अफगानिस्तान पर भारत चौकन्ना क्यों? तालिबान की किसी बात का भरोसा नहीं

अफगानिस्तान के हालात कश्मीर के लिए खतरे की घंटी या बदल गया है तालिबान, समझें

अफगानिस्तान में तालिबान का काबिज होना भारत के लिए खतरे की घंटी है या अबकी बार बदला-बदला सा दिख रहा तालिबान हमारे लिए चिंता का सबब नहीं है? वैसे तो तालिबान कश्मीर पर अपना रुख साफ करते हुए कह चुका है कि यह भारत का आंतरिक मामला है लेकिन सवाल है कि क्या उसके इस बयान पर भरोसा किया जा सकता है।

हाइलाइट्स
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद भारत हुआ चौकन्ना, कश्मीर में और बढ़ सकती है चौकसी
सूत्रों के मुताबिक, अफगानिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा, लश्कर-ए-झांगवी जैसे पाकिस्तानी आतंकी संगठनों की भी मौजूदगी
इस बार तालिबान मजबूत होकर सत्ता में आया है लिहाजा उस पर आईएसआई या पाकिस्तानी आतंकी संगठनों का जोर नहीं होगा
तालिबान पहले ही कश्मीर पर अपना रुख साफ कर चुका है, वह इसे भारत का अपना मामला मानता है

नई दिल्ली 17 अगस्त।अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद भारत चौकन्ना है। मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफगानिस्तान के ताजा हालात पर चर्चा के लिए कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्यॉरिटी की बैठक की। इसमें पीएम के अलावा गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शामिल हुए। तालिबान भले ही कह चुका हो कि कश्मीर से उसका कोई लेना-लेना नहीं है, यह भारत का आंतरिक मसला है लेकिन उसके अतीत को देखते हुए इस बयान पर भरोसा करना मुश्किल है।

पड़ोस में तेजी से बदले हालात के मद्देनजर उम्मीद है कि भारत कश्मीर में और चौकसी बढ़ाएगा। शीर्ष सूत्रों ने न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और लश्कर-ए-झांगवी की थोड़ी बहुत मौजूदगी है। उन्होंने तालिबान के साथ मिलकर काम भी किया है लेकिन इसके बावजूद ये पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन हालात का अपने हिसाब से इस्तेमाल करने की स्थिति में नहीं हैं। एक सूत्र ने बताया कि कश्मीर में भारत की तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था है।

सूत्रों ने बताया कि इस बात की आशंका कम ही है कि तालिबान का फोकस कश्मीर पर होगा। तालिबान ने पहले ही कश्मीर पर अपना रुख स्पष्ट कर चुका है। वह इसे द्विपक्षीय, आंतरिक मसला मानता है और इस बात के इमकान कम हैं कि वह कश्मीर पर फोकस करेगा।

अतीत में पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के अफगानिस्तान में कैंप थे। कांधार विमान अपहरण कांड भी तालिबान के राज में ही हुआ था। बिना उनकी संलिप्तता के यह संभव भी नहीं था। एक सूत्र ने एएनआई से कहा, ‘लश्कर-ए-तैयबा और लश्कर-ए-झांगवी जैसे पाकिस्तानी आतंकी संगठनों की अफगानिस्तान में थोड़ी मौजूदगी है। इन संगठनों ने कुछ गांवों और काबुल के कुछ हिस्सों में तालिबान के साथ अपने चेक पोस्ट भी बनाए हैं।

भारत को चिंता है कि अफगानिस्तान इस्लामिक आतंकवाद की धुरी बन सकता है। एक ऐसी जगह जहां आतंकियों के हाथ में पूरे देश की बागडोर हो। अतीत में आईएसआईएस और अल कायदा ने भी सरकार बनाने की कोशिश की थी लेकिन वे फेल रहे। इस बात की आशंका है कि सुन्नी और वहाबी आतंकवादी तालिबान को अपने एक पनाहगाह में तब्दील कर देंगे।

एक सूत्र ने एएनआई को बताया, ‘तालिबान के पास उन सभी हथियारों तक पहुंच हो चुकी है जिन्हें अमेरिका ने सप्लाई की थी। इसके अलावा 3 लाख से ज्यादा जवानों वाली अफगान सेना और वायुसेना के हथियार भी अब उनके हैं।

सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के तालिबान के नेताओं से अच्छे रिश्ते हैं और वे उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करेंगे। हालांकि, आईएसआई इस स्थिति में नहीं हैं कि अपना असर डाल सकें क्योंकि इस बार तालिबान की स्थिति मजबूत है। केवल कमजोर तालिबान पर ही आईएसआई का वश चल सकता है।

अतीत में भारत ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी थी। सूत्रों के मुताबिक, इस बार भारत जल्दबाजी में नहीं है। वह देखो और इंतजार करो की नीति पर चल रहा है। एक सूत्र ने बताया, ‘भारत वेट ऐंड वॉच की रणनीति अपनाएगा। वह देखेगा कि सरकार कितनी समावेशी है और तालिबान किस तरह का व्यवहार करता है। भारत यह भी देखेगा कि दूसरे लोकतांत्रिक देश तालिबान की सत्ता को लेकर क्या प्रतिक्रिया देते हैं।’

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