अतीक पुराण: गिरोह में हिंदुओं की भरमार, सताये लोगों में मुसलमान कम नहीं

अतीक़ अहमद के अपराध की दुनिया में मज़हब की कितनी जगह थी? – ग्राउंड रिपोर्ट

1989 में एसके यादव इलाहाबाद में नॉर्दर्न इंडिया पत्रिका में फोटो जर्नलिस्ट थे.उनके बड़े भाई इलाहाबाद के करैली इलाक़े के बी ब्लॉक में रहते एक मेडिकल स्टोर चलाते थे. भाभी पास ही सरकारी स्कूल में शिक्षिका थीं. उन्हें अतीक़ अहमद के गाँव कसारी-मसारी से होते हुए स्कूल जाना पड़ता था.

वे रोज़ बस से स्कूल जाती थीं. यादव तब शहर के पश्चिमी इलाक़े में रहते थे, जहाँ अतीक़ अहमद मारा गया.

एक दिन एसके यादव को पता चला कि उनकी भाभी से बस में एक लड़का छेड़छाड़ करता है. यह एसके यादव को उनके भैया ने ही बताई और कहा कि ये गुंडे हाथ लगाने से भी बाज़ नहीं आ रहे हैं.

यादव पत्रकार थे इसलिए उनके भैया को लगा कि बताने से छेड़छाड़ रुक जाएगी. एक दिन हद ही हो गई. एसके यादव के भैया के सामने ही उनकी बीवी से गुंडों ने छेड़छाड़ की और विरोध करने पर हमला कर दिया. गुंडों ने एसके यादव के भैया को मारा भी.

एसके यादव के भैया के लिए अपमान का घूँट पीकर रहना आसान नहीं था. यादव अपने भैया के साथ थाने में एफ़आईआर दर्ज कराने गए.

एफ़आईआर ले ली गई लेकिन कार्रवाई नहीं हुई. गुंडों को पता चला कि इन्होंने पुलिस में शिकायत की है, तो बदतमीज़ी और बढ़ गई.

एसके यादव ने अपने क्राइम रिपोर्टर से बात करके नॉर्दर्न इंडिया में ख़बर छपवाई. ख़बर की हेडिंग थी- जब शिक्षिका गुंडों से घिर जाती है. ख़बर छपने पर पुलिस ने  गुंडा गिरफ़्तार किया.

पुलिस पर गंभीर आरोप

एसके यादव पुलिस पर आरोप लगाते हैं, ”पुलिस उन्हें दोस्त की तरह अगली सीट पर बैठाकर ले गई थी. एक दिन रात में साढ़े 12 बजे मेरे भैया दहशत में घर आए और कहा कि हमें थाने पर बुलाया पुलिस ने कहा है कि एक बार सोच लीजिए. अपने पत्रकार भाई को भी समझा दीजिए. चैन से रहना है तो एफ़आईआर वापस ले लीजिए. हम इसे कल कोर्ट में पेश करेंगे और ज़मानत मिल जाएगी.  ये छूटेगा तो क्या होगा, आप समझिएगा. थाना प्रभारी ने साफ़ कहा कि यह अतीक़ का आदमी है, सोच लीजिए.”

एसके यादव कहते हैं, ”भैया ने कहा कि मर जाना ठीक है लेकिन इस जलालत के साथ ज़िंदा रहना ठीक नहीं. हमने एफ़आईआर वापस नहीं ली और वह गुंडा दो दिन में ही छूट गया. भैया के मेडिकल स्टोर पर कुछ गुंडे बाइक से आने लगे और डराना शुरू कर दिया. तब अतीक़ अहमद विधायक था और इलाहाबाद के रीजेंसी होटल में उसकी प्रेस कॉन्फ़्रेंस थी.”

 

”मैंने प्रेस कॉन्फ़्रेंस के बाद अतीक़ से बात की कि भाई ऐसा-ऐसा मामला है और मेरे भैया डरे हुए हैं. वहाँ से मकान बेचकर जाने की बात कर रहे हैं. इस पर अतीक़ ने कहा- अमे वो तुम्हार मामला है? मैंने कहा कि हाँ, मेरे सगे भाई है. अतीक़ ने कहा- भैया से कह दो कि मकान बेचने की ज़रूरत नहीं है. आराम से रहें. अब कोई नहीं जाएगा. उसके बाद से छेड़छाड़ बंद हो गई. लेकिन बाद में भैया ने वहाँ से मकान और दुकान बेच दिए.महत्वपूर्ण बात यह है कि हम जिन बदमाशों से परेशान होकर थाने गए थे, जहाँ से हमें राहत मिलनी थी, वहाँ से हमें और डराया गया. कहा गया कि इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करवाएँगे तो बुरा अंजाम भुगतना होगा. हमें राहत गुंडों के सरगना से मिली.”

