पांच महीने की बच्ची गोद में ले बस कंडक्टर की नौकरी बजाती मां को मिली दफ्तर की ड्यूटी

खबर का असर:5 माह की बच्ची को गोद में लेकर टिकट काटने वाली महिला कंडक्टर को मिला ऑफिस में काम, हर दिन 165 KM सफर करती

गोरखपुर डिपो में MST पटल पर मिली अनिश्चितकाल के लिए तैनाती
अखबारों ने गुरुवार को प्रमुखता से प्रकाशित किया था खबर

गोरखपुर 14फरवरी। गोरखपुर से पडरौना जाने वाली UP रोडवेज की बस में अब महिला कंडक्टर शिप्रा दीक्षित को अपनी 5 माह की बच्ची को गोद में लेकर टिकट नहीं काटना पड़ेगा। अफसरों ने उसकी तैनाती MST (मंथली सीजनल टिकट) पटल पर कर दी है। इस खबर को दैनिक भास्कर ने गुरुवार के अंक में प्रमुखता से प्रकाशन किया था। आज यानी शनिवार को शिप्रा दीक्षित ने अपने पटल के काम की जिम्मेदारी संभाली है।

गोरखपुर में बे-‘बस’ कंडक्टर की खुद्दारी:5 महीने की बच्ची को गोद में लेकर टिकट काटती है महिला कंडक्टर; नहीं मिल रही CCL, रोज 165 KM सफर करती है

अब शांति से कर पाऊंगी नौकरी

शिप्रा दीक्षित ने बताया कि जब अपनी 5 माह की मासूम बेटी निष्ठा के साथ यात्रियों की टिकट काटने के लिए बस में चढ़ी तो मुझे उसकी जिंदगी खतरे में दिखने लगी थी। मैंने अपने अधिकारियों से निवेदन किया था कि मुझे ऑफिस में ही कोई कार्य दे दिया जाए। लेकिन अफसरों ने नहीं सुना।

मीडिया में खबर चलने के बाद अधिकारी हरकत में आए और MST पटल पर अनिश्चितकाल के लिए तैनाती की गई है। शिप्रा ने बताया कि उन्हें शुक्रवार दोपहर विभाग से इस बाबत लेटर मिला। उसने कहा कि अब मैं अपनी बेटी के साथ यहां सुकून से नौकरी कर पाऊंगी।

शिप्रा दीक्षित कोरोना महामारी और कड़ाके की ठंड के बीच पांच माह की मासूम को गोद में लेकर गोरखपुर से पडरौना के बीच हर रोज 165 किलोमीटर बस में सफर करने के साथ टिकट काटने को मजबूर थीं।
शिप्रा दीक्षित कोरोना महामारी और कड़ाके की ठंड के बीच पांच माह की मासूम को गोद में लेकर गोरखपुर से पडरौना के बीच हर रोज 165 किलोमीटर बस में सफर करने के साथ टिकट काटने को मजबूर थीं।
मृतक आश्रित कोटे के तहत मिली थी नौकरी
दरअसल, गोरखपुर में मालवीय नगर की रहने वाली शिप्रा दीक्षित की उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग में मृतक आश्रित कोटे के तहत नौकरी मिली थी। साल 2016 में सीनियर एकाउंटेंट पिता पीके सिंह की आकस्मिक मौत के बाद हुई थी। शिप्रा ने बताया कि वे 25 जुलाई 2020 को मैटरनिटी लीव पर गई थीं। 21 अगस्‍त 2020 को उन्‍होंने बच्‍ची को जन्‍म दिया। 19 जनवरी 2021 में छुट्टी खत्‍म होने के बाद वे 25 जनवरी को काम पर लौटीं तो अधिकारियों ने उन्‍हें कार्यालय में काम पर लगा दिया।

लेकिन, दो दिन पहले उन्‍हें फिर से बस में परिचालक की ड्यूटी करने के लिए निर्देशित कर दिया गया। उन्‍होंने सीनियर अधिकारियों से गुहार लगाई थी कि कोरोना और ठंड में बच्‍ची छोटी होने की वजह से वे बस में जाने में सक्षम नहीं हैं। उन्‍हें कार्यालय में कहीं अटैच कर दिया जाए। लेकिन अधिकारियों ने उनकी नहीं सुनी। नौकरी छिन जाने के डर से वे पिछले दो दिनों से 5 माह की बच्‍ची को लेकर बस में नौकरी करने को मजबूर हुईं। यही वजह कि ब‍च्‍ची की तबियत भी खराब हो गई थी।

मूल खबर ये थी-

गोरखपुर में ‘बे’बस कंडक्टर की खुद्दारी:5 महीने की बच्ची को गोद में लेकर टिकट काटती है महिला कंडक्टर; नहीं मिल रही CCL, रोज 165 KM सफर करती

शिप्रा दीक्षित कोरोना महामारी और कड़ाके की ठंड के बीच पांच माह की मासूम को गोद में लेकर गोरखपुर से पडरौना के बीच हर रोज 165 किलोमीटर बस में सफर करने के साथ टिकट काटने को मजबूर हैं।
गोरखपुर डिपो में तैनात शिप्रा दीक्षित ने मुख्यमंत्री से किसी कार्यालय में अटैच करने की मांग की
अफसर बोले- विभाग में चाइल्ड केयर लीव का प्रावधान नहीं, प्रार्थना पत्र को आगे बढ़ा देंगे

