अर्थव्यवस्था: पुरानी पैंशन योजना मांग कैसे सुलझा सकती है सरकार,एक सुझाव

 

पेंशन का झमेला कैसे सुलझा सकती है सरकार

***फुरकान कमर, तौफीक अहमद सिद्दीकी***

 

केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी और स्वायत्त संस्थानों में काम करने वाले लोग न्यू पेंशन स्कीम (NPS) से नाखुश हैं। कई राज्य सरकारों, विशेष तौर पर गैर-बीजेपी शासित राज्यों ने ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) की बहाली का या तो वादा किया है, या बहाली कर दी है। वहीं, केंद्र सरकार ने भी कर्मचारियों को राहत देने का मन बना लिया है। OPS को दोबारा तो लागू नहीं किया जाएगा, पर कर्मचारियों को एक पूर्व निर्धारित निश्चित रकम पेंशन के तौर पर देने की गारंटी दी जा सकती है।

केंद्रीय समिति

NPS के मूल्यांकन के लिए केंद्रीय वित्त सचिव की अध्यक्षता में एक समिति बनी है। यह समिति NPS वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन प्रणाली में बदलाव की सिफारिश कर सकती है। साथ ही समिति NPS में बदलाव के निर्णय के वित्तीय प्रभावों और राजकोषीय प्रबंधन पर पड़ने वाले असर को भी ध्यान में रखेगी। OPS बंद करने का मुख्य कारण यह था कि सरकारों ने भविष्य में पेंशन भुगतान के लिए कोई कोष नहीं बनाया। पेंशन का भुगतान वर्तमान राजस्व से किया जाता रहा। इसके विपरीत NPS एक वित्त पोषित योजना है, जिसके तहत नियोक्ता और कर्मचारी एक पूर्व पूर्वनिर्धारित राशि निवेश करते रहते हैं।

लोगों के अनुभव 


OPS में पेंशन की रकम निर्धारित थी, जबकि NPS में मिलने वाली पेंशन बाजार दर पर निर्भर है। NPS लागू करते समय कोई विरोध नहीं हुआ। पुराने कर्मचारी इस से प्रभावित नहीं थे, क्योंकि यह भविष्य में नियुक्त होने वाले कर्मचारियों पर लागू होना था जो तब अस्तित्व में थे ही नहीं। धीरे-धीरे नवंबर 2022 तक नए कर्मचारियों की संख्या 82.7 लाख हो गई, जिसमें 23.43 लाख केंद्र सरकार और 59.29 लाख राज्य सरकार के कर्मचारी हैं। तजुर्बे बताते हैं कि NPS कर्मचारियों के लिए OPS जितनी उपयोगी नहीं है।

पुरानी पैंशन योजना का भार

वर्तमान बाजार दरें ऐसी हैं कि केंद्र सरकार का NPS में 14% का योगदान भी कर्मचारियों को उनके अंतिम वेतन के लगभग 30% से अधिक पेंशन नहीं दे पाएगा। वहीं OPS का बढ़ता बोझ राजकोषीय प्रबंधन को असंतुलित कर सकता है। एक अनुमान के अनुसार केवल छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान में OPS को दोबारा लागू करने से राजकोष पर तीन लाख करोड़ रुपये तक का भार पड़ सकता है। SBI के एक अध्ययन के अनुसार सारे सरकारी कर्मचारियों को OPS का लाभ देने में 31.04 लाख करोड़ रुपयों की जरूरत पड़ सकती है।

मिलेगी मदद


OPS पर वापस लौटने से सरकारों को तात्कालिक रूप से अपना वित्तीय संकट कम करने में मदद मिल सकती है, क्योंकि NPS पेंशन फंड में जमा 5.87 लाख करोड़ रुपये उन्हें वापस मिल सकते हैं। इसमें केंद्र को 2.18 लाख करोड़ रुपये और राज्य सरकारों को 3.69 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे। हालांकि यह आने वाले वक्त में परेशानी पैदा कर सकता है। फिर केंद्र और राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा से समझौता भी नहीं कर सकतीं। इसलिए कर्मचारी कल्याण और वित्तीय प्रबंधन के बीच संतुलन बनाने की संभावनाएं तलाशनी होंगी।

दूसरा रास्ता

सरकार OPS के बराबर पूर्वनिर्धारित लाभ NPS में दे सकती है। पेंशन की देनदारी और पेंशन फंड पर बाजार दर से अर्जित राशि के अंतर को सरकार उठा सकती है। ऐसा सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी से बनाए जाने वाले प्रॉजेक्ट में ‘वायबिलिटी गैप फंडिंग’ के नाम से हो रहा है। NPS में पेंशन के लिए संचित निवेश और OPS के बराबर पेंशन देने के लिए आवश्यक धनराशि के बीच बहुत बड़ा अंतर है। इसे दूर करने के लिए बेहतर होगा कि सरकार एक संशोधित NPS लाए, जिसमें कर्मचारियों को अपने वेतन का कम से कम 10% भविष्य निधि में निवेश करना ही हो।

बढ़े निवेश


सरकार मौजूदा बाजार दरों को ध्यान में रखते हुए कर्मचारियों के वेतन का लाभ 24% संशोधित NPS में हर महीने इन्वेस्ट करे। इस तरह कर्मचारियों को अपने वेतन के 50% के लगभग पेंशन मिल जाएगी। यह सुझाव एक त्वरित गणना पर आधारित है, परंतु अपने देश में सांख्यिकी के विद्वानों की कोई कमी नहीं है। वे अधिक सटीक अनुमान प्रदान करने में सक्षम होंगे।

    (लेखक फुरकान कमर जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली के प्रबंधन अध्ययन संकाय में  प्रोफेसर व तौफीक अहमद सिद्दीकी संकाय सदस्य हैं।)

 

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