उप्र में एनडीए को मिला पहला मुस्लिम MLA,आजम खां आखिरी किला भी ध्वस्त

 

Uttar PradeshRampurBjp Led Nda Get First Muslim Mla In Up As Shafiq Ansari Win Suar Assembly Bypoll In Azam Khan Rampur
Yogi Adityanath के राज में BJP का एक और मुकाम, NDA को UP में मिला पहला मुस्लिम विधायक, Azam Khan का किला ध्वस्त

Suar Assembly Byelection Result: उत्तर प्रदेश में बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए को पहला मुस्लिम विधायक मिल गया है। रामपुर की स्वार सीट पर हो रहे उपचुनाव में शफीक अहमद अंसारी ने अपना दल (एस) के टिकट पर चुनाव जीत लिया है।

रामपुर14 म ई: उत्तर प्रदेश में 13 मई शनिवार का दिन राजनीतिक लिहाज से बड़ा दिन रहा। निकाय चुनाव के साथ ही दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के नतीजे भी आए। दोनों में भगवा लहराया। इसमें रामपुर की स्वार सीट पर आजम खान (Azam Khan) के बेटे अब्दुल्ला की सदस्यता रद्द होने के बाद हो रहे उपचुनाव में बीजेपी की सहयोगी अपना दल कैंडिडेट ने जीत दर्ज की। आजम का किला ध्वस्त हो गया और यूपी में भाजपा की अगुवाई वाले NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को पहला मुस्लिम विधायक (Muslim MLA) मिल गया है।

स्वार विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी समर्थित अपना दल (एस) प्रत्याशी शफीक अहमद अंसारी ने सपा की अनुराधा चौहान को हरा दिया। अपना दल, बीजेपी की सहयोगी पार्टी है। और शफीक के रूप में एनडीए को उत्तर प्रदेश में पहली बार कोई मुसलमान विधायक मिला है। अंसारी स्वार नगर पालिका के पूर्व चेयरमैन रहे हैं। उन्होंने 8724 वोट के अंतर से जीत हासिल की।

इस सीट पर 1951 से लेकर 1962 तक कांग्रेस के महमूद अली खां विधायक रहे। 1967 में मकसूद हसन स्वतंत्र पार्टी से जीते। 1969 में भारतीय जनसंघ के‌ राजेन्द्र शर्मा पहली बार विधायक बने। 1974 में कांग्रेस के सैयद मुर्तजा अली खां जीते। 1977 में कांग्रेस के मकबूल अहमद चुनाव जीते। 1980 में भाजपा के चौधरी बलबीर सिंह और 1985 में कांग्रेस के निसार हुसैन चुनाव जीते।

1989 से लेकर 1996 तक भाजपा के शिव बहादुर सक्सेना 4 बार विधायक बने। उनके बेटे आकाश सक्सेना अब रामपुर से विधायक हैं, वह आजम की विधायकी जाने के बाद खाली हुई रामपुर उपचुनाव में जीते थे। रामपुर सीट भी सजा होने पर आजम की विधायकी जाने पर खाली हुई थी।

साल 2002 में कांग्रेस से नवाब परिवार के काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां, इसके 2007 में भी नावेद मियां सपा से और 2012 में कांग्रेस से जीते। हालांकि 2017 में आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम पहली बार सपा से चुनाव लड़े नवाब काजिम को हरा दिया। 2022 में अब्दुल्ला आजम फिर सपा से चुनाव जीते। अब स्वार उपचुनाव में शकील अंसारी चुनाव जीत गए हैं। वह यहां पर एनडीए से आने वाले पहले मुस्लिम विधायक बने हैं।

 

मुस्लिम बाहुल्य स्वार में सपा का हिंदू कार्ड फेल, शफीक अंसारी ने अनुराधा चौहान हराई

आजम खान के गढ़ रामपुर की स्वार विधानसभा उपचुनाव में भाजपा-अपना दल (एस) गठबंधन ने बड़ी जीत दर्ज की है। अपना दल प्रत्याशी शफीक अंसारी ने सपा की अनुराधा चौहान को करारी हार दी है। इस बार सपा ने मुस्लिम बाहुल्य स्वार में हिंदू कार्ड खेला था। मगर, यह काम नहीं आया। यही नहीं, सीट बचाने को आजम ने पूरी ताकत लगाई थी, लेकिन इसका भी असर नहीं दिखा।

