किसी की भी टीम नहीं, मायावती ने बिगाड़े इंडी एलायंस और एनडीए के समीकरण

Mayawati Challenged Nda India Alliance Bsp Ticket Strategy Tough Fight Against Bjp On Many Lok Sabha Seat
मायावती ने टिकट स्ट्रेटजी से NDA-I.N.D.I.A को दिया झटका, कई सीट पर गणित बिगड़ा भाजपा का गणित
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद अपनी पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं। एक ओर भतीजा आकाश आनंद भाजपा पर हमलावर है, दूसरी तरह बसपा के टिकट वितरण से भाजपा को कड़ी टक्कर मिल रही है। मायावती जैसे जैसे उम्मीदवारों की घोषणा कर रही हैं, वैसे-वैसे NDA और इंडिया गठबंधन को झटका लग रहा है।
मायावती की एनडीए, इंडिया गठबंधन के खिलाफ रणनीति
कई लोकसभा सीटों पर खड़ी करेंगी दोनों के लिए मुसीबत
बसपा पर लगता रहा है भाजपा की बी टीम होने का भी आरोप

देहरादून/लखनऊ17अप्रैल 2024: लोकसभा चुनाव 2024 में NDA और I.N.D.I.A गठबंधन के बीच करो या मरो की स्थिति बन चुकी है। मोदी लहर को रोकने के लिए अखिलेश यादव से लेकर राहुल गांधी समेत तमाम विरोध दल एक एकजुट हो गए हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस बार इन्हीं दोनों दलों के बीच मेन मुकाबला होने जा रहा है। इस लड़ाई में वो दल भी मजबूती से दावा ठोक रहे हैं जो इस चुनाव में एकला चलो के रास्ते पर चल रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो और यूपी की 4 बार मुख्यमंत्री रही मायावती अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है। मायावती पर विपक्षी दल बीजेपी की B टीम होने का आरोप लगाते आए हैं।मायावती ने उन सभी आरोपों को खारिज करते हुए अपनी राजनीति से न केवल सपा और कांग्रेस की मुश्किलें खड़ी की है, बल्कि भारतीय जनता पार्टी को भी खुली चुनौती दे दी है।

दरअसल, राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि जो मायावती अभी तक भाजपा सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलने से कतराती थी। वह आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद से खुलकर मैदान में आ गई और अपनी रणनीति से न केवल इंडिया गठबंधन के लिए मुसीबत बन गई है, बल्कि NDA गठबंधन को भी कड़ी चुनौती दे रही है। एक और बसपा सुप्रीमो के भतीजे आकाश आनंद भाजपा सरकार के खिलाफ जमकर निशान साथ रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर मायावती अपने टिकट वितरण से दोनों गठबंधनों को कड़ी टक्कर दे रही है। यहां तक की बहुजन समाज पार्टी ने कई सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को उतार कर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लिए दिक्कतें पैदा कर दी है। वहीं सीट के जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर ब्राह्मण, ठाकुर और अन्य जाति के कैंडिडेट उतार कर भाजपा को कड़ी चुनौती दे दी है। इसका एक उदाहरण जौनपुर सीट है, जहां से बसपा ने पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी को टिकट देकर भाजपा को तगड़ा झटका दे दिया है।

2019 जैसी सफलता मिलना मुश्किल
बसपा सुप्रीमो मायावती की इस रणनीति पर वरिष्ठ पत्रकार नवल कान्त सिन्हा बताते हैं कि बहुजन समाज पार्टी को जो सफलता पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ने पर मिली थी वो सफलता अकेले चुनाव लड़ने पर नहीं मिलेगी। हालांकि मायावती को सबसे ज्यादा चिंता अपने कैडर वोटों की है, क्योंकि बसपा और सपा का वोटबैंक अलग-अलग है। उन्होंने बताया कि 2019 लोकसभा चुनाव में जिन सीटों पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे, वहां पर बसपा के वोटरों ने सपा को वोट न करके भाजपा कैंडिडेट का समर्थन किया था। इसी से मायावती को डर है कि अगर गठबंधन से कहीं हमारा वोट भाजपा में न चला जाए। इसी कारण बसपा सुप्रीमो एक तरह से लोकसभा का त्याग कर रही है जो गठबंधन के साथ एक बड़ी सफलता में बदल सकता था।

