नेटो ने यूक्रेन पर नो फ्लाई जोन की मांग क्यों ठुकराई?

रूस-यूक्रेन जंग: नो-फ़्लाई ज़ोन क्या होता है, जिसकी मांग कर रहे हैं ज़ेलेंस्की

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की अपने पिछले कई वीडियो पोस्ट्स में यूक्रेन में नो फ़्लाई ज़ोन बनाने की अपील कर चुके हैं.

अपनी एक अपील में उन्होंने कीएव के दक्षिण-पश्चिम में बसे शहर विनितस्या के नागरिक हवाई अड्डे के पूरी तरह ध्वस्त होने की बात कही थी. साथ ही सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट करते हुए उन्होंने दुनिया के नेताओं से यूक्रेन में नो फ्लाई ज़ोन बनाने की अपील दोहराई थी.

इस पोस्ट में उन्होंने कहा था कि लोगों को बचाना दुनिया के नेताओं का मानवीय दायित्व है.

उन्होंने कहा था, ”अगर आप ऐसा नहीं करते और अपनी रक्षा करने के लिए हमें लड़ाकू विमान भी नहीं देते तो इसका एक ही निष्कर्ष निकला जा सकता है और वो ये कि आप भी चाहते हैं कि धीरे-धीरे हम मार दिए जाएं. ”

नेटो देश अब तक यूक्रेन के ऊपर नो-फ़्लाई ज़ोन बनाने की बात ख़ारिज करते आए हैं

सोमवार को यूक्रेन के राष्ट्रपति ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि अगर अमेरिका और पश्चिमी सहयोगी देश अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी निभाएं तो उनका देश यूक्रेन, रूस की आक्रामकता का पूरी तरह से सामना कर सकता है और यहाँ तक की उसे हरा भी हरा सकता है.

ज़ेलेंस्की ने एक्सियोस न्यूज़ को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि रूस पर जो प्रतिबंध, जिस इरादे से लगाए गए हैं, वो बिल्कुल सही दिशा में जा रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि रूस के कई बैंकों को स्विफ़्ट सिस्टम से हटाने का फ़ैसला, साथ ही यूक्रेन को और अधिक स्टिंगर मिसाइल, एंटी टैंक हथियार देने का फ़ैसला सब कुछ सही दिशा में है. इसके अलावा हम पश्चिमी देशों से चाहते हैं कि वे यूक्रेन के महत्वपूर्ण हिस्सों के ऊपर नो-फ़्लाई ज़ोन लगाएं.

अपने बयान में उन्होंने आगे कहा था, “हम आक्रामकता को हरा सकते हैं और हम दुनिया को यह साबित भी कर रह रहे हैं लेकिन हमारे सहयोगियों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी.”

हालांकि नेटो ने शुक्रवार को ही उनके इस अनुरोध को आधिकारिक रूप से ख़ारिज कर दिया था.

नेटो ने ख़ारिज किया नो-फ़्लाई ज़ोन का अनुरोध

नेटो के महासचिव जेन्स स्टोलेनबर्ग ने इससे पहले चेतानवी देते हुए कहा था कि अगर नो-फ़्लाई ज़ोन लागू किया गया तो इससे रूस के साथ नेटो देशों का सीधा संघर्ष शुरू हो जाएगा. साथ ही इससे होने वाली मानव-त्रासदी बहुत भयावह होगी.

वहीं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी अपनी ओर से यह स्पष्ट कर चुके हैं कि अगर इस तरह की कोई भी कार्रवाई की जाती है तो इसे सीधे संघर्ष में भागीदारी के तौर पर लिया जाएगा.

साथ ही अमेरिकी अधिकारियों की ओर से भी भी हाल के दिनों में कहा गया है कि राष्ट्रपति जो बाइडन भी इस तरह के किसी ज़ोन के पक्षधर नहीं है.

वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति ने एक सवाल के जवाब में प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि आज गठबंधन नेतृत्व ने नो-फ़्लाई ज़ोन बनाने से मना करके यूक्रेन के शहरों और कस्बों पर बमबारी करने के लिए उन्हें(रूस) ग्रीन सिग्नल दे दिया है.

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने नेटो पर नो-फ़्लाई ज़ोन न घोषित करने के लिए उसकी आलोचना की थी और इसे ‘कमज़ोरी’ और ‘एकता का अभाव’ बताया था.

लेकिन खुलेतौर पर यूक्रेन का साथ देने के बावजूद, यूक्रेन में मची तबाही को देखने के बावजूद पश्चिमी सहोयगी देश नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करने से इनकार क्यों कर रहे हैं?

क्या होता है नो-फ़्लाई ज़ोन

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सरकारी विमान कंपनी एयरोफ़्लोट के फ़्लाइट अटेंडेंट के साथ बैठक के दौरान कहा था कि कोई भी देश अगर यूक्रेन पर नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करता है तो उसे यूक्रेन में युद्ध में शामिल माना जाएगा.

रूसी राष्ट्रपति ने कहा, “इस दिशा में किसी भी उठाए गए क़दम को हम मानेंगे कि वो उस देश में एक सशस्त्र विद्रोह में शामिल हो रहा है.”

आसान शब्दों ने समझें तो नो फ़्लाई ज़ोन ऐसे स्थान विशेष को परिभाषित करता है, जहाँ यह सुनिश्चित किया जाता है कि कुछ विमान उड़ान नहीं भर सकते हैं.

इसका इस्तेमाल संवेदनशील इलाक़ों की रक्षा के लिए किया जा सकता है. जैसे शाही-निवास स्थल, खेल-आयोजन या फिर कुछ विशेष और बड़े आयोजन लेकिन ये प्राय: अस्थायी रूप से ही लागू किया जा सकता है.

सेना के संदर्भ में नो फ़्लाई ज़ोन का मतलब होता है कि उस क्षेत्र में कोई भी विमान नहीं जा सकता है ताकि किसी हमले या निगरानी को रोका जा सके. लेकिन इसे सेना द्वारा लागू किया जाता है ताकि किसी विमान को संभावित रूप से गिराया जा सके.

यूक्रेन के राष्ट्रपति की मांग के अनुसार, नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करने का मतलब यह होगा कि सैन्य बल, ख़ासतौर पर नेटो की सेना को अगर उस हवाई क्षेत्र में रूस का कोई भी विमान नज़र आता है तो वे उसे सीधे लक्षित कर सकेंगे और अगर ज़रूरत पड़ी तो उसे नष्ट कर सकेंगे.

पश्चिमी देश क्यों कर रहे हैं परहेज़?

अगर नेटो, रूसी एयरक्राफ़्ट और हथियारों को लक्ष्य बनाती है तो इससे युद्ध के और भीषण होने की आशंका बढ़ जाएगी. इससे संघर्ष के और व्यापक होने का ख़तरा है.

नेटो के महासचिव स्टोल्टेनबर्ग ने शुक्रवार को कहा भी था, “हम मानते हैं कि अगर हम ऐसा करते हैं तो इससे एक संपूर्ण संघर्ष का आह्वान होगा. जिसमें कई दूसरे देश भी शामिल होंगे और बहुत मानव त्रासदी भी भयावह होगी.”

यह एक बड़ी वजह है, जिसके चलते एक ओर जहां पश्चिमी देश और संगठन एक के बाद एक रूस पर प्रतिबंध तो लगा रहे हैं लेकिन नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करने से परहेज़ कर रहे हैं. वे यूक्रेन-रूस युद्ध में नेटो को सीधे तौर पर शामिल नहीं कर रहे हैं. ना ज़मीनी स्तर पर और ना ही हवाई स्तर पर.

पूर्व अमेरिकी वायु सेना जनरल फ़िलिप ब्रीडलोव ने फ़ॉरन पॉलिसी पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में कहा, “आप सिर्फ़ यह नहीं कहते हैं कि ‘यह एक नो-फ़्लाई ज़ोन है. आपको बक़ायदा नो-फ़्लाई ज़ोन लागू भी करना होगा.”

जनरल ब्रीडलोव 2013 से 2016 तक नेटो के सर्वोच्च सहयोगी कमांडर के रूप में अपनी सेवा दे चुके हैं. वह मानते हैं कि यूक्रेन के नो-फ़्लाई ज़ोन की मांग का समर्थन करना सिर्फ़ नेटो के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बेहद गंभीर फ़ैसला होगा.

वह कहते हैं, “ऐसा करना सीधे तौर पर एक संपूर्ण युद्ध को न्योता देने जैसा है.”

ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वालास ने स्पष्ट किया है कि ब्रिटेन यूक्रेन पर नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करने की मांग की मांग का समर्थन नहीं करता है क्योंकि रूसी विमानों को साधने का मतलब है- “पूरे यूरोप में युद्ध” छिड़ जाना.

अमेरिका ने भी कमोबेश इसी तरह के कारण देते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति की मांग को ख़ारिज कर दिया है.

इसके अलावा रूस के साथ संघर्ष बढ़ाने का एक ख़तरा परमाणु हथियारों के तौर पर भी है. यह ख़तरा इसलिए भी गंभीर है क्योंकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने देश की न्यूक्लियर फ़ोर्सज़ को ‘स्पेशल अलर्ट’ पर रखा है. उनके इस क़दम से दुनिया भर में चिंता जताई जा रही है.

लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि पुतिन का ये क़दम शायद यूक्रेन के साथ उनकी जंग में अन्य किसी देश को शामिल होने से रोकने के लिए है. इसे परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की इच्छा का संकेत नहीं माना जाना चाहिए.

लेकिन विश्व युद्ध के छिड़ने का एक छोटा सा संकेत भी परमाणु युद्ध की आशंका को बढ़ा सकता है और यूक्रेन पर नो-फ़्लाई ज़ोन लागू करना उसके लिए बीजारोपण करने जैसे हो सकता है.

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