मत: भाजपा में जाते-जाते क्यों रह गये कमलनाथ? सिख कि भाजपा में घिचपिच?

Kamalnath And Nakul Nath Were Desperate To Join Bjp But Something Happened Understanding The Problems Of Bjp And Congress
मत: ‘इंदिरा के तीसरे बेटे’ भाजपा में आ जाते तो… आखिर कमल क्यों नहीं थाम पाए नाथ
कमलनाथ और नकुलनाथ ने इस्तीफा दिया तो मध्य प्रदेश कांग्रेस संकट में पड़ जायेगी। यदि वे भाजपा में जाते हैं, तो उसे पार्टी में पूर्व कांग्रेसी गुटों के झगड़े से निपटना होगा। इसलिए भाजपा चाहकर भी नाथ पिता-पुत्र का स्वागत नहीं कर पाई। तो क्या मध्यप्रदेश का खेल खत्म हो गया है?
मुख्य बिंदु
मध्य प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ बेटे के साथ भाजपा में आ रहे थे
 कांग्रेस को बड़े झटके का यह अभियान बीच में ही रुक गया
 आखिर भाजपा ने अपना दरवाजा खोलकर भी बंद क्यों कर दिया?

;आखिरकार,न कोई आया और न कोई गया। कमलनाथ प्रकरण मध्य प्रदेश की सबसे नाटकीय राजनीतिक घटनाओं में से एक कमलनाथ प्रकरण अपने अंत तक नहीं पहुंचा। नौ बार के सांसद,पूर्व केंद्रीय मंत्री,मुख्यमंत्री और राज्य में भगवा लहर के सामने खड़े एकमात्र मजबूत कांग्रेसी दिग्गज अपने बेटे नकुल के साथ भाजपा में शामिल होने वाले थे। तब मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास कुछ खास नहीं बच जाता। हालांकि, उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी। लेकिन बेतुकेपन के इस रंगमंच पर कब,क्या हो जाए,कोई नहीं बता सकता। कमलनाथ ने पत्रकारों से सवाल को एक ही पंक्ति के जवाब से निपटा दिया,’आप इतने उत्साहित क्यों हैं?’ ऐसे में केवल एक ही बात निश्चित है कि 29 सीटों वाले मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले कभी भी, कुछ भी हो सकता है।
मध्य प्रदेश कांग्रेस ढहती दीवारों का एक जर्जर भवन भर है। ‘वो कैसे कर सकते हैं? वो इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे हैं।’ कमलनाथ के लिए आज ऐसा कहने वालों ने लगभग ठीक चार साल पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में कहा था, ‘वो आखिर ऐसा कैसे कर सकते हैं, वो तो राहुल गांधी के करीबी दोस्त हैं?’

सिंधिया को बनाए रखने को कांग्रेसियों का दिल नहीं पसीजा। नाथ के लिए काफी-खींचतान हुई। यह भी संभव है कि भाजपा ने ही जोर नहीं लगाया हो।

नाथ के भाजपा में जाने से कांग्रेस पर सिंधिया की बगावत के मुकाबले कहीं ज्यादा असर पड़ेगा। कमलनाथ अगर भाजपाई हो जाते तो उन्हें गद्दार कहकर खारिज नहीं किया जा सकता था। उनका जाना एक ‘सेनापति’ की नाराजगी होती जिसने पराजित सेना से पीछा छुड़ा लिया। लेकिन ऐसे हालात बने कैसे? दिसंबर में कांग्रेस के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव हारने के बाद उनकी जगह युवा जीतू पटवारी को लाए जाने पर कमलनाथ की प्रतिक्रिया थी? उनकी प्रतिक्रिया क्या बेटे नकुल के राजनीतिक करियर को बचाने के लिए थी?

6 फरवरी को नकुलनाथ ने पारिवारिक लोकसभा क्षेत्र छिंदवाड़ा से खुद को उम्मीदवार घोषित कर दिया। कमलनाथ तुरंत बेटे के समर्थन में आ गए। उन्होंने कहा, ‘जैसे ही एआईसीसी उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करेगी, नकुल की उम्मीदवारी तय हो जाएगी।’ यह सिर्फ जानकारी देने जैसा नहीं था कि कांग्रेस पार्टी छिंदवाड़ा से नकुल को उम्मीदवार बनाएगी, बल्कि यह दावेदारी थी।

8 से 18 फरवरी के बीच जो कुछ हुआ वह किनारे बैठकर समुद्र की गहराइयों का अंदाजा लेने जैसा था। प्रदेश कांग्रेस के लीगल हेड भाजपा में चले गए। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ, दोनों के करीबी और एमपी कांग्रेस के कोषाध्यक्ष के राज्यसभा के लिए नामित होने से पहले कई दिनों तक चर्चा चलती रही कि कमलनाथ राज्यसभा भेजे जा सकते हैं। पांच दिन बाद छिंदवाड़ा में दर्जनों कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया।

16 फरवरी को मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने घोषणा की कि पार्टी के दरवाजे नाथ पिता-पुत्र के लिए खुले हैं और अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से बहिष्कार से कई कांग्रेसी अपनी पार्टी से ‘आहत’ हैं। नकुल के सोशल मीडिया से कांग्रेस का लोगो हट गया। 18 फरवरी को पिता-पुत्र की जोड़ी दिल्ली पहुंची तो यह अभी नहीं तो कभी नहीं वाला क्षण था। क्या यह सिर्फ संयोग था?

