वे अपना पद जाने से डर रहे हैं। कई दशकों से पार्टी में चुनी हुई इकाइयां नहीं हैं। हमें 10-15 साल पहले ही ऐसा कर लेना था। पार्टी यदि अगले 50 साल तक विपक्ष में बैठना चाहती है, तो पार्टी के अंदर चुनावों की जरूरत नहीं है।’

दूसरी बार: चुनाव 5 स्टार कल्चर से नहीं जीते जाते
आजाद ने पिछले साल 22 नवंबर को बिहार चुनाव के नतीजों को लेकर पार्टी पर सवाल उठाए थो। उन्होंने कहा था कि चुनाव 5 स्टार कल्चर से नहीं जीते जाते। हम बिहार और उप चुनावों के नतीजों से चिंतित हैं।

मोदी के भाषण के राजनीतिक मायने

कांग्रेस के अंदर आजाद को लेकर संदेह पैदा हो सकता है
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन कहते हैं कि यह मोदी का आजाद को खुश करने का प्रयास हो सकता है, लेकिन आजाद उम्र के इस पड़ाव पर अब पाला नहीं बदलेंगे। हां, मोदी का मकसद हो सकता है कि वे कांग्रेस के अंदर संदेह पैदा कर दें, क्योंकि आजाद कुछ समय से पार्टी में साइड लाइन हैं। कांग्रेस के अंदर खटपट भी जारी है। राहुल कामयाब होते तो ये लोग पहले ही किनारे हो गए होते।

मोदी के बोल आजाद के व्यवहार की जीत है

राज्यसभा टीवी में वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि आजाद कांग्रेस को छोड़कर कभी नहीं जाएंगे। जब आजाद को दिल्ली से काटने के चक्कर में जम्मू-कश्मीर का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भेजा गया था, तब संयोग से ही सही, वे वहां मुख्यमंत्री बन गए। मोदी ने आजाद पर जो चारा फेंका है, वो दरअसल राज्यसभा में कांग्रेस का साथ लेने के लिए है। साथ ही मल्लिकार्जुन खड़गे को भी नरम करना चाह रहे होंगे, क्योंकि अभी राज्यसभा में खड़गे का बोलना बाकी है। मोदी ने सोमवार को भी संसद में आजाद की तारीफ की थी। मोदी ने जो उनके बारे में बोला है ये आजाद के व्यवहार की जीत है.

मोदी के बाद आजाद के भी आंसू छलके:आतंकी हमले में लोगों की मौत पर बोले- एयरपोर्ट पर बच्चे मेरे पैरों से लिपट गए, मैं चीख पड़ा- या खुदा, ये तुमने क्या किया ।

राज्यसभा में मंगलवार को जिस आतंकी घटना का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी रो पड़े, उसी घटना को याद कर गुलाम नबी आजाद भी भावुक हो गए। आंसू उनके भी छलक पड़े। गुलाम नबी ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकी हमले में जब गुजरात के पर्यटकों की मौत हुई तो उन पर क्या गुजरी थी। गुलाम नबी की बातें जस की तस…

‘नवंबर 2005 में सीएम बना.. उसके बाद जब दरबार कश्मीर में खुला तो मेरा स्वागत गुजरात के मेरे भाई-बहनों की कुर्बानी से हुआ। वहां मिलिटेंट्स का स्वागत करने का यही तरीका था। वे बताना चाहते थे कि हम हैं, गलतफहमी में न रहना। निशात बाग में एक बस पर लिखा था कि वो गुजरात से है। उसमें 40-50 गुजराती टूरिस्ट सवार थे। उसमें ग्रेनेड से हमला हुआ। एक दर्जन से ज्यादा लोग वहीं हताहत हुए। मैं फौरन वहां पहुंचा। मोदीजी ने डिफेंस मिनिस्टर से बात की, मैंने प्रधानमंत्रीजी से बात की।’

‘जब मैं एयरपोर्ट पर पहुंचा तो किसी की मां, किसी के पिता मारे गए थे। वे बच्चे रोते-रोते मेरी टांगों से लिपट गए, तो जोर से मेरी भी आवाजें निकल गईं… या खुदा, ये तुमने क्या किया। मैं कैसे जवाब दूं उन बच्चों को, उन बहनों को, जो यहां सैर और तफरीह के लिए आए थे और आज मैं उनके माता-पिता की लाशें लेकर उनके हवाले कर रहा हूं।’ (यह कहते-कहते आजाद भावुक हो गए)

