ज्ञान: ललित कलाओं की गीता है ‘विष्णुधर्मोत्तर पुराण’

धर्म, दर्शन और कला का त्रिक अगर किसी एक ग्रंथ में रूपायित हुआ है तो वह “विष्णु धर्मोत्तर” है।

भारतीय शास्त्रीय कलाओं के जो सिद्धांतकार हैं, अगर आप उनसे वार्ता करें तो पाएंगे कि उनके लिए जो महत्व भरतमुनि के नाट्यशास्त्र का है, उससे कम महत्व विष्णु धर्मोत्तर का नहीं है। इसके तृतीय परिवर्त में छंद, अलंकार, नाट्यगीत, नृत्यस्थान, अभिनय कला, नवरस प्रतिपाद, चित्र सूत्र, मंदिर स्थापन, मूर्ति प्रतिष्ठा आदि का विस्तृत विवेचन है। दण्डी और भामह के काव्यालंकार सम्बंधी ग्रंथ भी इसी “विष्णु धर्मोत्तर” से प्रणीत हुए हैं।

एक बार मैं इन्दौर में नृत्याचार्य श्री पुरु दाधीच- जिन्हें हाल ही में पद्मश्री दिया गया- से वार्ता कर रहा था। उनके पुस्तकालय में नाट्यशास्त्र था और काव्यालंकार के ग्रंथ थे किंतु विष्णु धर्मोत्तर देखकर चौंका। पूछने पर उन्होंने बतलाया- नृत्याचार्य के यहाँ यह ग्रंथ नहीं होगा तो और कौन-सा होगा, यह तो ललित कलाओं की गीता है।

विष्णुधर्मोत्तर पुराण में मृत्यु की विलक्षण परिभाषा दी गई है।

उसके शुद्धितत्व प्रकरण में कहा गया है कि जिसे हम मृत्यु कहते हैं, उसमें वास्तव में शरीर के पांच में से दो ही तत्वों की क्षति होती है- पृथ्वी और जल। पार्थिव शरीर इन्हीं से बनता है। पदार्थ का गुरुत्व भी इन्हीं को खींचता है।

किंतु मृत्यु के बाद तीन तत्व शेष रह जाते हैं- अग्नि, आकाश और वायु। अग्नि पुराण में अग्नि को तेज तत्व कहा गया है। यह तीनों ही तत्व गुरुत्वाकर्षण से मुक्त हैं, अपार्थिव हैं और जिस सूक्ष्म शरीर का निर्माण करते हैं, उसे आतिवाहिक या प्रेतदेह कहा गया है।

कदाचित्- कल्पना, आकांक्षा, स्मृति, चेतना और संकल्प इस आतिवाहिक शरीर के अंग होंगे, जो मृत्यु के बाद जीवित रहते हों।

पिंडों के दान से जिस देह का निर्माण होता है, उसे भोगदेह कहा गया है। वहां से फिर लौकिक संसार की ओर वापसी है- वैसा वर्णित है।

कितना अचरज है कि प्रियजन की मृत्यु के तुरंत बाद हम इन प्रयासों में जुट जाते हैं कि जीव को पुनः पार्थिव देह मिले, जिसमें तर्पण का जल है और पिंड की पृथिवी। जबकि एक जीवनपर्यंत विषाद के बाद वह अब अग्नि, आकाश और वायु के तत्व में थिर हुआ है।

कौन जाने, आतिवाहिक चेतनाओं का अंधकार भरा जो पितृलोक या प्रजापति लोक है, वह इससे राज़ी होता है या नहीं, कहीं वह इससे संघर्ष तो नहीं करता?

जो जीवित हैं वो जीवनभर मृत्यु का प्रतिकार करते हैं। तो क्या जो मर चुके वो फिर जीवन में लौट आना चाहते होंगे?

✍🏻सुशोभित

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