वनाग्नि नियंत्रित क्यों नहीं हो रही उत्तराखण्ड में?

उत्तराखंड में क्यों नहीं थम रही है जंगलों की आग?

उत्तराखंड के पौड़ी ज़िले में रविवार को जंगल में लगी आग थापली गांव के नज़दीक तक पहुंच गई थी.
65 वर्षीय सावित्री देवी घर के पास रखे घास का ढेर बचाने दौड़ीं लेकिन इस कोशिश में बुरी तरह झुलस गईं. उन्हें पहले ज़िला अस्पताल और फिर एम्स ऋषिकेश लाया गया लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका.

सावित्री देवी समेत जंगलों की आग अब तक राज्य में पांच लोगों की जान ले चुकी और चार लोग घायल हुए हैं.

छह मई की शाम तक जंगल में आग लगने की कुल 930 घटनाएं दर्ज की गईं जिनसे 1196 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है. बागेश्वर, टिहरी, उत्तरकाशी, पौड़ी समेत कई जगहों में धुएं से विज़िबिलिटी कम हो गई है. .

राज्य सरकार जंगलों में लगी आग को बुझाने के लिए एनडीआरएफ़ और एयरफ़ोर्स तक की मदद ले रही है लेकिन जंगलों का धधकना कम नहीं हो रहा है।
टिहरी के लम्बगांव के गांव बौंसाडी में स्थानीय महिलाओं ने जंगल की आग पर काबू पाया
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर उत्तराखंड का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें पीछे धधकते जंगल के आगे खड़े होकर दो युवक दावा कर रहे हैं कि उन्होंने यह आग लगाई है और उनका काम आग से खेलना है. यह वीडियो चमोली के गैरसैंण इलाके का था.

चमोली के डीएफ़ओ सर्वेश दुबे ने बताया कि उन युवकों ने (जिनकी पहचान हो चुकी है) गैरसैंण की जंगी वन पंचायत के जंगल में आग लगाई और अपनी बहादुरी दिखाने को वीडियो बनाकर इंस्टाग्राम पर डाल दिया.

वीडियो वायरल होने पर चमोली के एक रेंजर ने जंगल पहचान लिया क्योंकि उन्हीं ने वह आग नियंत्रित की थी.

18 अप्रैल की इस घटना में एफ़आईआर दो दिन पहले ही लिखी गई थी जिसके बाद अभियुक्तों की गिरफ़्तारी की गई.

दुबे कहते हैं कि अगर यह आग बुझाई न जाती तो इससे जान-माल का बहुत ज़्यादा नुक़सान हो सकता था. कितना नुक़सान हुआ, इसका अभी आकलन किया जा रहा है.

चमोली के पुलिस अधीक्षक सर्वेश पंवार ने बताया कि वीडियो वायरल होने पर चमोली में निर्माण मज़दूरी
कर रहे इन युवकों को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया है.

उन्होंने बताया कि वन कानून के अलावा इन युवकों पर सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने का भी मुकदमा लिखा गया है,जिसमें 7 साल से ज़्यादा तक की सज़ा मिल सकती है.

बता दें कि एक नवंबर,2023 से अब तक 383 वनापराध मुकदमें लिखे जा चुके हैं,जिनमें से 60 के ख़िलाफ़ नामांकित रपट है.

उत्तराखंड वन विभाग के अनुसार वनाग्नि के 95 प्रतिशत मामलों के लिए मानवीय हस्तक्षेप ज़िम्मेदार होता है, चाहे आग जानबूझकर लगाई जाए या लापरवाही इसकी वजह हो.

उत्तराखंड शासन अब ऐसे सभी मामलों में और सख़्ती बरतने जा रहा है.

हेलीकॉप्टर से गिरा रहे पानी, क्लाउड सीडिंग पर विचार

पौड़ी के डोभ श्रीकोट के जंगल में वायुसेना के हेलीकॉप्टर से वनाग्नि पर पानी गिराया गया
राज्य की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने सोमवार को सचिवालय में एक उच्च स्तरीय बैठक की.

बैठक के बाद प्रेस वार्ता में उन्होंने बताया कि जंगल की आग के नियंत्रण में लापरवाही बरतने पर अल्मोड़ा वन प्रभाग में रेंज अधिकारी, जोरासी को प्रभागीय कार्यालय स्तर पर सम्बद्ध किया गया है.

उन्होंने वन अधिकारियों को निर्देश दिए कि इसमें लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों, कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए.

बैठक के बाद आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में डीजीपी अभिनव कुमार ने बताया कि फॉरेस्ट एक्ट, वाइल्ड लाइफ़ एक्ट के साथ पब्लिक प्राइवेट प्रॉपर्टी डैमेज रिकवरी एक्ट के तहत भी कार्यवाही की जाएगी.

जो लोग बार-बार इस प्रकार की घटनाओं में लिप्त पाए जाते हैं उनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्यवाही की जाएगी तथा दोषियों की सम्पति भी ज़ब्त करने की कार्यवाही की जाएगी.

