नहीं बनीं तो कांग्रेस ने बर्बाद किया सहारा इंडिया

एक चमत्कारी पूंजीपति की मौत,क्या 10 जनपथ की नो एंट्री ने बरबाद कर दिया सुब्रत रॉय सहारा?
भ्रष्ट राजनीतिक अर्थतंत्र, राजनीतिकों का साथ और कानूनी कमियों के सहारे आसमान की ऊंचाइयों को छुआ सुब्रत रॉय ने. कुछ राजनीतिक संबंध निभाने के चलते कुछ संबंध ऐसे खराब हुए जो कभी सुधर नहीं सके और उन्हें अपने हाथों से बनाए हुए साम्राज्य को गिरते हुए देखने पड़ा.

नई दिल्ली,15 नवंबर 2023। देश के एक व्यवसायी के घर शादी और उसके घर पहुंचने वालों में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी,गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी,राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ही नहीं विपक्ष के सभी नेता,पूरा बॉलीवुड,क्रिकेट सितारे,उद्योग जगत के महारथी सभी पहुंचते हैं. मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन हर आने-जाने वालों के स्वागत को उद्योगपति के दरवाजे पर हाथ जोड़े खड़े थे.बाल ठाकरे,जयललिता और दयोल परिवार जो किसी की पार्टी में न जाने के लिए मशहूर थे,वह भी यहां आने से अपने को रोक नहीं सके थे।

ऐसा आयोजन देश में केवल तभी हुआ था शायद दुबारा कोई कर भी न सके.जी हां, यह चमत्कार कर दिखाया था सुब्रत रॉय सहारा ने. पर इस पार्टी की एक खास बात और थी. इस अतुलनीय पार्टी में देश का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक व्यक्तित्व नहीं पहुंचा था जिसे लाने की कोशिश हुई थी या नहीं,ये बहस का विषय हो सकता है.पर इतना तय है कि इसका न आना ही सहारा समूह की बरबादी लिख गया.पर बचपन में सुनी स्लिपिंग ब्यूटी कहानी में परियों ने मिलकर जिस तरह राजकुमारी का शाप घटा दिया था शायद सहारा ग्रुप कंपनी की बरबादी की कथा कम करने वाला कोई जादुगर नहीं मिला

भ्रष्ट समाजवादी राजनीतिक आर्थिक तंत्र की देन

सुब्रत रॉय को समाजवादी अर्थतंत्र की भ्रष्ट व्यवस्था की देन कह सकते हैं, उन्हें आम जनता के पैसे के लुटेरे के रूप में देख सकते हैं,उन्हें खेलों के लिए रुपया लुटाने वाले के रूप में देख सकते हैं.उनसे नफरत कर सकते हैं,उनसे प्यार कर सकते हैं पर आप उन्हें पिछली सदी में आठवे और नौवे और दसवें दशक की बात करते हुए उपेक्षा नहीं कर सकते.

बात उन दिनों की है जब जब देश में आर्थिक उदारीकरण की हवा नहीं चली थी.उदारवाद की शुरुआत के पहले दो दशक सहारा ने जनता में अपनी जड़ें जमानी शुरू की थीं.तीन दशकों की स्वतंत्रता के बाद भी 5 प्रतिशत से भी कम लोगों के पास बैंक एकाउंट था. समाजवादी अर्थतंत्र की कानूनी विसंगतियों का लाभ उठा सहारा चिट फंड ने जनता से एक रुपये से लेकर सैंकड़ों रुपये तक इकट्ठा करने शुरू किये. साइकिल रिक्शा वाले से लेकर गांव-कस्बों के छोटे-बड़े दुकानदारों से हर रोज उनकी कमाई का कुछ हिस्सा सहारा के एजेंट इकट्ठा करते.देश में उस दौर में न सरकारी नौकरियां थीं और न ही प्राइवेट नौकरियां थीं.सो बहुत लोग इस तरह के धंधे में लग गए.
सहारा ने शुरूआत में अपने निवेशकर्ताओं को खूब लाभ दिया.सहारा को देखकर ढेर सारी चिट फंड कंपनियां बाजार में आ गई.एक समय ऐसा था कि हर 20 हजार की जनसंख्या वाले कस्बे में भी कम से कम 20 चिट फंड कंपनिया एक्टिव थीं.अपने दिमाग पर जोर डालिए,हाउसिंग, प्लांटेशन आदि के नाम से कितनी चिट फंड कंपनियां उग आईं थीं.एक बात और यह है कि हर कोई जानता था कि ये कंपनियां जनता को मूर्ख बना रही हैं. पर इन्हें रोकने वाला कोई नहीं था.