इधर, छानबे सीट से भी भाजपा-अपना दल गठबंधन की प्रत्याशी रिंकी कोल जीत गई हैं। उन्होंने सपा प्रत्याशी कीर्ति कोल को 9589 वोटों से हराया। रिंकी को 76176 वोट मिले हैं, जबकि कीर्ति को 66587 वोट मिले हैं।

योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री और अपना दल (एस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष पटेल ने शफीक अंसारी की जीत को जनता की जीत बताया है। उन्होंने कहा, ”यह सामाजिक न्याय की जीत है। आजम खान के अन्याय का अंत हुआ है। रही अखिलेश यादव के आरोपों की, तो EVM में गड़बड़ी होती तो उनका प्रत्याशी इतने वोट भी कहां से पाता?”

सबसे पहले रामपुर की बात करते हैं….

रामपुर में 46 साल से आजम खान का दबदबा रहा। वह यहां से 10 बार विधायक रह चुके हैं। ऐसे में यह भाजपा की बड़ी जीत मानी जा रही है। स्वार विधानसभा सीट फरवरी में खाली हुई थी। यहां के विधायक अब्दुल्ला आजम को 15 साल पुराने मामले में 2 साल की सजा हुई थी। इसके बाद इस सीट पर उपचुनाव घोषित हुआ था।

स्वार में आजम खान ने दिया था चैलेंज

स्वार विधानसभा सीट आजम परिवार की सबसे मजबूत सीट मानी जाती थी। यहां उनके बेटे अब्दुल्ला दो बार विधायक बने। हालांकि, दोनों बार उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द हुई। आजम ने उपचुनाव के प्रचार में चैलेंज दिया था, “मेरा और अब्दुल्ला का वोट देने का अधिकार भी खत्म हो गया। आसमान को गवाह करके दावा करता हूं, चुनौती देता हूं…150 करोड़ के हिंदुस्तान से कोई आओ, रामपुर में चुनाव लड़ो, अगर वो चुनाव जीत गया, तो पूरा रामपुर खाली कर देंगें।

इस सीट पर ​पूरे देश की नजर थी। सपा ने 21 साल बाद इस सीट पर गैर-मुस्लिम उम्मीदवार उतारा था। मुस्लिम बाहुल्य सीट पर आखिरी वक्त में हिंदू प्रत्याशी उतार कर उसने सभी को चौंका दिया था। इस हार से माना जा रहा है कि रामपुर में आजम का राजनीतिक रसूख फीका पड़ेगा। ​​​​​​स्वार में 10 मई को 44.95 प्रतिशत पोलिंग हुई थी जो पिछली बार से 14.24 प्रतिशत कम था।

आजम खान के करीबी हैं स्वार से जीते शफीक अंसारी

शफीक अहमद अंसारी कभी आजम के करीबी होते थे। वह नगर पालिका के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनकी पत्नी रेशमा परवीन अंसारी स्वार नगर पालिका की निवर्तमान अध्यक्ष हैं। भाजपा और अपना दल (एस) ने उन्हें संयुक्त प्रत्याशी बनाया था। शफीक के लिए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने जनसभा की थी।

अनुप्रिया पटेल ने झोंकी थी ताकत, कहा था- कोई चुनौती नहीं बची

अनुप्रिया पटेल ने चुनावी जनसभा में आजम खान पर करारा प्रहार कर स्वार सीट पर सपा से चुनौती के सवाल पर कहा था, “इस सीट पर अब कोई चुनौती नहीं बची है। जनता ने मन बना लिया है। जब जनता का मन बन जाता है तो जीत तो उसकी ही होती है। जनप्रतिनिधि ऐसा ही होना चाहिए जिसके पास जनता आसानी से पहुंच सके,  उससे आसानी से मिल सके। हम किसी को वोट मांगने से नहीं रोक रहे। सवाल ये है कि वोट मिल भी रहा है या नहीं।”