उत्तराखंड वन विभाग में वनाग्नि और आपदा प्रबंधन के इंचार्ज अपर प्रमुख वन संरक्षक निशान्त वर्मा ने बताया कि वन विभाग के मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों को जनपद स्तरीय नोडल अधिकारी नामित कर दिया गया है तथा ऐसे सभी अधिकारी अपनी तैनाती के स्थान के लिए निकल गए हैं.

जिलाधिकारियों ने खेतों में चारे आदि को जलाने तथा शहरी क्षेत्रों पर ठोस कचरे को जलाने पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध का आदेश पारित कर दिया है. वन विभाग में कार्यरत लगभग 4000 फायर वाचर्स की इन्शोरेन्स की कार्यवाही शुरू हो गई है.

वर्मा ने बतााया कि वनाग्नि से सर्वाधिक प्रभावित पौड़ी और अल्मोड़ा जिलों में एनडीआरएफ़ की भी मदद ली जाएगी.

सोमवार को पौड़ी में एयरफ़ोर्स के हैलिकॉप्टर से वनाग्नि प्रभावित इलाकों में पानी का छिड़काव किया गया. इसके अलावा आईआईटी रूड़की के साथ क्लाउड सीडिंग के प्रस्ताव पर भी विचार किया जा रहा है.

क्या जंगल की आग को रोका जा सकता है?

बागेश्वर के फटगली में जंगलों में लगी आग बुझाते वनकर्मी
उत्तराखंड में हर साल सैकड़ों हेक्टेयर जंगल जल जाते हैं.

बीते 10 साल के वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि वनाग्नि की सबसे ज़्यादा घटनाएं और नुक़्सान 2021 में हुआ था.

उस साल वनाग्नि कि 2813 घटनाओं में कुल 3943.88 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ. 2021 में वनाग्नि से 10 साल में सबसे ज़्यादा, आठ लोगों की मौत हो गई थी और तीन घायल हुए थे.

इसके बाद 2022 में 2186 वनाग्नि की घटनाओं में 3425.5 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ और 2 लोगों की मौत हुई जबकि 7 घायल हो गए. 2018 में वनाग्नि की कुल घटनाएं तो 2150 हुईं लेकिन इनसे नुक़्सान सबसे ज़़्यादा 4480.04 हेक्टेयर वन क्षेत्र का हुआ.

इस साल 6 लोग घायल हुए. 2016 में आग लगने की 2074 घटनाएं हुईं और इनमें 4433.75 हेक्टेयर वन क्षेत्र का नुक़सान हुआ. 2016 में 6 लोग मारे गए थे और 31 घायल हो गए थे.

पिछले साल, 2023 में, वनाग्नि की 773 घटनाएं हुई थीं और इससे 933.55 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ था. वनाग्नि में 3 लोगों की मौत हो गई थी और तीन घायल हुए थे.

इनके उलट 2020 में कोविड-19 की वजह से लगे लॉकडाउन से वनों को सीधा लाभ मिलता दिखा. उस साल वनाग्नि की घटनाएं रिकॉर्ड कम, मात्र 135 हुईं और उनसे सिर्फ़ 172.69 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ. हालांकि उस साल भी 2 लोगों की मौत हो गई थी और एक घायल हुआ था.

क्या हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल कारगर होगा

वन विभाग के पूर्व प्रमुख श्रीकांत चंदोला कहते हैं, “सभी दिक्कतों के लिए तो मानवीय हस्तक्षेप ही ज़िम्मेदार है. गंगा-यमुना गंदी हो रही हैं और उन्हें इंसान ही गंदा कर रहे हैं क्या वह साफ़ हो गईं? वैसे जंगलों में लगने वाली आग, ज़्यादातर लापरवाही की वजह से लगती हैं.”

चंदोला कहते हैं कि पर्यावरण और वन हमारी प्राथमिकताओं में सबसे नीचे हैं. बजट का सिर्फ़ एक फ़ीसदी इन्हें मिलता है. फ़ायर सीज़न में भी वनकर्मियों की चुनाव में ड्यूटी लगाने की ख़बरों का ज़िक़्र करते हुए वह कहते हैं कि चुनावों की तारीखें तय करते हुए किसी ने इस बारे में सोचा तक नहीं होगा.

क्या हैलिकॉप्टर से आग बुझाने, क्लाउड सीडिंग से बारिश करवाने जैसे नए उपायों से वनाग्नि को रोका जा सकता है?

चंदोला कहते हैं, नहीं. इसकी सीमा है और अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी यह बहुत सफल नहीं है. गर्मी और ख़ुश्की लगातार बढ़ रही है और इसकी वजह से आग लगने-भड़कने की घटनाएं भी.

इस साल पारा 52 डिग्री पार कर जाए तो अचरज नहीं होगा.

जंगलों की आग को रोकना है तो धरती को गर्म होने से रोकना होगा, नई-नई गाड़ियों के लिए रेस को रोकना होगा.

बहुत आगे बढ़ लिए अब वापस लौटना होगा. प्रकृति को समझना होगा और उससे सामंजस्य बनाना होगा.

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