भाजपा संसदीय बोर्ड से गडकरी और शिवराज बाहर, सोनोवाल,सुधा यादव और लालपुरा सम्मिलित

भाजपा संसदीय बोर्ड से बाहर हुए गडकरी और शिवराज सिंह चौहान, येदियुरप्पा सहित छह नए चेहरे शामिल

नयी दिल्ली, 17 अगस्त । भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बुधवार को अपनी सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई संसदीय बोर्ड से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी तथा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हटा दिया। नवगठित संसदीय बोर्ड में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा और पंजाब के सिख नेता इकबाल सिंह लालपुरा सहित छह नए चेहरों को शामिल किया गया है।पार्टी ने चुनावी टिकटों के बंटवारे को सबसे महत्वपूर्ण केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) का भी पुनर्गठन किया और इससे केंद्रीय मंत्री जुएल ओरांव और पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन की छुट्टी कर दी गई है। सीईसी में नए चेहरों के रूप में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव ओम माथुर को जगह दी गई है।

सीईसी में संसदीय बोर्ड के सभी सदस्यों के अलावा आठ अन्य सदस्य होते हैं। चूंकि गड़करी और चौहान संसदीय बोर्ड का सदस्य होने के नाते सीईसी के सदस्य थे, इसलिए पार्टी की इस महत्वपूर्ण इकाई से भी उनकी छुट्टी हो गई है।

पार्टी की ओर से जारी एक आधिकारिक विज्ञप्ति के मुताबिक, राज्यसभा सदस्य व पार्टी के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लक्ष्मण, अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा, पूर्व सांसद सुधा यादव और वरिष्ठ दलित नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया को संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाया गया है।

पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और संगठन महासचिव बीएल संतोष पहले से ही संसदीय बोर्ड के सदस्य हैं। संतोष संसदीय बोर्ड के सचिव हैं।

भाजपा संविधान के मुताबिक पार्टी अध्यक्ष के अलावा 10 अन्य संसदीय बोर्ड के सदस्य हो सकते हैं। पार्टी का अध्यक्ष संसदीय बोर्ड का भी अध्यक्ष होता है। अन्य 10 सदस्यों में संसद में पार्टी के नेता को शामिल किया जाना जरूरी है। पार्टी के महासचिवों में से एक को बोर्ड का सचिव मनोनीत किया जाता है।

चौहान एकमात्र मुख्यमंत्री है जो लंबे समय से संसदीय बोर्ड के सदस्य थे। शाह जब 2014 में भाजपा के अध्यक्ष बने थे तब उन्होंने चौहान को संसदीय बोर्ड में जगह दी थी। शाह ने तब वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को संसदीय बोर्ड से हटा मार्गदर्शक मंडल में डाला था।

संसदीय बोर्ड के पुनर्गठन में भाजपा ने सामाजिक और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का भी खासा ख्याल रखा है। भाजपा संसदीय बोर्ड में जगह बनाने वाले लालपुरा पहले सिख नेता हैं। वह इसमें अल्पसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधित्व करेंगे। सोनोवाल पूर्वोत्तर भारत से ताल्लुक रखने वाले पहले आदिवासी नेता हैं, जिन्हें भाजपा संसदीय बोर्ड में जगह दी गई है।

महिलाओं के प्रतिनिधि के तौर पर सुधा यादव को इसमें शामिल किया गया है जबकि के लक्ष्मण ओबीसी समुदाय से आते हैं और वह तेलंगाना से ताल्लुक रखते हैं। येदियुरप्पा कर्नाटक से हैं और वह वहां के प्रभावी लिंगायत समुदाय से आते हैं। इस प्रकार से संसदीय बोर्ड में दक्षिण से दो नेताओं को जगह दी गई है। कर्नाटक और तेलंगाना में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं।

भाजपा ने केंद्रीय चुनाव समिति से जिन नेताओं को हटाया है उनमें गडकरी और चौहान के अलावा केंद्रीय मंत्री जुएल ओरांव और पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन शामिल हैं।

नयी सीईसी में संसदीय बोर्ड के सभी सदस्यों के अलावा भूपेंद्र यादव, फडणवीस और ओम माथुर को जगह दी गई है। पार्टी की महिला मोर्चा की अध्यक्ष होने के नाते वनथी श्रीनिवासन केंद्रीय चुनाव समिति की पदेन सदस्य होंगी। उनसे पहले विजया रहातकर महिला मोर्चा की अध्यक्ष होने की वजह से सीईसी की पदेन सदस्य थीं। रहातकर की जगह श्रीनिवासन को 2022 में महिला मोर्चा के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

