जिस सुको कालेजियम पर हजार सवाल,वो मुख्य निर्वाचन आयुक्त पर कर रहा सवाल

 

कलीजियम सिस्टम पर फिर क्यों उठे सवाल? जानें कैसे होती है हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति
पूर्व चीफ जस्टिस लोढ़ा ने कहा था कि जुडिशरी की स्वतंत्रता में दखल नहीं हो सकता। उन्होंने माना कि अभी जिस तरह से कलीजियम सिस्टम काम कर रहा है उसमें पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी दिख रही है। लेकिन उनके मुताबिक इसे ठीक और इंप्रूव किया जा सकता है।

हाइलाइट्स
1-90 के दशक में भारत ने अपनाया कलीजियम सिस्‍टम
2-सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की होती है नियुक्ति
3-कानून मंत्री ने सवाल उठाए, पूर्व CJI ललित ने किया बचाव
4-कलीजियम सिस्‍टम पर बीजेपी, कांग्रेस का एजेंडा एक

कलीजियम सिस्टम पर फिर उठे सवाल

कलीजियम सिस्टम पर एक बार फिर खासी चर्चा है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जस्टिस की नियुक्ति कैसे हो, इसे लेकर दशकों से देश में डिबेट होती रही है। नब्बे के दशक में कलीजियम सिस्टम आया, तभी से उसकी सिफारिश पर सरकार हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस की नियुक्ति करती रही है। लेकिन कलीजियम सिस्टम पर लगातार सवाल भी उठते रहे हैं। इसी कड़ी में हाल में केंद्रीय कानून मंत्री ने कलीजियम सिस्टम पर सवाल उठाए हैं। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि न्यायिक सुधार की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कलीजियम सिस्टम के तहत जजों की बहाली पारदर्शी नहीं है। इशारों-इशारों में उन्होंने यह भी कहा कि कलीजियम सिस्टम से होने वाली नियुक्ति में भी अंदरखाने कहीं न कहीं पॉलिटिक्स होती है और उससे इनकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस यूयू ललित ने बाद में कलीजियम सिस्टम का बचाव किया और कहा कि जुडिशरी की स्वतंत्रता और कानून के शासन के लिए कलीजियम सिस्टम जरूरी है। लेकिन इस मुद्दे पर जिस तरह सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच तकरार बढ़ी है, उससे आने वाले दिनों में इसके सियासी रंग लेने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

एक तरफ कमिशन, दूसरी तरफ कलीजियम

जजों की नियुक्ति के लिए एनजेएसी (नैशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट कमिशन) लाया गया था। सुप्रीम कोर्ट की स्क्रूटनी में वह टिक नहीं पाया। अदालत ने उसे असंवैधानिक करार दिया। उसकी राय में कलीजियम ही सबसे अच्छा सिस्टम है और न्यायिक स्वतंत्रता के लिए यह अपरिहार्य है। लेकिन इसी बीच कलीजियम सिस्टम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हो गई, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए सहमति जाहिर की है। कलीजियम सिस्टम से पहले जो नियुक्ति की प्रक्रिया थी, उसके तहत लॉ मिनिस्ट्री नामों को रेफर करती थी और फिर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया उस बारे में अपना विचार देते थे और तब उन्हें राष्ट्रपति के पास रेफर कर दिया जाता था। इस प्रक्रिया से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति होती थी। 1993 में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने आदेश पारित किया और कलीजियम सिस्टम की शुरुआत की। हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए नाम भेजा जाता है। सुप्रीम कोर्ट के कलीजियम में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और 4 सीनियर जस्टिस होते हैं। उन नामों पर विचार के बाद सुप्रीम कोर्ट की कलीजियम नाम तय करती है और फिर उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।

न्यायिक नियुक्ति आयोग असंवैधानिक: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए नाम खुद सुप्रीम कोर्ट की कलीजियम तय करती है। इन नामों को सरकार के पास भेजा जाता है और फिर सरकार के संबंधित विभाग आईबी आदि से क्लियरेंस के बाद इन नामों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है। कलीजियम सिस्टम को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार ने 2014 में संसद में कानून पास किया था, और एनजेएसी लेकर आई थी। इसके तहत तय किया गया था कि छह लोगों का कमिशन होगा, जो जजों के नाम का चयन करेगा और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी से उन्हें जज बनाया जाएगा। इसमें भारत के चीफ जस्टिस, दो सुप्रीम कोर्ट के जज, कानून मंत्री और दो जानी मानी शख्सियत शामिल होंगी। इन दो नामों का चयन हाई पावर कमिटी करेगी, जिसमें प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस और विपक्षी दल के नेता होंगे। लेकिन एनजेएसी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई और सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को इसे खारिज करते हुए कलीजियम सिस्टम को रिवाइव कर दिया।

कैसे काम करता है सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम? पूर्व सीजेआई ने विस्तार से बताया

एनजेएसी को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान के मूल ढांचे में जुडिशरी की सर्वोच्चता को बहाल रखा गया है। जजों की नियुक्ति में एग्जिक्यूटिव का रोल लिमिटेड है। जजों की नियुक्ति का अधिकार जुडिशरी का है और यह बेसिक स्ट्रक्चर का पार्ट है। सरकार की नई योजना एनजेएसी इसे डैमेज कर रही है, ऐसे में इसके लिए किया गया संविधान संशोधन और एनजेएसी एक्ट गैर संवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनजेएसी के कारण जुडिशरी की स्वतंत्रता प्रभावित होती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी सिस्टम की आलोचना हो सकती है, लेकिन अगर उसे चेंज करना है तो उसे संविधान के दायरे में भी बदला जा सकता है। एनजेएसी के लिए जो संविधान में संशोधन किया गया, वह संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर को प्रभावित करता है। जजों की नियुक्ति के लिए किए संविधान संशोधन को गो-बाय करना होगा। यह भी समझना होगा कि तब के जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि जुडिशरी की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद-14, 19 और 21 का पार्ट है। अगर यह प्रभावित होती है तो इससे लोगों के मूल अधिकार प्रभावित होंगे, ऐसे में एनजेएसी को खारिज किया जाना जरूरी है।

बीजेपी और कांग्रेस साथ-साथ

देखा जाए तो कलीजियम सिस्टम को खत्म करने और जजों की नियुक्ति तथा जुडिशल रिफॉर्म को लेकर कांग्रेस और बीजेपी एक ही प्लेटफॉर्म पर रहे हैं। दोनों ही पार्टियों ने अपने अजेंडे में जुडिशल रिफॉर्म को शामिल रखा है। यूपीए-2 के कार्यकाल में कांग्रेस ने जुडिशल अपॉइंटमेंट कमिशन को संवैधानिक दर्जा देने को मंजूरी दी थी। इस तरह वह बिल पेश करने की तैयारी में थी, यानी उसके अजेंडे में पहले से ही जुडिशल रिफॉर्म की बात थी। लेकिन फिर सरकार बदल गई। बीजेपी सरकार में आई तो उसका भी वही अजेंडा रहा, और उसने एनजेएसी के लिए संविधान में संशोधन किया। इसमें राज्यों ने भी साथ दिया। एनजेएसी खारिज हो चुका है लेकिन फिर भी सरकार की ओर से कलीजियम सिस्टम पर सवाल उठाए जाते रहे हैं। केंद्र सरकार का यह स्टैंड रहा है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता की बात तब शुरू होती है जब जजों की नियुक्ति हो जाती है, उससे पहले नहीं।

 

चुनाव आयुक्त के मुद्दे पर अड़ा सुप्रीम कोर्ट, अरुण गोयल की नियुक्ति के मांगे दस्तावेज, सरकार ने जताई आपत्ति

Appointment of Election Commissioner And Supreme Court : देश में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट और सरकार में ठनती दिख रही है। सुप्रीम कोर्ट ने अब अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के पद पर नियुक्ति संबंधी दस्तावेज मांग लिए हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि वो जानना चाहते हैं कि गोयल की नियुक्ति के पीछे कोई गड़बड़झाला तो नहीं है?

हाइलाइट्स
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लोकर सुप्रीम कोर्ट ने और सख्त किया रुख
शीर्ष अदालत ने अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त बनाने संबंधी दस्तावेज मांगे
कोर्ट ने कहा कि गोयल की नियुक्ति का मकसद क्या है, उसे यह जानना है

SC and PM Modi
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठा रहा सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 19 नवंबर को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के तौर पर की गई नियुक्ति से संबंधित दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए दाखिल याचिका पर बुधवार को भी सुनवाई हुई। इस दौरान जस्टिस केएम जोसेफ की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच ने केंद्र सरकार से जानना चाहा है कि हाल ही में गोयल को वीआरएस दिलाया गया और फिर उनकी नियुक्ति की गई है, कहीं इस नियुक्ति में कोई चालाकी या झोल तो नहीं है।

अगर कमजोर चुनाव आयुक्त हुए तो कैसे ले पाएंगे कठोर फैसला?

सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में केंद्र सरकार के वकील से कहा कि फर्ज किया जाए कि अगर पीएम के खिलाफ कुछ आरोप हैं और मुख्य चुनाव आयुक्त को उन पर एक्शन लेना है। अगर वो कमजोर होंगे तो वो एक्शन नहीं ले सकते। ऐसे में क्या यह सिस्टम को ध्वस्त करने वाला नहीं माना जाएगा? सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में (उदाहरण के तौर पर) यह भी कहा कि जरूरत ऐसे चीफ इलेक्शन कमिश्नर की है जो यहां तक कि पीएम के खिलाफ भी एक्शन ले सकता हो। बेंच ने केंद्र सरकार के वकील से कहा कि चीफ इलेक्शन कमिश्नर राजनीतिक दखलअंदाजी से अलग पूरी तरह स्वतंत्र होना चाहिए।

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर संवैधानिक चुप्पी का फायदा उठाना परेशान करने वाली परंपरा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने फाइल देखे जाने की कोर्ट की मंशा पर ऐतराज जताया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी आपत्ति खारिज कर दी। वेंकटरमानी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से संबंधित व्यापक मसले को देख रहा है। ऐसे में उसे किसी व्यक्तिगत केस को नहीं देखना चाहिए। मेरा इस पर सख्त ऐतराज है। इस पर बेंच ने कहा कि मामले की सुनवाई पिछले गुरुवार से शुरू हुई है और गोयल की नियुक्ति उसके बाद 19 नवंबर को हुई है। ऐसे में हम देखना चाहते हैं कि आखिर इस कदम को उठाने के पीछे कारण क्या है। हम देखना चाहते हैं कि इस नियुक्ति में क्या मैकेनिजम रहा है।

CJI भी हों CEC की नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल

बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने टिप्पणी में कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया में देश के चीफ जस्टिस को शामिल किया जाना चाहिए ताकि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो सत्ताधारी दल, अपनी सत्ता बचाए रखना चाहता है, इसलिए वह मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था में हां में हां मिलाने वाला यस मैन की नियुक्ति कर सकता है।

केंद्र ने दिया कानून का हवाला, सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को केंद्र ने दलील दी कि 1991 के एक्ट में यह तय किया गया है कि चुनाव आयोग को अपने सदस्यों के वेतन और उनके कार्यकाल को लेकर स्वतंत्रता होगी। दिनेश गोस्वामी समिति की रिपोर्ट को संसद ने कानून द्वारा पारित किया है। ऐसे में ऐसा कोई कारण नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल दे। पांच जजों की बेंच ने कहा कि स्वतंत्र संस्थान ऐसा होना चाहिए जिसमें नियुक्ति के एंट्री लेवल स्कैन हो। सभी सत्ताधारी पार्टी अपना पावर चाहती है। हम चाहते हैं कि ऐसी नियुक्ति प्रक्रिया हो जिसमें चीफ इलेक्शन कमिश्नर की नियुक्ति में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भी शामिल हों ताकि चुनाव आयोग की निष्पक्षता कायम रह सके

जान लीजिए सुप्रीम कोर्ट की दलील

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1991 के जिस कानून का अटॉर्नी जनरल जिक्र कर रहे हैं, वह सिर्फ सर्विस रूल से संबंधित है क्योंकि यह नाम से क्लियर है। बेंच ने कहा कि मान लिया जाए कि सरकार से हां में हां मिलाने वाले शख्स की नियुक्ति होती हो जो उन्हीं की विचारधारा से है तो फिर संस्था में कोई कथित स्वतंत्रता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्टूबर 2018 को उस जनहित याचिका को संवैधानिक बेंच रेफर कर दिया था जिसमें कहा गया है कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलिजियम की तरह सिस्टम होना चाहिए। संविधान को लागू हुए 72 साल हो गए लेकिन अभी तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं है।

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