आगरा किला मस्जिद की सीढ़ियों से निकलवायें श्रीकृष्ण मूर्त्तियां, अगली सुनवाई 10 को

मथुरा की अदालत में फिर उठी मस्जिद की सीढ़ियों से भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियाँ निकलवाने की माँग: 10 मई को अगली सुनवाई

आगरा का जामा मस्जिद (फाइल फोटो)

मथुरा की अदालत में एक बार फिर से सन् 1670 में ध्वस्त किए गए श्रीकृष्ण मंदिर की मूर्तियों को आगरा फोर्ट की मस्जिद से निकलवाने की माँग की गई है। यह माँग श्रीकृष्ण विराजमान के माध्यम से श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ जमीन को लेकर किए गए दावे के वादी शैलेंद्र सिंह व अन्य ने की है।

सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में दिए गए प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि इतिहासकारों का मानना है कि केशव राय निवासी लला कटरा मथुरा द्वारा 33 लाख रुपए की लागत से बनवाए गए भव्य मंदिर को औरंगजेब ने जनवरी 1670 में ध्वस्त करा दिया था और मंदिर की प्रतिमाओं को मंदिर से निकाल कर छोटी मस्जिद दीवाने खास जामा मस्जिद आगरा फोर्ट में दफना दी थीं। जिससे उस पर पैर रखकर मुसलमान चढ़कर जाएँ और दुआ माँग सकें।

आवेदकों के अनुसार, कई इतिहासकारों का कहना है कि जेल (जहाँ भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था) की जगह पर ईदगाह मौजूद है। आवेदन में पिछले सप्ताह वाराणसी की एक अदालत द्वारा पारित आदेश का हवाला दिया गया, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद के एएसआई सर्वेक्षण को यह पता लगाने की अनुमति दी गई थी कि क्या यह मस्जिद ध्वस्त काशी विश्वनाथ मंदिर के ऊपर बनाया गया था।

वादी शैलेंद्र सिंह ने बताया कि उन्होंने अदालत से माँग की है कि डायरेक्टर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को वैज्ञानिक अन्वेषण करके प्रतिमाओं का उत्खनन कर उन्हें पुन: स्थापित करने का आदेश दिया जाए। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 10 मई की तारीख तय की है।

गौरतलब है कि पिछले दिनों श्रीकृष्ण जन्मस्थान वाद में अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने एक प्रार्थना पत्र दिया था। उन्होंने औरंगजेब द्वारा मथुरा के केशवदेव मंदिर को ध्वस्त कर वहाँ की रत्नजड़ित प्रतिमाओं, भगवान श्रीकृष्ण व अन्य विग्रहों को आगरा किला के दीवान-ए-खास की छोटी मस्जिद की सीढ़ियों में दबाने की बात कही थी। उन्होंने अदालत से माँग की थी कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) या अन्य सक्षम संस्था से वैज्ञानिक ढंग से अन्वेषण कराकर प्रतिमाएँ निकलवाई जाएँ। वहाँ से निकली प्रतिमाओं को श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर के किसी भाग में सुरक्षित रखवाया जाए.

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