बसपा को B टीम कहना गलत
वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि यह बात कहां तक सच है कि BSP भाजपा की B टीम है, ये कहना मुश्किल है। इतना जरूर है कि बसपा ने जिन सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं, वहां पर सपा और कांग्रेस को तगड़ा झटका लगेगा। इसी बात का डर इंडिया गठबंधन के दलों को भी था। नवल कांत सिन्हा ने बताया कि मायावती जिस तरीके से उम्मीदवार उतार रही हैं उससे कहीं न कहीं सबसे ज्यादा फायदा भारतीय जनता पार्टी को होने वाला है। हालांकि बसपा सुप्रीमो ने जिन सीटों पर ब्राह्मण या अन्य जाति के कैंडिडेट पर दांव लगाया है या फिर जौनपुर सीट जिस पर पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी को उम्मीदवार बनाया है, उस जौनपुर सीट का चुनाव बेहद रोचक हो गया है। वहां पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। इस तरह कई सीट पर भाजपा का खेल बिगाड़ा है। इस लिहाज से ये कहना गलत होगा कि बसपा भाजपा की B टीम है। इतना जरूर है कि बसपा जिस तरह से चुनाव लड़ती है, उसका फायदा भाजपा को मिलता है।

मायावती के एजेंडे में लोकसभा नहीं
इसके साथ ही वरिष्ठ पत्रकार नवल कान्त सिन्हा ने आगे कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री मायावती लोकसभा चुनाव अपने लिए लड़ रही है। जहां-जहां उन्हें लग रहा है कि मजबूत कैंडिडेट खड़े कर सकते हैं, वहां अच्छे कैंडिडेट देने की कोशिश की है। हालांकि उनकी नजर में लोकसभा चुनाव नहीं बल्कि 2027 का विधानसभा चुनाव है। इसलिए बसपा सुप्रीमो मायावती लोकसभा चुनाव के जरिए खुद को फिर से ताकत के साथ खड़ा करना चाहती है। ताकि बसपा का कैडर वोट बैंक कहीं भी न छिटके। इसी वजह से बहुजन समाज पार्टी लोकसभा चुनाव 2024 अकेले दम पर लड़ रही है।

वहीं एक सवाल के जवाब में नवल कान्त सिन्हा ने बताया कि अगर ईडी का डर होगा, तो वो हमेशा रहेगा। ऐसा लगता नहीं है कि कोई भी पार्टी मायावती के खिलाफ कार्रवाई करेगी क्योंकि मायावती की सीटें भले ही कम हो लेकिन उनकी फैन फॉलोइंग बहुत ज्यादा हैं। मायावती एक मैसेज देने वाली नेता है। इसलिए अगर उनके खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई होती है तो दलित वर्ग में बेहद गलत मैसेज जाएगा।

खुलकर मैदान में खेल रही मायावती
बता दें, मायावती ने उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर ऐसे उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं कि भारतीय जनता पार्टी और NDA गठबंधन के होश फाख्ता हो गए है। बसपा सुप्रीमो ने शुरुआती लिस्ट में मुस्लिम उम्मीदवारों को उतार कर जहां इंडिया गठबंधन को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की वहीं जैसे-जैसे मायावती ने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की, उससे साफ लग रहा है कि मायावती ने अभी तक घोषित सीटों में से करीब 12 लोकसभा सीट पर भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है।

बसपा ने मथुरा, गाजियाबाद, जौनपुर, लखीमपुरखीरी, मुजफ्फरनगर, बागपत, उन्नाव, अलीगढ़, आजमगढ़, मैनपुरी, मिर्जापुर, अकबरपुर, घोसी, फैजाबाद समेत कई सीट पर अपने कैंडिडेट्स से मुश्किलें खड़ी कर दी है। इसके अलावा जिन सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं, वहां सपा और कांग्रेस को झटका देने की कोशिश की है। फिलहाल मायावती को अभी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा करना बाकी है।

दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण के सहारे मायावती
बसपा सुप्रीमो मायावती ने अकेले चुनाव लड़ते हुए NDA और INDIA गठबंधन की मुश्किलें खड़ी कर दी है। इसकी एक मुख्य वजह टिकट बंटवारा है। लेकिन जानकारों की माने तो देश के दलित मतदाताओं ने राजनीति को काफी प्रभावित किया है। आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी ने देश के दलित समाज पर एकाधिकार रखा था। दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण के एक अटूट गठजोड़ ने कांग्रेस पार्टी को मजबूत स्थिति दी थी। बाद में  कांशीराम और राज्यों में अलग-अलग दलित विचारकों ने इस तरह से काम किया कि जो दलित वोटबैंक कभी एकजुट हुआ करता था वो तितर-बितर हो गया था।

इसी वजह से बसपा सुप्रीमो मायावती एक- दो बार नहीं बल्कि 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी है। इस चुनाव में भी बसपा सुप्रीमो मायावती अपने दलित वोटबैंक के सहारे बड़ा खेल कर सकती है। हालांकि यह बात सच है कि गठबंधन में शामिल होकर मायावती बेहतर चुनाव लड़ सकती थी लेकिन उन्हें इंतजार लोकसभा चुनाव का नहीं बल्कि 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव का है लोकसभा चुनाव के जरिए मायावती सिर्फ अपना वोट बैंक मजबूत करना चाहती है।

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