गोरखपुर से पडरौना जाने वाली यूपी रोडवेज की बस में रोज एक महिला कंडक्टर गोद में 5 महीने की बच्ची को लेकर यात्रियों की टिकट काटती है। कड़ाके की सर्दी में भी बच्ची को अपनी गोद में लेकर रोज 165 किलोमीटर का सफर करती है। मजबूरियों से जूझती इस महिला कंडक्टर की हालत पर यात्रियों को तो तरस आ जाता है, लेकिन विभाग के अफसरों को नहीं आता। उसने विभाग से ऑफिस अटैच करने या चाइल्ड केयर लीव (CCL) देने की अपील की, जिसे ठुकरा दिया गया।

गोरखपुर में मालवीय नगर की रहने वाली शिप्रा दीक्षित उत्तर प्रदेश परिवहन निगम गोरखपुर डिपो में कंडक्टर हैं। उनकी जॉइनिंग साल 2016 में सीनियर एकाउंटेंट पिता पीके सिंह की आकस्मिक मौत के बाद हुई थी। शिप्रा ने रसायन विज्ञान से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। उनकी मानें तो उन्‍हें उनकी योग्‍यता के मुताबिक पद नहीं मिल पाया और न ही प्रमोशन ही मिल पा रहा है। वे कहती हैं कि वे खुद नहीं समझ पाईं कि उन्‍हें कंडक्टर के पद पर तैनाती क्‍यों दी गई? लेकिन, उन्‍हें मजबूरीवश नौकरी ज्‍वाइन करनी पड़ी।

21 अगस्त को बच्ची को दिया था जन्म

शिप्रा ने बताया कि वे 25 जुलाई 2020 को मैटरनिटी लीव पर गई थीं। 21 अगस्‍त 2020 को उन्‍होंने बच्‍ची को जन्‍म दिया। 19 जनवरी 2021 में छुट्टी खत्‍म होने के बाद वे 25 जनवरी को काम पर लौटीं तो अधिकारियों ने उन्‍हें कार्यालय में काम पर लगा दिया। लेकिन, दो दिन पहले उन्‍हें फिर से बस में परिचालक की ड्यूटी करने के लिए निर्देशित कर दिया गया। उन्‍होंने आलाधिकारियों से गुहार लगाई कि कोरोना और ठंड में बच्‍ची छोटी होने की वजह से वे बस में जाने में सक्षम नहीं हैं। उन्‍हें कार्यालय में कहीं अटैच कर दिया जाए।

अधिकारियों ने उनकी नहीं सुनी। नौकरी छिन जाने के डर से वे पिछले दो दिनों से 5 माह की बच्‍ची को लेकर बस में नौकरी करने को मजबूर हैं। यही वजह कि ब‍च्‍ची की तबियत भी खराब हो गई है। वे कहती हैं कि चलती बस में उनके गिरने का खतरा भी रहता है। ऐसे बच्‍ची को गोद में लेकर टिकट काटना काफी मुश्किल है।

टिकट काटने व लेनदेन में आ रही दिक्कत

वे कहती हैं कि नौकरी करना भी जरूरी है। परिवहन निगम में चाइल्‍ड केयर लीव का नियम नहीं है। उनका कहना है कि बस में बच्‍ची को गोद में लेकर टिकट काटने और रुपए लेन-देन में भी दिक्‍कत आ रही है। वे बच्‍ची को दूध भी नहीं पिला पा रही हैं। अब वे मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ से गुहार लगाते हुए कहती हैं कि उनके पिता के पद, उनकी योग्‍यता और 5 माह की बच्‍ची की तबियत को ध्‍यान में रखकर उन्‍हें प्रमोशन मिल जाए, तो उनकी समस्‍या खत्‍म हो जाएगी।

बस में यात्रियों का टिकट काटती शिप्रा दीक्षित।

पति ने कहा- बेटी को हवा लगने से बुखार आया

कुशीनगर के फाजिलनगर के तुर्कपट्टी के रहने वाली शिप्रा के पति नीरज कुमार शाही दिल्‍ली की एक साफ्टवेयर कंपनी में काम करते रहे हैं। लेकिन, लॉकडाउन के बाद से घर पर ही हैं। पति नीरज कुमार शाही बताते हैं कि बच्‍ची को दो दिनों से बस में ले जाने की वजह से उसकी तबीयत खराब हो गई है। उसे हवा लगने से बुखार हो गया है।

परिवहन विभाग ने चाइल्ड केयर लीव नहीं

गोरखपुर डिपो के सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक केके तिवारी कहते हैं कि परिचालक का काम परिचालन करना होता है। उनके यहां छह माह का प्रसूति अवकाश मिलता है। वे कहते हैं कि शिप्रा 6 माह गुजार चुकी हैं। उन्‍होंने बताया कि उनके यहां चाइल्‍ड केयर लीव का प्रावधान नहीं है। उनकी परेशानी को देखते हुए उनके प्रार्थना पत्र को आगे बढ़ाया जाएगा। उन्‍होंने बताया कि परेशानी को देखते हुए कार्यालय में अटैच किया जाता है। लेकिन इसके लिए वरिष्‍ठता के आधार पर उनकी सुविधा को देखते हुए अटैच किया जाता है।

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