हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में ही लगता है कुंभ

आस्था, विश्वास, श्रद्धा, संस्कृति और परम्परा का अगाध प्रवाह, कुंभ हिन्दू संस्कृति का सबसे अनूठा पर्व है, प्रत्येक 12 साल बाद लगने वाला कुंभ पर्व हिन्दू धर्म में विशिष्ट स्थान रखता है। कुंभ का पर्व भव्यता के साथ साथ दिव्यता की अनुभूति भी कराता है।

कुंभ क्यों लगता है, कब लगता है और कंहा लगता है, ये भी बहुत विशिष्ट है। शास्त्रों में कुंभ को लेकर जो उल्लेख मिलता है उसके अनुसार कुंभ पृथ्वीलोक पर केवल चार स्थानो पर ही लगता है। दुनिया मे कुंभ केवल भारत मे चार स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गुरु, सूर्य, चंद्र के विशेष ग्रह योग में ही लगता है। यह विशेष ग्रह योग एक स्थान पर प्रत्येक 12 साल बाद बनते है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में हरिद्वार कुंभ के बारे में उल्लेख मिलता है ” पद्मिनी नायको मेषे कुंभ राशि गतो गुरुः। गंगा द्वारे भवेद योगः कुंभनाम तदोत्तमः।” यानी सूर्य मेष राशि मे होते है और गुरु कुंभ राशि मे होते है तब कुंभ पर्व का योग बनता है। यह विशेष ग्रह योग जब भी बनते है तभी कुंभ का पर्व पड़ता है। हरिद्वार में यह विशिष्ट ग्रह योग प्रत्येक 12 वर्ष बनते है।

