मत: अनुच्छेद 370और 35A हटने में हुई देर:लेफ्टि. जन.ऐस ए हसनैन

लेफ्टि. जनरल एसए हसनैन का आकलन:भारत का रणनीतिक ‌विश्वास बढ़ने से हट सका अनुच्छेद 370, 5 अगस्त 2019 कश्मीर के लिए यादगार

लेफ्टिनेंट. जनरल एसए हसनैन, कश्मीर में 15वीं कोर के पूर्व कमांडर

कश्मीर में काफी उत्साह है। गुलमर्ग के पर्यटन हब की तस्वीर हमेशा के लिए बदल गई है। यहां घाटी का सबसे ऊंचा तिरंगा लगाया गया है। पूरे कश्मीर में ऐसे तिरंगे गर्व से लहरा रहे हैं। इसका मतलब यह है कि एकीकरण की प्रक्रिया सही मायने में चल रही है और पाकिस्तान प्रायोजित छद्म युद्ध का उद्देश्य काफी हद तक निष्प्रभावी हो गया है।

आज आत्मविश्वास के साथ तिरंगा फहराने की क्षमता होना 5 अगस्त 2019 को हुए संवैधानिक फैसलों की सबसे बड़ी सफलता है। शायद यही सही वक्त है जब हम इसकी समीक्षा करें कि इन फैसलों के पीछे कारण क्या थे। मेरे हिसाब से इसका सबसे बड़ा कारण भारत का रणनीतिक विश्वास बढ़ना था।

वर्ष 2011-12 का मूल्यांकन बताता है कि सड़कों पर आंदोलन (2008-10) की तीन साल की अवधि के बाद आतंकवाद और अलगाववाद की प्रकृति बदल रही थी। इसी समय बुरहान वानी का उदय हुआ था और आमतौर पर शांत रहने वाला दक्षिणी कश्मीर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का गढ़ बनने लगा था। उधर राज्य प्रशासन कुछ जिलों से आफस्पा हटाने पर आमादा था, जिससे सेना बैकफुट पर आ जाती। हमारा सुझाव था कि आफस्पा के बिना पाकिस्तान की वापसी तय होगी।

2015 में प्रधानमंत्री मोदी के मैत्री के प्रयासों को आईएसआई प्रायोजित पठानकोट हमले से झटका लगा। फिर 8 जुलाई 2016 को भारतीय सेना ने बुरहान वानी को मार गिराया, जिसका अलगाववादियों और ‘डीप स्टेट’ ने मनोवैज्ञानिक फायदा उठाकर सड़कों पर उत्पात ला दिया। यहीं से घटनाक्रमों की कड़ी शुरू हुई। उरी हमला 18 सितंबर 2016 को हुआ था, जिसपर भारत की प्रतिक्रिया 28 सितंबर को एलओसी के पार सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में आई। फिर 2017 में जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों का ऑपरेशन ऑलआउट शुरू हुआ।

दो साल में भारतीय सुरक्षा बलों ने 500 से ज्यादा आतंकवादी मार गिराए। उधर 2017 में भारत ने डोकलाम में 72 दिनों तक चीन के गतिरोध का सामना किया। इसी समय अपनी सीमाएं संभालने में भारत के रणनीतिक विश्वास में तेजी आई। 14 फरवरी 2019 को पुलवामा हमले में 40 पुलिस वाले शहीद हो गए। इसपर भारत की प्रतिक्रिया बालाकोट एयर स्ट्राइक के रूप में हुई।

2016 से 2019 मध्य तक हुए घटनाक्रमों से भारत के रणनीतिक विश्वास में प्रगति हुई। यह स्पष्ट हो रहा था कि अलगावादी और अन्य देशद्रोही तत्व कश्मीर में राष्ट्रविरोधी गतिविधियां जारी रखना चाहते थे। इसमें उन्हें अनुच्छेद 370 और 35ए के तहत कश्मीर को मिले विशेष राज्य के दर्जे से मदद मिलती थी।

पीछे मुड़कर देखें तो 1972 में शिमला समझौते पर हस्ताक्षर के साथ ही अनुच्छेद 370 निरस्त कर देना चाहिए था। तब शायद भारत में रणनीतिक विश्वास नहीं था। फरवरी 1994 में भारत ने संसद के दोनों सदनों में संयुक्त प्रस्ताव लाकर जम्मू-कश्मीर की पूर्ववर्ती रियासत के सभी क्षेत्रों को भारत से संबंधित घोषित कर दिया।

यही एकमात्र समय था जब अनुच्छेद 370 और 35ए हटाए जा सकते थे क्योंकि तब राजनीतिक सहमति थी। लेकिन रणनीतिक विश्वास नहीं था। फिर 25 साल बाद यह फैसला लिया जा सका, हालांकि तब राजनीतिक सहमति कम थी। वर्ष 2016 से 2019 के बीच के घटनाक्रम संभालने में प्रत्यक्ष सफलता और केंद्र में मौजूद मजबूत राजनीतिक अधिकार के कारण यह फैसला संभव हुआ। यही तो रणनीतिक विश्वास है।

यह वही रणनीतिक विश्वास है, जिसने चीन को चिंता में डाला और साथ ही अमेरिका को यह दृष्टिकोण दिया कि भारत ही उचित रणनीतिक सहयोगी होगा। नई नीतियों के माध्यम से जम्मू-कश्मीर को स्थिर कर, अधिक लोगों को सशक्त बनाकर, सभी नागरिकों के लिए कानूनों की एकरूपता सुनिश्चित कर वास्तव में अलगाववाद के सभी रुझान खत्म हो सकेंगे। 5 अगस्त 2019 वास्तव में जम्मू-कश्मीर के लिए अविस्मरणीय दिन था।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *