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Karnataka Hijab Row: ABVP के प्रदर्शन से जुड़े हैं हिजाब विवाद के तार? जानें पूरी कहानी

कर्नाटक में हिजाब को लेकर विवाद जारी है. इस बीच पिछले साल 30 अक्टूबर को एक प्रदर्शन से भी इस विवाद के तार जोड़े जा रहे हैं.

कर्नाटक में दिसंबर के आखिर में शुरू हो गया था हिजाब को लेकर विवाद. (फाइल फोटो-PTI)

30 अक्टूबर को ABVP ने किया था प्रदर्शन,एक मुस्लिम छात्र भी हुआ था इसमें शामिल,मुस्कान के भी प्रदर्शन में जाने की चर्चा है

कर्नाटक के उडुपी में शुरू हुए हिजाब विवाद को लेकर देशभर में बवाल जारी है. अब तक जो सामने आया है उसमें ये कहा जा रहा है कि हिजाब पहनकर आई छात्राओं को क्लास में जाने से रोकने के बाद ये विवाद शुरू हुआ. हालांकि, इस पूरे विवाद की एक दूसरी कहानी भी निकलकर सामने आ रही है.

क्या है वो कहानी?

– पिछले साल मणिपाल की एक छात्रा से कथित बलात्कार का मामला सामने आया. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने 30 अक्टूबर को इस मामले की जांच की मांग करते हुए प्रदर्शन किया.

– ऐसा बताया जा रहा है कि इस प्रदर्शन में एक मुस्लिम छात्र ने भी हिस्सा लिया था. इस पर कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) ने आपत्ति जताई कि एक मुस्लिम छात्र ABVP के प्रदर्शन में कैसे शामिल हो सकता है?

– हालांकि, उडुपी के एसपी विष्णु वर्धन ने कहा कि इसी घटना से मौजूदा विवाद खड़ा हुआ, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. क्योंकि अभी तक दोनों घटनाओं को लेकर कोई इंटेलिजेंस रिपोर्ट नहीं आई है।

मुस्कान ने भी लिया था प्रदर्शन में हिस्सा

– ऐसा भी कहा जा रहा है कि ABVP के प्रदर्शन में मुस्कान जैनब (Muskan Zainab) ने भी हिस्सा लिया था. मुस्कान वही लड़की हैं जो हिजाब विवाद में चर्चा में आई हैं. बताया जा रहा है कि मुस्कान ने उस प्रदर्शन के दौरान हिजाब नहीं पहना था. इस पर मुस्कान के पिता ने आपत्ति जताई थी और स्कूल में शिकायत की थी.

– इस मामले पर जब उडुपी के विधायक रघुपति भट से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि स्कूल ने उन्हें प्रदर्शन में नहीं भेजा था. बलात्कार के मुद्दे पर उस समय कई लड़कियों ने हिजाब पहनकर प्रदर्शन किया था.

– भट ने आरोप लगाया कि लड़कियों ने हिजाब पहनन की मांग तब से शुरू की, जब से वो पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) नाम के संगठन के संपर्क में आईं. उन्होंने बताया कि हमने उनसे कहा कि कैंपस में हिजाब पहनकर आ सकती हैं, लेकिन क्लास में नहीं. विवाद यहीं से शुरू हुआ.

कॉलेज के प्रिंसिपल का क्या है कहना?

जब पूछा गया कि क्या कॉलेज ने उस लड़की को बिना हिजाब के प्रदर्शन में जाने के लिए कहा था? तो इस पर कॉलेज के प्रिंसिपल रुद्र गोवड़ा ने कहा कि ये सही नहीं है. वो अपनी मर्जी से प्रदर्शन में गई थी. उन्होंने कहा कि हमने उस दिन उसकी एब्सेंट भी लगाई थी. कॉलेज किसी को कहीं नहीं भेजता है. माता-पिता को भी बता दिया गया था.

अक्टूबर-नवंबर में बने ट्विटर हैंडल

– हिजाब विवाद को लेकर 6 छात्राओं ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है. इनमें आलिया असादी, बीबी आयशा पलावकर, आयशा हजारा अल्मास और मुस्कान जैनब भी हैं.

– इन चारों के ट्विटर हैंडल अक्टूबर और नवंबर 2021 में बने थे. इनके अकाउंट्स पर रोज हिजाब विवाद को लेकर पोस्ट अपडेट की जा रही हैं. ये कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) के ट्वीट को रिट्वीट कर रहे हैं. (हम इन हैंडल की प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं करते, क्योंकि वो वेरिफाइड नहीं हैं.)

– सीएफआई के राष्ट्रीय महासचिव अश्वान सादिक ने इन सभी आरोपों को खारिज किया है और उनका कहना है कि वो (छात्राएं) फॉलोअर हैं.

 

जानें हिजाब विवाद के बाद चर्चा में आए PFI के बारे में, जिस पर लग सकता है बैन

PFI यानि पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का झंडा
What Is PFI : कर्नाटक में हिजाब विवाद के बाद जिस संगठन का नाम इसके पीछे लिया जा रहा है, वो PFI है यानि पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front Of India). इसे कट्टरवादी इस्लामिक संगठन कहा जाता है, जो साउथ इंडिया में अस्थिरता फैलाने में सक्रिय रहा है तो उत्तर भारत में भी उसकी सक्रियता चर्चाओं में आती रही है।

कर्नाटक के हिजाब विवाद के बाद दो संगठन चर्चाओं में आ गए हैं. एक है कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) और दूसरा PFI यानि इस्लामिक कट्टरपंथी संस्था पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया. दरअसल सीएफआई (CFI) को कट्टरपंथी PFI की ही स्टूडेंट विंग है. अब कर्नाटक के शिक्षा मंत्री पीएफआई पर बैन लगाने की बात कह रहे हैं. दरअसल पीएफआई ऐसा विवादास्पद संगठन है, जिसके ऊपर उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश और कई राज्यों में बैन लगाने की मांग उठ चुकी है. जानते हैं क्या है ये संगठन और क्यों इतना विवादित है.

जब दिल्ली और देश के कई राज्यों में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे, तब भी उसके पीछे पीएफआई (PFI) का हाथ बताया गया था, यूपी में तब पुलिस ने पीएफआई के कई सदस्यों को गिरफ्तार किया था.

पीएफआई के ISIS और सिमी से लिंक होने का दावा
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के बारे में कहा जाता है कि ये एक कट्टर इस्लामिक संगठन है. इसको लेकर कुछ सनसनीखेज खुलासे हुए हैं. नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी इस संगठन के ISIS और सिमी के साथ संपर्कों की तलाश में करता रहा है. एजेंसियों को इसके बार में कुछ चौंकाने वाली जानकारियां भी मिलती रही हैं.

पीएफआई के बारे में कहा जाता है कि उसका केरल मॉड्यूल ISIS के लिए काम कर रहा था. वहां से इसके सदस्यों ने सीरिया और इराक में ISIS को जॉइन किया.

पिछले दिन जब नागरिकता कानून को लेकर दिल्ली और यूपी में हिंसा की घटनाएं हुई थीं तो भी पीएफआई का नाम इसके पीछे आया था.
मई 2019 में भारतीय खुफिया एजेंसियों ने पीएफआई के कई ऑफिसों पर छापे मारे. खुफिया एजेंसी के अधिकारियों को शक था कि इसके सदस्यों ने 21 अप्रैल को ईस्टर के मौके पर श्रीलंका में हुए बम ब्लास्ट के मास्टरमाइंड का ब्रेन वॉश किया था. श्रीलंका के इस बम धमाके में 250 लोगों की मौत हुई थी.

PFI के ऊपर राज्य में राजनीतिक हत्याओं का आरोप

पीएफआई के ऊपर ISIS से लिंक होने के अलावा भी कई तरह के आरोप हैं. आरोप है कि इस संगठन का हाथ कई राजनीतिक हत्याओं और धर्म परिवर्तन के मामलों में है. द प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक पीएफआई का नाम लव जिहाद के मामलों में भी आया है.

2017 में केरल की पुलिस ने एनआईए को लव जिहाद के 94 मामले सौंपे थे. बताया जाता है कि लव जिहाद के इन मामलों के पीछे पीएफआई के 4 सदस्यों का हाथ था. एनआईए को शक था कि 94 शादियों में से 23 पीएफआई ने अपनी निगरानी में करवाई थी.