हालात ये थे कि अतीक़ के सताए लोगों को अतीक़ के पास ही जाना पड़ता था और दूसरे लोगों से सताए लोग भी अतीक़ के पास ही राहत को जाते थे.

जिस चकिया में अतीक़ अहमद का घर था, वहीं की सुल्ताना नाम की एक महिला ने बताया, ”अतीक़ के पास हम शौक़ से नहीं जाते थे. अगर पुलिस थाने से हमें बेइज्ज़त करके नहीं भगाया जाता, सरकारी अस्पताल में बच्चों का इलाज होता और बेटी की शादी में सरकार से मदद मिलती तो अतीक़ के पास नहीं जाती. हर मुश्किल में हमें अतीक़ से मदद मिलती थी. मेरे लिए तो असली सरकार वही था.”

अतीक़ अहमद के ‘आतंक की दास्तां’

अतीक़ अहमद

इलाहाबाद में अतीक़ अहमद की गुंडई और ज़रूरतमंदों को मदद करने की कहानियाँ भरी पड़ी हैं. अतीक़ और उनके भाई अशरफ़ की एक गुंडई का वाक़या इलाहाबाद सीटी के एसपी रहे लालजी शुक्ला बताते हैं.

1998 में प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू था. लालजी शुक्ला पुलिस अधीक्षक यमुना पार के पद पर तैनात थे.

अशोक साहू इलाहाबाद में सिविल लाइंस थाना क्षेत्र के थे. सिविल लाइंस में ही अशोक साहू और अतीक़ के छोटे भाई अशरफ़ के बीच पार्किंग को लेकर विवाद हो गया.

अशोक साहू को नहीं पता था कि जिससे बहस हुई है, वह अतीक़ अहमद के भाई अशरफ़ हैं. जब पता चला तो साहू डर गए.

इसी डर से उन्होंने अतीक़ अहमद से माफ़ी मांगी. लेकिन अतीक़ को यह बात बहुत बुरी लगी. अतीक़ ने साहू से कहा कि ठीक है जाओ लेकिन तुमने अच्छा नहीं किया है.

अशोक साहू को लग रहा था कि उन्होंने माफ़ी मांग ली है तो अब कुछ नहीं होगा.

 

लालजी शुक्ला कहते हैं, ”दो दिन बाद ही 19 जनवरी 1996 की शाम अशरफ़ ने अशोक साहू की हत्या कर दी. यह हत्या अशरफ़ ने अतीक़ अहमद की शह पर की थी. हत्या की ख़बर पर मैं भी घटनास्थल पहुँचा. अतीक़ के ख़िलाफ़ अशोक साहू के परिवार वालों ने मुक़दमा कराया. तब सीनियर एसपी रजनीकांत मिश्र ने मुझे इस मामले को देखने को कहा. जाँच के बाद चौंकाने वाले तथ्य आए. हत्या के वक़्त अशरफ़ को चंदौली में अवैध हथियार रखने के मामले में गिरफ़्तार दिखा दिया गया. यह कैसे संभव था कि अशरफ़ ने इलाहाबाद में हत्या की और उसी वक़्त इलाहाबाद से क़रीब 200 किलोमीटर दूर चंदौली में गिरफ़्तार दिखाया जा रहा है. लेकिन अतीक़ अहमद के बचने का यह पुराना तरीक़ा था.”

अतीक़ अहमद ने इस जाँच को लेकर अग्रिम ज़मानत के लिए हाई कोर्ट में अपील की, लेकिन सुनवाई से पहले ही ख़ारिज होने के डर से अर्जी वापस ले ली.

अतीक़ अहमद को लगा कि बचना मुश्किल है तो अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए पूरी जाँच सीबी-सीआईडी को ट्रांसफ़र करवा दी. मामला इलाहाबाद पुलिस के हाथ से निकल गया. लेकिन सीबी-सीआईडी से भी राहत नहीं मिली और पुख़्ता सबूत मिले. सीबी-सीआईडी ने भी गिरफ़्तारी को कहा.

जब अतीक़ की हुई थी गिरफ़्तारी

लालजी शुक्ला

तब सिटी एसएसपी रजनीकांत मिश्रा ने लालजी शुक्ला को गिरफ़्तार करने के लिए कहा.

