अवसरवाद: सेवानिवृत्ति बाद जस्टिस कौल को कालेजियम सिस्टम में दिखा खोट

Many Appointments Get Done By The Collegium And After Retirement Justice Kaul Says Current Judicial Appointment System Is Not Right
कॉलेजियम से ना जाने कितने काम करवाए और रिटायर हुए जस्टिस कौल तो कह रहे- सिस्टम ठीक नहीं है
जस्टिस संजय किशन कौल सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो चुके हैं। उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद कहा है कि उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति का कॉलेजियम सिस्टम सबसे अच्छा नहीं है। यानी, कॉलेजियम सिस्टम में कुछ गड़बड़ी है। हालांकि, जस्टिस कौल ने रिटायरमेंट से कुछ महीने पहले तक कॉलेजियम के जरिए कई नामों को आगे बढ़ाया था।
मुख्य बिंदु
जस्टिस संजय किशन कौल ने रिटायरमेंट बाद कॉलेजियम सिस्टम पर उठाया सवाल
उन्होंने कहा कि ऊपरी अदालतों में जजों की नियुक्ति को यह तरीका सबसे अच्छा नहीं
इसी सिस्टम से जस्टिस कौल ने रिटायरमेंट से कुछ महीने पहले तक कई नियुक्तियां करवाईं
नई दिल्ली 30 दिसंबर: जस्टिस संजय किशन कौल ने रिटायरमेंट बाद संवैधानिक अदालतों के न्यायाधीशों के चयन को कॉलेजियम सिस्टम को सबसे अच्छा तरीका नहीं बताया। हालांकि, उन्होंने खुद सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट कॉलेजियम का हिस्सा रहते हुए कई नाम आगे बढ़ाये थे। शायद इसी से रिटायरमेंट बाद उनके विचार पर किसी को हैरानी नहीं हुई। न्यायपालिका के सूत्रों का कहना है कि उनके मोहभंग का कारण शायद जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में एक वकील की नियुक्ति,मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक जज को सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन और दिल्ली हाईकोर्ट के सबसे सीनियर जज की जगह सुप्रीम कोर्ट के जज या किसी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में नियुक्ति नहीं कर पाना हो सकता है।

इन प्रस्तावों को कॉलेजियम के अन्य सभी सदस्यों के विरोध का सामना करना पड़ा था। विवाद से बचने के लिए प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) 6 नवंबर के बाद से रणनीतिक रूप से कॉलेजियम की बैठकें आयोजित करने से बचते रहे। 6 नवंबर को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट के जजों के रूप में नियुक्ति के लिए तीन नामों की सिफारिश की थी। जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत के अलावा जस्टिस कौल भी कॉलेजियम मेंबर के रूप में तीनों नामों का चयन करने में शामिल थे।

खुद कॉलेजियम का रहे हिस्सा

जस्टिस एनवी रमण के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में आने वाले जस्टिस कौल को उम्मीदवारों के चयन के बारे में मजबूत राय रखने वाला व्यक्ति माना जाता था। वह चाहते थे कि जिन उम्मीदवारों का नाम वो सुझाते हैं और उनके नामों की सिफारिश करने के लिए जोर देते हैं, उन्हें ही नियुक्त किया जाए, भले ही कॉलेजियम के अन्य सदस्यों को आपत्ति हो।

सिस्टम का हिस्सा रहकर सरकार को करते थे मजबूर

इस तरह के उम्मीदवारों को प्रशासनिक पक्ष पर जज के रूप में आगे बढ़ाने में सफल होने के बाद उन्होंने न्यायिक पक्ष पर कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से केंद्र सरकार को उन्हें जल्द से जल्द हाईकोर्ट जज के रूप में नियुक्त करने के लिए प्रेरित, बल्कि यह कहना उचित होगा कि मजबूर करते थे। वो रिटायरमेंट से कुछ महीने पहले तक कई हाईकोर्ट जजों के ट्रांसफर प्रपोजल्स को भी आगे बढ़ाने में सफलता प्राप्त की थी।

सरकार से खुल्लम-खुल्ला बातचीत के थे पक्षधर

जस्टिस कौल हाई कोर्ट के जजों के रूप में नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों के नामों पर सहमति के लिए सीजेआई के नेतृत्व वाले कॉलेजियम और सरकार के बीच ‘गुप्त’ या ‘पिछले दरवाजे’ से बातचीत के खिलाफ थे। इस कारण कई मामलों में शासन के दो अंगों के बीच खींचतान हुई। उन्होंने सुझाव दिया कि इसके बजाय कॉलेजियम की सिफारिशों के खिलाफ सरकार की तरफ से उठाई गई आपत्तियों पर दोनों के बीच पारदर्शी बातचीत होनी चाहिए।

दशकों पहले बंद हो गया था पारदर्शिता का रास्ता

‘पारदर्शी संवाद’ के रास्ते से विशेष सिफारिशों के खिलाफ सरकार के आरोपों और आपत्तियों की प्रकृति उजागर हो सकती है। लेकिन जजों के रूप में नियुक्ति के लिए विचार किए जा रहे व्यक्तियों की प्रतिष्ठा और गरिमा की रक्षा के लिए इस रास्ते से जानबूझकर तौबा कर लिया गया है। किसी व्यक्ति के खिलाफ सरकार की असत्यापित आपत्तियों को सार्वजनिक करना, चाहे वह वकील हो या न्यायिक अधिकारी, उनकी पेशेवर गतिविधि को खतरे में डाल सकता है, भले ही उन्हें अनुशंसित पद के लिए नियुक्त नहीं किया गया हो।

 …तो कई वकीलों और जजों की प्रतिष्ठा धूमिल हो जाती

ऐसे उदाहरण हैं जहां सरकार ने कुछ मुद्दों को रेखांकित करते हुए कॉलेजियम को पुनर्विचार को नाम वापस भेजे। ऐसे अवसरों पर सीजेआई ने संबंधित हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से पूछताछ करने को कहा है। दूसरी जांच के निष्कर्षों ने सीजेआई को सरकार के साथ मामले को नए सिरे से उठाने में मदद की और ज्यादातर मामलों में सीजेआई नियुक्ति कराने में सफल रहे। सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने कहा कि अगर इन बातचीत को गोपनीय नहीं रखा जाता तो वे कई हाई कोर्ट जजों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाते, जिनकी नियुक्तियों पर शुरू में सरकार ने आपत्ति जताई थी।

कॉलेजियम सिस्टम पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट में रार

साथ ही, सीजेआई के नेतृत्व वाला कॉलेजियम कार्यपालिका की अप्रमाणित और आधारहीन आपत्तियां स्वीकार नहीं करने पर अडिग रहा है और सरकार की तरफ से इन्हें वापस किए जाने के बाद भी उन्हीं नामों को दृढ़ता से दोहराया है। कॉलेजियम के सदस्यों ने सर्वसम्मति से कहा कि संवैधानिक अदालतों के जजों के चयन को कॉलेजियम सिस्टम सबसे उपयुक्त है या नहीं, यह संसद को तय करना है और अगर इसे चुनौती दी जाती है तो सुप्रीम कोर्ट को कानून की वैधता का परीक्षण करना है। सुप्रीम कोर्ट के सूत्र भी अचानक न्यायिक नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम सिस्टम को लेकर गलत धारणा फैलाने की कोशिश से उलझन में दिख रहे थे।

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