इन बदलावों के बाद बाद संसदीय बोर्ड और सीईसी में अब कोई भी पद खाली नहीं है। वर्ष 2020 में भाजपा का अध्यक्ष बनने के बाद नड्डा ने पहली बार इनमें परिवर्तन किया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली और सुषमा स्वराज के निधन तथा एम वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति और थावरचंद गहलोत के राज्यपाल बनने से संसदीय बोर्ड में कई रिक्तियां थी।

भाजपा सूत्रों ने बताया कि संसदीय बोर्ड में जगह देकर पुराने कार्यकर्ताओं और उनके अनुभवों का सम्मान करते हुए उन्हें ‘‘पुरस्कृत’’ किया गया है।

उन्होंने कहा कि येदियुरप्पा, जटिया और लक्ष्मण ने पार्टी के लिए अपना जीवन खपा दिया और पार्टी के उभार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

पार्टी के एक नेता ने कहा, ‘‘इन बदलावों में विविधता पर भी जोर दिया गया है। सोनोवाल पूर्वोत्तर से हैं तो येदियुरप्पा और लक्ष्मण दक्षिण से हैं। लालपुरा के रूप में सिख समुदाय का भी इसमें प्रतिनिधित्व है।’’

उन्होंने कहा कि सुधा यादव ने राजनीति में खुद अपना मुकाम बनाया है, जिनके पति कारगिल के युद्ध में शहीद हो गए थे।

कौन हैं सुधा यादव, जिन्हें BJP संसदीय बोर्ड में मिली सुषमा स्वराज की जगह

सुधा यादव राजनीति में नया नाम नहीं हैं बल्कि उनका राजनीतिक जीवन देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से शुरू हुआ था. साल 1999 में करगिल युद्ध के बाद हुए लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने सुधा यादव का नाम BJP को तब सुझाया जब पार्टी हरियाणा में महेंद्रगढ़ की सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी राव इंद्रजीत सिंह के सामने किसको चुनावी मैदान में उतारे के सवाल से जूझ रही थी.
नरेंद्र मोदी ने हरियाणा के प्रभारी रहते हुए साल 1999 में लोकसभा चुनाव के दौरान सुधा यादव का नाम पार्टी को सुझाया था।

इस फेरबदल के बाद गडकरी और चौहान के बोर्ड से बाहर होने के कारणों पर तो चर्चा हो ही रही है, बोर्ड में शामिल हुईं एक मात्र महिला सदस्य डॉक्टर सुधा यादव (Dr. Sudha Yadav) का नाम भी चर्चा में है. चर्चा इसलिए क्योंकि सुधा यादव से पहले बोर्ड में एकमात्र महिला सदस्य स्वर्गीय सुषमा स्वराज हुआ करती थीं जो 2014 से पहले लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष थीं और मोदी सरकार बनने के बाद देश की पहली महिला विदेश मंत्री बनीं .

ऐसे में सुधा यादव कौन हैं? वो कहां से आती हैं? कैसे उनका राजनीतिक करियर शुरू हुआ जैसे सवाल गूगल पर सर्च किए जाने लगे.

दरअसल बात 1999 की है जब सुधा यादव का नाम पहली बार एक नेता के रूप में सामने आया था. करगिल युद्ध के बाद 1999 में हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि कांग्रेस की तरफ से चुनाव मैदान में उतरे राव इंद्रजीत सिंह से मुकाबला कैसे किया जाए. पार्टी के सभी बड़े नेताओं का मानना था कि इंद्रजीत के सामने किसी दिग्गज नेता को उतारना चाहिए ताकि पार्टी को फायदा मिले और वो कांग्रेस को हरियाणा की जमीन पर पटखनी दे सके.

इस दौरान नरेंद्र मोदी हरियाणा के पार्टी प्रभारी थे. पार्टी के शीर्ष नेताओं ने उनसे महेंद्रगढ़ की लोकसभा सीट पर प्रत्याशी को लेकर सवाल किया तो उन्होंने उस समय एक ही नाम सामने रखा, और वो नाम कोई और नहीं बल्कि डॉ. सुधा यादव का ही था.

सुधा यादव के पति बीएसएफ में डिप्टी कमांडेंट थे और करगिल युद्ध में ही शहीद हुए थे. सुधा इस सब के बाद राजनीति में आने या चुनाव लड़ने जैसा सोच भी नहीं रही थीं. ऐसे में जब नरेंद्र मोदी ने नाम सुझाया तो बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने उनसे इस बारे में बात की, लेकिन नतीजा शून्य रहा. सुधा चुनाव नहीं लड़ना चाहती थीं, सो उन्होंने सभी को खाली हाथ लौटा दिया. चिंता में पड़ी पार्टी ने सुधा यादव को मनाने की जिम्मेदारी प्रदेश प्रभारी नरेंद्र मोदी को ही दे दी.