लालजी शुक्ला कहते हैं, ”भारी सुरक्षा बल के साथ हम अतीक़ को गिरफ़्तार करने चकिया गए. जब मैं अतीक़ के कार्यालय पहुँचा, तो वह बैठा था. मेरे साथ सीटी एसपी भी थे. मैंने अतीक़ अहमद से कहा कि आप गिरफ़्तार किए जाते हैं. अतीक़ अहमद ने इसके जवाब में कहा- लीजिए साहब हम गिरफ़्तार हैं. आपका आदेश. उस वक़्त बहुत ही विचित्र परिस्थिति थी. अतीक़ के सामने सीआरपीएफ़ के  आईजी वर्दी में बैठे हुए थे. वह तत्कालीन रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव से अपने बेटे की सिफ़ारिश कराने अतीक़ के पास आए थे. मुझे देख वह असहज हो गए, लेकिन मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा और अतीक़ को गिरफ़्तार कर चल दिया.”

अतीक़ अहमद की तुलना में उनके भाई अशरफ़ अहमद की गुंडई की कहानियाँ ज़्यादा हैं.

कहा जाता है कि अतीक़ अहमद अपने भाई से इतना प्यार करता था कि हर जुर्म के बाद बचाने को तैयार रहता था.

2007 में इलाहाबाद के महमूदाबाद में बिसौना रोड पर स्थित एक मदरसे से दो लड़कियां उठा ली गई थी. उनसे रेप हुआ था. इल्ज़ाम अशरफ़ पर था, लेकिन पुलिस ने एफ़आईआर तक दर्ज नहीं लिखी.

एफ़आईआर अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ हुई थी. इसमें भी अभियुक्तों को अतीक़ अहमद ने बचाया था.

आरोप हैं कि अशरफ़ अहमद के लिए शहर में हत्या करना और लड़कियों को उठवा लेना आम बात थी और ऐसा अतीक़ अहमद की शह पर ही होता था.

मुसलमानों के बीच अतीक़ अहमद की छवि

महमूदाबाद में जहाँ यह मदरसा है, वहीं एक मस्जिद है. उस मस्जिद में अलविदा जुमे की नमाज़ पढ़ने कुछ मु्स्लिम युवा जा रहे थे.

उनमें से एक व्यक्ति से उस मदरसे की लड़कियां उठाने के बारे में पूछा, तो वे नाराज़ हो गए. वे नाराज़ थे कि पुराने मामला अब क्यों उठाया जा रहा है.

इसमें अशरफ़ के शामिल होने की बात पूछी, तो उनका जवाब था, ”एक मुसलमान अपनी कौम की लड़की के साथ ऐसा कभी नहीं कर सकता. सब झूठ है.”

क्या इस्लामिक देशों में बलात्कारी मुसलमान नहीं होते हैं? यह सवाल सुनकर बिना जवाब दिए वह मस्जिद में चला गया.

मुसलमानों के बीच भी अतीक़ अहमद को लेकर राय बँटी हुई है.

लेकिन एक बात पर सबकी आपत्ति है कि तमाम चीज़ें होने के बावजूद अतीक़ को ऐसे नहीं मारा जाना चाहिए था. सज़ा कोर्ट से मिलनी चाहिए थी.

शहर के कई हिंदुओं से बात की, तो उनका भी यही कहना था कि कोर्ट से अतीक़ को सज़ा मिलती, तो ज़्यादा अच्छा रहता.

मोहम्मद रेहान इलाहाबाद में करैली के ही हैं और उर्दू अदब में भारत के विभाजन पर लिखे गए उपन्यास पर शोध कर रहे हैं.

उन्हें इस बात पर आपत्ति है कि मीडिया में अतीक़ अहमद  मुसलमानों का हीरो बताया जा रहा है.

मोहम्मद रेहान कहते हैं, ”अतीक़ ने हिंदुओं से ज़्यादा मुसलमानों को मारा. मुसलमानों की ज़मीन पर भी कब्ज़ा किया था. मैंने अपने इलाक़े में अतीक़ और उनके भाई की दबंगई बख़ूबी देखी है. भारतीय मीडिया में ऐसे बता रहा है, मानो अतीक़ मुसलमानों का हीरो था. ऐसा बिल्कुल नहीं था. जिनके हीरो थे, उनके रहे होंगे. हाँ मैं, ये ज़रूर कहता हूँ कि अतीक़ को ऐसे नहीं मारा जाना चाहिए था. कोर्ट से ही अतीक़ को सज़ा मिलनी चाहिए थी. अतीक़ के पीड़ित हिंदू भी थे और मुसलमान भी.”

2004 में फूलपुर से पर्चा भरते अतीक़ अहमद

अतीक़ अहमद और वकीलों की फौज

अतीक़ अहमद के ज़्यादातर वकील ब्राह्मण रहे हैं.

