बजरंग दल से मुस्लिम कांग्रेस के पीछे एकजुट,भाजपा-जेडीएस ने गंवाई 75 सीटें

विश्लेषण: भाजपा नहीं, कांग्रेस का काम बना गए बजरंगबली:कांग्रेस ने बीजेपी-जेडी(एस) से 75 सीटें छीनीं

 

कर्नाटक चुनाव में बजरंगबली भाजपा के काम तो न आ सके, लेकिन कांग्रेस को बहुमत दिला गए। चुनाव आयोग के शाम 5 बजे तक के आंकड़ों के मुताबिक कांग्रेस 136 सीटें, भाजपा 64 और जेडी (एस) 20 सीटों पर जीत चुकी है या बढ़त बनाए हुए है।

कांग्रेस ने 2018 के मुकाबले 2023 में 75 नई सीटें जीती हैं। 2018 में ये सीटें भाजपा, जेडी (एस) या किसी और पार्टी के पास थीं। ऐसी नई सीटों में से कांग्रेस ने 52 सीटें भाजपा से और 23 सीटें जेडी (एस) से छीनीं।

भाजपा का वोट प्रतिशत लगभग 2018 के बराबर रहा। जेडी (एस) का वोट 5% घट गया, वहीं कांग्रेस का वोट बैंक 5% बढ़ गया। राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि बजरंग दल पर बैन लगाने जैसी घोषणाओं से जेडी (एस) के मुस्लिम वोटर कांग्रेस की तरफ ट्रांसफर हो गए।

 

कर्नाटक को राजनीतिक रूप से 6 भागों में बांटा जाता है…

1. बेंगलुरु कर्नाटक: ये बेंगलुरु और आस-पास का इलाका है। यहां भाजपा, कांग्रेस और जेडी (एस) तीनों पार्टियां जीतती रही हैं। 2023 के नतीजों में इस इलाके में जेडी (एस) को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। यहां से जेडी (एस) की 6 सीटें कम हो गईं, वहीं भाजपा की 5 सीटें बढ़ गईं।

2. बाॅम्बे कर्नाटक: लिंगायत बहुल ये इलाका भाजपा का गढ़ माना जाता है। 2023 के परिणामों में भाजपा को यहां 14 सीटों का नुकसान हुआ है, वहीं कांग्रेस को 16 सीटों का फायदा हुआ है।

3. सेंट्रल कर्नाटकः 2018 में भाजपा यहां सबसे ज्यादा सीटें जीती थी, लेकिन 2023 के चुनाव में भाजपा को यहां से सबसे ज्यादा 16 सीटों का नुकसान हुआ। कांग्रेस ने 2018 के मुकाबले दोगुनी सीटें जीतीं।

4. कोस्टल कर्नाटकः इस इलाके में भी भाजपा को नुकसान हुआ है और कांग्रेस ने फायदा उठाया।

5. हैदराबाद कर्नाटकः इस इलाके में भाजपा की सीटें 12 से घटकर 8 रह गई हैं और कांग्रेस की सीटें 15 से बढ़कर 20 हो गई हैं।

6. ओल्ड मैसूरुः वोक्कालिगा बहुल ये इलाका जेडी (एस) का गढ़ रहा है। 2023 के नतीजों में यहां से जेडी (एस) को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। उसकी सीटें 14 से घटकर महज 2 रह गई हैं। यहां कांग्रेस को सबसे ज्यादा फायदा मिला। इसी इलाके में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा की थी।

 

भाजपा ने कैंडिडेट्स बदले, लेकिन एंटी इनकम्बेंसी बनी रही

भाजपा ने 224 विधानसभा सीटों पर 72 नए चेहरे उतारे। 6 मंत्री-पूर्व मंत्री के साथ ही 21 विधायकों के टिकट काट दिए गए। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के नाम भी शामिल थे। यह सब कुछ एंटी इनकम्बेंसी कम करने के लिए किया गया था, लेकिन नतीजे बता रहे हैं कि इतने नए चेहरे उतारने के बाद भी एंटी इनकम्बेंसी का असर कम नहीं हुआ।

पार्टी ने एक फैमिली से एक ही व्यक्ति को टिकट का फॉर्मूला भी लागू किया। ये भी बेअसर रहा। सीनियर जर्नलिस्ट समीउल्ला बेलागारू के मुताबिक, भाजपा में टिकट बंटवारे में सिर्फ एक-दो लोगों की सुनी गई। इसमें बीएल संतोष और प्रहलाद जोशी शामिल थे। येदियुरप्पा को साइडलाइन कर दिया गया था।

राहुल कर्नाटक के जिन 7 जिलों से गुजरे, कांग्रेस वहां 66% सीटें जीती

राहुल की भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक में 21 दिन चली, 7 जिलों से गुजरी। इन जिलों में 48 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से 32 सीटें कांग्रेस ने जीत ली है। यानी 66% का स्ट्राइक रेट। ये 2018 से दो गुने से भी अधिक है। 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस 15 सीटें जीत पाई थी। भाजपा ने 17, जेडीएस ने 14 और बाकी बची 2 सीट अन्य के पास थी।

प्रधानमंत्री मोदी ने 19 जिलों में कैंपेनिंग की, वहां भाजपा ने 33% सीटें जीतीं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिन 19 जिलों में रैली और जनसभा की, वहां कुल 164 विधानसभा सीटें हैं। 2023 चुनाव में भाजपा ने यहां 55 सीटें जीती। यानी स्ट्राइक रेट करीब 33% है। यहां की 19 सीटों पर जेडी (एस) और 90 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली है।

भाजपा समुदाय साध नहीं पाई, लिंगायत बंट गए

कर्नाटक के सीनियर जर्नलिस्ट अशोक चंदारगी के मुताबिक, तीन दशकों से भाजपा को वोट दे रहे लिंगायत वोट इस बार भाजपा-कांग्रेस में बंट गए। करीब 50% लिंगायत वोट कांग्रेस की तरफ जाते दिख रहे हैं। एससी-एसटी के तो 80 परसेंट से ज्यादा वोट कांग्रेस को गए हैं। इसकी एक बड़ी वजह बोम्मई सरकार की विफल आरक्षण नीति रही।

राज्य सरकार ने शेड्यूल कास्ट (SC) को मिलने वाले आरक्षण को इस वर्ग की अलग-अलग जातियों में बांट दिया जिसका बंजारा और भोवी समुदाय ने विरोध किया था। मुस्लिमों का आरक्षण खत्म कर लिंगायत-वोक्कालिगा को दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। नतीजों में अलग-अलग कम्युनिटी के लोगों की नाराजगी साफ दिख रही है।

बजरंगबली, सांप, हिजाब जैसे विवाद बेअसर

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री मोदी पर बयान देते हुए कहा, ‘मोदी एक जहरीले सांप की तरह हैं। अगर आपको लगता है कि यह जहर है या नहीं और आप इसे चाटते हैं तो आप मर चुके हैं।’ इस बयान के बाद भाजपा के युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने कहा कि कर्नाटक चुनाव में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा, लेकिन यह मुद्दा 24 से 48 घंटों तक ही सुर्खियों में रहा। इसके बाद फीका पड़ गया।

हिजाब बैन का पूरे चुनाव में कोई असर नहीं दिखा। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि 91 बार कांग्रेस ने मुझे तरह-तरह की गालियां दीं, लेकिन बयान का इम्पैक्ट नजर नहीं आया। चंदारगी कहते हैं- लोग महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से इतना परेशान थे कि इन बयानों का उन पर कोई असर नहीं हुआ। बोम्मई गवर्नमेंट के खिलाफ जो गुस्सा था, उसके सामने हिंदुत्व की राजनीति फेल साबित हुई।

40% कमीशन के दाग को हटा नहीं पाए

मुंबई कर्नाटक में आने वाले बेलगावी के ठेकेदार संतोष पाटिल की मौत के बाद अप्रैल 2022 में 40% कमीशन विवाद शुरू हुआ। पाटिल ने अपने सुसाइड नोट में भाजपा नेता केएस ईश्वरप्पा पर एक सरकारी योजना के लिए 40% कमीशन की मांग करने का आरोप लगाया था। कर्नाटक कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन ने भी आरोप लगाया था कि ज्यादा कमीशन देना मजबूरी हो गया है।

उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को लेटर भी लिखा था, लेकिन भाजपा इस पर कोई एक्शन लेते नहीं दिखी और कांग्रेस हमलावर हो गई। सितंबर 2022 में कांग्रेस ने पेटीएम कैंपेन शुरू कर दिया। मुख्यमंत्री बोम्मई के चेहरे के साथ क्यूआर कोड लगाकर फोटो चस्पा की गई। कैंपेन के आखिरी दिन तक कांग्रेस ने इस मुद्दे को छोड़ा नहीं।

बसवराज बोम्मई ने मुख्यमंत्री बनने के बाद एक भी कठोर कदम नहीं उठाया। भ्रष्टाचार की तमाम शिकायतें उन तक पहुंचाई गईं, लेकिन उन्होंने हमेशा यही कहा कि इसकी जांच करवाएंगे। चंदारगी कहते हैं- कांग्रेस नेता सिद्धारमैया तक के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत हुई थी, लेकिन बोम्मई ने कोई कार्रवाई नहीं की।

कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन की शिकायत प्रधानमंत्री मोदी तक पहुंच गई, फिर भी कुछ नहीं हुआ। एडमिनिस्ट्रेशन एक तरह से गिर चुका था। हर जगह करप्शन का खेल चल रहा था। इसी ने भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया।

अब 15 राज्य और 45% आबादी पर भाजपा राज

 

राज्यः फिलहाल देश में 30 विधानसभाएं है। इनमें 2 केंद्र शासित प्रदेश, दिल्ली और पुडुचेरी भी हैं। कर्नाटक के नतीजों के बाद भाजपा अब सिर्फ 15 प्रदेशों में सत्ता में हैं। इनमें भी अपने बूते पर सिर्फ 9 प्रदेशों की सत्ता में हैं। बाकी 6 प्रदेशों में गठबंधन साथियों के साथ। इनमें से कोई भी दक्षिण भारत का राज्य नहीं।
आबादी: देश की सिर्फ 45% आबादी भाजपा की सत्ता में है। भाजपा या उसके गठबंधन शासित प्रदेशों में केवल 7 राज्यों की आबादी एक करोड़ से ज्यादा है।

दक्षिण भारत भाजपा मुक्त

कर्नाटक की हार के बाद दक्षिण के 5 में से किसी राज्य में भाजपा सरकार नहीं।
दक्षिण भारत के 5 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश से कुल 130 लोकसभा सांसद आते हैं। इनमें भाजपा के केवल 29 सांसद है। इनमें भी 25 सासंद कर्नाटक से और 4 तेलंगाना से हैं।
दक्षिण भारत के इन राज्यों की विधानसभाओं में कुल 923 विधायक हैं। कर्नाटक चुनाव से पहले तक इनमें से भी भाजपा कुल 135 विधायक थे। कर्नाटक में भाजपा के 40 विधायक कम होने के बाद यह आंकड़ा भी घटकर 95 का बचा है।

नार्थ-ईस्ट के 7 में सिर्फ 3 राज्यों में भाजपा के मुख्यमंत्री

असम में हेमंत बिस्वा शर्मा की अगुवाई में भाजपा की सरकार है।
नगालैंड में NDPP यानी नेशनलिस्ट डेमोक्रैटिक प्रोग्रेसिव पार्टी की अगुवाई में भाजपा सत्ता है। NDPP के ने नेफ्यू रियो मुख्यमंत्री हैं।
मणिपुर में भाजपा स्थानीय पार्टी NPP यानी नेशनल पीपुल्स पार्टी, NPF यानी नेशनल पीपु्ल्स फ्रंट और KPA यानी कुकीज पीपुल्स अलायंस के साथ सत्ता में है। भाजपा के बीरेन सिंह मुख्यमंत्री हैं।
मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है और जोरामथंगा वहां मुख्यमंत्री पद पर मौजूद हैं।
त्रिपुरा में भाजपा सत्ता में हैं। यहां मणिक साहा मुख्यमंत्री हैं।
अरुणाचल प्रदेश में भाजपा सत्ता में है। यहां पेमा खांडू मुख्यमंत्री हैं।
सिक्किम में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा सत्ता में है। प्रेम सिंह तमांग मुख्यमंत्री हैं। भाजपा का राज्य में कोई विधायक नहीं, लेकिन SKM में भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए का हिस्सा है।

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