हरिद्वार कुंभ के बारे में यह धारणा प्रचलित रही है कि जनवरी माह से अप्रैल माह तक इन चार महीनों में जो भी स्नान पर्व पड़ते है वह कुम्भ स्नान पर्व होते है यानी उन सभी स्नान पर्वो पर स्नान करने से कुंभ स्नान का पुण्यफल प्राप्त होता है। जबकि हमारे शास्त्रों में ऐसा कंही बजी उल्लेख नही मिलता है। शास्त्रों में हरिद्वार कुंभ के बारे में जो वर्णन मिलता है उसके अनुसार हरिद्वार कुंभ में जब भी गुरु का कुम्भ राशि मे होना और सूर्य का मेष राशि मे होना यह दो विशिष्ट ग्रह योग बनते है तब कुम्भ पर्व का योग बनता है। शास्त्रों में कहा गया है “कुंभ राशि गते जीवे तथा मेषे गतो र वौ, हरिद्वारे कृतं स्नानम पुनरावृति वर्जनम।” अर्थात जब मेष राशि में सूर्य हो और कुंभ राशि मे गुरु हो तो इस अमृत योग में स्नान करने से पुनर्जन्म नही होता है। कुंभ पर्व के दौरान गंगा स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस वर्ष 5 – 6 अप्रैल 2021 को वह विशिष्ट ग्रह योग बना है जिसमे कुंभ का पर्व पड रहा है। इस बार देव गुरु बृहस्पति 5 – 6 अप्रैल को रात्रि 12 बजकर 23 मिनट पर कुंभ राशि मे प्रवेश कर गए है
यानी कुंभ पर्व का पहला चरण शुरू हो गया है जबकि कुंभ का पूर्ण ग्रहयोग 13-14 अप्रैल 2021 को रात्रि 2 बजकर 33 मिनट पर उस वक्त बनेगा जब सूर्य मेष राशि मे प्रवेश कर जाएंगे। यानी इसके बाद ही सही मायनों में कुंभ स्नान का मुहूर्त बनेगा। प्रख्यात ज्योतिष डॉक्टर प्रतीक मिश्रपुरी के अनुसार इसी दिन नव संवत्सर की शुरुआत होगी, सक्रांति भी होगी। इसी दिन अमृत की चौघड़िया प्रातः 7 बजकर 28 मिनट से 9 बजकर 5 मिनट तक रहेगी और इसी दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 42 मिनट तक होगा। प्रतीक मिश्रपुरी के अनुसार यही कुंभ के स्नान का सर्वोत्तम योग होगा। उनका कहना है कि कुंभ का यह दुर्लभ योग लगभग एक माह तक रहेगा। यानी कुंभ का यह ग्रह योग 14 – 15 मई 2021 की अर्धरात्रि तक बना रहेगा। इस एक माह की अवधि में गंगा में कुंभ स्नान का पुण्यफल प्राप्त होगा। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार 14 अप्रैल का स्नान ही वास्तविक कुंभ स्नान होगा और सबसे महत्वपूर्ण होगा। इसके बाद 21 अप्रैल को रामनवमी, 27 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा, 11 मई को भौमवती अमावस्या और 14 मई को अक्षय तृतिया को भी कुंभ के स्नान बताया गया है। इनमे 12 अप्रैल, 14 अप्रैल और 27 अप्रैल को शाही स्नान होंगे।
मान्यता है कि कुंभ का स्नान हरिद्वार में हरकी पैड़ी पर ब्रह्मकुंड में करने से ही अमृतफल की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार कुंभ को लेकर जो वर्णन मिलता है उसके अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत से भरा कलश निकला तो अमृत को लेकर देव और असुरों में संघर्ष हो गया। इसी संघर्ष के दौरान अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें धरती पर 4 स्थानों पर गिरी। यह स्थान हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में है। मान्यता है कि हरिद्वार में सबसे पहले अमृत की बूंदे हरकी पैड़ी पर ब्रह्मकुंड में ही गिरी थी। इसीलिए धर्मशास्त्रों के अनुसार कुंभ स्नान का पुण्यफल केवल ब्रह्मकुंड में करने से ही प्राप्त होता है।
प्रत्येक 12 साल में कुंभ का योग बनता है मगर हमेशा ऐसा नही होता है। क्योंकि हरिद्वार का कुंभ पूरी तरह से बृहस्पति और सूर्य की गति पर आधारित है।
कुंभ पर्व का योग वैसे तो प्रत्येक 12 साल बाद बनता है मगर इस बार यह ग्रह योग 11 साल बाद बना है। ज्योतिषी बताते है कि कुंभ देव गुरु बृहस्पति की गति पर निर्भर करता है जो कि कुंभ के बाद12 राशियों के ऊपर से गुजरते हुए 12वें साल में पुनः कुम्भ राशि मे प्रवेश करते है। यानी गुरु लगभग 1 वर्ष तक एक राशि मे रहते है और वापस उसी राशि मे आने के लिए उसे 11 साल 87 दिन लगते है। डॉक्टर प्रतीक मिश्रपुरी का कहना है कि हर ग्रह का पूरा राशि चक्र घूमने का अलग अलग समयकाल होता है। इसी तरह देव गुरु बृहस्पति को कुंभ राशि से कुंभ राशि मे वापस लौटने में 4333 दिन लगते है। यह देवगुरु बृहस्पति की गति है जिसके अनुसार कुम्भ पर्वों के काल का निर्णय होता है। इस हिसाब से प्रत्येक सात कुंभ के बाद कुंभ 83 वर्षों में आ जाता है ना कि 84 वर्षों में। यानी हर सात कुंभ के बाद कुम्भ का समयकाल 12 वर्ष के बजाय 1 बर्ष घटकर 11 साल रह जाता है। हर सात कुंभ बाद जो कुंभ आता है वह 12 के बजाय देवगुरु बृहस्पति की ग्रह चाल के अनुसार 11 साल बाद बनता है। इससे पहले इस तरह का ग्रहयोग साल 1938, उससे पहले 1855 यह ग्रह योग बना था।
वैसे तो कुंभ भारत मे 4 स्थानों पर लगता है मगर हरिद्वार के कुंभ को सबसे खास माना जाता है। ज्योतिषीय हिसाब से सबसे अध्भुत और साम्भा कुंभ हरिद्वार का ही माना जाता है और सबसे पुराण कुंभ का इतिहास भी हरिद्वार का ही माना जाता है। हरिद्वार कुम्भ के बारे में शास्त्रों में उल्लेख मिलता है ” प्रथम कुंभ गँगाद्वारे, द्वितीय संगमे च तृतीयं शिप्रा तट गोदावरी स्नाने चतुर्थतम।” यानी पहला कुंभ गंगा किनारे हरिद्वार में क्योंकि अमृत कलश से सबसे पहले अमृत हरिद्वार में ही छलका था। इसके बाद प्रयागराज, तीसरा कुंभ उज्जैन और चौथा कुंभ नासिक में गोदावरी तट पर लगता है। कहा जाता है सबसे ज्यादा अमृत हरकी पैड़ी पर ब्रह्मकुंड में ही छलका था इसलिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण, और एक माह तक चलने वाला कुंभ हरिद्वार में ही लगता है। वैसे तो साल भर अलग अलग पर्वो पर स्नान का महत्व माना जाता है मगर विशिष्ट ग्रह योग में बनने वाले कुंभ स्नान को अत्यन्त पुण्यदायी माना गया है। हरिद्वार में कुंभ स्नान का फल सभी तीर्थों में स्नान करने के बराबर प्राप्त होता है। स्कन्ध पुराण में भी कुंभ स्नान को अमरत्व को प्राप्त करने वाला बताया गया है।स्कन्ध पुराण में नारद जी कहते है कि मनुष्य की मुक्ति का एक ही मार्ग है, हरिद्वार में कुंभ स्नान। जो हरिद्वार में कुंभ स्नान कर लेते है वह मोक्ष को प्राप्त होते है। अर्थात हरिद्वार के 7 कुम्भ का स्नान करने से 84 लाख योनियों से मुक्ति मिल जाती है।

@संजय आर्य

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