अतीक़ अहमद के मारे जाने से पहले तक वकील रहे विजय मिश्रा कहते हैं, ”अतीक़ अहमद की लीगल टीम में सभी ब्राह्मण ही थे. वो चाहे दयाशंकर मिश्रा हों या राधेश्याम पांडे. इसके अलावा सतीश त्रिवेदी, हिमांशु जी और मैं भी ब्राह्मण ही हूँ. अतीक़ अहमद के अकाउंटेंट सीताराम शुक्ला भी ब्राह्मण ही थे. अतीक़ अहमद के साथ हिंदू ज़्यादा रहे हैं और उनके हिंदू विश्वासपात्रों की संख्या बड़ी संख्या में रही है. हिंदू लड़कियों की शादी में ख़र्च भी अतीक़ अहमद करते थे. जब अतीक़ अहमद सांसद थे, तो योगी जी भी सांसद थे और दोनों की अच्छी बातचीत होती थी.”

अतीक अहमद के शूटर में भी कई हिंदू शामिल थे. अतीक़ अहमद के एक वकील ने नाम नहीं लिखने की शर्त पर बताया, ”सच यह है कि अतीक़ अहमद ने हिंदुओं की तुलना में ज़्यादा मुसलमानों की हत्या कराई और लूटा.”

शहर के एक जाने-माने मु्स्लिम लेखक ने नाम नहीं लिखने की शर्त पर बताया कि गिरीश वर्मा को अतीक़ अहमद बहुत तवज्जो देते थे. अतीक़ अहमद गिरीश वर्मा को चाचा कहते थे और पैर छूकर प्रणाम करते थे. वर्मा इलाहाबाद हाई कोर्ट में डिप्टी रजिस्ट्रार थे.

अतीक़ अहमद उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के साथ

अतीक अहमद मसीहा?

अतीक़ अहमद की मसीहा वाली छवि को लेकर लालजी शुक्ला कहते हैं, ”अतीक़ अहमद जिन्हें मसीहा लगता था, उन्हें लुटेरे और हत्यारे की मदद लेने से परहेज़ नहीं था. किसी एक की करोड़ों की संपत्ति लूटकर उनमें से कुछ हज़ार रुपए ग़रीबों को देना अगर मसीहा होना होता है तो समाज को भगवान भी नहीं बचा पाएगा. सच कहिए तो यह सबसे आसान होता है और सारे अपराधी अपने अपराध को समाज में स्वीकार्य बनाने को इसी का सहारा लेते हैं.”

लालजी शुक्ला कहते हैं, ”जिसे समाज विधायक और सांसद बना रहा है, वही समाज चाहता है कि उसकी गुंडई पुलिस कंट्रोल कर ले. ऐसा कैसे हो सकता है? समाज को सोचना होगा. सारी ज़िम्मेदारी पुलिस पर डाल देना अपनी ज़िम्मेदारी से बचना हुआ.”

मजीदिया इस्लामिया इंटर कॉलेज में उर्दू प्रोफ़ेसर रहे प्रगतिशील लेखक संघ के पूर्व सचिव असरार अहमद कहते हैं कि अगर कोई कौम अपराधी को अपना हीरो मानने लगती है, तो इसका एक मतलब यह भी है कि उस कौम में असुरक्षा भावना है और यह असुरक्षा की भावना ही उस अपराधी को पनपाती है.

असरार अहमद कहते हैं कि शायर मुन्नवर राना को भी अपना फँसा पैसा निकलवाने को अतीक़ अहमद से मदद मांगनी पड़ती थी.

अतीक़ अहमद के रियल एस्टेट कारोबार में साझेदार कई हिंदू ही थे और सबने जमकर अतीक़ की हैसियत का फ़ायदा उठाया था.

अतीक़ अहमद की हैसियत

अतीक़ अहमद को मुशायरे का बहुत शौक़ था. विधायक रहते उसने कई मुशायरे  कराये थे.

1992 में अतीक़ अहमद ने एक मुशायरा आयोजित कराया था. मुशायरे में शहर के एक जाने-माने लेखक की किताब का विमोचन था.

मंच पर अतीक़ अहमद मुख्य अतिथि था. शायरों में कैफ़ी आज़मी, जावेद अख़्तर, सरदार अली ज़ाफ़री समेत कई बड़े नाम थे.

असरार अहमद से पूछा कि क्या इन शायरों को अतीक़ अहमद के आयोजित मुशायरे से दिक़्क़त नहीं होती थी?

वे कहते हैं, ”इन मुशायरों में वसीम बरेलवी और निदा फ़ाज़ली भी आते थे. एक बार निदा फ़ाज़ली ने मुझसे पूछा था कि मुशायरे में आने का इतना पैसा मुझे कहाँ से मिलता है तो मैंने उनसे कहा था कि अतीक़ इलाहाबादी से पूछिए.” अतीक़ इलाहाबादी शहर के लोकप्रिय शायर थे.