समाजवादी समय की सरकारों में बैठे नेता और अफसर इन कंपनियों से मोटी मलाई खाते रहे और ये जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा लूटती रहीं.ये सभी को पता था एक दिन ये कंपनियां बरबाद होगी या ये एक दिन जनता का पैसा लेकर भाग जाएंगी. हुआ भी यही सहारा ग्रुप को छोड़कर सभी एक न दिन भाग गई.सुब्रत रॉय की कंपनी बुरे दौर में भी उसी मजबूती के साथ खड़ी रही जिस तरह शुरूआती दिनों में.कारण रहा कि सहारा ने अपना पैसा,रियल एस्टेट, एविएशन,हॉस्पिटलिटी,एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री आदि में लगाया था. हालांकि सहारा समूह का कोई बिजनेस सफल नहीं हुआ पर सहारा ने अपनी छवि इस तरह बना ली थी कि जनता सहारा में निवेश करती रही.

राजनेताओं को साधकर आगे बढ़ी कंपनी राजनीतिक स्वार्थ का हो गई शिकार

पत्रकार दीपक शर्मा अपने सोशल मीडिया एकाउंट एक्स पर लिखते हैं कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह और मुलायम सिंह यादव ने रॉय साहब की शुरूआती मदद की.वाजपेयी को चुनाव में हराने की कोशिश के बावजूद सुब्रत राय के भाजपाइयों से गहरे रिश्ते थे.वो नब्बे के दशक के अडानी थे.यहां तक कि धीरूभाई अंबानी के उत्थान में भी उनका योगदान था.राय साहब का काम चिट फंड का था लेकिन दिल बहुत बड़ा था.खासकर नेताओं को चंदा देने में उन जैसा न कोई हुआ और न होगा,कारण जो भी हों पर सोनिया और राहुल गांधी से उनकी कभी नहीं बनी और मनमोहन सिंह के दौर में सेबी ने सुब्रत राय की फाइल खोल दी और शायद उसके बाद से ही उनका सूरज जो डूबा तो डूबता चला गया.

कानूनी विसंगतियों से सहारा का उत्थान और पतन

जिस तरह कानूनी छेदों का सहारा लेकर सहारा ने इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा किया. कुछ उसी तरह की दूसरी कानूनी खामियों ने समूह को इस तरह कानूनी झमेले में फंसाया कि उससे बाहर निकलना मुश्किल हो गया.जिस तरह की सख्ती सेबी ने सहारा ग्रुप से की उसी तरह की सख्ती राष्ट्रीयकृत बैंकों के साथ कर दी जाए तो वो भी बरबाद हो जाएंगे.देश के सभी राष्ट्रीयकृत बैंकों में हजारों करोड़ रुपये आम जनता के फंसे हुए हैं.जो न कभी कोई मांगने आता है और न ही इन बैंकों ने कभी उन परिवार वालों के पास पहुंचाने की कोशिश ही की है.उसी तरह सहारा ग्रुप में हजारों करोड़ रुपयों का हिसाब नहीं है. सेबी ने ग्रुप से 24 हजार करोड़ एकत्र कर अपने पास तो रख लिए पर सामान्य निवेशकों के हिस्से आठ सालों में आया मात्र कुछ करोड़.यह भ्रष्ट तंत्र की देन है कि जिसके पीछे सरकार पड़ती है उसी का भेद खुलता है.

सहारा ग्रुप भी यह लगातार यह कहता रहा कि उसने पहले ही 95 प्रतिशत से अधिक निवेशकों को प्रत्यक्ष रूप से भुगतान कर दिया है.सेबी ने सहारा समूह की दो कंपनियों के निवेशकों को 11 वर्षों में 138.07 करोड़ रुपये वापस किए. इस बीच पुनर्भुगतान को विशेष रूप से खोले गए बैंक खातों में जमा राशि बढ़कर 25,000 करोड़ रुपये से अधिक हो चुकी है.सेबी शायद यह समझ नहीं पा रही है या कानून की खामियों का शिकार खुद सेबी भी हो गई है.
सहारा इंडिया परिवार की ओर से अखबारों में दिए गए विज्ञापन में कहा गया है कि कंपनी के प्रमुख सुब्रतो राय सहारा या सहारा इंडिया परिवार के खिलाफ केवल एक आरोप है.वह आरोप यह है कि वह निवेशकों का पैसा चुकाने में समय ले रहा है.लेकिन वह इस देरी का ब्याज भी दे रहा है