सुधा यादव ने कई बार इस पूरे वाकिये पर चर्चा करते हुए बताया कि जब उन्होंने साफतौर पर चुनाव में नहीं उतरने के लिए कह दिया था तब उस दौरान हरियाणा के प्रभारी नरेंद्र मोदी से फोन पर उनकी बात करवाई गई. उन्होंने सुधा से कहा था कि आपकी जितनी जरूरत आपके परिवार को है उतनी ही जरूरत इस देश को भी है. सुधा बताती हैं कि पति की शहादत के बाद उनके लिए वो समय काफी मुश्किल भरा था, ऐसे में चुनाव लड़ने का तो वो सोच भी नहीं सकती थीं, लेकिन नरेंद्र मोदी की बातों ने उन्हें ऊर्जा दी. और लेक्चरर बनने की चाहत रखने वालीं सुधा यादव ने चुनाव लड़ने के लिए हामी भर दी.

नरेंद्र मोदी ने उनसे चुनाव लड़ने की हामी भरवा ली तो समर्थन स्वरूप उन्होंने अपनी मां से आशीर्वाद में मिले ग्यारह रुपए भी उन्हें चुनाव प्रचार के लिए दिए. नरेंद्र मोदी ने हालांकि यह भी कहा था कि जिनके सामने आप चुनाव लड़ रही हैं वो रॉयल फैमिली से हैं. आप लेकिन जाइए और अपने परिवार के लोगों से और क्षेत्रीय लोगों से मिलिए. उन्होंने कहा कि इसके बाद आप तीन और लोगों से मिलिए. मोदी ने तब अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और कुशाभाऊ ठाकरे के नाम लिए. इसके अलावा उन्होंने उस समय सुषमा स्वराज से मिलने के लिए भी कहा. जिसके बाद पहली कार्यकर्ता मीटिंग गुरुग्राम की अग्रवाल धर्मशाला में रखी गई. नरेंद्र मोदी उस मीटिंग को लेने के लिए आए थे. उन्होंने वहां अपने भाषण में कहा कि एक वोट से सरकार गिरी थी, और यही वो वोट है जो हमें जीतना है.

मोदी ने इस मीटिंग में साफ कर दिया था कि जिनको हम चुनाव लड़वा रहे हैं उनके पास इतनी पूंजी नहीं है. तो हम सभी को मिलकर चुनाव लड़वाना होगा. मैं अपने उन ग्यारह रुपयों का योगदान इस बहन को चुनाव लड़ने में योगदान के रूप में दे सकता हूं. आधे घंटे के अंदर वहां लाखों रुपए जुट गए. आखिरकार ये मेहनत रंग लाई, सुधा चुनाव जीत गईं.

यह चुनाव बीजेपी के लिए बेहद खास भी था. पार्टी चाहती थी कि सुधा महेंद्रगढ़ की लोकसभा सीट से बतौर बीएसएफ के डिप्टी कमांडेंट शहीद सुखबीर सिंह यादव की पत्नी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरें. बीजेपी का यह दांव ‘मास्टरस्ट्रोक’ साबित हुआ और सुधा यादव ने चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी राव इंद्रजीत सिंह एक लाख 39 हजार वोटों से हराया और साल 1999 से 2004 तक सांसद रहीं. लेकिन उसके बाद 2004 और 2009 के चुनाव में उन्हें जीत हासिल नहीं हुई. दोनों ही बार उन्हें चुनाव मैदान से खाली हाथ लौटना पड़ा. वहीं साल 2015 में सुधा यादव को बीजेपी ओबीसी मोर्चा का प्रभारी भी नियुक्त किया गया था.

ऐसे में अब बीजेपी के केंद्रीय संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में सुधा यादव को शामिल किए जाने को लेकर बड़े बड़े कयास लगाए जाने लगे हैं. ‘यादव फैक्टर’ के चलते माना जा रहा है कि बीजेपी जिसे हाल ही में बिहार से झटका मिला है, सुधा यादव एक बड़ा फायदा दे सकती हैं. दूसरी तरफ हरियाणा में बीजेपी की जमीन एक बार फिर पहले से ज्यादा मजबूत करने में भी सुधा यादव एक बड़ा किरदार निभाएंगी. पार्टी का यह दांव कितना सफल साबित होता है, यह आने वाले दिन बता देंगे. लेकिन यह साफ है कि बीजेपी सुषमा स्वराज की जगह सुधा यादव को देने को तैयार ऐ।

 

Six New Faces Including yeduyerappa and Sonowal included in bjp parliamentary board Gadkari And Chouhan  Removed From Bjp Parliamentary Board

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