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफ़ेसर रहे हेरंब चतुर्वेदी अतीक़ अहमद की दबंगई की मिसाल देते हुए कहते हैं, ”80 के दशक में जब प्रदेश बिजली की भयंकर कटौती होती थी, तब हमारी कोतवाली में जेनरेटर अतीक़ अहमद देता था. अतीक़ के उभार में भाजपा-सपा और मायावती की सरकार घूम फिरकर आती रही है. कोई ऐसी पार्टी नहीं थी, जिसका संबंध अतीक़ से नहीं था. जब मायावती ने अतीक़ को टाइट किया तो प्रदेश के एक बड़े राजनेता ने अपने घर में शरण दी थी.”

चतुर्वेदी कहते हैं, ”माइग्रेन में सेरिडॉन कोई स्थायी उपाय नहीं है और योगी सेरिडॉन से ही माइग्रेन ख़त्म करने की कोशिश में हैं. दरअसल, योगी गुजरात मॉडल पीछे छोड़ना चाहते हैं और सारी कोशिश इसी चाहत के लिए है.”

हेरंब चतुर्वेदी कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता है कि जावेद अख़्तर और निदा फ़ाज़ली को अतीक़ अहमद के फंड की जानकारी रही होगी. मुशायरे अंजुमन अदब से होते थे, भले उसमें फंड अतीक़ अहमद का था.

इलाहाबाद के अख़बारों में लीगल रिपोर्टर रहे और अभी इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकील चंद्रशेखर सिंह को अतीक़ अहमद से भेंट अब भी याद है. वे बताते हैं, ”मैं उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता एसएमए काज़िम से मिलने गया था. काज़िम अतीक़ अहमद के क़रीबी थे. अतीक़ अहमद ने मुझे देखते ही राजा भैया की बात छेड़ कहा कि राजा भैया को अपनी जाति के पढ़े लिखे लोगों को मिलाकर रखना चाहिए. उसे लगता था कि राजा भैया अपरिपक्व हैं.”

चंद्रशेखर सिंह को याद है कि अतीक़ अहमद की बहन की शादी में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह से लेकर प्रदेश के भाजपा के भी बड़े नेता शामिल हुए थे. वह कहते हैं कि प्रशासन का पूरा अमला अतीक़ की बहन की शादी में लगा था.

चंद्रशेखर सिंह अतीक़ की गुंडई का एक और वाक़या बताते हैं ”1989 में एक दिन अतीक़ अहमद इलाहाबाद के धूमनगंज थाने आया और एक एसआई को थाना प्रभारी से बात कराने को कहा. एसआई से कुछ बहस हुई और अतीक़ अहमद ने उसे बहुत मारा. इसे लेकर थाने में हंगामा हो गया. तब सिटी एसपी ओपी सिंह थे और उन्होंने अतीक़ को निपटाने का मन बना लिया. लेकिन राजनीतिक दबाव से ऐसा नहीं हो पाया था. ओपी सिंह को मजबूरी में सारी योजना रद्द करनी पड़ी थी.”

अतीक़ अहमद

अतीक़ अहमद और उत्तर प्रदेश में भाजपा के दिग्गज नेता रहे केशरीनाथ त्रिपाठी से संबंधों के कई क़िस्से भी इलाहाबाद में चर्चित हैं.

एक पत्रकार अपना नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर कहते हैं, ”अतीक़ अहमद के केशरीनाथ त्रिपाठी से बहुत अच्छे संबंध थे. कई मौक़ों पर अतीक़ अहमद को गिरफ़्तार होने से त्रिपाठी ने बचाया था. केशरीनाथ त्रिपाठी का निधन अतीक़ अहमद को बड़ा झटका था. केशरीनाथ त्रिपाठी को अतीक़ अहमद कार गिफ़्ट करते थे और क़ानूनी मदद भी  कराते थे. इलाहाबाद में एक लेखिका के घर केशरीनाथ त्रिपाठी ने ख़ुद कहा था कि उन्होंने कई बार अतीक़ अहमद को मारे जाने से बचाया है.”

केशरीनाथ त्रिपाठी के बेटे नीरज त्रिपाठी योगी सरकार के अपर महाधिवक्ता हैं. नीरज से पूछा कि उनके पिता और अतीक़ अहमद के संबंध कैसे थे?

नीरज त्रिपाठी ने कहा, ”मेरे पिता की इज़्ज़त हर समुदाय और पार्टी के लोग करते थे. मेरे पिता विधानसभा अध्यक्ष भी थे और अतीक़ अहमद विधायक थे. ऐसे में बातचीत और औपचारिक संबंध कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन मैं ये नहीं मानता हूँ कि मेरे पिता ने अतीक़ अहमद को बचाया था.”