‘आज हम अल्लाह से, भगवान से यही दुआ करते हैं कि इस देश से मिलिटेंसी खत्म हो जाए, आतंकवाद खत्म हो जाए। सिक्युरिटी फोर्सेस, पैरामिलिट्री और पुलिस के कई जवान मारे गए। क्रॉस फायरिंग में कई सिविलियंस मारे गए। हजारों माएं और बेटियां बेवा हैं। कश्मीर के हालात ठीक हो जाएं।’

मोदी और शाह से कहा- कश्मीर को आप फिर आशियाना बनाएं

आजाद ने आगे कहा- ‘कश्मीरी पंडित भाई-बहनों के लिए एक शेर कहना चाहता हूं। मैं जब यूनिवर्सिटी में जीतकर आता था, तब कश्मीरी पंडित मुझे सबसे ज्यादा वोट देते थे। मुझे अफसोस होता है, जब मैं अपने क्लासमेट्स से मिलता हूं। क्योंकि वे कश्मीरी पंडित हैं, जो घर से बेघर हो गए। उनके लिए शेर- गुजर गया वो छोटा सा जो फसाना था, फूल थे, चमन था, आशियाना था। न पूछ उजड़े नशेमन की दास्तां, न पूछ कि चार तिनके मगर आशियाना तो था।

आप दोनों (मोदी और शाह) यहां बैठे हैं, आप फिर उसे आशियाना बनाएं। हम सभी को प्रयास करना है। दिल नाउम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है, लंबी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है। बदलेगा न मेरे बाद भी मौजूं-ए-गुफ्तगू, मैं जा चुका होऊंगा, फिर भी तेरी महफिल में रहूंगा।’

आजाद ने नायडू-मोदी का शुक्रिया अदा किया

आजाद ने आगे कहा, ‘चेयरमैन साहब (वेंकैया नायडू), जब आप अपनी पार्टी के अध्यक्ष बने, तब आपसे बात होती थी। जब आप मंत्री बने, तब भी बात थी। चेयरमैन बनने से पहले आप संसदीय कार्य मंत्री थे, तब भी बात होती थी। जिस तरह का आशीर्वाद, प्रेम चेयरमैन के तौर पर मिला, जो गाइडेंस मिला, उसका हमेशा कर्जदार रहूंगा। आपका धन्यवाद देता हूं। माननीय प्रधानमंत्री जी। कई दफा टोका-टोकी हुई। आपने कभी बुरा नहीं माना। जब मैं विपक्ष का नेता रहा तो लंबी-लंबी स्पीचें आपकी और मेरी हुईं। खासकर राष्ट्रपति के अभिभाषण पर लंबी तकरीरें होती थीं, कभी हम विपक्ष के नेता के नाते कुछ कहते थे, लेकिन आपने व्यक्तिगत तौर पर कभी इसे अपने खिलाफ नहीं लिया। आपने हमेशा व्यक्तिगत संदर्भ और पार्टी को अलग-अलग रखा।’

ईद-दिवाली पर सोनिया-मोदी के फोन जरूर आते थे
गुलाम नबी ने कहा- ‘ईद हो, दिवाली हो, जन्मदिन हो, उसमें आप बराबरी से बात करते थे। दो लोगों को सबसे पहले फोन आता था। एक आप और एक कांग्रेस प्रेसिडेंट मिसेज गांधी। आपने हमेशा बताया कि कोई काम हो तो जरूर बताना। (हंसते हुए बोले) जब मैं राज्यसभा का चुनाव लड़ रहा था, तब भी आपका फोन आया कि आपको कोई जरूरत है। मैंने कहा कि ये तो लड़ाई है। आपका भी कैंडिडेट है। इसमें आप कुछ नहीं कर सकते। …ये पर्सनल टच होता है। इससे आदमी भावुक हो जाता है। जब मैं पहली बार मंत्री बना, तब से आज तक मेरे विपक्ष से संबंध रहे हैं। हम मिलकर देश को चला सकते हैं, गालियां देकर नहीं चला सकते।’

‘मैं डिप्टी चेयरमैन साहब का भी धन्यवाद देता हूं। बहुत सिम्पल और स्ट्रेट फॉरवर्ड हैं। शरद पवार जी, यादव जी, सभी नेताओं का बहुत धन्यवाद देता हूं। लेफ्ट, राइट और सेंटर, सभी का धन्यवाद। इंशाअल्लाह, हम मिलते रहेंगे, भले ही यहां न मिल पाएं। जाते-जाते एक शेर आप लोगों के लिए कहता हूं- नहीं आएगी याद तो बरसों नहीं आएगी, मगर जब याद आएगी तो बहुत याद आएगी.

 

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