पीएफआई के लिंक भारत में बैन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी से भी रहे हैं. पीएफआई के कुछ सदस्य पहले सिमी के सक्रिय कार्यकर्ता रह चुके हैं. द प्रिंट के मुताबिक पीएफआई के राष्ट्रीय महासचिव अब्दुल रहमान पहले सिमी का राष्ट्रीय सचिव रह चुका है. जबकि पीएफआई का राज्य संगठन सचिव अब्दुल हमीद इसके पहले 2001 में सिमी में इसी पद पर था. बताया जाता है कि 2006 में सिमी को बैन कर दिए जाने के बाद इसके सदस्य पीएफआई में आ गए.

पीएफआई पर सनसनीखेज आरोप

2010 में पीएफआई पर आरोप लगा कि इसके सदस्यों ने एक मलयाली प्रोफेसर टी जे जोसेफ का दाहिना हाथ काट डाला था. क्योंकि प्रोफेसर ने पैगंबर पर सवाल उठाए थे. 2012 में केरल की सरकार ने हाईकोर्ट में एक एफिडेविट दी थी. इसमें आरोप लगाया गया था कि पीएफआई के सदस्यों का सीपीआई(एम) और आरएसएस से जुड़े 27 राजनीतिक हत्याओं में हाथ था. सरकार ने कहा कि ज्यादातर हत्याएं सांप्रदायिक रंग देकर की गई थी. इसके अलावा भी इनकी 86 इसी तरह की हत्याएं करने की योजना थी. ये एफिडेविट कन्नूर में एक एबीवीपी से जुड़े छात्र सचिन गोपाल की हत्या के बाद दी गई थी.

2016 में कर्नाटक के एक स्थानीय आरएसएस नेता रुद्रेश की दो मोटरसाइकिल सवार लोगों ने हत्या कर दी थी. बेंगलुरु के शिवाजीनगर में हुए इस हत्या में पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया था. ये चारों पीएफआई से जुड़े हुए थे.

पीएफआई, क्या है पीएफआई, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, क्या है पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया

नेशनल इनवेस्टिगेटिव एजेंसी (NIA) भी पीएफआई के बारे में जांच करती रही है. उसके पास इसके बारे में काफी जानकारियां हैं.
द पायनियर की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2013 में पीएफआई पर उत्तरी कन्नूर में एक ट्रेनिंग कैंप चलाने का आरोप लगा. कन्नूर पुलिस ने कहा कि कैंप से उन्हें तलवार, बम, आदमी की तरह दिखने वाले लकड़ी के पुतले, देसी पिस्तौल और आईईडी ब्लास्ट में काम आने वाली चीजें मिलीं. कैंप से कुछ बैनर पोस्टर भी बरामद हुए, जो आतंकी गतिविधि में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करने वाली थी.

2012 में इस ग्रुप का नाम असम के कोकराझार में आया. कहा गया कि पीएफआई के सदस्यों ने जानबूझकर इलाके में अफवाह फैलाकर दंगा फैलाया.

कैसे बनी पीएफआई

पीएफआई केरल से संचालित होने वाला एक कट्टर इस्लामिक संगठन है. पीएफआई की स्थापना 1993 में बने नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट से निकलकर हुई है. 1992 में बाबरी मस्जिद ढहने के बाद नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम से एक संगठन बना था.

एनआईए के मुताबिक 92 में बाबरी मस्जिद ढहने के बाद केरल कट्टर इस्लामिक संगठनों का पनाहगाह बन गया. इसी दौर में वहां नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट बनी थी. 2006 में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट का पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया में विलय हो गया. केरल में पीएफआई की मजबूत स्थिति है. हालांकि वो पूरे देश में फैले हुए हैं. एनआईए के मुताबिक देश के 23 राज्यों में पीएफआई की पैठ है. केरल और कर्नाटक में इन्होंने अपने राजनीतिक संपर्क भी बना लिए हैं.

पीएफआई का दावा है कि वो मुस्लिम समुदाय की भलाई के लिए काम करती है. इनका कहना है कि ये मुसलमानों के हक और अधिकार की आवाज को बुलंद करती है. हालांकि असलियत इसके ठीक उलट है.

 

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