अतीक़ अहमद के टूटे घर

तांगे वाले के बेटे का अतीक़ अहमद बनना

फ़िरोज़ अहमद अपना घर चलाने को इलाहाबाद जंक्शन से शहर के कई इलाक़ों में तांगा चलाता था.

फ़िरोज़ अपने दो बेटों अतीक़ अहमद और अशरफ़ अहमद के अलावा तीन बेटियाँ शाहीन, परवीन और सीमा के साथ इलाहाबाद के चकिया में रहता था.

अतीक़ अहमद जब 17 साल का था, तभी उस पर हत्या का एक मुक़दमा दर्ज हुआ था. यह साल 1979 था.

अतीक़ अहमद 10वीं फेल था लेकिन गैंगवार और बाहुबल से इलाहाबाद और आसपास के इलाक़े में बेशुमार ताक़त हासिल की.

इलाहाबाद में अतीक़ अहमद की दस्तक तब हुई, जब शहर में शौक-ए-इलाही उर्फ़ चांद बाबा की गुंडई चरम पर थी.

अतीक़ अहमद ने शुरुआत में चांद बाबा के साथ काम किया लेकिन 1989 के चुनाव में उम्मीदवारी को लेकर विवाद में चांद बाबा की हत्या हो गई.

हत्या का इल्ज़ाम अतीक़ अहमद पर लगा. चांद बाबा की हत्या के साथ ही अतीक़ का मज़बूत उभार हुआ. अतीक़ का अंत भी हत्याकांड से ही हुआ और वो हत्या इसी साल 24 फ़रवरी को उमेश पाल की थी.

ऐसा नहीं था कि अतीक़ अहमद के उभार के पहले इलाहाबाद में किसी ओर माफ़िया डॉन का दबदबा नहीं था.

एक समय इलाहाबाद में भुक्खल महाराज का भी बोलबाला था जो जाति से ब्राह्मण था.

इलाहाबाद में गैंगवार और राजनीति के अपराधीकरण पर नज़र रखने वाले मोहम्मद जाहिद कहते हैं, ”भुक्खल महाराज के पिता पंडित जगत नारायण करवरिया की कौशांबी में धाक थी. पंडित जगत नारायण करवरिया कौशांबी के घाटों और बालू खनन के बेताज बादशाह थे. उनके दो बेटे थे श्याम नारायण करवरिया उर्फ़ मौला महाराज और वशिष्ठ नारायण करवरिया ऊर्फ़ भुक्खल महाराज. भुक्खल महाराज अपने समय के सबसे बड़े बमबाज़ थे. यह दोनों भाई इलाहाबाद आए और शहर के कल्याणी देवी मुहल्ले में हवेली बनवा रहने लगे और बालू खनन के साथ साथ रियल स्टेट के धंधे के बेताज बादशाह बने.”

लेकिन इसके बावजूद भुक्खल महाराज ने अतीक़ अहमद को कभी चुनौती नहीं दी. भुक्खल महाराज ही क्यों, अतीक़ अहमद का वैर उत्तर प्रदेश में  किसी भी दूसरे बाहुबली से नहीं रहा.

भुक्खल महाराज के तीनों बेटे उदयभान करवरिया, सूरजभान करवरिया और कपिल मुनी करवरिया ने समाजवादी पार्टी के विधायक जवाहर यादव की 1996 में हत्या कर दी थी. इस हत्या के लिए तीनों को अदालत ने दोषी ठहराया और तीनों को उम्र क़ैद सज़ा मिली .

तब अखिलेश यादव 2012 में मुख्यमंत्री बने. भुक्खल महाराज के परिवार का रिश्ता बसपा और भाजपा से रहा है. कपिल मुनी करवरिया फूलपुर में बसपा से सांसद बने थे. वहीं उदयभान की बीवी नीलम करवरिया भाजपा के टिकट पर मेजा से विधायक थीं.

अतीक़ अहमद की वफ़ादारी अपने हितों के साथ बदलती रही है. लेकिन कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के दिग्गज नेता केशरीनाथ त्रिपाठी से अतीक़ अहमद के संबंध कभी डगमगाए नहीं.

1996 में लखनऊ के गेस्ट हाउस कांड में मायावती के साथ बदतमीजी में अतीक़ अहमद मुख्य अभियुक्त थे, तो उन्होंने 2008 में अमेरिका-भारत परमाणु करार में समाजवादी पार्टी के सांसद होने के बावजूद मनमोहन सरकार के ख़िलाफ़ मतदान किया था.

मुलायम सिंह ने अतीक़ अहमद को अपनी पार्टी के टिकट पर फूलपुर से सांसद बनाया था, लेकिन संसद में वोट करते समय अतीक़ ने पाला बदल लिया था।

अतीक़ अहमद की राजनीतिक यात्रा

इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से अतीक़ अहमद 1989 में पहली बार निर्दलीय विधायक चुना गया था.

अतीक़ अहमद का उत्तर प्रदेश में उभार तब हो रहा था, जब उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में मंडल और कमंडल की राजनीति सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जोरों पर था.

इसी विधानसभा सीट से अतीक़ अहमद और दो बार निर्दलीय विधायक चुना गया. 1996 में अतीक़ समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीता.

1998 में अतीक़ को समाजवादी पार्टी से बाहर निकाला गया और 2002 में वह अपना दल में शामिल हो गया.

2002 में इलाहाबाद पश्चिम से अतीक़ अहमद अपना दल के टिकट पर चुनाव जीता.

अतीक़ को समाजवादी पार्टी ने दोबारा फूलपुर से 2004 के लोकसभा में चुनाव में उम्मीदवार बनाया.

यह वही फूलपुर है, जहाँ से जवाहलाल नेहरू सांसद रहे हैं. अतीक़ अहमद यहाँ से भी जीता .

2004 से 2008 तक अतीक़ अहमद राजनीतिक रूप से काफ़ी प्रभावी रहा. लेकिन इसके बाद वह कभी चुनाव नहीं जीत पाया.

2014 में भाजपा के उभार से अतीक़ के प्रभाव का अंत शुरू हो गया. 2019 में अतीक़ अहमद ने बनारस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ पर्चा भरा था, लेकिन मात्र 855 वोट मिले थे.

चकिया इलाहाबाद

अतीक़ अहमद के सांसद बनने के बाद इलाहाबाद पश्चिम सीट ख़ाली हुई और उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने अतीक़ के छोटे भाई अशरफ़ को टिकट दे दिया.

मायावती ने 2005 में इलाहाबाद पश्चिम से राजू पाल को अशरफ़ के ख़िलाफ़ उतारा. राजू पाल का भी उस इलाक़े में ख़ासा दबदबा था.

एसके यादव कहते हैं, ”मायावती ने राजू पाल के समर्थन में इलाहाबाद रैली में ललकारा था कि अतीक़ का आतंक राजू पाल खत्म करेगा. सुबह अख़बारों में पहले पन्ने पर मायावती का यही बयान हेडलाइन बना. गेस्टहाउस में अपने साथ बदतमीजी मायावती भूली नहीं थीं. राजू पाल ने भी उपचुनाव में अतीक़ और उसके भाई की एक नहीं चलने दी और जीत दर्ज की. राजू पाल की जीत अतीक़ अहमद बर्दाश्त नहीं कर पाया और हत्या करवा दी.”

अतीक़ अहमद मुलायम सिंह यादव के बेहद ख़ास थे लेकिन 22 जुलाई 2008 को संसद में भारत-अमेरिका परमाणु करार पर वोटिंग में पार्टी व्हिप का उल्लंघन किया था.

अमेरिका से परमाणु समझौते के ख़िलाफ़ संसद में विश्वासमत प्रस्ताव लाया गया था. मनमोहन सिंह सरकार को समर्थन दे रहीं लेफ़्ट पार्टियाँ इसके ख़िलाफ़ थीं और अपना समर्थन वापस ले लिया था.

अल्पमत में आई मनमोहन सरकार को मुलायम सिंह ने समर्थन देकर बचाया था. तब समाजवादी पार्टी के 39 सांसद थे. उस वक़्त अतीक़ अहमद एक हत्या में मैनपुरी जेल में था लेकिन कोर्ट के आदेश पर वह संसद के विशेष सत्र में वोट देने आया था.

अतीक़ अहमद ने पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ जाकर मनमोहन सिंह के ख़िलाफ़ वोट किया था.

संसद में तब बहुत ही दुर्लभ पल था जब लेफ़्ट पार्टियाँ और भाजपा, मनमोहन सिंह के विरोध में एक साथ आ गई थीं.

मायावती के 17 सांसदों ने भी मनमोहन सिंह के ख़िलाफ़ ही वोट किया था. हालाँकि जीते मनमोहन सिंह ही थे.

कहा जाता है कि अतीक़ अहमद तब मायावती और बसपा के साथ आना चाहते थे इसलिए उन्होंने समाजवादी पार्टी के व्हिप का उल्लंघन किया था.

तब प्रदेश में मायावती ही मुख्यमंत्री थीं और अतीक़ के ख़िलाफ़ सख़्त थीं. मायावती ने 2007 में अतीक़ अहमद का दफ़्तर ध्वस्त करवा गिरफ़्तार करवाया था.

अतीक़ अहमद का अंत

अतीक़ अहमद का उभार और अंत इलाहाबाद के चकिया इलाक़े में ही हुआ.