उनके खेमे ने ‘मान-सम्मान’ को ठेस पहुंचाने का राग अलापा। कमलनाथ अफवाहें बंद कर सकते थे। इसके बजाय, उन्होंने जंगल की आग को फैलने दिया। इस आग की लपटें फिलहाल शांत दिख रही हैं। इसका साफ मतलब है कि कांग्रेसियों के लिए दरवाजे खुले होने की घोषणा के बावजूद भाजपा ने नाथ पिता-पुत्र के प्रति गर्मजोशी नहीं दिखाई। कैलाश विजयवर्गीय ने दो टूक कहा कि भाजपा को नाथ की क्या जरूरत ? 21 फरवरी को जब मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव छिंदवाड़ा आए तो नकुल ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। इसके तुरंत बाद सैकड़ों कांग्रेस कार्यकर्ता भाजपाई हो गए। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कांग्रेस का एक वर्ग फिर से मजबूत स्थिति में आ गया है।

ऐसा माना जाता है कि भाजपा छिंदवाड़ा को मोदी के मिशन 370 की राह में एक कदम के रूप में देखती है। नकुल का छिंदवाड़ा की जनता पर अपने पिता जैसा प्रभाव संभवतः नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनावों में उनकी जीत का अंतर 37 हजार वोटों का था जो कि 2014 में कमलनाथ की जीत के अंतर के एक तिहाई से भी कम है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश को 29-0 से जीतने का संकल्प लिया है। 2023 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत के अगले दिन, कमलनाथ बेटे नकुल के साथ शिवराज सिंह चौहान के दरवाजे पर पहुंचे। विडंबना यह है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के तुरंत बाद सिंधिया ने एक शाम अपनी कार चौहान के आवास की ओर मोड़ दी थी। एक साल बाद वो भाजपा के खेमे में चले गए।

भाजपा के लिए नाथ कोई बड़ी उपलब्धि नहीं हो सकते हैं, लेकिन एक बहुत मूल्यवान व्यक्ति जरूर हैं क्योंकि वो इंदिरा युग के कांग्रेस नेताओं में से आखिरी हैं। हालांकि, भाजपा को नाथ को लेकर अपने सिख मतदाताओं को समझाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि 1984 के दंगों की छाया अभी भी उन्हें परेशान करती है। क्या भाजपा अपने सबसे बड़े समर्थन आधारों में से एक को नाराज करने का जोखिम उठा सकती है, खासकर जब किसान फिर से मैदान में उतर गए हैं।

भाजपा को नाथ संपत्ति के बजाय बोझ भी सिद्ध हो सकते हैं। उन्हे राजभवन भी नहीं भेजा जा सकता। वैसे भी, भाजपा मध्य प्रदेश में दिग्गजों की लगातार बढ़ती संख्या, विशेषकर कांग्रेस से आए नेताओं की महत्वाकांक्षाओं से जूझ रही है। फिर सिंधिया के साथ नाथ का समीकरण भी देखना होगा। 2018 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की जीत को राहुल गांधी ने ‘उत्साह पर अनुभव की जीत’ समझकर मुख्यमंत्री की कुर्सी कमलनाथ को सौंप दी तो ग्वालियर के वंशज सिंधिया निराश हो गए।

राज्यसभा सीट को लेकर कोने में धकेले गए सिंधिया ने आखिर कह ही दिया, ‘अब बहुत हो गया।’ जुलाई 2020 में अपने सहयोगियों को शिवराज के नेतृत्व वाली भाजपा कैबिनेट में विभागों का बड़ा हिस्सा दिलाने के बाद सिंधिया दहाड़े, ‘कमलनाथ और दिग्विजय सुनो, टाइगर जिंदा है।’ तब नाथ ने उन्हें ‘पेपर टाइगर’, ‘सर्कस टाइगर’ कहकर मजाक उड़ाया था। यदि अनुभव और उत्साह एक ही खेमे में वापस आ गए, तो भाजपा को यह भी लग सकता है कि ये कांग्रेसी क्षत्रप उनके यहां भी दो ध्रुव न बन जाएं।
क्या तूफान खत्म हो गया है? किसी दृष्टि से नहीं। राहुल गांधी की यात्रा 2 मार्च को मध्यप्रदेश पहुंचेगी। कमल नाथ प्रकरण अभी खत्म नहीं हुआ है।

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