सुब्रत रॉय के सहारा साम्राज्य के पतन का कारण थी कांग्रेस

सुब्रत रॉय का पतन सबसे नाटकीय व्यावसायिक पतनों में से एक रहा है। रॉय जिन्हें कभी भारत के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यवसायियों में से एक के रूप में देखा जाता था, सहारा के निवेशकों को बकाया भुगतान न करने को लेकर 2014 में विवाद में थे। सहारा समूह पर कथित तौर पर रु. निवेशकों को 36,000 करोड़ रुपए मामला इस आधार पर अदालत में लाया गया था कि सहारा उद्योग के नियमों का पालन नहीं करता था और बाजार नियमों का उल्लंघन करता था। यह विवाद वैकल्पिक रूप से पूर्ण परिवर्तनीय डिबेंचर जारी करने से संबंधित है, जिसे सहारा समूह ने “कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय में कंपनी रजिस्ट्रार से अनुमति लेने के बाद” जारी किया था। सेबी ने आपत्ति जताई कि बाजार नियमों का उल्लंघन किया गया है क्योंकि सहारा द्वारा कोई ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (डीआरएचपी) दाखिल नहीं किया गया है, जो धन जुटाने के लिए सेबी से अनुमति लेने के अलावा धन जुटाने की कोशिश करने वाली कंपनियों के लिए आवश्यक है। इस कठिन दौर के दौरान, रॉय को दो साल की अवधि के लिए जेल में भी रहना पड़ा।
हालाँकि, सुब्रत रॉय ने 2014 में तर्क दिया था कि राजनीतिक और व्यक्तिगत कारणों से उन पर जादू-टोना किया गया और उनके व्यापारिक घराने को गिरा दिया गया। बिजनेस टाइकून ने सहारा समूह के बिजनेस ऑपरेशन को कुचलने की कोशिश को कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ उनकी ‘भावनात्मक’ टिप्पणियों के कारण भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी जैसे नियामक उनके पीछे पड़ गए। जब यूपीए 2004 में वाम दलों के समर्थन से सत्ता में आया था, तब रॉय ने सीपीआई (एम) के शीर्ष नेताओं के सामने सोनिया गांधी के इतालवी मूल और नागरिकता का हवाला देते हुए उनके बारे में अपनी आपत्ति व्यक्त की थी।

रॉय ने कहा था कि उनके कारोबारी समूह के लिए परेशानी 2008 में शुरू हुई जब आरबीआई ने राजनीतिक कारणों से समूह के आरएनबीसी (अवशिष्ट गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी) कारोबार पर गलत तरीके से प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से आरबीआई की कार्रवाई और 2004 में सोनिया गांधी के देश के प्रधान मंत्री बनने के उनके विरोध के बीच संबंध का संकेत दिया। रॉय ने कहा कि वह चाहते थे कि एक भारतीय नागरिक प्रधान मंत्री बने और उन्होंने विस्तार से बताया, “मैं खुल कर अपनी राजनीतिक राय रखता था।” विदेशी मूल का व्यक्ति भारत का प्रधान मंत्री बन रहा था और मैंने वाम दलों को इस बारे में तब सूचित किया था जब उन्होंने पहली यूपीए सरकार को समर्थन की पेशकश की थी।” जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि उनके पतन को सोनिया गांधी दोषी हैं, तो रॉय ने जवाब दिया, “मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं। अगर मेरे खिलाफ कुछ कहा जाता है तो मैं प्रतिक्रिया नहीं दे सकता, लेकिन मेरे अधीनस्थ मुझे खुश करने के लिए कुछ कर सकते हैं।’ ऐसा लगता है कि रॉय सोनिया गांधी को खुश करने की कोशिश कर रहे वरिष्ठ कांग्रेस नेतृत्व को “अधीनस्थ” के रूप में संदर्भित कर रहे थे। यह पूछे जाने पर कि क्या वह कांग्रेस नेतृत्व को “अधीनस्थ” मानते हैं, सहारा अध्यक्ष ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है”।

सुब्रत रॉय ने आरोप लगाया कि सोनिया गांधी के बारे में उनके सार्वजनिक विचारों के कारण उन्हें आरबीआई का क्रोध झेलना पड़ा, जिसने सहारा को अपना जमा-भुगतान व्यवसाय बंद करने को मजबूर किया, जिसे कभी आरबीआई ने “समावेशी बैंकिंग” के रूप में सराहा था। रॉय के अनुसार उनके पास जमा से कई गुणा ज्यादा सवा लाख करोड़ रुपए मूल्य की भूसंपदा है तो भुगतान में चूक कैसे हो सकती है?

सुब्रत रॉय ने 2013 की अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कहा था कि वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में राहुल गांधी की तुलना में नरेंद्र मोदी को प्राथमिकता देंगे: “राहुल और मोदी दोनों के पास प्रधानमंत्री के रूप में कोई अनुभव नहीं है। लेकिन हमने नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री के रूप में देखा है और वह कुशल साबित हुए हैं। दूसरी ओर, राहुल की प्रशासनिक क्षमताओं के बारे में कोई नहीं जानता।

यदि कांग्रेस के बारे में रॉय के आरोपों में रत्ती भर भी सच्चाई है तो यह शर्मनाक है कि कैसे एक राजनीतिक दल ने प्रमोटर की राजनीतिक राय के कारण पूरे व्यापारिक घराने को गिरा दिया। यदि यह सच है, तो इससे यह भी पता चलता है कि कांग्रेस उन लोगों को परेशान करने और उनका मुंह बंद करने में विश्वास करती है जो उसके कामकाज और नेतृत्व का विरोध करने का साहस करते हैं।

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