चकिया में अतीक़ अहमद के ध्वस्त आलीशान घर और क़ब्रिस्तान के बीच की दूरी मुश्किल से एक किलोमीटर है.

इसी क़ब्रिस्तान में अतीक़ अपने भाई अशरफ़ के साथ 16 अप्रैल को दफ़्न किया गया. कुछ दिन पहले ही अतीक़ के बेटे असद अहमद को इसी क़ब्रिस्तान में दफ़्न किया गया था.

अतीक़ के दो और नाबालिग़ बेटे अबान और ऐज़म क़ब्रिस्तान से मात्र एक किलोमीटर दूर राजरूपपुर के बाल संरक्षण केंद्र में हैं. इन्हें 16 अप्रैल को बता दिया गया था कि पिता और चाचा की हत्या हो गई है. अतीक़ अहमद के दो और बेटे उमर अहमद और अली अहमद जेल में बंद हैं और उनकी पत्नी शाइस्ता फ़रार हैं.

अतीक़ अहमद से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

1–1979 में 17 साल की उम्र में अतीक़ अहमद के ख़िलाफ़ हत्या का मुक़दमा दर्ज हुआ
2–1984 में अतीक़ के ख़िलाफ़ एक और हत्या का मुक़दमा दर्ज हुआ
3–1989 में सभासद शौक़-ए-इलाही उर्फ़ चांद बाबा की हत्या का इल्ज़ाम अतीक़ अहमद पर लगा
4–1989 में ही अतीक़ अहमद पहली बार इलाहाबाद पश्चिम से विधायक चुने गए और 1991 के बाद 1993 में भी जीत मिली
5–1995 में लखनऊ गेस्ट हाउस कांड में मायावती पर हमले के मामले अतीक़ के ख़िलाफ़ मामला दर्ज
6–1996 में इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से अतीक़ समाजवादी पार्टी के टिकट से जीते
7–1998 में अतीक़ को समाजवादी पार्टी से बाहर निकाल दिया गया और अपना दल में शामिल हो गए
8–2002 में अतीक़ अहमद पाँचवी बार इलाहाबाद पश्चिम से जीते, इस बार अपना दल के टिकट पर जीत मिली थी
9–2004 में अतीक़ अहमद फिर से सपा में लौट आए और फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीत गए
10–2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या का आरोप अतीक़ पर लगा
11–अतीक़ अहमद के सांसद बनने से इलाहाबाद पश्चिम सीट पर उपचुनाव हुआ था और राजू पाल ने अतीक़ के भाई अशरफ़ को हरा दिया था
12–2006 में अतीक़ अहमद के ख़िलाफ़ उमेश पाल के अपरहण के मामले में केस दर्ज हुआ
13–2008 में समाजवादी पार्टी ने अतीक़ अहमद को अमेरिका-भारत परमाणु करार में मनमोहन सिंह सरकार के ख़िलाफ़ वोट देने पर पार्टी से निकाल दिया
14–2009 में अतीक़ अहमद अपना दल के टिकट से प्रतापगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन हारा
15–2012 में हाई कोर्ट के 10 जजों ने अतीक़ अहमद की उस याचिका पर सुनवाई से ख़ुद को अलग कर लिया, जिसमें उन्होंने चुनावी कैंपेन की अनुमति मांगी थी
11वें जज ने अतीक़ को जेल से बाहर आकर चुनावी कैंपेन की अनुमति दी थी लेकिन राजू पाल की बीवी पूजा पाल से हार गया था
16–2016 में प्रयागराज के सैम हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय के स्टाफ़ के साथ अतीक़ अहमद और उनके गैंग ने मारपीट की
17–हाई कोर्ट के हस्तक्षेप पर अतीक़ अहमद ने सरेंडर कर दिया
18–2018 में शहर के कारोबारी मोहित जायसवाल को अगवा कर देवरिया जेल ले जाया गया और जबरन प्रॉपर्टी पेपर पर हस्ताक्षर कराया गया, तब अतीक़ अहमद इसी जेल में बंद था
19–2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अतीक़ अहमद को साबरमती जेल में शिफ़्ट किया गया
20–इसी साल 24 फ़रवरी को वकील उमेश पाल की हत्या कर दी गई, आरोप अतीक़ के बेटे असद और उनके गैंग पर लगा
21–28 मार्च को उमेश पाल अपहरण कांड में अतीक़ अहमद को उम्र क़ैद की सज़ा मिली
22–13 अप्रैल को अतीक़ अहमद के बेटे असद अहमद और उनके एक सहयोगी की पुलिस एनकाउंटर में मौत हो गई
23–15 अप्रैल को अतीक़ अहमद और उनके भाई अशरफ़ अहमद की पुलिस कस्टडी में हत्या हो गई

 

 

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