एक नजर स्वार विधानसभा सीट के इतिहास पर, कब कौन जीता यहां से चुनाव

वर्ष 1951 से लेकर 1962 तक कांग्रेस के महमूद अली खां चुनाव जीते।
1967 में मकसूद हसन स्वतंत्र पार्टी से जीते।
1969 में भारतीय जनसंघ के‌ राजेन्द्र शर्मा पहली बार विधायक बने थे।
1974 में कांग्रेस के सैयद मुर्तजा अली खां जीते
1977 में कांग्रेस के ही मकबूल अहमद चुनाव जीते।
1980 में भाजपा के चौधरी बलवीर सिंह विधायक बने थे।
1985 में कांग्रेस के निसार हुसैन चुनाव जीते।
1989 से लेकर 1996 तक भाजपा के शिव बहादुर सक्सेना 4 बार विधायक बने।
2002 में कांग्रेस से नवाब परिवार के काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां जीते।
2007 में नावेद मियां ने सपा से चुनाव लड़ा और जीते।
2012 में नावेद मियां ने फिर कांग्रेस से चुनाव लड़ा और जीते।
2017 में आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम पहली बार चुनाव लड़े और सपा से जीते।
2022 में फिर अब्दुल्ला आजम चुनाव लड़े और जीते लेकिन कोर्ट के आदेश पर इनकी विधायकी चली गई।

अब बात करते हैं छानबे विधानसभा सीट की

छानबे सीट पर मतगणना शुरू होते ही सपा प्रत्याशी कीर्ति कोल पहले राउंड में 728 मतों से आगे हो गई थीं। यह बढ़त 10 राउंड तक जारी रही। 11वें राउंड में रिंकी ने बढ़त बनाई। मगर 12 से 14वें राउंड में फिर कीर्ति ने फिर बढ़त बना ली। 15वें राउंड में रिंकी ने फिर बढ़त बनाई जो 32 यानी आखिरी राउंड तक जारी रही। रिंकी कोल ने 9589 मतों से कीर्ति कोल को हरा दिया। यह सीट विधायक राहुल कोल के निधन से खाली हुई थी। रिंकी राहुल कोल की पत्नी हैं। ऐसे में उन्हें लोगों को सहानुभूति मिली।

प्रचार के आखिरी दिन 8 मई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रिंकी कोल के लिए जनसभा कर प्रचार किया था। यही नहीं, अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल और उनके पति व उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री आशीष पटेल ने भी रिंकी कोल के लिए ताबड़तोड़ प्रचार किया था। इधर सपा प्रत्याशी कीर्ति कोल की तरफ सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने मोर्चा संभाला था। छानबे में 10 मई को 44.95 प्रतिशत पोलिंग हुई थी। जो पिछली बार से 3.14 प्रतिशत कम था।

 

एक नजर छानबे सीट की पॉलिटिकल हिस्ट्री पर, कब-कब कौन-कौन रहा विधायक?

1952 से 1962 तक 3 बार कांग्रेस के अजीज इमाम विधायक रहे।
1967 में स्वामी ब्रह्मानंद जनसंघ से विधायक बने।
1969 में जनसंघ के ही श्रीनिवास प्रताप विधायकी जीते।
1974 में 1977 और 1980 में कांग्रेस के पुरुषोत्तम चौधरी विधायक बने।
पिता की सीट पर 1985 में कांग्रेस के भगवती प्रसाद चौधरी चुने गए।
1989 में कालीचरण जेडी एवं 1991 दुलारे लाल जेडी को जनता ने चुना।
1993 में सभी दल को पछाड़ BSP के श्रीराम विधायक बने।
1996 में जनता ने BJP के भाईलाल को मौका दिया।
भाईलाल कोल 2012 में पाला बदल कर सपा खेमे में जाकर चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
2017 के चुनाव में भाजपा से गठबंधन में यह सुरक्षित सीट अपना दल एस के खाते में आई। राहुल प्रकाश कोल विधायक बने। चुनाव जीत कर वह कैंसर की बीमारी से हार गए।

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